हिन्दी भाषा की संवैधानिक स्थिति-Hindi Bhasha ka Vikas

आज की पोस्ट में हिंदी भाषा विकास टॉपिक के अंतर्गत हिन्दी भाषा की संवैधानिक स्थिति को अनुच्छेद 343से 351 तक समझाया गया है |

हिन्दी भाषा की संवैधानिक स्थिति

✔️ संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक संघ की भाषा, प्रादेशिक भाषाओं, न्यायालयों की भाषा के संबंध में उल्लेख किया गया है।

🔷 अनुच्छेद- 343ः संघ की राजभाषा
✔️ संघ की राजभाषा हिन्दी तथा लिपि देवनागरी होगी। अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
⇒✔️ संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक (अर्थात् 1965 तक) उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए पहले प्रयोग किया जा रहा था।
✔️ संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का या अंकों के देवनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाए।

🔷 अनुच्छेद-344- राजभाषा के संबंध में आयोग (5 वर्ष के उपरांत राष्ट्रपति द्वारा) और संसद की समिति (10 वर्ष के उपरांत)
🔷 अनुच्छेद- 345- राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ
🔷 अनुच्छेद-346- एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा।
🔷 अनुच्छेद-347- किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में उपबंध।
🔷 अनुच्छेद-348- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में संसद व राज्य विधान मंडल में विधेयकों, अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा (उपबंध होने तक अंग्रेजी जारी)
🔷 अनुच्छेद-349- भाषा से संबंधित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष मंजूरी।
✔️ राजभाषा संबंधी कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पेश नहीं की जा सकती और राष्ट्रपति भी आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के बाद ही मंजूरी दे सकेगा।
🔷 अनुच्छेद-350- व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा (किसी भी भाषा में)
(क) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ
(ख) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति (राष्ट्रपति द्वारा)

🔷 अनुच्छेद- 351- हिन्दी के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार करें, उसका विकास करें ताकि वह भारत की मिली-जुली संस्कृति के अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकें और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके शब्द-भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।
🔷 संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है।
✔️ इस अनुसूची में आरंभ में 14 भाषाएँ थी-
(1) असमिया (8) मराठी
(2) बांग्ला (9) उङिया
(3) गुजराती (10) पंजाबी
(4) हिन्दी (11) संस्कृत
(5) कन्नङ (12) तमिल
(6) कश्मीरी (13) तेलुगू
(7) मलयालम (14) उर्दू

बाद में शामिल की गई भाषाएँः

(15) सिन्धी भाषा- (21 वें संविधान संशोधन 1967 द्वारा)
(16) कोंकणी- (71 वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा)
(17) मणिपुरी- (71वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा)
(18) नेपाली- (71वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा)
(19) बोडो- (92वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा)
(20) डोगरी- (92 वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा)
(21) मैथिली- (92 वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा)
(22) संथाली- (92 वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा)
इस प्रकार 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गई।
विशेष – मैथिलीः आदिकाल से ही अपनी साहित्यिक समृद्धि तथा बोली की मिठास के कारण मैथिली को आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है। आठवीं अनुसूची में शामिल यह हिन्दी की एकमात्र बोली है।
भोजपुरीः हिन्दी भाषा की सबसे समृद्ध बेाली है। जनता द्वारा प्रयोग किये जाने की दृष्टि से इसका प्रथम स्थान है। फिल्म निर्माण की दृष्टि से भी यह बोली सबसे संपन्न है। किन्तु भोजपुरी को आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं में स्थान नहीं दिया गया है।
नोटः अंग्रेजीः चूंकि विदेशी भाषा है किन्तु फिर भी यह भारत की राजभाषा हिन्दी के समानांतर राजकाज की भाषा में प्रयुक्त होती है। आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं में अंग्रेजी को शामिल नहीं किया गया है।

 

 

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