• Home
  • PDF Notes
  • Videos
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • PDF NOTES
  • VIDEOS
  • कहानियाँ
  • व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • कविताएँ
  • Web Stories

उपन्यास के अंग – तत्व || हिंदी साहित्य

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:2nd Jun, 2022| Comments: 0

Tweet
Share1
Pin
Share
1 Shares

दोस्तो आज की पोस्ट में हम उपन्यास के अंगो (Novel parts) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

उपन्यास के अंग – Novel parts

Table of Contents

  • उपन्यास के अंग – Novel parts
    • उपन्यास के तत्व
    • कथानक – Plot
      • मौलिकता
      • प्रबन्ध-कौशल
      • संभवता
      • सुगठन
      • रोचकता
    • चरित्र-चित्रण – Character sketch
    • कथोपकथन – Narrative
    •   देशकाल अथवा युग की पृष्ठभूमि – Country or era
    • शैली – Style
    • उद्देश्य – objective

उपन्यास के छः प्रमुख अंग माने जाते हैं-

  • कथानक
  • चरित्र-चित्रण
  • कथोपकथन
  • देशकाल या वातावरण
  • शैली
  • उद्देश्य

उपन्यास के तत्व

कथानक – Plot

यद्यपि आधुनिक काल में कथानक का महत्त्व कम समझा जाता है, पर यह उपन्यास का मूल है। उपन्यास में व्याप्त कुतूहल का तत्त्व कथानक के सहारे ही विकास पाता है। उपन्यास का समग्र रूप कथानक के ढाँचे पर विकसित होता है। कथानक का चुनाव और निर्माण उपन्यास की प्रमुख विजय है और लेखक के कौशल का संकेत इसमें मिल जाता है। कथानक के समस्त अंगों का सुन्दर संगठन, घटनाओं का समुचित विन्यास उपन्यास को सुन्दर बनाने के लिए आवश्यक है।

यह धारणा भ्रान्त है कि उपन्यास में कथानक का कोई महत्त्व नही, या सामान्य कथानक को भी वर्णनकौशल के द्वारा उत्तम बनाया जा सकता है। क्योंकि यदि वर्णन-कौशल के साथ कथानक की उत्कुष्ता भी मिल जाय तो मणिकांचन योग होगा।

कथानक के समुचित विकास के लिए उसे घटनाओं के पूर्वापर सम्बन्ध, कुतूहल और औचित्य को ध्यान में रखकर स्थिर करना चाहिए। कारण-कार्य की शृंखला को ध्यान में रखते हुए कुतूहल को तीव्र बनाते चलना उपन्यास में रोचकता का प्राण है।

फिर भी वह कुतूहल इस प्रकार का नहीं होना चाहिए कि प्रस्तुत वर्णन में पाठक का मन न रमे। अतः व्यर्थ के विवरण को हटाकर रमणीय वर्णन, चरित-उद्घाटन एवं मनोविश्लेषण करनेवाले वात्र्तालाप के द्वारा कथानक का विकास होना चाहिए।
उपन्यास के कथानक को तीन प्रधान भागों में बाँटा जा सकता है-

  •  प्रारम्भ या प्रस्तावना भाग
  • मध्य या विकास
  • परिणाम या समाप्ति।

प्रारम्भ और समाप्ति भागों में सबसे अधिक कथानक के कलात्मक विकास की आवश्यकता रहती है। मध्य भाग में पात्रों के आन्तरिक और बाह्य संघर्षों का विशद विवरण और घटनाचक्र रहता है। मध्य भाग की सफलता के लिए उपन्यासकार को संसार का विस्तृत अध्ययन और मानस मनोभावों का सूक्ष्म ज्ञान आवश्यक है।

उपन्यासकार की सफलता इस बात में निहित रहती है कि पाठक आगामी घटना, क्रियाकलाप अथवा अन्तिम परिणाम का अनुमान न लगा सके। यदि उसे समस्त कथानक का आभास प्रस्तावना के कुछ अंश को पढने से ही लग गया, तो वह उपन्यास असफल ही समझिये। मध्य भाग के लिए जीवन के विविध रूपों की विशद विवृति होना सफलता का लक्षण है।

उपन्यास यदि जीवन के किसी सीमित या एंकागी रूप को ही लेकर चलता है जिसमें लेखक का व्यापक और यथार्थ ज्ञान प्रकट नहीं होता, तो वह उपन्यास खिलवाङ या बचकाना प्रयत्न-सा लगता है। स्थान के विवरण लेखक के परिपक्व अनुभवों से ओतप्रोत होने चाहिए और पारिवारिक तथा सामाजिक दृश्यों के विवरण ऐसे लगें कि हम उपन्यास नहीं पढ रहे हैं, वरन् वास्तविक जीवन के बीच में खङे हैं। पात्रों के अन्तस् रहस्य का उद्घाटन आजकल के सफल उपन्यास का प्रधान गुण माना जाता है।

इन बातों का ध्यान रखते हुए हम उत्कृष्ट कथानक के लिए निम्नलिखित विशेषताएँ आवश्यक समझते हैं-

मौलिकता

कथानक की मौलिकता विषय की नवीनता, नवीन घटनाओं की कल्पना और उनके संयोजक के ढंग, वर्णन और विन्यास की विशेेेेेषताओं में देखी जा सकती है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, जिसमें पाठक परिणाम तथा आगामी घटना का आभास न पा सके, उस कथानक को मौलिक कहना चाहिए।

प्रबन्ध-कौशल

कथानक की मुख्य और गौण कथाओं को औचित्य और प्रभाव के साथ संगठित करने की चतुराई प्रबन्ध-कौशल है। इसकी तो सफल उपन्यास में अनिवार्य आवश्यकता है, अन्यथा कथानक उखङा-उखङा लगेगा।

संभवता

उपन्यास में जो कुछ भी वर्णन है, वह सम्भव लगे, असम्भव नहीं। यदि किसी ऐसी घटना या दृश्य का समावेश है जिसकी सत्यता की सम्भावना पर पाठक का विश्वास नहीं जमता, तो वह सारे उपन्यास को प्रभावहीन बना देती है। अतः सम्भव घटनाएँ हों और कार्यों तथा घटनाओं के कारण, औचित्य एवं संगति भी हो, तभी हमारा विश्वास होता चला जाता है। सम्भवता और औचित्य का ध्यान हमें घटनाओं में नहीं, वात्र्तालाप, वेशभूषा, वर्णन सभी में रखना पङता है।

सुगठन

प्रबन्ध-कौशल के साथ-साथ समस्त उपन्यास एक सुगठित रचना होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें अनावश्यक का त्याग और आवश्यक का ग्रहण किया गया है। कोई आवश्यक बात छूटी नहीं है।

रोचकता

कथानक की रोचकता प्रायः उपर्युक्त बातों का ध्यान रखने से आ ही जाती है, परन्तु इसके लिए उपन्यासकार आकस्मिक और प्रत्याशित का सहारा लेता है। यह आकस्मिक, सम्भावना और कार्य-करण-शृंखला से अलग न होते हुए भी पाठक के अनुमान और कल्पना से बाहर होता है। परन्तु रोचकता-सम्पादन के लिए पद-पद पर आकस्मिक का संयोजन उचित नहीं, हाँ, अप्रत्याशित का संयोजन, जो आकस्मिक न हो, अधिक संगत माना जाता है।

उपन्यास के कथानक का विन्यास कई प्रकार से किया जा सकता है- 1. एक द्रष्टा द्वारा वर्णित कथा के रूप में , 2. आत्मकथा के रूप में, 3. वार्तालाप के रूप में , 4. पत्रों द्वारा। इन शैलियों में प्रथम और द्वितीय ही अधिक प्रचलित हैं।

चरित्र-चित्रण – Character sketch

आधुनिक उपन्यास में चरित्र-चित्रण को सबसे अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है। उपन्यास मानव-जीवन का चित्रण है, अतः मानव-चरित्र का विश्लेषण उसकी रोचकता और रमणीयता का प्रधान कारण हो जाता है। यथार्थ और समुचित प्रभाव के साथ चरित्र-चित्रण करना उपन्यासकार की सफलता का द्योतक है। चरित्र-चित्रण के लिए समाज और जीवन का प्रत्यक्ष और विशद अनुभव आवयश्क है।

यदि उपन्यास के पात्र उपन्यास के चरित्रों -जैसे ही न लगकर जीवन में देेखे-सुने और सम्पर्क में आये व्यक्तियों के समान लगते हैं और उनके साथ ममता, घृणा, द्वेष, सौहार्द, करुणा आदि के भाव स्वतः जगने लगते हैं , तो समझिये कि उपन्यास में सफल चरित्र-चित्रण हुआ हैं। अतः पात्रों की सजीवता अत्यन्त आवश्यक है। उपन्यास पढ चुकने के बाद भी पात्र हमारे भीतर अपना प्रभाव डाले रहते हैं और उन्हें हम भूल नहीं पाते।

चरित्र-चित्रण में हम तीन विशेषताओं को खोजते है

  1. चरित्र का व्यक्तित्व
  2. बौद्धिक गुण
  3. चारित्रिक गुण

1. व्यक्तित्व के भीतर पात्र का आकार, रूप, रंग, वेश-भूषा आदि सम्मिलित रहती है जिसके द्वारा हम उसे पहचान है। यदि उपन्यास के भीतर इन बातों का विवरण नहीं हो तो हम अपनी कल्पना और अनुभव के आधार पर उसके व्यक्तित्व का एक रूप बना लेते है। यह व्यक्तित्व जितना ही प्रभावशाली हो तथा अन्य सजातीय पात्रों से भिन्न जान पङे उतना ही अच्छा होता है।

2. बौद्धिक गुणों कें भीतर उसका अध्ययन, चतुरता, संकट में बुद्धि-वैभव आदि की विशेषताएँ आती हैं। इसके लिए उसके गुण यदि लोककल्याणकारी हुए तो हम सम्मान और प्रशंसा करते हैं और यदि अकल्याणकारी है, तो हम निन्दा करते हैं। इन गुणों का हमारे ऊपर प्रभाव पङता है।

3. चारित्रिक गुणों का प्रभाव सबसे अधिक पङता हैं। उसके भीतर दूसरों के सुख में सुखी और दुःख में दुःखी होने की कितनी शक्ति हैं, वह कितना संवेदनशील और भावुक है, परिस्थितियों का घात-प्रतिघात सहकर भी उसमें कितनी करुणा और सहृदयता है, इन बातों पर हमारा ध्यान उसके प्रति प्रेम या घृणा का भाव जाग्रत करता है। चारित्रिक विशेषताओं में उसके आचरण और दूसरों के प्रति व्यवहार को परखा जाता हैं। अतः इन विशेेषताओं का प्रत्यक्ष स्पष्टीकरण उपन्यासकार की कुशलता का अंग है।

चरित्र- चित्रण के लिए प्रायः दो शैलियों का अवलम्बन किया जाता है- 1. विश्लेषणात्मक, 2. नाटकीय। प्रथम में उपन्यासकार स्वयं ही चरित्रों के भावों , मनोवृत्तियो, विचारों आदि का तटस्थ भाव से विश्लेषण करता है और द्वितीय में अन्य पात्रों के कथोपथन द्वारा किसी पात्र के चरित्र पर प्रकाश पङता है। उपन्यासकार स्वयं ही अपना निर्णय दें, इसकी अपेक्षा पात्र के कथन, व्यवहार तथा पात्रों पर पङे प्रभाव के विश्लेषण द्वारा चरित्र का स्पष्टीकरण हो, यह अधिक आधुनिक प्रणाली है।

इसमें भी पृष्ठभूमि में उपन्यास-लेखक विश्लेषण-पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है। यह सोचना कि एक शैली सर्वथा दूसरी से निरपेक्ष रूप में आती है, भ्रमात्मक है। एक को अधिक आधुनिक समझना भी उचित नहीं, क्योंकि मनोवैज्ञानिक गुत्थियों को स्पष्ट करने के लिए विश्लेषण की आवश्यकता पङती है अतः उद्देश्य और चरित्र के अनुसार इन दोनों में से जो शैली अधिक उपयुक्त हो, उसका उपयोग होता हैं जिसमें नाटकीय और विश्लेषणात्मक दोनों विधियाँ यथावश्यक रूप में प्रयुक्त होती है।

कथोपकथन – Narrative

उपन्यास में कथानक और चरित्र-चित्रण प्रधान तत्त्व हैं। इनको प्रकट करने के लिए अन्य साधनों की आवश्यकता होती है। इन साधनों में कथोपकथन प्रधान है। कथोपकथन कथानक को भी आगे बढाता है और चरित्र को भी प्रकट करता हैं। कथोपकथन की निम्नलिखित विशेषताएँ उपन्यास की सफलता की द्योतक है-

  • कथोपकथन संक्षिप्त, यथावश्यक, स्वाभाविक और स्मरणीय होना चाहिए।
  • वह परिस्थितियों से पूर्णतया मेल खाता हो।
  • पात्रों के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक स्वर के अनुरूप उसे होना चाहिए।
  • कथोपकथन का विषय कथावस्तु से सम्बद्ध एवं पात्रों के मानसिक धरातल के अनुरूप होना चाहिए।
  • कथोपकथन में सरसता और रोचकता होनी आवश्यक है; यह तभी हो सकता है जब उसका विषय अत्यन्त एंकागी और वैयक्तिक न हो।
  • उपन्यास के कथोपकथन में प्रचार या सैद्धान्तिक आग्रह का समावेश उपन्यास की रचनात्मक सुषमा को नष्ट करनेवाला होता है। अत; कथोपकथन में व्यक्तित्व के निजीपन की छाप और पात्रानुकूल वैचित्र्य के साथ स्वाभाविकता, लाघव, सजीवता और सार्थकता आवश्यक होती है।

  देशकाल अथवा युग की पृष्ठभूमि – Country or era

उपन्यास मानव-जीवन का चित्रण है जिसमें प्रधानतया मनुष्य के चारित्र्य का सजीव वर्णन रहता है। निश्चय है कि मनुष्य का सम्बन्ध अपने युग, समाज, देश और परिस्थितियों से रहता है अथवा मानव के चारित्र्य की पृष्ठभूमिरूप में देश-काल का चित्रण उसका एक आवश्यक अंग हैं। जितनी ही वास्तविक पृष्ठभूमि में चरित्रों को प्रकट किया जायेगा, उतनी ही गहरी विश्वसनीयता का भाव जगाया जा सकता हैं। इस पृष्ठभूमि के बिना हमारी कल्पना को ठहरने की कोई भूमि नहीं मिलती और न हमारी भावना रमती और विश्वास करती है।

परिस्थिति अथवा पृष्ठभूमि का चित्रण दो रूपों में होता है- एक तो समान और अनुकूल रूप में, दूसरे चरित्रों के लिए विषम और प्रतिकूल रूप में। पात्रों के उद्देश्य के अनुरूप उपन्यासकार दोनों ही स्थितियों का चित्रण कर हमारी कल्पना और अनुभूति को सजग करता हैं। सामाजिक उपन्यासों में तो लेखक प्रायः अपने युग की देखी-सुनी और अनुभूत पृष्ठभूमि देता है और पाठक के समसामयिक होने के कारण उसको जाँचने और विश्वास करने को अवसर होता है। आगामी युगांे के पाठक के लिए तो सामाजिक उपन्यासकार सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास की सामग्री प्रदान करता है।

अतः मेरा तो विश्वास यह है कि यदि उपन्यासकार अपने समाज का अत्यन्त यथार्थ- यहाँ तक कि ऐतिहासिक यथार्थता को ध्यान में रखकर वास्तविक जीवन का चित्रण करता हैं, तो वह न केवल साहित्य की सृष्टि करता है, वरन् सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास के लिए भी सामग्री तैयार करता है या पृष्ठभूमि बनाता है।

सामाजिक उपन्यासकार की अपेक्षा अधिक कठिनाई, ऐतिहासिक उपन्यासकार को युग की पृष्ठभूमि का चित्रण करने में उपस्थित होती हैं। ऐतिहासिक उपन्यास में लेखक को उस युगविशेष की पृष्ठभूमि का चित्रण करना पङता है जिसके चरित्रों का वह वर्णन करना चाहता है। अतः उसके वर्णन में उस युग के विशिष्ट रीति-रिवाज, चाल-ढाल और वातावरण के प्रामणिक चित्रण द्वारा यह आभास देना पङता है कि वह वही युग है।

उस युग के विपरीत कोई बात उसमें न होनी चाहिए। इसके साथ ही उपन्यास में संघटित एवं संयोजित घटनाएँ भी उस युग के इतिहास में घटित घटनाओं के मेल में होनी चाहिए, उनके विरुद्ध नहीं। इसके लिए ऐतिहासिक उपन्यासकार को उस युग के इतिहास का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। लेखक जिन घटनाओ, पात्रों एवं परिस्थितियों की कल्पना करे, वे भी ऐसी ही हो जैसी वास्तविक घटनाएँ हुई हों।

अतः हम देखते हैं कि कथानक को वास्तविकता का आभास देने के साधनों में वातावरण मुख्य है। उसके लिए स्थानिय ज्ञान अत्यन्त आवश्यक होता है। वर्णन में देश-विरुद्धता के दोष नहीं आने चाहिए। देश-काल चित्रण का वास्तविक उद्देश्य कथानक और चरित्र का स्पष्टीकरण है। अतः उसे इसका साधन ही होना चाहिए, स्वयंसाध्य न बन जाना चाहिए।

प्राकृतिक दृश्यों का संयोजन यथार्थता का भी आभास देता है और भावों को उद्दीप्त भी करता है। अतः स्थानीय विशेषताओं का ध्यान रखते हुए प्रकृति की भावानुकूल पृष्ठभूमि देना उपन्यास की रोचकता की वृद्धि में सहायक होता हैं।

शैली – Style

शैली का संकेत हम कथानक के साथ कर चुके हैं। इस सम्बन्ध में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि जितनी स्वाभाविक अर्थात् पात्रानुकूल और स्थिति के अनुरूप शैली होगी, उतना ही उसका प्रभाव पङेगा। उपन्यास की शैली संकेतात्मक न होकर विवृतात्मक होती है, क्योंकि उसे पूर्ण वातावरण और उसमें रस और भावों की सृष्टि करनी होती है।

अतः पात्र की शिक्षा, संस्कृति और मानसिक धरातल के अनुरूप ही उसकी भाषा होनी चाहिए। इसके लिए पाण्डित्यपूर्ण, व्यंग्ययुक्त भाषा से लेकर ठेठ प्रादेशिक और ग्राम्य भाषा तक का प्रयोग यथावश्यक रूप में किया जाता हैं।

शैली के सम्बन्ध में सामान्य-रूप से ये बातें ध्यान में रखने पर भी एक उपन्यासकार की शैली दूसरे से भिन्न होती हैं। प्रत्येक का अपना निजी अनुभव-क्षेत्र, वातावरण, संस्कार एवं शिक्षा होती हैं अतः जीवन को देखने और उसको चित्रित करने के अपने निजी ढंग हैं। निजीपन के होते हुए भी, जैसा पहले कहा जा चुका है, स्वाभाविकता और प्रभाव शैली की विशेषताएँ होनी चाहिए।

उद्देश्य – objective

उपन्यास का प्रमुख संगठन-तत्त्व उसका उद्देश्य होता है। कुछ लोग केवल मनोरंजन के लिए उपन्यास पढते है। यह तथ्य होने पर भी उपन्यास केवल मनोरंजन के लिए लिखा जाता है, यह तथ्य नहीं। उसका उद्देश्य जीवन की झाँकी देकर उसकी व्याख्या करना होता है।

वह सामाजिक और पारिवारिक अनौचित्यपूर्ण चित्रणों द्वारा हमारे हृदय को आन्दोलित करता है, उसके भीतर आदर्श चरित्रों की प्रतिष्ठा कर हृदय का संस्कार करता है, साथ ही राष्ट्रीयता की भावना को जाग्रत करता है। एक युग और समाज के जीवन के चित्रण द्वारा वर्तमान युग और समाज के जीवन को प्रेरणा देने का काम भी उपन्यास का है।

उपन्यास द्वारा नैतिक, सामाजिक अथवा राजनीतिक सिद्धान्तों का प्रच्छन्न्ा अथवा प्रत्यक्ष प्रचार भी होता है, पर उनका प्रत्यक्ष आग्रहपूर्वक प्रचार उपन्यास की त्रुटि और उपन्यासकार की दुर्बलता है। वास्तव में उपन्यास हमारे जीवन-सम्बन्धी अनुभव को समृद्ध बनाता है।

एक साथ पूरे जीवन की झाँकिया देकर मानव-जीवन का ज्ञान प्राप्त करके, हम अपने दैनिक जीवन में सामंजस्य और सफलता प्राप्त कर सकते हैं, तथा कभी-कभी दैनिक जीवन की चिन्ताग्रस्त अवस्था से ऊबकर एक नवीन वातावरण में प्रवेश कर शांति प्राप्त करते हैं। इस प्रकार उपन्यास का उद्देश्य बहुमुखी होता है।

ये भी अच्छे से जानें ⇓⇓

समास क्या होता है ?

परीक्षा में आने वाले मुहावरे 

सर्वनाम व उसके भेद 

महत्वपूर्ण विलोम शब्द देखें 

विराम चिन्ह क्या है ?

परीक्षा में आने वाले ही शब्द युग्म ही पढ़ें 

साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 

Tweet
Share1
Pin
Share
1 Shares
Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

    My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

    First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

    Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Subscribe Us Now On Youtube

Search

सम्पूर्ण हिंदी साहित्य पीडीऍफ़ नोट्स और 5000 वस्तुनिष्ठ प्रश्न मात्र 100रु

सैकंड ग्रेड हिंदी कोर्स जॉइन करें

ट्विटर के नए सीईओ

टेलीग्राम चैनल जॉइन करें

Recent Posts

  • द्वन्द्व समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dwand samas
  • द्विगु समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dvigu Samas
  • NTA UGC NET Hindi Paper 2022 – Download | यूजीसी नेट हिंदी हल प्रश्न पत्र
  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register
  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF
  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game
  • कर्मधारय समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Karmadharaya Samas
  • Rush Apk Download – Latest Version App, Login, Register
  • AJIO App Download – Latest Version Apk, Login, Register
  • अव्ययीभाव समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण || Avyayibhav Samas

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • App Review
  • General Knowledge
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • विलोम शब्द
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • संधि
  • समास
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी पाठ प्रश्नोत्तर
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

हमारा यूट्यूब चैनल देखें

Best Article

  • बेहतरीन मोटिवेशनल सुविचार
  • बेहतरीन हिंदी कहानियाँ
  • हिंदी वर्णमाला
  • हिंदी वर्णमाला चित्र सहित
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुमित्रानंदन पन्त
  • महादेवी वर्मा
  • हरिवंशराय बच्चन
  • कबीरदास
  • तुलसीदास

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay
रामधारी सिंह दिनकर – Ramdhari Singh Dinkar || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Footer

हिंदी व्याकरण

 वर्ण विचार
 संज्ञा
 सर्वनाम
 क्रिया
 वाक्य
 पर्यायवाची
 समास
 प्रत्यय
 संधि
 विशेषण
 विलोम शब्द
 काल
 विराम चिह्न
 उपसर्ग
 अव्यय
 कारक
 वाच्य
 शुद्ध वर्तनी
 रस
 अलंकार
 मुहावरे लोकोक्ति

कवि लेखक परिचय

 जयशंकर प्रसाद
 कबीर
 तुलसीदास
 सुमित्रानंदन पंत
 रामधारी सिंह दिनकर
 बिहारी
 महादेवी वर्मा
 देव
 मीराबाई
 बोधा
 आलम कवि
 धर्मवीर भारती
मतिराम
 रमणिका गुप्ता
 रामवृक्ष बेनीपुरी
 विष्णु प्रभाकर
 मन्नू भंडारी
 गजानन माधव मुक्तिबोध
 सुभद्रा कुमारी चौहान
 राहुल सांकृत्यायन
 कुंवर नारायण

कविता

 पथिक
 छाया मत छूना
 मेघ आए
 चन्द्रगहना से लौटती बेर
 पूजन
 कैदी और कोकिला
 यह दंतुरित मुस्कान
 कविता के बहाने
 बात सीधी थी पर
 कैमरे में बन्द अपाहिज
 भारत माता
 संध्या के बाद
 कार्नेलिया का गीत
 देवसेना का गीत
 भिक्षुक
 आत्मकथ्य
 बादल को घिरते देखा है
 गीत-फरोश
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us