हिंदी भाषा – Hindi Bhasha | 100+महत्त्वपूर्ण प्रश्न

आज के आर्टिकल में हम हिंदी भाषा विकास(Hindi Bhasha) से जुड़ें महत्त्वपूर्ण प्रश्न पढेंगे ,जिससे हमें हिंदी भाषा से सम्बन्धित उपयोगी जानकारी मिलेगी ।

Hindi Bhasha – हिंदी भाषा

Table of Contents

Hindi Bhasha
Hindi Bhasha

आज के आर्टिकल में हम हिंदी भाषा (Hindi Bhasha) से जुड़ें महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को पढेंगे ताकि हमारे इस टॉपिक से सम्बंधित संशय दूर हो और इस टॉपिक पर मजबूत हो सकें।

प्रश्न-1 भाषा किसे कहते है – Bhasha kise kahate Hain

उत्तर- भाषा का सामान्य अर्थ यह है कि वह विचारों और भावों को प्रकट करने का माध्यम है। उसे दो प्रकार से समझा जा सकता है-एक सामान्य अर्थ के आधार पर, दूसरे विशिष्ट अर्थ के आधार पर। सामान्य अर्थ में भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और विशिष्ट अर्थ में वह अभिव्यक्ति के अतिरिक्त और भी कुछ है।

प्रश्न-2 डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार भाषा किसे कहते है ?

उत्तर- डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा ने लिखा है कि उच्चरित ध्वनि संकेतों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अभिव्यक्ति भाषा है। इस परिभाषा के अतिरिक्त उन्होंने एक स्थान पर यह कहा है कि जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है, उस सादृच्छिक रूढ़ ध्वनि-संकेतों की प्रणाली को भाषा कहते है।

प्रश्न-3 डाॅ. बाबूराम सक्सेना और डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा की भाषा-विषयक परिभाषाओं से क्या निष्कर्ष सामने आते है ?

उत्तर- डाॅ. बाबूराम सक्सेना और डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा की भाषा-विषयक परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष सामने आते हैं, वे ये है-

➡️ भाषा विचारों के आदान-प्रदान का साधन है।

➡️ भाषा उच्चारण अवयवों की मिश्रित ध्वनि समझती है।

➡️ भाषा के अन्तर्गत एक निश्चित व्यवस्था, संगठन और क्रम होता है।

➡️ भाषा में प्रयुक्त ध्वनि समष्टियाँ सार्थक तो होती है, किन्तु उनका भावों और विचारों के साथ सम्बन्ध ’आरबिटरी’ होता है।

प्रश्न-4 भाषा के प्रमुख पक्ष कौन-कौन से है ?(Hindi Bhasha)

उत्तर- भाषा एक विकसनशील वस्तु है, उसमें समय, परिस्थिति और संदर्भ के अनुकूल परिवर्तन होता रहता है। जहाँ तक भाषा के पक्षों का प्रश्न है, वे तीन है- व्यक्तिगत पक्ष, सामाजिक पक्ष और सर्वव्यापक पक्ष। भाषा-विज्ञानी सोसूर ने भाषा के व्यक्तिगत पक्ष को ’पारोल’ कहा है। यह एक ऐसा शब्द है जिसे अंग्रेजी में ’स्पीच’ और हिन्दी में ’वाणी’ के द्वारा समझा जा सकता है।

प्रश्न-5 भाषा के व्यक्तिगत पक्ष से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- भाषा का व्यक्तिगत पक्ष अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भाषा का जन्म व्यक्ति से होता है, क्योंकि ध्वनि के उच्चारण की क्षमता उसी में रहती है। व्यक्ति समाज में भाषा प्राप्त करता है। वह समाज में रहकर उसका प्रयोग करता है और समय-समय पर परिस्थिति के अनुकूल उसे नया रूप प्रदान करता है।

डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा ने लिखा है कि व्यक्तिगत भाषा या वाणी के दो अनिवार्य पहलू है- बोध और अभिव्यंजना। बोध आदान का साधन है और अभिव्यंजना प्रदान का। बोध की सहायता से भाषा ग्रहण की जाती है और अभिव्यंजना की सहायता से वह समाज को दी जाती है। यही भाषा का व्यक्तिगत पक्ष है।

प्रश्न-6 भाषा का सामाजिक पक्ष क्या है ?

उत्तर- भाषा की उत्पत्ति भले ही व्यक्ति द्वारा हुई हो, किन्तु वह पूर्णतः सामाजिक वस्तु है। भाषा का निर्माण समाज के लिए होता है और उसका उपयोग भी समाज के लिए ही किया जाता है। भाषा के जितने भी रूप है, उन सभी में सामाजिक रूप ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। भाषा के वैयक्तिक पक्ष में मुख्य रूप से ध्वनन आता है। रवण का प्रश्न समाज से सम्बन्धित है। व्यक्ति अकेला रहकर बोल तो सकता है, किन्तु सुनना उसके लिए सम्भव नहीं है।

प्रश्न-7 आंगिक भाषा से क्या तात्पर्य है – Angik bhasha kya hai

उत्तर- विकासवाद के अनुसार मनुष्य एक दिन अन्य पशुओं की कोटि का ही जीव था, उसके पास कोई भाषा नहीं थी। अतः वह आंगिक चेष्टाओं की सहायता से अपनी बात दूसरों तक पहुँचाता था। आंगिक भाषा का अर्थ ही यह है कि शारीरिक चेष्टाओं के द्वारा अपनी बात को दूसरे को समझाना। आंगिक चेष्टाओं से भाव तो प्रकट हो जाता है, किन्तु उससे जीवन में अधिक काम नहीं चल सकता है। इस भाषा की इसीलिए अनेक सीमाएँ है।

प्रश्न-8 भाषा को क्या पैतृक सम्पत्ति माना जा सकता है ?(Hindi Bhasha)

उत्तर- कुछ विद्वानों की मान्यता है कि भाषा पैतृक सम्पत्ति है। जिस प्रकार पैतृक सम्पत्ति का भागी और अधिकारी पुत्र होता है, उसी प्रकार भाषा भी पिता से पुत्र को सम्पत्ति के रूप में प्राप्त होती है। वस्तुतः भाषा की प्रथम विशेषता यह है कि वह पैतृक सम्पत्ति नहीं है। यदि वह पैतृक सम्पत्ति होती तो पिता की भाषा पुत्र की भाषा ही होती किन्तु ऐसा नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भाषा अर्जित सम्पत्ति है।

प्रश्न-9 मनुष्य के साथ भाषा का क्या सम्बन्ध है ?

उत्तर- मनुष्य के साथ भाषा का सम्बन्ध आदिकाल से है। आदिम व्यवस्था से मनुष्य अकेलेपन से भयभीत रहा है। सुरक्षा और सुविधा के लिए उसने मिल-जुलकर रहना प्रारम्भ किया। यह समूह भावना ही अपने मन की बात दूसरों तक पहुँचाने की इच्छा पैदा करती है। बात करने के लिए बोलना आवश्यक है। बोलना ही भाषा की प्रथम सीढ़ी है। आदमी को बोलना सृष्टि के अन्य प्राणियों के बोलने से पृथक् प्रकार का होता है। इसी से भाषा मानव-श्रम की श्रेष्ठतम निधि है।

प्रश्न-10 आप कैसे प्रमाणित करेंगे कि भाषा सर्वव्यापी है ?

उत्तर- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी सामाजिकता गवाह है कि उसके प्रत्येक कार्य-कलाप के मूल में भाषा है। मनुष्य का आन्तरिक और बाह्य, वैयक्तिक और सामाजिक, चिन्तन और अभिव्यंजन सबका सब भाषा का परिणाम है। भर्तृहरि ने तो लौकिक कत्र्तव्यबोध का ज्ञान भाषा पर ही आश्रित स्वीकार किया है। ’वाक्यदीप’ में समस्त ज्ञान को भाषा से सम्बन्धित मानकर उसकी सर्वव्यापकता प्रकाशित की गयी है जिसके अनुसार संसार में ऐसा कोई प्रत्यय नहीं है जो भाषा के अभाव में सम्भव दिखाई देता है।

प्रश्न-11 आप कैसे प्रमाणित करेंगे कि प्रत्येक भाषा का ढाँचा पृथक और स्वतन्त्र होता है ?

उत्तर- प्रत्येक भाषा का ढाँचा और उसकी बनावट पृथक् और स्वतन्त्र होती है। इसके पीछे कोई एक कारण नहीं है, अनेक कारण है जो इस स्वातंत्र्य और पार्थक्य को स्पष्ट करते है। हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, अंग्रेजी सभी में लिंग, वचन और काल के संदर्भ में जो अन्तर है, उसी से प्रत्येक भाषा का ढाँचा पृथक और स्वतन्त्र होता है। रूसी में ’ह’ नहीं होता है, ’ख’ ही होता है। अतः ’नेहरू’ को ’नेखरू’ और ’हर्ष’ को ’खर्ष’ ही लिखते है।

प्रश्न-12 क्या भाषा का लगातार रूप  कठिनता से सरलता की ओर अग्रसर होती है ?

उत्तर- मनुष्य कम से कम श्रम में अधिक से अधिक कार्य करना चाहता है। मनुष्य की यही प्रवृत्ति भाषा की इस प्रवृत्ति के लिए उत्तरदायी है। इस बात को एक शब्द में ’रेफ्रीजरेटर’ से स्पष्ट किया जा सकता है। आज इसे केवल ’फ्रिज’ कहकर काम चलाया जाता है। चूँकि वास्तविक शब्द कष्ट साध्य है अतः सरलीकरण करके ’फ्रिज’ बना लिया गया है। व्याकरण में भी यही नियम लागू होता है।

Hindi Bhasha ka Itihas

प्रश्न-13 भाषा के विविध रूप कौन-कौन से है ?

उत्तर- यह सर्वमान्य तथ्य है कि भाषा विविधात्मक होती है। इसी विविधात्मकता के कारण उसके अनेक रूप देखने को मिलते है। उसके प्रमुख रूप ये है- परिनिष्ठित भाषा, विभाषा, अपभाषा, विशिष्ट भाषा, कूट भाषा, कृत्रिम भाषा और मिश्रित भाषा। सामान्यतः भाषा के ये ही प्रमुख रूप है। इन सभी रूपों में आज भी भाषा को देखा जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भाषा न तो सरल होती है और न कठिन होती है उसका निरन्तर विकास होता रहता है।

प्रश्न-14 भाषा और बोली में क्या अन्तर है – Bhasha or Boli me Kya antar Hain

उत्तर- भाषा और बोली में पर्याप्त अन्तर है। इस अन्तर को इन प्रमुख बिन्दुओं के सहारे स्पष्ट किया जा सकता है- 1. भाषा का क्षेत्र व्यापक है और बोली का क्षेत्र सीमित। 2. एक भाषा की विभिन्न बोलियों वाले परस्पर एक दूसरे को समझ लेते है, किन्तु विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले एक दूसरे को नहीं समझ पाते है। 3. भाषा का प्रयोग शिक्षा, शासन, साहित्य रचना और परस्पर गम्भीरतम विषयों पर विचार-विमर्श करने के लिए होता है। बोली में न तो शिक्षा दी जा सकती है और न ही शासन का काम चलाया जा सकता है।

प्रश्न-15 बोली को परिभाषित कीजिए – Boli kise kahate Hain

उत्तर- डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने बोली को परिभाषित करते हुए कहा है कि ’’बोली किसी एक भाषा के एक ऐसे क्षत्रीय रूप को कहते है जिसमें ध्वनि रूप, वाक्यगठन अर्थ शब्द समूह तथा मुहावरे आदि की दृष्टि से उस भाषा को परिनिष्ठित और अन्य क्षेत्रीय रूपों से भिन्न होती है, किन्तु इतनी भिन्न नहीं कि अन्य रूपों को बोलने वाले उसे समझ न सकें। साथ ही जिसके अपने क्षेत्र में कहीं भी बोलने वालों को उच्चारण, रूप-रचना, वाक्यगठन, अर्थ, शब्द समूह तथा मुहावरों आदि में कोई बहुत ही स्पष्टता भिन्नता नहीं होती है।’’

प्रश्न-16 भाषा-विज्ञान से क्या तात्पर्य है – Bhasha vigyan kise kahate Hain

उत्तर- भाषा विज्ञान दो शब्दों का मेल है- भाषा और विज्ञान। इस आधार पर भाषा विज्ञान भाषा का विज्ञान है। ज्ञान में ’वि’ उपसर्ग लग जाने से विज्ञान शब्द का निर्माण हुआ है जिसका अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। इस आधार पर भाषा विज्ञान का विशिष्ट ज्ञान कहलाता है। भाषा के विज्ञान के अन्तर्गत भाषा के अनेक पक्षों तथा अनेक रूपों और प्रकारों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसी वैज्ञानिक अध्ययन के कारण भाषाओं का विशिष्ट अध्ययन भाषा विज्ञान कहलाता है।

प्रश्न-17 भाषा का भौतिक आधार क्या है ?

उत्तर- विचार यदि भाषा की आत्मा है तो भौतिक आधार भाषा का शरीर है। विचार की अभिव्यक्त करने के लिए इस शरीर रूपी वाहन का सहारा लेना पङता है। भाषा के भौतिक आधार के अन्तर्गत मुख और नासिक के सभी अवयव आ जाते है। इससे ध्वनि के उच्चारण् में सहायता मिलती है। वक्ता की दृष्टि से भाषा के भौतिक आधार मुख, जिह्वा, दाँत, ओष्ठ, तालू, कण्ठ और नासिका है। श्रोता की दृष्टि से भाषा का भौतिक आधार कान है जिसके सारे ध्वनि को ग्रहण किया जाता है।

प्रश्न-18 प्रमाणित कीजिए कि भाषा अथ के इति तक समाज की वस्तु है।

उत्तर- भाषा को किसी भी स्थिति में पैतृक सम्पत्ति नहीं माना जा सकता है। भाषा को अर्जित की जाती है। भाषा का यह अर्जन समाज से होता है। भाषा प्रारम्भ से अन्त तक समाज की ही वस्तु है और उसका जन्म और विकास भी समाज में ही होता है। अतः मनुष्य भाषा का अर्जन समाज से ही करता है और उसका प्रयोग भी जो अर्जन के बाद की स्थिति है, समाज में ही होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि भाषा अथ के इति तक समाज की वस्तु बनी रहती है।

प्रश्न-19 भाषा-विज्ञान की विविध परिभाषाओं से क्या निष्कर्ष होते है ?(Hindi Bhasha)

उत्तर- भाषा-विज्ञान की विविध परिभाषाओं से प्रमुख रूप से तीन निष्कर्ष होते है- 1. भाषा-विज्ञान भाषा का विशिष्ट एवं वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करता है। उसमें भाषा के सभी अंगों और उपांगों का विवेचन भी शामिल है। 2. भाषा-विज्ञान व्यवस्थिति एवं विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करने वाली महत्वपूर्ण विधि है। 3. भाषा-विज्ञान में भाषा के विविधा रूपों के सम्बन्ध मे सुनिश्चित नियमों का अनवेषण और प्रस्तुतीकरण किया जाता है।

प्रश्न-20 मानव विज्ञान और भाषा विज्ञान का सम्बन्ध बतलाइये।

उत्तर- भाषा के बोलने में बोलने वालों वागेन्द्रियाँ और सुनने वाले की श्रवणेन्द्रियाँ सहायक है। मानव विज्ञान आदिम विकास से लेकर वर्तमान एक शरीर को बनावट के सम्बन्ध में विचार करता है। मनुष्य की शारीरिक संरचना से भाषा प्रभावित होती है, इसी से भाषा विज्ञान के साथ मानव-विज्ञान सहायक है। प्रजातियों के साथ भाषाओं के सम्बन्ध, प्रजातियों के सम्मिश्रण, सम्मिश्रण के बाद भाषा-परिवर्तन और एक भाषा के रूपर-विकास का दूसरी भाषा के रूप- विकास में प्रजातियों के आधार पर सहयोग मानव विज्ञान के द्वारा जाने जाते है।

प्रश्न-21 भाषा विज्ञान और तर्कशास्त्र के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्रत्यक्षत: तो भाषा विज्ञान और तर्कशास्त्र में कोई गहरा सम्बन्ध नही है, किन्तु गहराई से विचार करें तो स्पष्ट होता है कि इन दोनों में गहरा भले न हो, सम्बन्ध तो अवश्यक है। तर्कशास्त्र जिस तर्क प्रणाली को अपनाता है, वही भाषा विज्ञान में भी व्यवहृत होती है।

’यास्क’ के ’निरुक्त’ में जिक तर्क पद्धति को स्वीकार किया गया है, वह भी यही प्रमाणित करती है कि तर्कशास्त्र और भाषा-विज्ञान में सम्बन्ध है। यों भी भाषा विज्ञान में जो वैज्ञानिकता है वह तर्कारित ही मानी गयी है। ’’भारतीय तर्कशास्त्र वस्तुतः भाषा के चरम अवयव वाक्य ही का विज्ञान है। यह भाषा के सहारे ही चलता है।’’ अतः भाषा विज्ञान और तर्कशास्त्र का सम्बन्ध स्पष्ट है।

प्रश्न-22 ध्वनि के कितने पक्ष है और वे कौन-कौनसे है ?

उत्तर- भाषा के रचना ध्वनियों से होती है। इसी से सार्थक ध्वनि भाषा की मूल इकाई है। भाषा विज्ञान ध्वन्यात्मक भाषा का विवेचन करता है। ध्वनि कैस उत्पन्न होती है, बोलने वाले से सुनने वाले तक कैसे पहुँचाती है। और सुनने वाला उस ध्वनि को सुनकर उसका आशय किस तरह समझता है ? आदि स्थितियाँ ही ध्वनि के पक्षों को व्यक्त करती हैं इसी आधार पर ध्वनि के तीन पक्ष स्पष्ट हो जाते है- पहला उत्पादन, दूसरा सवंहन और तीसरा ग्रहण।

प्रश्न-23 ध्वनि को समझने और ग्रहण करने में शरीर-तंत्र के कौन-कौन से अंग सहायक होते है ? स्पष्ट उत्तर दीजिए।

उत्तर- भाषा के सार्थक ध्वनियाँ मिलकर शब्द के साथ पद की रचना करती है और पद उद्देश्यपूर्ण वाक्य-रचना में सहायक होता है। ध्वनि के उत्पादन और ग्रहण का सम्बन्ध बोलने वाले और सुनने वाले से है। बोलने वाला वाग्यंत्रों की सहायता से ध्वनि उत्पन्न करता है और सुनने वाला श्रवणेन्द्रियों के द्वारा सुनता है। बोलने और सुनने वाले के बीच ध्वनि का संवहन पक्ष है। ध्वनि को समझने और ग्रहण करने में शरीर-तंत्र के नौ अंग सहायक होते है। ये अंग है- अस्थि तंत्र, पेशी-तंत्र, श्वसन-तंत्र, पाचन तंत्र, परिसंचरण-तंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, तंत्रिका-तंत्र, अन्तःस्त्रावी तंत्र और जनन तंत्र।

प्रश्न-24 शरीर तंत्र के कौन से तंत्र भाषण से सम्बन्धित है और क्यों ?(Hindi Bhasha)

उत्तर- मानव शरीर से सम्बन्धित इन तंत्रों के कार्य जीवन में साहयक होते है। इन तंत्रों में श्वसन-तंत्र और पाचन-तंत्र का सम्बन्ध भाषण से है। ये दोनों तंत्र कण्ठ के पास मिले हुए है। नाक के द्वारा जो हवा फेफङों के लिए जाती है और मुँह से खाया जाने वाला भोजन आमाशय तक जाता है। इन दोनों का कुछ दूरी तक मार्ग एक ही है।

गले के नीचे ये मार्ग श्वासनली और भोजननली में बँट जाती है। श्वासनली हवा को फेफङों तक लाने-ले-जाने का काम करती है और भोजननली भोज को आमाशय तक पहुँचाती है। भोजननली के द्वार पर ऐसी व्यवस्था है कि भोजन निगलते समय श्वासनली का मुख कुछ देर के लिए बन्द हो जाता है। इसलिए इन दोनों तंत्रों का ही समबन्ध भाषण से है।

प्रश्न-25 फेफङे क्या कार्य करते है ?

उत्तर- जीवन की अन्तिम साँस तक साँसों का आना-जाना लगातार बना रहता है। भीतर खींची गयी हवा से हमारे शरीर के खून की सफाई होती है और बाहर फेंकी गयी हवा के द्वारा दूषित तत्व शरीर से बाहर कर दिए जाते है। फेफङों का मुख्य कार्य हवा को खींचना और बहार निकालना है। बातचीत करने में, सार्थक ध्वनियों की रचना में फेफङे मदद करते है और यह मदद मुख्य कार्य न होकर फेफङों का सहयोगी कार्य है।

प्रश्न-26 स्वर तंत्र क्या कार्य करता है ?

उत्तर- श्वास नली के ऊपरी हिस्से में स्वर-यंत्र होता है जो फेफङों से निकली हवा को बाहर करता है। इस स्वर-यंत्र के बीच ओठों के आकार की दो मांसल झिल्लियाँ होती है। इन्हीं मांसल झिल्लियों को स्वर-तंत्री कहा जाता है। इन लचीली स्वर-तंत्रियों के बीच के छिद्रों को कंठ-द्वार कहा जाता है। कंठ-द्वार का ही नाम काकल है।

प्रश्न-27 ध्वनियों के उच्चारण में सर्वाधिक सहयोगी तत्व कौन सा है ?

उत्तर- ध्वनियों के उच्चारण में मुख सबसे अधिक सहयोगी होता है। मुख के ऊपरी हिस्से में छत है और नीचे जीभ। छत में सबसे पीछे कोमल तालु है, जहाँ एक छोटा मांस का पिण्ड लटकता दिखता है। यही मांस पिण्ड काकल अथवा अलि जिह्वा है। जब कोमल तालु ऊपर आता है, तब नासिका मार्ग को बन्द कर देता है और नीचे आता है, तब नासिका-मार्ग खुल जाता है। कोमल तालु के आगे कठोर तालु है। कठोर तालु के आगे दन्तकूट है, जिसकी बनावट खुरदरी है। इसी को मूर्धा कहा जाता है। मुख की छत के आगे दाँत है और दाँतों के आगे दोनों होंठ। इन सब अवयवों का सहयोग ध्वनियों के उच्चारण में लिया जाता है।

प्रश्न-28 जीभ के कितने भाग स्वीकार किए गए है ? स्पष्ट लिखिए।

उत्तर- जीभ ध्वनियों के उच्चारण में सबसे सहायक है। जीभ के चार भाग माने जाते है- 1. जिह्वा पश्च-जीभ का पीदे का भाग, 2. जिह्वा पृष्ठ-कठोर तालु के सामने, 3. जिह्वाग्र- दाँतों के सामने का हिस्सा और 4. जिह्वाणि-जीभ का आगे का छोर। ध्वनियों के भिन्न-भिन्न रूप मुख विवर की भिन्न-भिन्न आकृतियों, कोमल तालु, जीभ और ओष्ठ के सहारे बोले जाते है।

प्रश्न-29 भाषा के लिए उपयोगी ध्वनियों का वर्गीकरण किन-किन आधारों पर किया गया है ?

उत्तर- भाषा के निमित्त उपयोगी ध्वनियों का वर्गीकरण अनेक विद्वानों ने किया है, किन्तु सभी विद्वानों का मत इस विषय में एक जैसा ही है। भाषा के लिए उपयोगी ध्वनियों का वर्गीकरण बोलने के स्थान, बोलने में सहयोग देने वाले अवयवों और बोलते समय किये जाने वाले प्रयत्नों के आधार पर किया जाता है। इन आधारों को- 1. स्थान, 2. करण और 3. प्रयत्न नाम से जाना जाता है।

प्रश्न-30 ध्वनियों के कितने और कौन-कौन से भेद है – Dhwani ke bhed konse hai

उत्तर- ध्वनि के सामान्य रूप से दो भेद है-

1. स्वर और

2. व्यंजन

स्वर का उच्चारण अपने आप हो जाता है और व्यंजन बोलते समय किसी न किसी स्वर की सहायता लेनी पङती है। ध्वनि के उच्चारण में श्वासाघात मूल रूप से सहायक है। इस दृष्टि से जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं कोई अवरोध नहीं होता, वे स्वर है। जिन ध्वनियों के उच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं न कहीं अवरोध होता है, वे व्यंजन है।

प्रश्न-31 ध्वनि विवेचन में स्थान का कार्य और महत्व है ?

उत्तर- ध्वनियों के उच्चारण करते समय जिन स्थानों पर निःश्वास वायु रुकती है अथवा उसके आने जाने में रुकावट आती है, उन्हें स्थान कहा जाता है। स्थान अचल है, काकल, कंठ, तालु, मूर्धा, वर्त्स, दन्त और ओष्ठ स्थान है। इन स्थानों से बोली जाने वाली ध्वनियाँ- 1. काकल्य, 2. कंठ्य, 3. तालव्य, 4. मूर्धन्य, 5. वर्त्स्य, 6. दन्त्य, 7. ओष्ठ्य कहलाती है।

प्रश्न-32 स्वरों के उच्चारण में जिह्वा की ऊचाई का क्या महत्व है ?

उत्तर- स्वरों को बोलते समय जीभ की ऊँचाई, जीभ का उठना-गिरना और होठों का भिन्न-भिन्न आकार में बदलना सहयोग देता है। इन्हीं आधारों पर स्वर के भेद है। इन भेदों के कारण है- 1. जिह्वा की ऊचाई, 2. जिह्वा का उत्थापित भाग और 3. ओष्ठों की स्थिति। स्वर-ध्वनियों के उच्चारण के समय निःश्वास वायु मुख विवर से बिना किसी बाधा के बाहर निकलती है, लेकिन साँस बाहर निकलने से रास्ते को सँकरा कर दिया जाता है। निःश्वास के निर्गम-मार्ग को संकीर्ण करने का काम जीभ ऊपर उठकर रकती है। संकीर्णता कहीं कम होती है और कहीं-कहीं अधिक।

प्रश्न-33 अग्र स्वर, केन्द्रीय स्वर और पश्च स्वर कौन से है ? स्पष्ट बताइये।

उत्तर- अग्र स्वर- इ, ई, ए, ऐ का उच्चारण करते समय जीभ का अग्रभाग ऊपर उठता है, इसी से उनहें अग्र स्वर कहा जाता है। केन्द्रीय स्वर- ’अ’ को बोलते समय जीभ के बीच का भाग ऊपर उठता है। पश्च स्वर- आ, उ, ऊ, ओ, औ का उच्चारण समय जीभ के पिछले भाग को उठाया जाता है।

प्रश्न-34 व्यंजनों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है ?(Hindi Bhasha)

उत्तर- उच्चारण में सहयोग करने वाले अवयव स्थान, करण और प्रत्यन्न के रूप में वर्गीकरण के आधार है। स्थान के आधार पर व्यंजन कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य, वर्त्स्य और काकल्य है। आभ्यान्तर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के स्पर्श-संघर्षी, संघर्षी, पाश्रविक लोङित, उत्क्षिप्त, अर्ध स्वर और अनुनासिक भेद है।

प्रश्न-35 ’सुर’ का अर्थ और महत्व बतलाइये।

उत्तर- किसी ध्वनि का उच्चारण करते समय कंपन की आवृत्ति को सुर कहा जाता है। कंपन जितना अधिक होता है, सुर उतना ही उच्च माना जाता है और कंपन की मात्रा कम होने की दशा में सुर को निम्न कहा जाता है। कंप स्वर तंत्रियों के फैलाव से उत्पन्न होता है। सुर के उच्च,निम्न और सम वर्ग है जिन्हें उदात्त, अनुदात्त और स्वरित नाम से पुकारा जाता है। घृणा, क्रोध, आश्चर्य, स्नेह आदि मनोभावों को व्यक्त करने में सुर सहायता करता है। सुर के कारण शब्द के साथ वाक्य का भी अर्थ परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न-36 स्वरागम से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- स्वरागम आदि, मध्य और अन्त तीन स्थितियों मे होता है। कुछ लोग समस्वरागम की चौथी स्थिति भी मानते है। आदि स्वरागम के उदाहरणस्वरूप ये शब्द लिए जा सकते हैं- स्कूल-इस्कूल, स्थान-इस्थान, स्पोर्ट-इस्पोर्ट, स्टेशन-इस्टेशेन आदि। मध्य स्वरागम के उदाहरणस्वरूप ये प्रयोग देखिए- धर्म-धरम, कर्म-करम, शर्म-शरम, पूर्व-पूरब, सूर्य-सूरज, रक्त-रकत और स्वर्ण-सुवरण आदि।

अन्तस्वरागम के उदाहरणस्वरूप ये शब्द लिए जा सकते है- दवाई-दबाई, पूर्वा-पुरवाई, हवा-हवाई आदि। समस्वरागम के एक स्वर पूर्व विद्यमान रहता है। उसी के सादृश्य पर अन्य स्वर भी आ जाता है।

प्रश्न-37 बलाघात से आप क्या समझते है – Balaghat kya hota hai

उत्तर- बलाघात शब्दा दो शब्दों से मिलकर बना है- ’बल’ और ’आघात’। आघात शब्द अंग्रेजी के एक्सेंट के लिए हिन्दी में प्रयोग किया जाता है। एक्सेंट शब्द के भाषा विज्ञान के अन्तर्गत उसके तीन अर्थ है- कुछ विद्वान इसको विस्तृत अर्थ में ग्रहण करते है तो दूसरे कुछ ऐसे विद्वान है जो इसे सीमित अर्थ में ग्रहण करते है और इसी आधारव पर उसे मात्रा बलाघात ही मानते है। तीसरे अर्थ में आघात इन दोनों अर्थों के बीच में पङता है। उसमें बलाघात और स्वराघात केवल दो ही चीजें शामिल है। भाषा-विज्ञान में यही अर्थ प्रचलित और मान्य है।

प्रश्न-38 अक्षर बलाघात से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- स्वतन्त्र शब्दों अथवा वाक्यों के अक्षरों पर बल कभी-भी समान नहीं होती है। उन अक्षरों में से किसी एक पर बलाघात होता है। अंग्रेजी का अपोरच्युनिटी शब्द लें तो स्पष्ट है कि इसमें पाँच अक्षर है। तुलनात्मक दृष्टि से प्रथम बलाघात तीसरे अक्षर पर, दूसरा बलाघात पहले पर, तीसरा पाँचवे पर और चौथा दूसरे पर व पाँचवा चैथे पर है। यहीं अक्षर बलाघात है। कुछ लोगों की मान्यता है कि अक्षर बलाघात और शब्द बलाघात में कोई अन्तर नहीं है।

प्रश्न-39 शब्द विषयक जैन मत क्या है ? स्पष्ट लिखिए।

उत्तर- जैन मत मुख्य रूप से दो तत्वो को स्वीकार करता है-चेतन और जङ। जङ के दो रूप है- एक मूर्त और दूसरा अमूर्त। पुदगल मूर्तकोटि का जङ कहलाता है और आकाश अमूर्त कोटि का। शब्द मूर्तिमान है, इसलिए जङ पुदगल का विशेष प्रकार का परिणाम है। शब्द और आकाश में गुण-गुणी अथवा कार्य-कारण सम्बन्ध को जैन दृष्टि स्वीकार नहीं करती है। भाषा की शब्द की वर्गणाएँ, लोकाकाश में प्रसूत है। ’वर्गणा’ का तात्पर्य ’परमाणु’ शब्द से अभिव्यक्त हो सकता है।

प्रश्न-40 पद-रचना की पद्धति के विषय में आप क्या जानते है ?

उत्तर- पद-रचना की अनेक प्रक्रियाएँ है। प्रमुख रूप से पद-रचना के लिए प्रकृति और प्रत्यय की आवश्यकता होती है। प्रकृति और प्रत्यय के योग से निष्पन्न शब्दों के आरम्भ में उपसर्ग और अन्त में विभक्ति लगाकर अर्थ-भेद किया जाता है।

इसी तथ्य को यों भी कह सकते है कि

’’अर्थ-तत्व में रचना-तत्त्व के योग से पद की निष्पत्ति होती है।’’

योगात्मक भाषाओं में भी सर्वत्र रचना-तत्व ही हो, यह आवश्यक नहीं है।

प्रश्न-41 सम्बन्ध तत्व के प्रकार कौन-कौन से प्रचलित है ?

उत्तर- पद-रचना के अन्तर्गत उदाहरणार्थ वाक्य में सम्बन्ध तत्वों केा देखने से ज्ञात होता है कि सम्बन्ध तत्व के अनेक प्रकार के होते है। डाॅ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार ये दस प्रकार के होते है-

  •  शब्द स्थान
  • शून्य सम्बन्ध तत्व
  • स्वतन्त्र शब्द
  • ध्वनि प्रतिस्थापन
  • ध्वनि द्विरावृत्ति
  • ध्वनि वियोजन
  • पूर्व सर्ग
  • मध्य सर्ग
  • अन्त सर्ग अथवा विभक्ति अथवा प्रत्यय
  • ध्वनिगुण अथवा बलाघात।

इनके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार के सम्बन्ध तत्व पाए जाते है परन्तु अधिक प्रचलित केवल ये ही है।

प्रश्न-42 अर्थ-विज्ञान क्या है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अर्थ-विज्ञान में दो शब्द है- अर्थ और विज्ञान। इन दोनों शब्दों को एक साथ रखने से सामान्य अर्थ यह निकलता है कि अर्थ विज्ञान का विज्ञान है। यह वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत भाषा के अर्थ पक्ष का वैज्ञानिक अध्ययन, विवेचन और विश्लेषण किया जाता है। अर्थ विज्ञान वर्णनात्मक, ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक तीन प्रकार का होता है।

प्रश्न-43 परिवर्तन की प्रमुख दिशाएँ कौन-कौन सी है ? स्पष्ट संकेत कीजिए।

उत्तर- शब्दों के अर्थ में विकास होता रहता है। विकास की एक निश्चित दिशा नहीं होती है। अर्थ विकास, अर्थ परिवर्तन का ही पर्याय है। उदाहरणार्थ- गँवार शब्द का अर्थ था गाँव का रहने वाला, परन्तु आज इसका प्रयोग ’असभ्य’ अर्थ के लिए होने लग गया है। इस अर्थ परिवर्तन में यह देखना पङता है कि अर्थ संकुचित हुआ है या विस्तृत, बुरा हो गया या अच्छा या कि उसका पुराना अर्थ ही लुप्त होकर नया अर्थ प्रयोग में आने लगा है। इन बातों को देखकर अर्थ परिवर्तन को तीन दिशाएँ मान ली गयी है- 1. अर्थ विस्तार, 2. अर्थ-संकोच और 3. अर्थादेश।

प्रश्न-44 अर्थोत्कर्ष को स्पष्ट रूप से समझाइये।

उत्तर-जब शब्दों का प्रयोग बुरे या भद्दे अर्थ से हटकर अच्छे अर्थ में होने लगता है, तब हम उसे अर्थोत्कर्ष कहते है। वस्तुतः अर्थोत्कर्ष में अर्थ का उत्कर्ष अथवा शुभ अर्थ आता है। उदाहरण के लिए ’कर्पट’ शब्द को लीजिए। पहले यह शब्द चिथङे के रूप में प्रयुक्त होता था, किन्तु अब अर्थ के उत्कर्ष के कारण यह कीमती से कीमती अथवा उच्चकोटि के कपङे के लिए प्रयुक्त होने लगा है।

प्रश्न-45 अर्थबोध में उपमान की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जिस वस्तु का संकेत ग्रहण सादृश्य से होता है, उसे उपमान कहा जाता है। अनेक शब्द ऐसे है जिनका अर्थ साक्षात् नहीं मालूम होता है, बल्कि उसके अर्थ को बोध सादृश्य से होता है। उदाहरणार्थ ’नीलगाय’ शब्द को लीजिए। नीलगाय गाय के समान होती है, किन्तु नीला रंग उसकी अतिरिक्त विशेषता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि संसार की बहुत सारी वस्तुओं का परिचय हमें उपमानों में ही प्राप्त होता है। यही कारण है कि अर्थ बोध में उसकी उपयोगिता सदैव बनी रहती है।

प्रश्न-46 संसार की भाषाओं की वर्गीकरण के लिए डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने कौन-कौन से आधार स्वीकार किए है ?

उत्तर- संसार की भाषाओं के वर्गीकरण के लिए डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने सात आधार माने जो इस प्रकार है-

1. महाद्वीप के आधार पर

2. देश के आधार पर

3. धर्म को आधार पर

4. काल के आधार पर

5. आकृति के आधार पर

6. परिवार के आधार पर

7. प्रभाव के आधार पर।

प्रश्न-47 आकृतिमूलक और पारिवारिक वर्गीकरण किसे कहते है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जिस वर्गीकरण में पद रचना और वाक्य-रचना को आधार बनाया जाता है, उसे आकृतिमूलक वर्गीकरण कहते है। आकृतिमूलक वर्गीकरण के अन्तर्गत आने वाली भाषाओं में पदों अथवा वाक्यों की रचना का ढंग समान होता है। जिन भाषाओं में आकृति की समानता न होकर अर्थ की समानता होती है, उन्हें पारिवारिक वर्ग के अन्तर्गत रखा जाता है। पारिवारिक वर्गीकरण को ऐतिहासिक वर्गीकरण भी कहा जाता है।

प्रश्न-48 पारिवारिक वर्गीकरण के प्रमुख आधार क्या है ?

उत्तर- संसार की भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से किया है। प्रश्न यह है कि इस वर्गीकरण के आधार पर प्रत्येक भाषा की कुछ न कुछ विशेषताएँ ऐसी है जो एक दूसरे से मिलती है। इस समानता के जो कारण है, वे ही पारिवारिक वर्गीकरण के आधार है। आकस्मिक समानता, शिशु शब्दावली में समानता, विभिन्न भाषाओं में आदान-प्रदान की समानता और समान उद्गम स्रोत को पारिवारिक वर्गीकरण का आधार माना जा सकता है।

प्रश्न-49 संसार के भाषा-परिवार कौन-कौन से है ?

उत्तर- संसार की भाषाओं को विद्वानों ने अनेक भाषा परिवारों में विभाजित किया है। इन परिवारों की संख्या अनिश्चित है। वही कारण है कि 12 से लेकर 100 परिवारों तक की कल्पना की गयी है। इनमें से प्रमुख भाषा परिवार ये है- भारोपीय परिवार, द्रविङ परिवार, सैमेटिक परिवार, हैमेटिक परिवार, बाँटू परिवार, चीन-तिब्बती परिवार, यूराल-अलटाई परिवार, काकेशी परिवार, अमेरिकी परिवार, जापान-कोरियाई परिवार, मलय परिवार, बुशमैन परिवार, सूडानी परिवार, अत्युत्तरी परिवार और पापुई परिवार।

प्रश्न-50 बाँटू परिवार के सम्बन्ध में आप क्या जानते है ?

उत्तर- बाँटू शब्द का अर्थ है मनुष्य। इस परिवार की भाषाओं में मनुष्य के लिए बाँटू से मिलता-जुलता शब्द ही प्रयोग में आता है। बाँटू अफ्रीका खण्ड का एक मुख्य भाषा परिवार है। इस परिवार का मुख्य क्षेत्र मध्य एवं दक्षिणी अफ्रीका है। विद्वानों की मान्यता है कि इस परिवार में लगभग डेढ़ सौ भाषाएँ बोली जाती है। इन सभी भाषाओं को पूर्वी, मध्यवर्ती और पश्चिमी वर्गों में विभाजित किया जाता है।

प्रश्न-51 आकृतिमूलक वर्गीकरण से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- प्रमुख रूप से भाषाओं में दो प्रकार की समानताएँ मिलती है। बाह्य या रचना की समानता और आन्तरिक या प्रकृति की समानता। इन्हीं दो समानताओं के आधार पर संसार की भाषाओं का वर्गीकरण किया गया है। जब भाषाओं को उनकी बाहरी आकृति के आधार पर अनेक वर्गों में विभाजित किया जाता है तो उस वर्गीकरण को आकृतिमूलक वर्गीकरण कहते है। स्पष्ट ही आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार भाषाओं की रचानगत समानता से है। यह समानता प्रमुख रूप से उन भाषाओं की पद-क्रियाओं में देखी जा सकती है।

प्रश्न-52 योगात्मक वर्ग की भाषाओं के कितने भेद है ? संक्षेप में उत्तर दीजिए।

उत्तर- योगात्मक वर्ग की भाषाओं के तीन भेद हैं- 1. अश्लिष्ट योगात्मक 2. श्लिष्ट योगात्मक और 3. प्रश्लिष्ट योगात्मक। प्रथम वर्ग की भाषाओं में अर्थ तत्त्व के साथ प्रत्यय अथवा विभक्ति का योग स्पष्ट दिखाई देता है। श्लिष्ट योगात्मक दशा में अर्थ तत्व में परिवर्तन आता है। देह से दैहिक, मधुर से माधुर्य, इसी क्रम में आते है। प्रश्लिष्ट में अर्थ तत्त्व और रचना तत्व घुल-मिल जाते है और उनमें मूल को ढूँढना सरल नहीं होता। ऋतु से आर्तव और ऋजु से आर्जव इस स्थिति के उदाहरण है।

प्रश्न-53 प्रश्लिष्ट योगात्मक भाषाओं के विषय में आप क्या जानते है ?

उत्तर- प्रश्लिष्ट योगात्मक भाषाओं में रचना तत्व और अर्थ तत्व घुल-मिल जाते है और उन्हें अलग करना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में अर्थ तत्व शब्द के साथ न रहकर पूरे वाक्य के आशय का बोध कर देता है। संस्कृत के निम्नांकित पद इसी स्थिति में है-
जिगमिषति = वह जाना चाहता है।
पिपठिषामि = मैं पढ़ना चाहता हूँ।

प्रश्न-54 डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने संसार की प्रमुख भाषाओं को किन परिवारों में विभक्त किया है ?

उत्तर- डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने संसार की प्रमुख भाषाओं को निम्न परिवारों में रखकर उन पर विचार करना सुविधाजनक माना है- 1. भारोपीय, 2. सैमेटिक, 3. हैमेटिक, 4. यूराल-अलटाई, 5. चीनी या एकाक्षरी, 6. द्रविङ, 7. मलय-पालिनीशियन, 8. बाँटू, 9. बुशमैन, 10. सूडानी, 11. आस्ट्रेलियन पापुवन, 12. रेड-इण्डियन, 13. काकेशी, 14. जापानी-कोरियाई।

प्रश्न-55 भारत-यूरोपीय भाषा परिवार के महत्व के मूल में प्रभावी कारणों की ओर संकेत कीजिए।

उत्तर- संसार के भाषा परिवारों में यूरोप से लेकर भारत तक जिस भाषा परिवार का व्यवहार होता है, वह भारत-यूरोपीय परिवार है। व्यवहार क्षेत्र की दृष्टि से यूरोप से लेकर एशिया तक फैले इस भू-भाग को मुख सुख की परम्परा ने यूरेशिया बना लिया है। ऐसे कई कारण है जिनके आधार पर इस भाषा परिवार की महत्व अन्य भाषा परिवारों से अधिक है। व्यवहार करने वालों की संख्या, व्यवहार क्षेत्र का विस्तार, साहित्य, रचना, सभ्यता के साथ संस्कृति के प्रति आग्रह, वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के योगदान, राजनैतिक प्रभाव और भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण के आधारों पर विचार करने से भारत-यूरोपीय परिवार अन्य परिवारों से आगे है।

प्रश्न-56 भारतीय आर्य-भाषा समूह को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?

उत्तर- समय-सीमा को आधार बनाकर भारतीय आर्य-भाषा समूह को तीन भागों में रखा जा सकता है-

प्राचीन भारतीय आर्य भाषाईसा पूर्व 1500 से 500 ई. पू. तक।
मध्य भारतीय आर्य भाषा500 ई. पू. से 1000 ई. तक।
आधुनिक भारतीय आर्य भाषा1000 ई. से वर्तमान तक।

प्रश्न-57 वैदिक संस्कृत से क्या तात्पर्य है – Vaidik sanskrit kya hai

उत्तर- प्राचीन आर्य भाषाओं में वैदिक भाषा का पर्याप्त महत्व है। यह वह भाषा है जिसमें हमारे वेद लिखे गये है। इसी से संस्कृत का विकास हुआ है। यही वह भाषा है जिसमें ऋग्वेद से लेकर उपनिषद् तक के फैले हुए इस विशाल ज्ञान-संग्रह को अभिव्यक्ति प्राप्त हुई है। कुछ लोग से छान्द्स भाषा भी कहते है। इस भाषा को छान्द्स इसलिए कहा गया है क्योंकि यह छन्दोबद्ध भाषा थी। इसमें लिखा गया सम्पूर्ण साहित्य तीन भागों में विभक्त है-संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ और उपनिषद्।

प्रश्न-58 अपभ्रंश किसे कहते है – Apbhrnsh kise kahte hain

उत्तर- अपभ्रंश शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में किया जाता है। वह भ्रष्ट और अशुद्ध भाषा रूप का परिचायक रूप है। इस सम्बन्ध में डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है कि साहित्य में प्रयुक्त होने पर वैयाकरणों ने प्राकृत भाषाओं को कठिन, अस्वाभाविक और अव्यावहारिक नियमों में बाँध दिया था, परन्तु जिन बोलियों के आधार पर उसकी रचना हुई थी, वे बाँधी नहीं जा सकती थी। अपभ्रंश अर्थात् बिगङी हुई भाष नाम उन भाषाओं को मिला जो नयी बोलियों के रूप में विकसित हुई थी और जो व्याकरण के बन्धन में बँधी हुई नहीं है।

प्रश्न-59 ग्रियर्सन ने आधुनिक आर्य भाषाओं का संशोधित वर्गीकरण किस प्रकार प्रस्तुत किया है ?

उत्तर- डाॅ. ग्रियर्सन ने आधुनिक आर्य भाषाओं का वर्गीरण अन्तरंग और बहिरंग आधारों पर किया है। उनके द्वारा किया गया वर्गीकरण एक बार तो सदोष रहा है। अतः दुबारा भी उन्होंने अपना संशोधित वर्गीकरण प्रस्तुत किया है, जो इस प्रकार है- मध्यदेशी-अन्तर्वर्ती- 1. पश्चिमी हिन्दी से विशेष घनिष्ठता वाली पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, पहाङी (पूर्वी, पश्चिमी और मध्य), बहिरंग भाषाएँ- 1. पश्चिमोत्तरी (लहँदा, सिन्धी), 2. दक्षिणी (मराठी), 3. पूर्वी (बिहारी, उङिया, बंगाली और आसामी)।

प्रश्न-60 हिन्दी की प्रमुख बोलियों के बारे में आप क्या जानते है ?

उत्तर- हिन्दी के दो रूप है- 1. पश्चिमी हिन्दी और 2. पूर्वी हिन्दी। पश्चिमी हिन्दी का सम्बन्ध शौरसेनी प्राकृत से है। यह मध्यप्रदेश की वर्तमान भाषा है। इसकी निम्नलिखित पाँच उपभाषाएँ है- 1. खङी बोली, 2. ब्रज भाषा, 3. कन्नौजी, 4. बुन्देली और 5. बाँगरू। पूर्वी हिन्दी का समबन्ध अर्द्धमागधी प्राकृत से है। इसके अन्तर्गत ये तीन बोलियाँ आती है- 1. अवधी 2. बघेली और 3. छत्तीसगढ़ी।

प्रश्न-61 कन्नौजी भाषा के बारे में आप क्या जानते है ?

उत्तर- कन्नौजी सामान्यतः ब्रज और अवधी के मध्यवर्ती रूप को कहा जाता है। इसकी भी उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश हुई है। इसका प्रमुख केन्द्र फर्रुखाबाद है, किन्तु यह हरदोई, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, इटावा और कानपुर के पाश्र्ववर्ती विविध क्षेत्रों में भी बोली जाती है। यदि हम चाहें तो इसे ब्रजभाषा का ही एक उपरूप कह सकते है, क्योंकि इसमें स्वतंत्र रूप से बहुत ही कम रचनाएँ हुई है और जो हुई भी है वे ब्रजभाषा की प्रकृति में ही पनपी है।

प्रश्न-62 ’दक्खिनी भाषा’ किसे कहा जाता है – Dakkhini hindi kise kahte hain

उत्तर- भारत में आने के बाद फारसी बोलने वाले मुसलमान जब बिन्दुओं के सम्पर्क में आये तो उनकी भाषा से प्रभावित होकर दिल्ली के आसपास की बोली से एक नवीन भाषा का विकास हुआ। सम्भवतः यह उक्त हिन्दी थी। तेरहवीं शताब्दी में जब मुसलमान शासक दक्षिण वियज को गए तो बहुत से लोग वहीं बस गए और शासन करने लगे। उनके साथ जो हिन्दी गई थी, वही राजभाषा घोषित हो गयी क्योंकि फारसी की अपेक्षा यह जनता के अधिक निकट थी। यही भाषा दक्खिनी हिन्दी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

प्रश्न-63 लिपि से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भाषा का स्वरूप विकसित हो जाने पर मानव ने अपने विचारों को नेत्र-ग्राह्य बनाने की बात सोची होगी। दूरस्थ व्यक्ति को अपनी भावनाओं और विचारों से परिचित कराने भावी पीढ़ी तक ज्ञान-राशि की स्मृति सुरिक्षत रखने के विचार से उसने विविध प्रयत्न किए होंगे। लिपि इन्हीं प्रयत्नों का परिणाम है। इस प्रकार लिपि की उत्पत्ति के मूल में अभिव्यक्ति की इच्छा निहित है।

प्रश्न-64 लिपि का जन्म क्यों हुआ और लिपि व भाषा का क्या सम्बन्ध है ?

उत्तर- डाॅ. भोलानाथ तिवारी का मत है कि काल और स्थान की सीमा के बंधन से भाषा को निकालने के लिए लिपि का जन्म हुआ। सामान्यतः कुछ लोग भ्रमवश लिपि और भाषा को एक ही मान लेते है, किन्तु ये अलग-अलग है। इतने पर भी ये सम्बन्धित है। भाषा और लिपि एक-दूसरे पर निर्भर करती है, किन्तु पार्थक्य को भी स्पष्ट करती है। भाषा ध्वनि-प्रतीकों की व्यवस्था है और लिपि लिखित चिह्नों की संरचना।

प्रश्न-65 भारत की प्राचीन लिपियाँ कौन-कौन सी है ?

उत्तर- भारत के पुराने शिलालेखों और सिक्कों पर ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का ही नाम मिलता है। डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने संकेत किया है कि पुस्तकों में अनेक लिपियों का उल्लेख है। डाॅ. तिवारी के मतानुसार जैनों के प्रपन्नावणा सूत्र में 18 लिपियों का और बौद्धों के ललित विस्तार नामक ग्रंथ में 64 लिपियों का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न-66 मुख-विवर की स्थिति के कारण स्वर कितने भेदों में विभाजित हो सकते है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- मुख विवर की स्थिति के कारण स्वर चार भेदों में बँट जाते है- विवृत, अर्धविवृत, अर्ध संवृत और संवृत। विवृत- जब जीभ और मुख विवर के ऊपरी भाग के बीच में अधिक से अधिक दूरी रहती है तब ’आ’ स्वर ध्वनि का उच्चारण होता है। विवृत्त का अर्थ खुला है। अर्थविवृत- इस दशा में जीभ और मुख विवर के बीच की दूरी कम हो जाती है और ’ऐं’, ’औ’ का उच्चारण किया जाता है।

अर्ध संवृत- जब जीभ और मुख विवर के ऊपरी भाग की दूरी बोलने के समय बढ़ जाती है, तब अर्धसंवृत ध्वनियाँ ए, ओ बोली जाती है। संवृत- जब जीभ्ज्ञ और मुख विवर के ऊपरी भाग के बीच में कम से कम दूरी रहती है, तब संवृत ध्वनियाँ इ, ई, उ, ऊ बोली जाती है।

प्रश्न-67 ओष्ठों की स्थिति के अनुसार स्वरों की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- बोलने में ओठों का महत्व जीभ से कम नहीं है। साँस की ध्वनि के अनुरूप बनाने में भीतर जीभ सहयोग देती है और बाहर ओष्ठ मदद करते है। स्वरों के उच्चारण में जीभ के साथ ओष्ठों का सहयोग आवश्यक है। ओष्ठों की स्थिति के अनुसार स्वरों की स्थिति इस प्रकार रहती है- प्रसृत- इस दशा में ओंठ स्वाभाविक रहते हुए खुलते है और इ, ई, ए, ऐस का उच्चारण होता है। वर्तुल- इस दशा में ओठों को थोङा बाहर निकाल कर गोलाकार कर लिया जाता है और उ, ऊ, ओ, औ का उच्चारण किया जाता है। अर्ध वर्तुल- इस दशा में ओंठ आधे गोलाकार में रहते है और ’आ’ बोला जाता है।

प्रश्न-68 ध्वनियों के गुणों में ’मात्रा’ का अर्थ और महत्व क्या है ? स्पष्ट बतलाइये।

उत्तर- मात्रा का सामान्य अर्थ वजन है। वजन तौल का आशय देता है और ध्वनि के लिए यह काल की सीमा बतलता है। इसी से मात्रा का ध्वनि से सीधा-सीधा सम्बन्ध काल की सीमा से है। जिस ध्वनि के उच्चारण में जितना समय लगता है, वह समय ही मात्रा के नाम से पुकारा जाता है। सामान्य रूप से मात्रायें ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत है। मात्राओं की गणना करते समय ह्रस्व को एक मात्रिक, दीर्घ को द्विमात्रिक और प्लुत को त्रिमात्रिक मान लिया जाता है। समय की सीमा अथवा काल के अनुसार जितना समय ह्रस्व में लगता है, उससे दुगुना समय दीर्घ में और तिगुना समय प्लुत के उच्चारण में लगता है।

प्रश्न-69 ’आघात’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सामान्य रूप से आघात का अर्थ चोट है। ध्वनि के धरातल पर आघात के दो भेद है। एक में स्वर अथवा तान का उपयोग किया जाता है और दूसरे में बल अथवा श्वास-वायु का उपयोग किया जाता है। इन्हें स्वराघात और बलाघात नाम से जाना जाता है। आघात किसी ध्वनि शब्द, पद, वाक्यांश अथवा वाक्य पर होता है। इस स्थिति में श्वास वायु का धक्का किसी एक पद पर दिया जाता है।

प्रश्न-70 अक्षरागम से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- अक्षरागम के उदाहरण बहुत कम पाये जाते है। आदि अक्षरागम के उदाहरणस्वरूप फजूल-बेफिजूल, मध्यअक्षरागम के उदाहरणस्वरूप आलसी-आलकसी, कमी-कमताई आदि को लिया जा सकता है। अन्त्य अक्षरागम के उदाहरणस्वरूप आंख-आंखङी, मुख-मुखङा और बला-बलाय आदि को लिया जा सकता है।

प्रश्न-71 बलाघात कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर- सामान्यतः विद्वानों ने बलाघात के दो भेद किए है- शब्द बलाघात और वाक्य बलाघात डाॅ. भोलानाथ तिवारी के द्वारा किए गये बलाघात के भेद भाषा विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए अधिक उचित एवं ग्राह्य प्रतीत होते है। बलाघात का अर्थ स्पष्ट करते समय बताया गया है कि उच्चारण करते समय बल या आघात कभी तो किसी शब्द पर पङता है, कभी वाक्य पर, कभी ध्वनि पर और कभी अक्षर पर। ऐसी स्थिति में बल पङने की इसी प्रक्रिया के आधार पर बलाघात के चार भेद किए जा सकते है- ध्वनि बलाघात, अक्षर बलाघात, शब्द बलाघात और वाक्य बलाघात।

प्रश्न-72 ’शब्द’ के विषय में कपिल और गौतम कणाद के मतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- सांख्य तत्त्वज्ञान के आद्य पुरुष कपिल मुनि के शब्द की प्रकृति का विकास बतलाया है। प्रकृति जङ है, व्यापक है। आकाश प्राकृतिक है और उसकी उत्पत्ति शब्द तन्मात्रा से हुई है। तन्मात्रा की कल्पना ’परमाणु’ शब्द से हो सकती है। न्याय दर्शन के अग्रणी गौतम मुनि से तथा वैशेषिक दर्शन के पुरोधा कुणाद मुनि ने शब्द को आकाश का गुण बतलाया है। कदम्बगोलक न्याय अथवा वाग्चितरंग न्याय से शब्द को उससे प्रसारित माना है।

प्रश्न-73 पद किसे कहते है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- शब्द के उस रूप को ’पद’ कहते है जो विभक्ति प्रत्यय या परसर्ग का संयोग ग्रहण कर तथा किसी वाक्य में प्रयुक्त होकर अर्थ बोध एवं भाव बोध में सवर्था होता है। इस दृष्टि से ’हाथी’, ’सरोवर’, ’कमल’ तथा ’तोङना’ केवल शब्द है, जबकि ’हाथी ने’, ’सरोवर में’, ’कमलों को’, ’तोङा’ से चारो पद है क्योंकि ’ने’, ’में’, ’को’ विभक्तियाँ तथा ’आ’ प्रत्यय का संयोग हुआ है और इन विभक्तियों एवं प्रत्यय न उक्त शब्दों को ’पद’ की योग्यता प्रदान की है।

प्रश्न-74 पद-रचना में सम्बन्ध तत्त्व की स्थिति पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- पद रचना में सम्बन्ध तत्त्व का प्रमुख कार्य होता है वाक्य में अर्थ तत्वों का पारस्परिक सम्बन्ध निर्देश। उदाहरण के लिए यह वाक्य ले सकते है- ’’कृष्ण ने दुशासन को चक्र से मारा’’। इस वाक्य में ’कृष्ण’, ’दुशासन’, ’चक्र’ और ’मारना’ शब्द अर्थ तत्व है और ’ने’, ’को’, ’से’ प्रत्यक्ष सम्बन्ध तत्त्व है। ’मारा’ में सम्बन्ध तत्त्व घुलमिल गया है। ’ने’ सम्बन्ध तत्त्व कृष्ण का सम्बन्ध बतलाता है, ’को’ और ’से’ क्रमश दुःशासन तथा चक्र का सम्बन्ध स्थापित करते है।

प्रश्न-75 संकेत ग्रहण से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- संकेत ग्रहण से तात्पर्य अर्थ-बोध से है। स्पष्ट शब्दों में साक्षात् संकेतित अर्थ के ग्रहण या ज्ञान को अर्थ बोध कहते है। शब्द और अर्थ के मध्य जो सम्बन्ध है, उसके ग्रहण या ज्ञान को संकेत ग्रहण कहा जाता है। संकेत ग्रहण के आठ साधन माने गये है- व्याकरण से संकेत ग्रहण, उपमान से संकेत ग्रहण, आप्तवाक्य से संकेत ग्रहण, सिद्धपद या सान्निध्य से संकेत ग्रहण, वाक्य शेष से संकेत ग्रहण, विवृत्ति से संकेत ग्रहण और कोष से संकेत ग्रहण।

प्रश्न-76 क्या अर्थ-विज्ञान भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में आता है ?

उत्तर- कुछ विद्वानों के अनुसार अर्थ-विज्ञान एक स्वतन्त्र सत्ता वाला स्वतंत्र विज्ञान है, किन्तु इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि अर्थ भाषा की आत्मा है। भाषा में शब्द प्रमुख होते है और शब्दों की प्रमुखता इस बात को सूचित करती है कि उनका कोई अर्थ भी होता या होना चाहिए। जब ऐसी स्थिति है तो अर्थ-विज्ञान भाषा से अलग नहीं है। जब वह अलग नही है तो भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में उसे बहिष्कृत करना कैसे उचित है ?

प्रश्न-77 प्रयत्नलाघव के कारण होने वाले अर्थ-परिर्वतन के उदाहरण दीजिए।

उत्तर- अर्थ विज्ञान में प्रयत्न लाघव के कारण भी शब्द के शब्द कम हो जाते है और इस प्रकार अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे ’रेलगाङी’ का अर्थ है जो रेल पटरी पर चलती है। प्रयत्न लाघव के कारण मात्र ’रेल’ शब्द ही प्रयोग में आने लगा तथा वह ’रेलगाङी’ को बोधक हो गया। इस प्रकार रेल का मूल अर्थ ’पटरी’ न रहकर ’ट्रेन’ हो गया। ऐसे ही राजकीय मुहर के स्थान पर ’मुहर’ और ’पोस्टल स्टाम्प’ के स्थान पर ’स्टाम्प’ रह गया।

प्रश्न-78 प्रमाणित कीजिए कि आप्त वाक्य अर्थबोध का महत्वपूर्ण साधन है।

उत्तर- आप्त वाक्य भी अर्थबोध का महत्वपूर्व साधन है। आप्त वाक्य में बोलने वालों के माता-पिता, गुरुवर्ग एवं अन्य अधिकारी व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान भी आप्त वाक्यों की विधि से ही प्राप्त होता है। ऐसे शब्दों का ज्ञान व्यवहार से नहीं हो सकता है। यथा-ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग, धर्म, पाप, पुण्य आदि शब्दों को लिया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि आप्त वाक्य अर्थबोध का महत्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न-79 क्या वातावरण में आया परिवर्तन अर्थ-परिवर्तन का कारण बनता है ? स्पष्ट उत्तर दीजिए।

उत्तर- वातावरण का प्रभाव उसके परिवर्तन का प्रभाव शब्द के अर्थ पर अवश्य पङता है। बाह्य वातावरण का प्रभाव मानसिक विचारों और भावों पर पङता है और उस मानसिकता में परिवर्तन आते ही अर्थ परिवर्तन भी होने लगता है। वातावरण भौगोलिक, सामाजिक या रीति-रिवाज सम्बन्धी कैसा भी हो, उसके परिवर्तन से भाषा में अर्थ परिवर्तन होता है।

प्रश्न-80 आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने भाषाओं के वर्गीकरण के लिए किन आधारों को मान्यता प्रदान की है ?

उत्तर- आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने संसार की भाषाओं को भाषा विज्ञान की दृष्टि से दो आधारों पर वर्गीकृत किया है- 1. आकृतिमूलक और 2. पारिवारिक। डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने वर्गीकरण के अपने सात आधारों में भाषा विज्ञान की दृष्टि से 1. आकृति का आधार, 2. परिवार का आधार, को विशेष महत्वपूर्ण माना है। इन्हीं दोनो आधारों को भाषा विज्ञान की दृष्टि से आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने संसार की भाषाओं के वर्गीकरण का आधार स्वीकार किया है।

प्रश्न-81 सैमेटिक परिवार के सम्बन्ध में आप क्या जानते है ?

उत्तर- सैमेटिक परिवार की भाषाएँ अफ्रीकी और एशिया दोनों खण्डों में बोली जाती है। इस परिवार का क्षेत्र विस्तार अफ्रीका और एशिया तक है। इसकी प्रमुख और प्राचीन भाषा हिब्रू है और प्रसिद्ध भाषा अरबी इस परिवार की भाषा है। इस परिवार की भाषाएँ प्रमुख रूप से श्लिष्ट योगात्मक है। इस परिवार की भाषाओं में धातु प्रायः तीन प्रकार के व्यंजनों के होते है। मध्य-योग भी सैमेटिक परिवार की विशेषता है। इसके आधार पर धातुओं के बीच में स्वर लगाकर पद रचना की जाती है। सैमेटिक परिवार में तीन कारक माने गये है- कत्र्ता, कर्म और सम्बन्ध।

प्रश्न-82 सैमेटिक और हैमेटिक परिवारों की समान्य विशेषताएं क्या है ?

उत्तर- सैमेटिक और हैमेटिक परिवारों की सामान्य विशेषताएँ पाँच है- 1. इन दोनों परिवारों में क्रिया सम्बन्धी काल-धारणा से अधिक महत्व क्रिया की पूर्णता और अपूर्णता का है। 2. दोनों परिवारों के बहुवचन बोधक प्रत्ययों को ध्यान से देखें तो वे किसी एक ही समान स्रोत से सम्बन्ध रखते है। 3. सैमेटिक और हैमटिक दोनों परिवारों से स्त्रीलिंग बोधक प्रत्यय को स्वीकार किया गया है। 4. दोनों परिवारों में व्याकरण से सम्बन्धित व्याकरणिक लिंग वर्तमान रहते है। 5. सैमेटिक और हैमेटिक परिवारों में पाए जाने वाले सर्वनाम प्रायः एक से ही होते है।

प्रश्न-83 आकृतिमूलक वर्गीकरण के कितने भेद है और अयोगात्मक भाषाओं के विषय में आप क्या जानते है ?

उत्तर- आकृतिमूलक वर्गीकरण के दो भेद है- 1. अयोगात्मक और 2. योगात्मक। अयोगात्मक भाषाओं में प्रकृति-प्रत्यय नहीं होते। इसी से शब्दों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। अयोगात्मक भाषाओं के शब्द स्वतन्त्र होते है और वाक्य में सम्मिलत हो जाने के बाद भी वे शब्द जैसे के तैसे बने रहते है। व्याकरण की दृष्टि से अयोगात्मक भाषाओं के शब्दों को संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण आदि कोटियों में विभाजित नहीं किया जाता। वाक्य में स्थान-भेद से शब्द संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, का रूप ले लेता है।

प्रश्न-84 श्लिष्ट योगात्मक भाषाओं के विषय में आप क्या जानते है ?

उत्तर- श्लिष्ट योगात्मक वर्ग में आने वाली भाषाओं में रचना तत्त्व के योग से अर्थ तत्त्व में कुछ बदलाव आ जाता है। खाट, कटोरी, लोटा, भाजी, गिलास में ’इया’ प्रत्यय का योग इन्हें खटियां, कटुरिया, लुटिया, भजिया और गिलसिया में परिवर्तित कर देता है। अर्थ की लघुता दर्शाने वाले इन व्यवहारों में रचना तत्त्व पहचाना जा सकता है। श्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ धीरे-धीरे वियोगात्मक हो रही है।

प्रश्न-85 क्या आकृतिमूलक वर्गीकरण का महत्व आधुनिक संदर्भों में निरन्तर कम होता जा रहा है ? यदि हाँ, तो क्यों ?

उत्तर- आकृतिमूलक वर्गीकरण का महत्व आधुनिक संदर्भों में दो कारणों से कम हो रहा है- 1. श्लिष्ट के साथ प्रश्लिष्ट में निर्णय देने वाली विभाजक रेखा खींचना मुश्किल है। 2. संसार की भाषाओं का सही-सही अध्ययन नहीं हो पाया है, इसी से आकृतिमूलक भाषाओं की सभी विशेषताओं का विश्लेषण नहीं हो पाया है। इसी आधार पर आकृतिमूलक वर्गीकरण के महत्व से पारिवारिक वर्गीकरण का महत्व अधिक है।

प्रश्न-86 आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने संसार के भाषा- परिवारों की संख्या कितनी स्वीकार की है ? नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर- आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने संसार के भाषा परिवारों की अनिश्चित संख्या 12 से लेकर 100 मानी है और उनमें से निर्मिवाद के साथ प्रमुख परिवार 18 माने है जो इस प्रकार है- 1. भारत-यूरोपीय परिवार, 2. द्रविङ परिवार, 3. बुरुशस्की परिवार, 4. उराल अल्ताई परिवार, 5. काकेशी परिवार, 6. चीनी परिवार, 7. जापानी-कोरियाई परिवार, 8. अत्युत्तरी परिवार, 9. बास्क परिवार, 10. सामी-हामी परिवार, 11. सूडानी परिवार, 12. बन्तू परिवार, 13. होतेन्तोत-बुशमैनी, 14. मलय-बहुद्वीपीय परिवार, 15. पापुई परिवार, 16. आस्ट्रेलियाई परिवार, 17. दक्षिण पूर्व एशियाई परिवार और 18. अमेरिकी परिवार।

प्रश्न-87 भारोपीय भाषा परिवार को ’इन्डोजर्मनिक’ नाम किसने और क्यों दिया ? स्पष्ट उत्तर दीजिए।

उत्तर- जर्मन भाषाविदों ने सबसे पहले भाषा विज्ञान पर कार्य किए और भारत से लेकर इंग्लैण्ड के साथ जर्मनी तक में बोली जाने वाली इन भाषाओं के परिवारों को इण्डो-जर्मनिक अर्थात् भारत-जर्मनिक नाम दिया। यूरोप के अन्य देशों के भााषाविदों केा यह नाम सीमित दिखलाई दिया। उनकी दृष्टि में इंग्लैण्ड, इटली, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, रूमानिया आदि की भाषाएँ इस नाम से नहीं आ रही थी, इसी से यह नाम मान्य नहीं हो सका। जर्मन भाषाविद् अभी भी इस परिवार को इसी नाम से पुकारते है।

प्रश्न-88 वैदिक भाषा की विशेषताएँ कौन-कौन सी है ?

उत्तर- वैदिक भाषा की विशेषताएँ इस प्रकार है- 1. वैदिक भाषा श्लिष्ट योगात्मक है। 2. वैदिक भाषा की रूप-रचना में विविधता के साथ जटिलता है। 3. वैदिक भाषा में स्वर की प्रधानता है और संस्कृत बल-प्रधान हो गई है। 4. वैदिक भाषा में संस्कृत के अनुरूप तीन लिंग और तीन वचन है। 5. वैदिक भाषा में उपसर्ग मूल शब्द से अलग भी व्यवहार में है, लेकिन संस्कृत में ऐसे व्यवहार नहीं मिलते है।

प्रश्न-89 लौकिक संस्कृत से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- इस भाषा को कुछ लोग केवल संस्कृत भाषा ही कहते है। पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व यह भाषा भारत में प्रचलित थी। इसका उद्भव वैदिक संस्कृत से हुआ है। पाँचवी शती में भारत के उत्तर में तक्षशिला नामक स्थान पर जन्मजात प्राप्त व्याकरण के महान ज्ञाता पाणिनी ने संस्कृत को व्याकरण से जकङ कर परिष्कृत किया। इस संस्कृत के कई नाम है- लौकिक संस्कृत, क्लासिकल संस्कृत और पाणिनीय संस्कृत आदि। संस्कृत भाषा में जो व्याकरण उपलब्ध है, वह पर्याप्त कठिन माना जाता है।

प्रश्न-90 प्रमुख आधुनिक आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी है ?

उत्तर- आर्य भाषाओं की जननी के रूप में अपभ्रंश की उल्लेखनीय बोलियों में शौरसेनी, पैशाची, ब्राचङ, महाराष्ट्री, अर्द्धमागधी और मागधी का नाम लिया जा सकता है। इन्हीं से आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का विकास हुआ है। प्रमुख आर्य भाषाएँ ये है- सिन्धी, गुजराती, लहैदा, पंजाबी, मराठी, उङिया, बंगाली, असमिया और हिन्दी। कुछ विद्वानों ने आधुनिक आर्य भाषाओं में कश्मीरी और नेपाली को भी स्थान दिया है।

प्रश्न-91 डाॅ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं को किस प्रकार वर्गीकृत किया है ?

उत्तर- पश्चिमी हिन्दी को केन्द्रीय भाषा मानकर डाॅ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने अपना निम्नलिखित वर्गीकरण प्रस्तुत किया है-

1. उदीच्य (सिन्धी, लहँदा, पंजाबी)

2. प्रतीच्य (गुजराती और राजस्थानी)

3. मध्यदेशीय (पश्चिमी हिन्दी)

4. प्राच्य (पूर्वी हिन्दी, बिहारी, उङिया, असमिया और बंगाली)

5. दाक्षिणात्य (मराठी)

डाॅ. चटर्जी ने पहाङी को राजस्थानी भाषा का ही एक रूप स्वीकार किया है। यही कारण है कि उन्होंने पहाङी को अपने वर्गीकरण में अलग से स्थान नहीं दिया है।

प्रश्न-92 अवधी भाषा के विषय में आप क्या जानते  है ?

उत्तर- हरदोई जिला को छोङकर अवध के अन्य भागों में बोली जाने वाली उपभाषा को अवधी भाषा कहते है। लखनऊ, उन्न्ााव, रायबरेली, सीतापुर, खीरी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ और बाराबंकी इस बोली के प्रमुख केन्द्र है। इनके अतिरिक्त यह बोली गंगापार स्थिति इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर, और जानपुर के कुछ भागों में भी बोली जाती है। हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में इस भाषा का प्रचुर साहित्य रचना गया था जिसका अपना कालजयी महत्व है।

प्रश्न-93 हिन्दी के प्रमुख बोलियों के नाम बताइये।

उत्तर- भाषाशास्त्री हिन्दी के दो रूप मानते है- 1. पश्चिमी हिन्दी और 2. पूर्वी हिन्दी। पश्चिमी हिन्दी की भाषाशास्त्र की दृष्टि से ’हिन्दी’ कही जाती है। इसके अन्तर्गत पाँच बोलियाँ है- 1. खङी बोली, 2. ब्रजभाषा, 3. कन्नौजी, 4. बाँगरू तथा, 5. बुन्देली। पूर्वी हिन्दी के अन्तर्गत तीन बोलियाँ आती है- 1. अवधी, 2. बघेली और 3. छत्तीसगढ़ी। कुछ विद्वान भोजपुरी को भी अवधी की एक बोली मानते है।

प्रश्न-94 ’’दक्खिनी हिन्दी खङी बोली का पूर्व रूप है।’’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- आधुनिक काल के आरम्भ काल के आरम्भ तक हिन्दी का अर्थ जनसाधारण की भाषा था। हिन्दी का अर्थ हिन्दुओं की भाषा थी। मुसलमानों लेखकों ने इसी को दक्खिनी कहा है। तात्पर्य यह है कि हिन्दी हिन्दवी और दक्खिनी तीनों शब्दों का तात्पर्य एक ही भाषा से था। इंशाअल्ला खाँ ने अपनी भाषा के सम्बन्ध में लिखा है कि ’’यह नहीं होने का कि हिन्दवीपन भी न निकले और भाखापन भी न हो।’’ वस्तुतः हिन्दवी या दक्खिनी खङी बोली के रूप में विकसित हुई और हिन्दी साहित्य की प्रधान भाषा बनी।

प्रश्न-95 हिन्दी के व्याकरणिक रूप कौन-कौन से है ?

उत्तर- हिन्दी के व्याकरणिक रूप प्रमुख रूप से ये माने गये है- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया-विशेषण, वचन, कारक, काल, कारक आदि। हिन्दी के इन व्याकरणिक रूपों के आधार पर ही भाषा की संरचना तैयार होती है।

प्रश्न-96 लिपि के विकासक्रम में कौन-कौन सी लिपियाँ  है ?

उत्तर- लिपि के विकासक्रम में प्रमुख रूप से छः लिपियों को स्थान प्राप्त है। ये छः लिपियाँ इस प्रकार है- चित्र लिपि, सूत्र लिपि, प्रतीकात्मक लिपि, भावमूलक लिपि, भाव-ध्वनिमूलक लिपि और ध्वनिमूलक लिपि।

हिन्दी भाषा की संवैधानिक स्थिति

हिंदी भाषा और बोलियाँ प्रश्नोतर

राष्ट्रभाषा व राजभाषा में अंतर

भाषा अपभ्रंश,अवहट्ट और पुरानी हिंदी परिचय

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