आज की पोस्ट में हम माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) जी के जीवन परिचय के बारे में पढेंगे ,इनसे जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दी गयी है |
- जन्म- 4 अप्रैल, 1889 ई.
- निधन- 30 जनवरी, 1968ई.
- जन्म स्थान- होशंगाबाद जिले का बाबई नामक ग्राम में मध्य प्रदेश
- पूरा नाम- माखनलाल चतुर्वेदी
- पिता- नंदलाल चतुर्वेदी
- उपनाम- ’एक भारतीय आत्मा’ के नाम से प्रसिद्ध।
- ’ददा’ के नाम से प्रसिद्ध।
✔️ 1963 ई. में पदमभूषण मिला जो 1967 ई. में लौटा दिया था।
✅ माखनलाल ने स्वाध्याय से बांग्ला, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
✔️ इन पर कांग्रेस व गाँधी के आन्दोलनों का प्रभाव था इन्होंने अनेक बार जेल यात्राएँ की।

🔷 काव्य संग्रह(Makhanlal Chaturvedi)
- हिमकिरीटनी,1943 ई.- (देव पुरस्कार)
- हिमतरंगिणी,1949 ई.(प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार सन् 1955 ई.)
- माता,1951 ई.
- समर्पण,1956 ई.
- युगचरण,1956 ई.
- वेणु लो गूंजें धरा,1960 ई.
- मरण ज्वार,1963 ई.
- बिजुरी काजल आँज रही है,1964 ई.
- धुम्रवलय,1981 ई.
माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली (10 खण्ड)
🔷 गद्य साहित्य
- अमीर इरादे, गरीब इरादे (निबंध),1960ई .
- चिंतक की लाचारी (भाषण),1963ई .
- समय के पाँव (संस्मरण),1962ई .
🔷 नाटक
कृष्णार्जुन युद्ध (1918 ई.)
🔷 कहानी संग्रह
कला का अनुवाद
वनवासी
🔷 अनुवाद
शिशुपाल वध
🔷 माखनलाल चतुर्वेदी की प्रथम रचना ’रसिक मित्र’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
🔷 गद्य काव्य
साहित्य देवता,1942ई.
🔷 सम्पादन
- प्रभा,1913 ई.
- कर्मवीर (साप्ताहिक) (खण्डवा से प्रकाशित),1919ई.
- प्रताप (कानपुर से प्रकाशित), 1924ई.
🔷 कर्मवीर का आतंक इतना छाया कि कुछ देशी राजाओं ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
✔️ साहित्यकारों में ’ददा’ के नाम से विख्यात।
🔷 प्रमुख कविताएँ-
1. पुष्प की अभिलाषा
2. कैदी और कोकिला
3. अमर राष्ट्र
4. दीप से दीप जले
5. कागों का सुन कत्र्तव्य राग
🔷 इनके निबंधों को ’भावनद’ की संज्ञा दी गई है।
🔷 सम्मान/ पुरस्कार-
- देव पुरस्कार,1943 ई.
- प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार1955ई .
- पदम् भूषण,1963ई .
विशेष-
सन् 1967 ई. में राजभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले ’राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक’ के विरोध में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने पद्म भूषण लौटा दिया था।
प्रमुख कविताएँ (Makhanlal Chaturvedi)
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
मुझे तोङ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।
वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम
एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है।
क्या ? देख न सकतीं जंजीरों का गहना।
हथकङियाँ क्यो ? यह ब्रिटिश राज्य का गहना।।
कोल्हू की चर्रक चूँ ? जीवन की तान।
मिट्टी पर लिखे अंगुलियों ने क्या गान ?
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआँ।
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकङ का कुआँ।।
दीप से दीप जले(कविता)
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
⋅लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
⋅लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।
वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
⋅तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
कैदी और कोकिला(चर्चित कविता)
क्या गाती हो?
क्यों रह जाती हो
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
सन्देश किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में
जीने को देते नहीं पेट भर खाना
जीवन पर अब दिन रात कड़ा पहरा है
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली
इस समय कालिमामयी क्यूँ आली?
क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली सी
कोकिल बोलो तो
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली सी
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!
क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश राज का गहना।
कोल्हू का चर्रक चूं जीवन की तान।
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली
इसलिए रात में गजब ढ़ा रही आली?
कैदी और कोकिला
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही हो क्यों?
कोकिल बोलो तो
चुप चाप मधुर विद्रोह बीज
इस भाँति बो रही हो क्यों?
कोकिल बोलो तो!
काली तू रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह श्रृंखला खाली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली ए आली!
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
तुझे मिली हरियाली डाली
मुझे मिली कोठरी काली!
तेरा नभ भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी मेरी
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
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