• Home
  • PDF Notes
  • Videos
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • PDF NOTES
  • VIDEOS
  • कहानियाँ
  • व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • कविताएँ
  • Web Stories

कुंवर नारायण || जीवन परिचय || Kunwar Narayan

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:2nd May, 2022| Comments: 0

आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के चर्चित कवि कुंवर नारायण (Kunwar Narayan) के बारे में विस्तार से पढेंगे ,इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्य दिए गए है ।

कुंवर नारायण (Kunwar Narayan)

Table of Contents

  • कुंवर नारायण (Kunwar Narayan)
  • (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
    • काव्य रचनाएँ
    • कहानी संग्रह-
    • खण्ड काव्य-
    • महत्त्वपूर्ण लिंक

Kunwar Narayan

Kunwar Narayan
Kunwar Narayan
  • जन्म- 19 सितम्बर, 1927 ई.
  • मृत्यु- 15 नवम्बर, 2017 ई. (लखनऊ)
  • जन्मस्थान- फैजाबाद (उत्तरप्रदेश)
  • लेखन – 1950 के आसपास काव्य लेखन प्रारम्भ किया

काव्य रचनाएँ

🔷 चक्रव्यूह (प्रथम काव्य संग्रह, 1956 ई.)
🔶 परिवेश हम तुम (1961 ई.)
🔷 अपने समाने (1979 ई.)
🔶 कोई दूसरा नहीं (1993 ई.)
🔷 इन दिनों (2002 ई.)
🔶 नीम रोशनी
🔷 तीसरा सप्तक में संकलित कविताएँ

कहानी संग्रह-

🔶 1973 ई. आकारों के आस-पास

खण्ड काव्य-

🔷 आत्मजयी (1965 ई.)
– कठोपनिषद् की पौराणिक कथा नचिकेता पर आधारित प्रबन्ध काव्य है जिसमें नई पीढी एवं पुरानी पीढी के मूल्य संघर्ष को उजागर किया गया है।
🔶 बाजश्रवा के बहाने (2008 ई.)

⇒ ज्ञानपीठ पुरस्कार की राशि 2005 में 7 लाख रूपये कर दी गई थी कुंवर नारायण यह प्रथम व्यक्ति थे जिन्हें ये राशि मिली थी।

→ 2011 से पुरस्कार की राशि 11 लाख रू. कर दी गई है।

⇒ आलोचक मानते है कि ’’कुंवर नारायण की कविता में व्यर्थ का उलझाव अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम परिष्कार और साफ- सुथरापन  है।

चलिए अब हम इनके जीवन के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को पढतें है …

कुंवर नारायण का पहला काव्य-संग्रह ’चक्रव्यूह’ आधुनिकता की मनोदशा का सूचक है- ’मैं नवागत वह अजित अभिमन्यु हूँ/प्रारब्ध जिसका गर्भ ही से हो चुका निश्चित / अपरिचित जिन्दगी के व्यूह में फेंका हुआ उन्माद/बांधी पक्तियों को तोङ/क्रमशः लक्ष्य तक बढ़ता हुआ जयनाद।’ यह आज की सामाजिकता से घिरे व्यक्ति की एक दी हुई निश्चित स्थिति है। पर व्यक्ति लक्ष्य तक बढेगा ही, किंतु इसे कुछ निग्रह के साथ ही स्वीकारा जा सकता है। इन पंक्तियों में अनजाने ही जो अन्तर्विरोध आ गया है वह कुंवर नारायण का ही नहीं है अनेक अन्य कवियों और युग का भी है।

प्रश्न है कि जिसका प्रारब्ध गर्भ में ही निश्चित हो चुका है वह अर्जित कैसे है ? अगर उसकी अजेयता गर्भ में ही निश्चित है जो फिर वह अभिमन्यु कैसे हो सकता है ? अभिमन्यु तो लक्ष्य तक पहुँचने के पूर्व मारा जाता है। एक ओर प्रारब्धवादी होना और दूसरी ओर न होना एक साथ सम्भव नहीं है। इस अन्तर्विरोध के कारण कवि का ’मैं’ कहीं कहता है कि ’पर मैं प्रकाश का वह अन्तः केन्द्र हूँ/ जिससे गिरने वाली वस्तुओं को छायाएँ बदल सकती है/’ तो इसके विरुद्ध कहता है।

विरुद्धों का यह सामंजस्य ’आत्मजयी’ और ’परिवेश: हम-तुम’ में मिलता है।
’आत्मजयी’ एक चर्चित काव्य है। इसमें कठोपनिषद् की ’यम-नचिकेता’ को कहानी आधार रूप में ग्रहण की गई है। नचिकेता का परिवेश भी अभिमन्यु के चक्रव्यूह से कम जटिल नहीं है। नचिकेता अपने ढंग से व्यूह को तोङकर लक्ष्य तक पहुँच जाता है। पर उसका लक्ष्य क्या है ? परिस्थितियाँ क्या है ? लक्ष्य पर पहुँचने की प्रक्रिया क्या है ? और अन्त में उसकी प्रासंगिकता क्या है ?

वस्तुतः नचिकेता निजी सुख-सुविधा से आगे किसी ऐसे मूल्य या बोध की तलाश में है कि ’मत्र्य होते हुए भी मनुष्य किसी अमर अर्थ में जी सकता है।’ यह प्रश्न पुराने अर्थ में आध्यात्मिक या रहस्यात्मक न होकर अस्तित्वपरक है। इस नचिकेता का अमरतव सर्जनात्मक संभावनाओं के प्रति आस्था की उपलब्धि में निहित है। किन्तु सर्जनात्मकता का अर्थ इतना अनिर्णीत है कि उसके सम्बन्ध में निश्चयात्मक रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।

वाजश्रवा भौतिक जीवन का विश्वासी है जो आज का युग है और नचिकेता आत्मा के सत्य तक, सार्थकता तक पहुँचना चाहता है। वह मृत्यु-बोध से आत्म-बोध या जीवन बोध पाता है। संपूर्ण जीवन को देकर ही सम्पूर्ण जीवन को पाया जा सकता है।

किसी भी सोचने-विचारने वाले व्यक्ति के मन में जिन्दगी की सार्थकता का सवाल बराबर उठता रहता है। वाजश्रवा के क्रोध के बाद नचिकेता के सवाल विषादात्मक बन जाते हैं- वे जिन से पाया/नगण्य सुख-साधन कुछ……/दान मिला/दान से अधिक एहसान मिला/वे जिनको प्यार दिया जीवन को खाली कर,/ उन्होंने दया की, मुझ पर उपकार किया/वे सब समुद्ध रहे अपने में/लेकिन में रीत गया आत्मा को व्यय करके,/बदले में केवल एक कुंठा संचय करके।/प्रलोभनों में ’काम’ को उपलक्षण के रूप में लिया गया है।

वह जिज्ञासु हो उठता है- धरा, धाम, सखा, बन्धु/पिता, नाम, वर्तमान/मुझमें है-मुझसे है-मेरे है……../अनजाने, पहचाने, माने, बेमाने……/सब मेरे है-मैं सबका हूँ-/लेकिन में फिर अचेतावस्था में उसे अतीत और भविष्य बोध होता है। इसके बाद जिज्ञासा, श्रेष्ठ का वरण, सृजक दृष्टि आदि शीर्षकों के अन्तर्गत नचिकेता की अन्तर्यात्राओं का उल्लेख किया गया है। अन्ततः वह मुक्तिबोध के सोपान तक पहुंच जाता है।

’आत्मा की ओर लौटो’ की औपनिषदिक विचारधारा इस देश की अपनी विचाराधारा बन गई है। हिन्दी साहित्य के संत सवियों कबीर, दादू आदि में इसे स्पष्टतः देखा जा सकता है। निराला की रचनाओं में भी इसकी प्रतिध्वनि मिलती है। दिनकर की उर्वशी की समस्या को कामध्यात्मक की समस्या कहा जाता है।

उर्वशी के पुरूरवा की समस्या मानसिक ज्यादा है। उसे काम के अतिरेक का परिणाम भी कहा जा सकता है। वह कामाभाव में संन्यास लेता है। किन्तु ’आत्मजयी’ की समस्या जीवन के एक बुनियादी सवाल को- सार्थकता के सवाल को-उठाती है। उर्वशी का कामाध्यात्मक रोमैंटिक हो गया है। रोमैंटिक कामाध्यात्मक का अन्त पलायन में होता है। ’आत्मजयी’ का आध्यात्म्य शंकर अद्वैतवाद में होता है-

स्वयं अदृष्ट
इसी माया वस्तु को
बार-बार धारण करूँ-इसी भोग सामग्री को ग्रहण करूँ-
इससे छूटा रह कर।
अपनी अपूर्व रचना में
एक कलाकार ईश्वर की तरह अनुपस्थित
अथाह समय से जियूँ-
केवल आत्मा
अमरत्व
और आश्चर्य

यह परिणति नई नहीं हो पाती। संसार के मायावस्तु के रूप में लेना प्रकारान्तर से निवृत मार्ग का ही समर्थन है। इसमें सन्देह नहीं कि कुंवर नारायण इसके माध्यम में जीवन की जटिलतर समस्याओं को रचनात्मक बोध के विविध आयामों को उठाते है। पर इसकी शंकर अद्वैतवादी परिणति इसे निवृत्तवादी बना देती है और काव्य मुक्तिबोध की सीमा में सिमटकर व्यक्ति का निषेधात्मक आत्मबोध बनकर रह जाता है। शमशेर के नए काव्य-संग्रह ’इतने पास अपने’ की तरह कुंवर नारायण का नया काव्य संग्रह ’अपने सामने’ कुछ नया नहीं जोङ पाता।

महत्त्वपूर्ण लिंक

🔷सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      🔷कारक 

🔹क्रिया    🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  🔷 समास(हिंदी व्याकरण) 

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷  हिंदी मुहावरे 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

Tweet
Share
Pin
Share
0 Shares
Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • वर्ण किसे कहते है –  Varn Kise Kahate Hain

    वर्ण किसे कहते है – Varn Kise Kahate Hain

  • उपन्यास के अंग – तत्व || हिंदी साहित्य

    उपन्यास के अंग – तत्व || हिंदी साहित्य

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Search

5000 हिंदी साहित्य वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सैकंड ग्रेड हिंदी कोर्स जॉइन करें

ट्विटर के नए सीईओ

टेलीग्राम चैनल जॉइन करें

Recent Posts

  • Application in Hindi – प्रार्थना पत्र कैसे लिखें
  • बिहारी रत्नाकर – जगन्नाथदास रत्नाकर || व्याख्या सहित || पद 1 से 25 तक
  • समुच्चयबोधक अव्यय – परिभाषा,अर्थ ,उदाहरण || Samuchaya Bodhak
  • सूफ़ीकाव्य महत्वपूर्ण तथ्य – हिंदी साहित्य
  • वर्ण किसे कहते है – Varn Kise Kahate Hain
  • उपन्यास के अंग – तत्व || हिंदी साहित्य
  • हिंदी ट्रिक 1
  • आइए जाने वेद क्या है
  • सिंधु घाटी सभ्यता सार
  • विराम चिह्न क्या है – Viram chinh in Hindi || हिंदी व्याकरण

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • General Knowledge
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • विलोम शब्द
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • संधि
  • समास
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी पाठ प्रश्नोत्तर
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

हमारा यूट्यूब चैनल देखें

Best Article

  • बेहतरीन मोटिवेशनल सुविचार
  • बेहतरीन हिंदी कहानियाँ
  • हिंदी वर्णमाला
  • हिंदी वर्णमाला चित्र सहित
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुमित्रानंदन पन्त
  • महादेवी वर्मा
  • हरिवंशराय बच्चन
  • कबीरदास
  • तुलसीदास

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay
रामधारी सिंह दिनकर – Ramdhari Singh Dinkar || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Footer

हिंदी व्याकरण

 वर्ण विचार
 संज्ञा
 सर्वनाम
 क्रिया
 वाक्य
 पर्यायवाची
 समास
 प्रत्यय
 संधि
 विशेषण
 विलोम शब्द
 काल
 विराम चिह्न
 उपसर्ग
 अव्यय
 कारक
 वाच्य
 शुद्ध वर्तनी
 रस
 अलंकार
 मुहावरे लोकोक्ति

कवि लेखक परिचय

 जयशंकर प्रसाद
 कबीर
 तुलसीदास
 सुमित्रानंदन पंत
 रामधारी सिंह दिनकर
 बिहारी
 महादेवी वर्मा
 देव
 मीराबाई
 बोधा
 आलम कवि
 धर्मवीर भारती
मतिराम
 रमणिका गुप्ता
 रामवृक्ष बेनीपुरी
 विष्णु प्रभाकर
 मन्नू भंडारी
 गजानन माधव मुक्तिबोध
 सुभद्रा कुमारी चौहान
 राहुल सांकृत्यायन
 कुंवर नारायण

कविता

 पथिक
 छाया मत छूना
 मेघ आए
 चन्द्रगहना से लौटती बेर
 पूजन
 कैदी और कोकिला
 यह दंतुरित मुस्कान
 कविता के बहाने
 बात सीधी थी पर
 कैमरे में बन्द अपाहिज
 भारत माता
 संध्या के बाद
 कार्नेलिया का गीत
 देवसेना का गीत
 भिक्षुक
 आत्मकथ्य
 बादल को घिरते देखा है
 गीत-फरोश
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us