लोहिया दर्शन ||डॉ. राममनोहर लोहिया ||net jrf hindi ||

लोहिया दर्शन,डाॅ. राममनोहर लोहिया विश्व की उन विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने अपना समग्र जीवन मानव सेवा में लगा दिया। भारत में समाजता विचारधारा के एक सशक्त प्रचारक होने के साथ-साथ वे एक महान राजनीतिक यौद्धा, देशभक्त, स्वंतत्र चिन्तक तथा एक निडर नेता भी थे।

लोहिया दर्शन(lohia darshan)

उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया वरन् नेपाल और गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में भी रुचि दिखाई जो, उनकी मानव मात्र की स्वतंत्रता में आस्था का परिचायक है। वे अपने जीवन काल में 18 बार जेल गये तथा सामाजिक न्याय के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। डाॅ. लोहिया जी के जीवन पर निम्न चीजों से प्रभाव पङा –

पारिवारिक प्रभाव:

राममनोहर लोहिया के पिता श्री हीरालाल स्वतंत्रता संग्राम से सम्बद्ध थे। यह उनके पिता का ही प्रभाव था कि लोहिया के दिल में किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता के लिए ललक उत्पन्न हो गई।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रभाव:

इस विद्यालय के सांस्कृतिक वातावरण से लोहिया अत्याधिक प्रभावित हुये। यहां उनका विकास प्रतिभाशाली विद्वान और कुशल वक्ता के रूप में हुआ एवं उनके नेतृत्व के गुण भी विकसित हुये। डाॅ. लोहिया को पक्का राष्ट्रवादी तथा राजनेता बनाने में भी इस विश्वविद्यालय का योगदान रहा।

मार्क्स और एन्जिल का प्रभाव:

डाॅ. राममनोहर लोहिया पर कार्ल मार्क्स और फ्रेडिक एन्जिल के विचारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। बर्लिन में उन्होंने जर्मन भाषा में कार्ल मार्क्स का साहित्य पढ़ा। वे आजीवन मार्क्स से प्रभावित रहे। उन्होंने मार्क्स वाद को भारतीय परिस्थितियों और संस्कृति के अनुरूप ग्रहण करने का प्रयास किया।

गांधी जी का प्रभाव:

गांधी जी की अहिंसा, सत्याग्रह जैसी नीतियों से लोहिया अत्यधिक प्रभावित थे। भाषा, धर्म तथा जाति संबंधी प्रश्नों पर भी दोनों के विचारो में समानता थी। गांधी जी के प्रति अपार श्रद्धा का भाव रखने तथा अनेक मुद्दों पर विचारों की समानता होने के बावजूद लोहिया ने गांधी को पूर्ण नहीं माना।

उन्होंने यह विचार व्यक्त किया है गांधी और मार्क्स की सबसे बङी कमी यह है कि यह समस्या के एक पक्ष को मानता है और दूसरा समस्या के दूसरे पक्ष को मानता है, तथा अपने दृष्टिकोण के अनुसार सुझाव प्रस्तुत करते हैं। लोहिया ने मार्क्स , गांधी एण्ड सोशलिज्म नामक पुस्तक में मार्क्स और गांधी दोनों के सिद्धांतों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया जिससे दोनों विचारकों के सिद्धांतों को सही दिशा प्रदान की जा सके।

लोहिया की प्रमुख रचनायें –
1. रेस्पेक्ट्स ऑफ सोशलिस्ट पाॅलिसी
2. गिल्टीमैन ऑफ इंडियन पार्टीशन
3. मार्क्स , गांधी एण्ड सोशलिज्म
4. मिनिस्ट्री ऑफ स्टाफर्ड क्रिप्स
5. इंडिया, चायना एण्ड नर्दन फ्रंटियर्स
6. दि कास्ट सिस्टम
7. नया समाज नया मन
8. सात क्रांतियां
9. समलक्ष्य समबोध
10. धर्म पर एक दृष्टि

Lohiya ke vichar

डाॅ. राममनोहर लोहिया और समाजवाद

इनकी दृष्टि में भारत को सुधारने और उसे प्रगति की राह पर लाने का एकमात्र रास्ता समाजवाद था। उनके समाजवाद संबंधी विचारों का उल्लेख उनकी पुस्तकों भारत में समाजवाद, समाजवाद की राजनीति, समाजवाद की अर्थनीति, समाजवाद के आर्थिक आधार, समाजवादी सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डाॅ. राममनोहर लोहिया ने की।

1955 में उनकी अध्यक्षता में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ। अपनी सक्रिय राजनीति के सम्पूर्ण काल में वे समाजवाद की विचारधारा को सुदृढ़ आधार प्रदान करने हेतु प्रत्यनशील रहे।

लोहिया के समाजवाद की विशेषताएँ –

डाॅ. लोहिया अपने समाजवादी चिन्तन में मार्क्स और गांधी दोनों से प्रभावित दिखाई देते हैं। उनके समाजवाद चिंतन की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
⇒ डाॅ. लोहिया का समाजवादी दर्शन उस व्यक्ति पर आधारित है जो सामाजिक पद-सोपान क्रम में सबसे नीचे आता है। जाति, धर्म, शास्त्र, व्यवस्था ने जिसे चारों ओर से जकङ रखा है।

⇔ डाॅ. लोहिया के समाजवाद का उद्देश्य वर्गहीन समाज की स्थापना करना है जिसमें शासन व्यवस्था विकेन्द्रीकृत हो।
⇒ राममनोहर लोहिया समाजवाद के माध्यम से ने केवल वर्गों की समाप्ति चाहते थे बल्कि उनकी समाजवादी धारणा में जाति उन्मूलन भी एक आवश्यक तत्व था क्योंकि उनके अनुसार जहां जाति प्रथा के कारण शूद्रों को ठोकर मारने की स्थिति हो, वहां समाजवाद की कल्पना नहीं की जा सकती है।

⇔ अपनी विचारधारा में डाॅ. लोहिया ने वर्ग की अवधारणा को स्थान देते हुए वर्ग उत्पत्ति का कारण मात्र आर्थिक ही नहीं माना बल्कि सामाजिक भी माना है। लोहिया इस संदर्भ में मार्क्स से प्रभावित होते हुए भी उनसे भिन्न हैं क्योंकि मार्क्स वर्ग उत्पत्ति का आधार मात्रा आर्थिक तत्व को ही मानते हैं।

वर्ग की धारणा का भारत के संदर्भ में विश्लेषण करते हुए डाॅ. लोहिया मानते हैं कि भारत में वर्ग मुख्य रूप से तीन विशेषाधिकारों के कारण उत्पन्न हुए हैं – 1. जाति, 2. सम्पत्ति, 3. भाषा।

⇒ डाॅ. लोहिया ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए हिंसात्मक क्रांति का विरोध किया, उनके अनुसार हिंसात्मक क्रांति अनुचित होने के साथ-साथ असंभव है। लोहिया ने मार्क्स के क्रांति संबंधी विचारों का सविनय अवज्ञा के साथ समन्वय किया है।

उन्होंने हिंसात्मक क्रांति के स्थान पर सविनय अवज्ञा का पक्ष लिया। उनके अनुसार सविनय अवज्ञा के रूप में अहिंसात्मक क्रांति जनता में शक्ति का संचार करेगी तथा इसके द्वारा जनता का नैतिक उत्थान भी होगा|

लोहिया के आर्थिक विचार

लोहिया का आर्थिक दृष्टिकोण उनकी पुस्तक सोशलिस्ट इकोनाॅमी में दिया गया है। लोहिया के अनुसार समाजवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ है कि उत्पादन के साधन राष्ट्र की सम्पत्ति होंगे। वे पूँजी को कुछ लोगों तक सीमित रखने के विरोधी थे।

वे उनका समाजीकरण चाहते थे जिससे अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो सके। लोहिया का मत था कि जहां तक संभव हो लघु ईकाईयों और छोटे यंत्रों का उपयोग करना चाहिए। लघु स्तर पर उत्पादन का अर्थ या आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण जिससे अधिक लोगों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर प्राप्त हो।

⇔ लोहिया ने बङे उद्योगों में बिजली, लोहा और इस्पात आदि को सम्मिलित किया। वे इन उद्योगों में बङी मशीनों के इस्तेमाल के पक्षधर थे।
⇒ इनका निजी क्षेत्र में विश्वास नहीं था क्योंकि उनके अनुसार निजी क्षेत्र द्वारा शोषण को बढ़ावा मिलता है।
⇔ लोहिया ने आय विषमता कम करने पर बल दिया क्योंकि आय में अत्यधिक अन्तर समाजवाद की सम्भावना को क्षीण बना देता है।

⇒ लोहिया ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के पक्षधर थे। वे देश की उन्नति के लिये कृषि के उत्थान को आवश्यक मानते थे। कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था ग्राम्य जीवन के लिए आवश्यक है। भारत के 80 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं अतः कृषि का विकास भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यक है।

लोहिया के सामाजिक विचार

समाजवाद न तो सम्पत्ति का सिद्धांत है और न राज्य का बल्कि इन सब से ऊपर यह एक जीवन दर्शन है, अतः इस दृष्टि से इसका संबंध जीवन के प्रत्येक पहल से है – सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक। इस संबंध में जैसा राममनोहर लोहिया ने कहा है ’’अगर समाजवाद का एक अंग लिया जाता है तो समाजवाद खण्डित रहे जाता है…….’’ अतः एक सच्चे समाजवादी होने के नाते राममनोहर लोहिया ने समाजवाद के हर पहलू पर विचार किया है, इसमें समाजवाद का सामाजिक पहलू भी सम्मिलित है।

डाॅ. राममनोहर लोहिया ने समाज से संबंधित जिन व्यवस्थाओं पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं उन्हें बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –

जाति प्रथा का विरोध: डाॅ. लोहिया जाति प्रथा के विरोधी थे, उनके अनुसार जाति प्रथा समाजवाद के मार्ग का मुख्य अवरोधक है। जाति समाज में असमानता उत्पन्न करती है। डाॅ. राममनोहर लोहिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है ’’जीवन के बङे-बङे तथ्य जन्म, मृत्यु, शादी, भोज ब्याह, और सभी रस्में, जाति के चौखट में होती है।

ऐसे मौकों पर दूसरी जाति के लोग किनारे पर रहते हैं, जैसे वे तमाशबीन हों’’ जाति प्रथा के कारण निम्न वर्ग शोषण का शिकार बनते हैं, जाति उन्हें उन्नति कें अवसरों से अलग रहती है। लोहया के अनुसार इन सब का सम्मिलित परिणाम होता है – राष्ट्रीय विकास में कमी।

अस्पृश्यता का विरोध:

अम्बेडकर, नेहरू, जयप्रकाश नारायण की भांति डाॅ. लोहिया ने भी अस्पृश्यता को जाति व्यवस्था का परिणाम माना और उसका विरोध किया। हरिजनों के मंदिर प्रवेश की समस्या के निराकरण के लिये उन्होंने हरिजन मंदिर प्रवेश आंदोलन चलाया।

डाॅ. लोहिया ने अस्पृश्यता की भावना के कुपरिणामों का उल्लेख करते हुये कहा कि अस्पृश्यता के कारण केवल राष्ट्रीय विघटन और अवनति हुई है वरन् इसके परिणामस्वरूप भारत को अंतर्राष्ट्रीय अपमान तथा उपेक्षा भी सहन करनी पङी है। यदि हमें अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी पहचान बनानी है तो हमें अस्पृश्यता निवारण के लिये प्रभावात्मक कदम उठाने होंगे। इस समस्या के निवारण हेतु सुझाव इस प्रकार थे –

⇒ हरिजनों में स्वाभिमान व निर्भयता की भावना विकसित करना।
⇔ हरिजनों में शिक्षा का प्रसार।
⇒ हरिजनों को समान आध्यात्मिक अधिकार प्रदान करना।
⇔ हरिजनों के साथ मानवोचित व्यवहार।

 

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हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल – राममनोहर लोहिया ने सदैव हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया, वे कहा करते थे कि सरकारें चाहे लङती रहें मगर हिन्दुओं और मुसलमानों को एक हो जाना चाहिए। डाॅ. लोहिया ने न्याय उदारता और दृढ़ता से हिन्दू-मुसलमानों के वैमनस्य के कारणों को ढूंढने तथा उनका समाधान करने की प्रेरणा दी।

स्त्री पुरुष समानता पर बल –

लोहिया स्त्री-पुरुष समानता के प्रबल समर्थकों में से एक थे। उनकी मान्यता यह थी कि वास्तविक समाजवाद तभी कायम होगा जब उसमें नारी सहभागिता हो। डाॅ. लोहिया प्रत्येक दृष्टिकोण से स्त्री को सक्रिय देखना चाहते थे अतः उन्होंने भारतीय समाज में जहां स्त्रियों का कार्यक्षेत्र केवल रसोई तक सीमित समझा जाता है, कि आलोचना की।

लोहिया ने दहेज प्रथा का कटाक्ष करते हुए कहा, ’’उनकी शादियों का वैभव आत्मा के मिलन में नहीं है बल्कि 20 लाख की कण्ठियों और 50 हजार से भी ज्यादा साङियों में है।

’’विवाह और प्रेम संबंध में भी राममनोहर स्त्री-पुरुष की समानता के पक्षधर थे। डाॅ. लोहिया ने बहुपत्नि प्रथा का विरोध किया। वे पर्दा प्रथा के भी विरोधी थे उन्होंने पर्दा प्रथा को प्रगति के विरूद्ध माना। उक्त सब बातों से अतिरिक्त लोहिया स्त्री का समान कार्य के लिये समान वेतन, अवसर और कानून संबंधी समानता दिलवाने के हिमायमी थे।

डाॅ. लोहिया के सामाजिक विचारों से स्पष्ट है कि सामाजिक दृष्टि क्षेत्र में उनके विचार अत्यन्त प्रगतिशील तथा अपने समय से बहुत आगे थे।
डाॅ. राममनोहर लोहिया के प्रमुख राजनीतिक विचारों का विवेचन निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है –

राजनीतिक विकेन्द्रीकरण के पक्षधर:

डाॅ. लोहिया ने समाजवाद की स्थापना हेतु राजनीतिक विकेन्द्रीकरण का पक्ष लिया। राजनीतिक विकेन्द्रीकरण के संदर्भ से उसकी चौखम्भा योजना का विशेष महत्व है। वे इस योजना के माध्यम से सत्ता के ढांचे का विकेन्द्रीकरण करना चाहते थे। चौखम्भा योजना के चार स्तम्भ इस प्रकार थे – 1. गांव 2. जिला 3. प्रांत और 4. केन्द्र।

लोहिया का चौखम्भा योजना का अर्थ था, निचले स्तर से ऊपरी स्तर तक जनता की शासन कार्य में भागीदारी। चौखम्भा योजना में राज्य की सेना केन्द्र के अधीन, सशस्त्र पुलिस प्रान्त के अधीन तथा अन्य पुलिस मण्डल के अधीन रहेगी।

लोहे और इस्पात के उद्योग केन्द्र के नियंत्रण में, छोटी मशीनों वाले उद्योग ग्रामों और जिलों के अधीन रहेंगे। मूल्यों पर नियंत्रण केन्द्रीय शासन के अधीन रहेगा जबकि कृषि का ढांचा ग्राम और जिले की इच्छा पर निर्भर करेगा।

करों के रूप में केन्द्रीय शासन के पास जो रूपया एकत्र होगा, लोहिया के अनुसार उसका एक भाग गांव को दूसरा भाग जिले को, तीसरा भाग प्रांत को एंव चैथा भाग केन्द्र को प्राप्त होना चाहिए क्योंकि जनतांत्रिक संस्थायें पैसे के अभाव में अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं चला सकती।

प्रशासकीय विकेन्द्रीकरण – प्रशासकीय विकेन्द्रीकरण का पक्ष लेते हुये डाॅ. लोहिया ने कहा था कि जिलाधीश का पद समाप्त होना चाहिए तथा पुलिस एवं अन्य सेवा विभाग ग्राम एवं जिलों के अधीन होने चाहिए।

धर्म निरपेक्ष राज्य के पक्षधर – डाॅ. लोहिया राज्य के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को स्वीकृति प्रदान करते थे। यही कारण था कि उन्होंने भारत विभाजन को मान्यता नहीं दी।

डाॅ. लोहिया के अन्तर्राष्ट्रीय संबंध विचार

विश्व नागरिकता इन चार सूत्रों के अलावा डाॅ. लोहिया ने राष्ट्रों में समानता की स्थापना हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जमींदारी तथा जाति प्रथा की समाप्ति का सुझाव भी रखा। डाॅ. लोहिया ने विश्व सरकार, विश्व विकास समिति तथा संयुक्त राष्ट्र के पुनः संगठन से संबंधित धारणाओं का भी प्रतिपादित किया।

डाॅ. लोहिया के अन्तर्राष्ट्रीयता के संबंधित विचार यह स्पष्ट करते हैं कि उनका दर्शन विश्व बन्धुत्व तथा मान्यता की भावना से ओतप्रोत था।
सात क्रान्तियाँः
⇒ नर-नारी की समानता के लिए क्रान्ति।
⇔ रंग-भेद की नीति के खिलाफ क्रान्ति।
⇒ जाति प्रथा के खिलाफ।
⇔ आर्थिक समानता हेतु क्रान्ति।
⇒ स्वतंत्रता तथा विश्व लोक राज के लिए क्रान्ति।
⇔ अस्त्र-शस्त्र के खिलाफ तथा सत्याग्रह के लिए क्रान्ति।
⇒ निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और लोक पद्धति के लिए क्रान्ति।

मूल्यांकन

भारत में समाजवादी विचारधारा को आधार प्रदान करने में डाॅ. राममनोहर लोहिया का योगदान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। लोहिया ने एशियाई समाजवाद का मार्ग प्रशस्त किया।

उन्होंने मार्क्स का अन्धानुकरण न करके समाजवाद के सन्दर्भ में व्यवहारिक नीति अपनाई तथा भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल समाजवाद को ढालने का प्रत्यत्न किया। लोहिया मूलतः एक मानवतावादी थे जिनका मनुष्य की गरिमा में विश्वास था।

डाॅ. लोहिया ने जो आंदोलन को ढालने का प्रत्यत्न किया। लोहिया मूलतः एक मानवतावादी थे जिनका मनुष्य की गरिमा में विश्वास था। डाॅ. लोहिया ने जो आंदोलन किये उनसे समाजवाद मानव समानता तथा मानव में उनके दृढ़ विश्वास का पता चलता है।

डाॅ. लोहिया की विचारधारा संघटित थी वे भारत में जाति प्रथा और विश्व में रंगभेद समाप्त करना चाहते थे। वे राष्ट्रों के बीच असमानता और आर्थिक शोषण मिटाना चाहते थे।

वे जीवन भर साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के विरूद्ध संघर्ष करते रहे। वे शांति प्रेमी थे। दूसरे शब्दों में वे एक सच्चे समाजवादी थे। अंत में कहा जा सकता है कि डाॅ. राममनोहर लोहिया को एक ऐसे सच्चे देशभक्त, मानवतावादी, मौलिक विचारक तथा अद्वितीय नेता के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा जिसने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

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