प्रयोगवाद युग – Prayogvad Yug | महत्त्वपूर्ण तथ्य | हिंदी साहित्य का इतिहास

इस आर्टिकल में हम आधुनिक काल के अंतर्गत प्रयोगवाद(Prayogvad Yug) से जुड़े महत्त्वपूर्ण फैक्ट की जानकारी देने वाले है , यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।

प्रयोगवाद युग – Prayogvad Yug

 

  • साम्यवाद व मार्क्सवाद दृष्टि से ओतप्रोत साहित्य धारा प्रगतिवाद के पश्चात हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद का उदय हुआ ।
  • छायावादोत्तर काल की वह काव्य धारा जिसमें काव्य के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए गए प्रयोगवाद के नाम से जानी जाती है ।
  • सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’ को प्रयोगवाद का प्रवर्तक माना जाता है ।

 

  • अज्ञेय के संपादन में 1943 ईस्वी में प्रकाशित तार सप्तक से प्रयोगवाद का आरंभ माना जाता है ।
  • अज्ञेय के संपादन में कुल चार तार सप्तक प्रकाशित हुए, जिनमें अज्ञेय ने सात-सात कवियों की रचनाएं संकलित की ।
  • तार सप्तक की मूल योजना प्रभाकर माचवे व नेमीचंद जैन की प्रेरणा से हुई थी ।

 

  • इन दोनों ने अपनी योजना को अज्ञेय के सामने रखा ,जिसे उन्होंने क्रियान्वित किया ।
  • हिंदी कविता में प्रयोगों के आरंभकर्ता निराला माने जाते हैं।
  • निराला की कविताओं को ‘प्रयोगों का एल्बम’ कहा जाता है।

 

  • निराला ने छंद ,प्रतीक, उपमान आदि सभी क्षेत्रों में प्रयोग किए ।
  • निराला ने अपनी प्रथम कविता ‘जूही की कली’ में कविता को छन्दों के बंधन से मुक्त किया।
  • कुकुरमुत्ता कविता में इन्होंने कुकुरमुत्ता, गुलाब जैसे नये प्रतीक प्रयुक्त किए ।

 

  • राहों के अन्वेषक तार सप्तक में कवि संबोधन ।
  • प्रयोगवाद का नामकरणकर्ता आचार्य नंददुलारे वाजपेयी को माना जाता है ,जिन्होंने प्रयोगवादी रचनाऐं शीर्षक निबंध लिखा।

 

  • तार सप्तक की भूमिका में अज्ञेय नें लिखा है ,‘सातों कवि एक स्कूल के नहीं हैं,राहीं नहीं राहों के अन्वेषी हैं।’
  • दूसरा सप्तक की भूमिका में अज्ञेय ने लिखा हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही सार्थक या निरर्थक है ,जितना की हमें कवितावादी कहना ।
  • अज्ञेय के अनुसार प्रयोग अपने आप में ईस्ट नहीं है ,वह साधन है ।

अज्ञेय के संपादन में कुल चार तारसप्तक प्रकाशित हुए –

  • तार सप्तक (1943ईस्वी)
  • दूसरा सप्तक (1951 ईस्वी)
  • तीसरा सप्तक (1959 ईस्वी)
  • चौथा सप्तक (1979 ईस्वी)

 

  • प्रयोगवादी आंदोलन के प्रचार-प्रसार हेतु अज्ञेय ने 1946 ईस्वी में “प्रतीक “का प्रकाशन किया ।
  • प्रयोगवाद के विकसित रूप को ‘नई कविता ‘के नाम से जाना जाता है ।
  • प्रयोगवाद ने दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद नई कविता का रूप धारण कर लिया ।

 

  • डॉ रामविलास शर्मा और नामवर सिंह ने नई कविता को प्रयोगवाद का छद्म रूप कहा ।
  • नई कविता के नामकरण का श्रेय अज्ञेय को जाता है ।
  • उन्होंने 1952 में आकाशवाणी पटना से प्रसारित एक रेडियो वार्ता में ‘नई कविता’ नाम का प्रयोग किया ।
  • 1954 में इलाहाबाद से जगदीशगुप्त व रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन मे ‘नई कविता’ पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ।
  • डॉ बच्चन सिंह ने नई कविता को प्रगतिवादी व प्रयोगवाद दो अतिवादी छोरो को मिलाने वाली कविता कहा ।

 

  • नई कविता का आरंभ और नामकरण अंग्रेजी के न्यू पोएट्री काव्य आंदोलन की तर्ज पर हुआ।
  • लघु मानव की प्रतिष्ठा नई कविता की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
  • लघु मानव से तात्पर्य साधन हीन ,उपेक्षित साधारण व्यक्ति से हैं।
  • नई कविता का रूप स्पष्ट करने के लिए निम्न आलोचनात्मक कृतियों का प्रकाशन हुआ :-

नई कविता के प्रतिमान –  डॉक्टर लक्ष्मीकांत वर्मा

कविता के नए प्रतिमान –  डॉक्टर नामवर सिंह

नई कविता का आत्म संघर्ष –  गजानन माधव मुक्तिबोध

नई कविता सीमाएं और संभावनाए – गिरिजाकुमार माथुर

नई कविता के बहाने लघु मानव पर – विजयदेव नारायण साही ।

  • नया प्रतीक ,नये पत्ते ,क,ख,ग,प्रतिमान आदि पत्र-पत्रिकाओं ने नई कविता को प्रोत्साहन प्रदान किया ।
  • नई कविता के कवियों ने रस सिद्धांत को चुनौती देकर रस के स्थान पर द्धन्द्ध, तनाव एवं बेचैनी को काव्य की आत्मा माना|

प्रयोगवाद और नई कविता के कवि : कालक्रमानुसार

लेखक/कवि  नामसमयकाल
सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’1911-1987 ई॰
शमशेर बहादुर सिंह1911-1993 ई॰
भवानी प्रसाद मिश्र1914-1985 ई॰
गजानन माधव मुक्तिबोध1917-1964 ई॰
प्रभाकर माचवे1917-1991 ई॰
भारत भूषण अग्रवाल1919-1975 ई॰
गिरिजा कुमार माथुर1919-1994 ई॰
नरेश मेहता1922-2000 ई॰
लक्ष्मीकान्त वर्मा1922-2002 ई॰
रघुवीर सहाय1922-1992 ई॰
रामदरश मिश्र1924 ई॰
विजयदेव नारायण साही1924-1982 ई॰
जगदीश गुप्त1926-2001 ई॰
धर्मवीर भारती1926-1997 ई॰
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना1927-1983 ई॰
कुँवर नारायण1927 ई॰
श्रीकान्त वर्मा1931-1986 ई॰
केदारनाथ सिंह1934 ई॰
धूमिल1936-1975 ई॰

2 thoughts on “प्रयोगवाद युग – Prayogvad Yug | महत्त्वपूर्ण तथ्य | हिंदी साहित्य का इतिहास”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top