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हिंदी विकास में संस्थागत योगदान – Hindi Sahitya

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:11th Feb, 2021| Comments: 0

आज की पोस्ट में हम उन प्रमुख संस्थाओं(हिंदी विकास में संस्थागत योगदान) की चर्चा करेंगे ,जिनका हिंदी भाषा प्रचार-प्रसार में योगदान था |

काशी नागरी प्रचारिणी सभा (Kashi nagri parcharini sabha)

Table of Contents

  • काशी नागरी प्रचारिणी सभा (Kashi nagri parcharini sabha)
  • दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा (Daksin bhart hindi parchar sabha)
  • राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा)-Rashtrabhasha parchar smiti Vardha
  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग(Hindi sahitya sammelan)

राष्ट्रभाषा हिन्दी और राष्ट्र लिपि नागरी के प्रचार-प्रसार के राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना 1893 ई. में वाराणसी में हुई। हिन्दी के विकास के लिए सभा के ठोस कार्य किए है। हिन्दी की प्राचीन हस्तलिपियों की खोज, हिन्दी के वृहद कोशो का निर्माण हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास लेखन, साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन और अन्य शोध कार्य आदि विविध योजनाओं को सभा ने बङी सफलता के साथ कार्यान्वित किया है। नागरी सभा हिन्दी के सर्वप्रथम संस्था है। हिन्दी को राजभाषा पद प्राप्त करने का जो गौरव प्राप्त हुआ हैं, उसमें सभा का बहुत बङा हाथ है।

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा (Daksin bhart hindi parchar sabha)

1918 ई. में गांधी जी ने इन्दौर में होने वाले हिन्दी साहित्य सम्मेलन में दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार की एक वृहद योजना बनाई। प्रथम प्रचारक के रूप में देवदास गांधी को भेजा गया। प्रारम्भ में सारा कार्य दक्षिण भारत में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में चलता रहा। 1927 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन मद्रास का नाम बदल कर ’’दक्षिण भारत प्रचार सभा’’ रखा गया। सभा की चार शाखाएं तमिलनाडु, आंध्र, केरल, कर्नाटक में स्थापित की गयी। हिन्दी के व्यापक प्रचार के लिए सभा ने दक्षिण के प्रमुख केन्द्रों में हिन्दी महाविद्यालय और हिन्दी प्रचारक विद्यालय खोल रखे हैं। दक्षिण में हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में इस सभा की भूमिका प्रशंसनीय है।

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा)-Rashtrabhasha parchar smiti Vardha

1936 ई. में गांधी और राजर्षि टण्डन जी की प्रेरणा से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना वर्धा में हुई। समिति की विविध परीक्षाओं में लाखों की संख्या में विद्यार्थी बैठते है। समिति समय-समय पर राष्ट्रभाषा प्रचार सम्मेलन का आयोजन भी करती है। देश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में संलग्न स्वैच्छिक संस्थाओं में राष्ट्रभाषा सभा पुणे (1937), हिन्दी विद्यापीठ, दैवधर (1929), असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति गोहाटी (1938) आदि प्रमुख है।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग(Hindi sahitya sammelan)

1910 में हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए इसकी स्थापना हुई। सम्मेलन के प्रमुख सूत्रधार राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन थे।

आज की जानकारी हिंदी विकास में संस्थागत योगदान आपको अच्छी लगी होगी

समास क्या होता है ?

 

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