आइए दोस्तो आज हम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी(Sachidanand Hiranand Vatsyayan Agay) की रचनाओं के बारे में विस्तार से पढेंगे।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
- जन्म : 7 मार्च, 1911 कुशीनगर
- मृत्यु : 4 अप्रैल, 1987 नई दिल्ली
- नाम- सच्चिदानंद वात्स्यायन
- जन्म- कुशीनगर (कसया) जिला देवरिया (उ.प्र.) में।
- बचपन का नाम – सच्चा
- ललित निबंधकार नाम- कुुट्टीचातन
- रचनाकार नाम- अज्ञेय (जैनेद्र-प्रेमचंद का दिया नाम है)
- अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि ।
- 1964 में आँगन के पार द्वार पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1979 में/कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
उपन्यास
शेखर : एक जीवनी खंड-1 (1941), सस्वती प्रेस, बनारस |
शेखर : एक जीवनी खंड-2 (1944), सस्वती प्रेस, बनारस |
नदी के द्वीप (1951) |
अपने–अपने अजनबी (1979), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी |
बारह खंभा (संयुक्त कृति), दस अन्य लेखकों के संग एक प्रयोग प्रभात प्रकाशन |
छाया मेंखल, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली |
बीनू भगत, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली |
आइए अब जानें इनके काव्य रचनाओं के बारे में
कविता-संग्रह
भग्नदूत (1933) |
चिंता (1942) |
इत्यलम् (1946) |
हरी घास पर क्षण भर (1949) |
बावरा अहेरी (1954) |
इंद्रधनु रौंदे हुए ये (1957) |
अरी ओ करुणा प्रभामय (1951) |
पुष्करिणी (1959) |
आँगन के पार द्वार (1961) |
पूर्वा (भग्नदूत, इत्यलम्, हरि घास पर क्षण भर का संकलन, 1965) |
कितनी नावों में कितनी बार (1967) |
सागर मुद्रा (1970) |
पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ (1974) |
महावृक्ष के नीचे (1977) |
नदी की बाँक पर छाया (1981) |
सदानीरा (दो खंडो में, 1984) |
ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986) |
मरुस्थल (1995) |
कारावास के दिन तथा अन्य कविताएं / अज्ञेय (अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद) |
लंबी रचनाएँ
- असाध्य वीणा / अज्ञेय
- चुनी हुई रचनाओं के संग्रह
- पूर्वा / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1965)
- सुनहरे शैवाल / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1965)
- अज्ञेय काव्य स्तबक / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1995)
- सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय (कविता संग्रह)
हाइकु
- मात्सुओ बाशो का हाइकु (अज्ञेय द्वारा अनुदित)
- चिड़िया की कहानी / अज्ञेय
- धरा-व्योम / अज्ञेय
- सोन-मछली / अज्ञेय
- हाइकु / अज्ञेय
- हे अमिताभ / अज्ञेय
⇒ दोस्तों इनके तार सप्तक संग्रह से एक -दो प्रश्न हर एग्जाम में आते है
सप्तक-संग्रह
1. तार सप्तक (1943), द्वितीय परिवर्द्धित संस्करण (1963)
- मुक्तिबोध
- नेमिचंद्र जैन
- भारतभूषण अग्रवाल
- प्रभाकर माचवे,
- गिरिजाकुमार माथुर
- रामविलास शर्मा
- अज्ञेय
2. दूसरा सप्तक (1951), प्रगति प्रकाशन, दिल्ली
- भवानीप्रसाद मिश्र
- शंकुतला माथुर
- हरिनारायण व्यास
- शमशेर बहादुर सिंह
- नरेश मेहता
- रघुवीर सहाय
- धर्मवीर भारती
अज्ञेय ने दुसरे सप्तक की भूमिका में लिखा है कि –
प्रयोग का कोई वाद नहीं है। हम वादी नहीं रहे, नहीं है। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। ठीक इसी तरह कविता का भी कोई वाद नहीं है, कविता भी अपने आप में इष्ट या साध्य नहीं है। अतः हमें ’प्रयोगवादी’ कहना उतना ही सार्थकथा निरर्थक है जितना हमें ’कवितावादी’ कहना।
3. तीसरा सप्तक (1959), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
- प्रयागनारायण त्रिपाठी
- कीर्ति चौधरी
- मदन वात्स्यायन
- केदारनाथ सिंह
- कुंवर नारायण
- विजयदेव नारायण साही
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
4. चौथा सप्तक (1979), सरस्वती विहार, दिल्ली
- अवधेश कुमार
- राजकुमार कुंभज
- स्वदेश भारती
- नंद किशोर आचार्य
- सुमन राजे
- श्रीराम शर्मा
- राजेन्द्र किशोर
नाटक
1. उत्तर प्रियदर्शी (1967)
कहानी-संग्रह
1. विपथगा (1937)
2. परंपरा (1944)
3. अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ
4. कड़ियाँ तथा अन्य कहानियाँ
5. कोठरी की बात (1945)
6. शरणार्थी (1948)
7. जयदोल (1951)
8. ये तेरे प्रतिरूप (1961)
9. संपूर्ण कहानियाँ (दो खंडों में, 1975)
यात्रा-वृत्तान्त
1. अरे यायवर रहेगा याद (1953)
2. एक बूँद सहसा उछली (1960)
3. बहता पानी निर्मल
डायरी
1. भवंती (1972, 1964-70)
2. अतंरा (1970, 1970-74)
3. शाश्वती (1979, 1975-79)
4. शेषा (1995)
निबंध/गद्य
1. त्रिशंकु (1945)
2. सबरंग (1964)
3. आत्मनेपद (1960)
4. हिंदी साहित्यः एक आधुनिक परिदृश्य (1967)
5. सबरंग और कुछ राग (1969)
6. आलवाल (1971)
7. लिखि कागद कोरे (1972)
8. अद्यतन (1977)
9. जोग लिखी (1977)
10. संवत्सर
11. स्त्रोत और सेतु (1978)
12. व्यक्ति और व्यवस्था (1979)
13. अपरोक्ष (1979)
14. युग संधियों पर (1981)
15. धारा और किनारे (1982)
16. स्मृति लेखा (1982)
17. कहाँ है द्वारका (1982)
18. छाया का जंगल (1984)
19. अ सेंस ऑफ टाइम (1981)
20. स्मृतिछंदा (1989)
21. आत्मपरक (1983)
22. केंद्र और परिधि (1984)
अज्ञेय के प्रमुख कथन –
🔸 अज्ञेय – प्रयोग का कोई वाद नहीं है। हम वादी नहीं रहे, नहीं है। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। ठीक इसी तरह कविता का भी कोई वाद नहीं है, कविता भी अपने आप में इष्ट या साध्य नहीं है। अतः हमें ’प्रयोगवादी’ कहना उतना ही सार्थकथा निरर्थक है जितना हमें ’कवितावादी’ कहना।
🔹 अज्ञेय – प्रयोगवादी कवि किसी एक स्कूल के नहीं हैं, किसी मंजिल पर पहुँचे हुए नहीं हैं, सभी राही है, राही नहीं, राहो के अन्वेषी’………काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण उन्हें समानता के सूत्र में बाँधता है।
🔸 अज्ञेय – प्रयोग अपने आप में इष्ट नहीं है, वह साधन है और दोहरा साधन है क्योंकि एक तो वह उस सत्य को जानने का साधन है जिसे कवि प्रेषित करता है, दूसरे वह उस प्रेषक की क्रिया को और उसके साधनों को जानने का भी साधन है।
🔹 अज्ञेय – प्रयोगशील कविता में नए सत्यों या नई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, इन सत्यों के साथ नए रागात्मक संबंध भी हैं, और उनको पाठक या सहृदय तक पहुँचाने यानी साधारणीकरण करने की शक्ति है।
🔸 अज्ञेय – प्रयोगवाद ’ज्ञात से अज्ञात’ की ओर बढ़ने की बौद्धिक जागरुकता है।
🔹 अज्ञेय – प्रयोगवाद व्यक्ति सत्य और व्यापक सत्य अथवा व्यक्ति अनुभूति और समष्टि अनुभूति को एक ही सत्य के दो रुप मानता है। प्रयोगवाद एक ओर व्यक्ति अनुभूति और समष्टि अनुभूति तक उत्सर्ग करने का प्रयास है, तो दूसरी ओर वह रूढ़ि का विरोधी और अन्वेषण का समर्थक है।
🔸 अज्ञेय – प्रयोग सभी कालों के कवियों ने किये हैं। किंतु कवि क्रमशः अनुभव करता आया है कि जिन क्षेत्रों में प्रयोग हुए हैं, आगे बढ़कर अब उन क्षेत्रों का अन्वेषण करना चाहिए जिन्हें अभी छुआ नहीं गया था जिनको अभेद्य मान लिया गया है।
🔹 अज्ञेय – प्रयोगशील कवि मोती खोजने वाले गोताखोर है।
🔸 अज्ञेय – कविता का मूल लक्ष्य अधिक से अधिक व्यक्ति को संस्कारित करना है।
🔹 अज्ञेय – भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, जानने का माध्यम भी है। जितनी हमारी भाषा होती है, हम उतना ही सोच सकते हैं।
🔸 अज्ञेय – उस साहित्य की कोई प्रतिष्ठा नहीं हो सकती जिनमें कोई सांस्कृतिक अस्मिता नहीं होती। जिससे हम बने हैं, उसे पहचानते हुए उसे अभिव्यक्ति दें तो वर्तमान व भविष्य हमारे हैं, नहीं तो हम कहीं के नहीं।
🔹 डाॅ. नगेंद्र – प्रयोगवाद शैलीगत विद्रोह है।
अज्ञेय के प्रमुख कथन –
🔸 डाॅ. नगेंद्र – अज्ञेय का स्वर अहं से ले कर समाज तक, प्रेम से लेकर दर्शन तक, आदिम ग्रंथ से लेकर विज्ञान की चेतना तक, यंत्र सम्यता से लेकर लोक परिवेश तक, यातना बोध से ले कर विद्रोह ही ललकार तक, प्रकृति सौंदर्य से ले कर मानव सौंदर्य तक फैला हुआ है।
🔹 नंद दुलारे वाजपेयी – प्रयोगवाद बैठे ठालों का धंधा है।
🔸 नामवर सिंह – चरम व्यक्तिवाद ही प्रयोगवाद का केंद्र बिंदु है।
🔹 नामवर सिंह – प्रयोगवाद कोरे रुपवाद से अधिक व्यापक प्रवृत्ति तथा विचारधारा का वाहक है।
🔸 दिनकर – मैं प्रयोगवाद का अगुआ नहीं पिछलगुआ हूँ।
🔹 केशरी कुमार – प्रयोगवाद दृष्टिकोण का अनुसंधान है।
🔸 रघुवीर सहाय – प्रयोगवाद कलात्मक अनुभव का क्षण है।
🔹 धर्मवीर भारती – प्रयोगवाद कविता में भावना है, किंतु हर भावना के सामने एक प्रश्न चिह्न लगा हुआ है।
🔸 सुमित्रानंदन पंत – प्रयोगवादी काव्य जहाँ अपनी शैली तथा रुप विधान में अतिवैयक्तिक हो जाता है, वहाँ अपनी भावना में जनवादी’……. यह नवीन काव्य प्रभाववादी है।
🔹 लक्ष्मीकांत वर्मा – प्रयोगवाद एक ओर व्यक्ति की अनुभूति को समष्टि अनुभूति तक उत्सर्ग करने का प्रयास है, तो दूसरी ओर रूढ़ि का वह विरोधी और अन्वेषण का समर्थक है।
🔸 गोविंद त्रिगुणायत – घासलेटी साहित्य का प्रवर्तन प्रयोगवाद नाम से किया गया।
प्रमुख पंक्तियाँ
’’फूल को प्यार करो
पर झरे तो झरने दो
जीवन का रस लो,
देह-मन आत्मा की रसना से
पर जो मरे उसे मर जाने दो।’’ – बावरा अहेरी
’’आओ हम उस अतीत को भूलें,
और आज की अपनी रग-रग के अन्तर को छूलें।
छूले इसी क्षण
क्योंकि कल के वे नहीं रहें,
क्योंकि कल हम नहीं रहेंगे,
’’मौन भी अभिव्यंजना है,
जितना तुम्हारा सच है
उतना कहो।’’ – जितना तुम्हारा सच है
’’यूँ मैं कवि हूँ, आधुनिक हूँ नया हूँ,
काव्य तत्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ? – इन्द्रधनु रौंदे हुए ये
’’कन्हाई ने प्यार किया,
कितनी गोपियों को कितनी बार।
पर उडेलते रहे अपना सारा दुलार
उस एक रूप पर जिसे कभी पाया नहीं-
जो कभी हाथ आया नहीं।
कभी किसी प्रेयसी में उसी को पा लिया होना-
तो दुबारा किसी को प्यार क्यों किया होता ? – कन्हाई ने प्यार किया
- ’मैं सेतु हूँ किन्तु शून्य से शून्य तक का सतरंगी सेतु नहीं वह सेतु, जो मानव से मानव का हाथ मिलने से बनता है।’’
- ’’मैं मरूंगा सुखी
मैनें जीवन की धज्जियाँ उड़ाई है।’’ - ’’नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है या कि मेरा प्यारा मैला है
बल्कि केवल यही, ये उपमान मैले हो गए देवता इन प्रतीकों के, कर गए कूच’’ - ’’ ये उपमान मैले हो गए है।’’
- ’यह दीप अकेला स्नेह भरा है, गर्व भरा मदगाता, पर इसको भी पंक्ति दे दो’
- ’’अच्छी कुंठा रहित इकाई साँचे ढले समाज से,
अच्छी अपनी ठाट फकीरी मंगनी के सुख साज से’’ - ’’किन्तु हम है द्वीप, हम धारा नहीं’’
- ’’मूत्र सिंचित मृतिका के वृत में
तीन टांगों पर खड़ा नतग्रीव धैय धन गदहा’’ - ’’आह, मेरा श्वास है उत्तप्त
धमनियों में उमड़ आयी है लहू की धार
प्यार है अभिशप्त तुम कहाँ हो नारी’’ - ’’साँप तुम सभ्य हो हुए नहीं,
सीखा नहीं, तुमने नगर में बसना,
फिर कहो, यह विष कहाँ से पाया, सीखा कहाँ से डँसना
ये भी जरुर पढ़ें :
- व्यतिरेक अलंकार
- दीपक अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विरोधाभास अलंकार
- श्लेष अलंकार
- अनुप्रास अलंकार
- साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें
सर जी मै आपकी इस मुहीम से बहुत खुश हु.
Bahut hi sarahniya prayas h aapka eske liye hriday se sadhuwad
जी धन्यवाद
All material in serial order. It’s to useful. Thanks a lot Sir
It’s very fruitful
आभार
Thanks for the essential information.
बहुत सुंदर सर जी
आपकी मेहनत को प्रणाम
Thanks for information