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Subhadra Kumari Chauhan – सुभद्रा कुमारी चौहान – जीवन परिचय

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:23rd Jun, 2022| Comments: 0

आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के चर्चित कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) के जीवन परिचय को पढेंगे ,आप इस आर्टिकल को अच्छे से पढ़ें। सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय ,जयंती ,की जीवनी ,इतिहास ,कहानी ,कविताएँ ,बेटा ,पति ,अवार्ड – Subhadra Kumari Chauhan Biography In Hindi, history, Rachnaye, Short Stories, Death, Awards In Hindi, Age, Height, son, Husband ,Caste, family ,Career, award, poems in hindi

Subhadra Kumari Chauhan

Subhadra Kumari Chauhan
Subhadra Kumari Chauhan

सुभद्रा कुमारी चौहान

नामसुभद्रा कुमारी चौहान
जन्म16 अगस्त, 1904 ई
निधन15 जनवरी, 1948 ई
जन्म स्थाननिहालपुर, इलाहाबाद(उत्तर प्रदेश)
चर्चितझाँसी की रानी कविता के कारण
उम्र43 वर्ष (निधन के समय)
शिक्षानौवीं कक्षा तक
स्कूलक्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल
प्रसिद्ध रचनाएंझाँसी की रानी, मुकुल, त्रिधारा
पेशाकवयित्री
वैवाहिक स्थितिशादीशुदा
धर्महिन्दू
नागरिकताभारतीय

सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रारंभिक जीवन – Subhadra Kumari Chauhan Early life

इनका जन्म 16 अगस्त, 1904 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में एक अच्छे खासे परिवार में हुआ था । इनके परिवार का पेशा जमींदारी से जुड़ा था। इनके पिता दिलीप चौहान एक सम्पन्न जमींदार थे।

इनका शुरूआती जीवन प्रयाग में व्यतीत हुआ। इन्हें बचपन से ही हिंदी साहित्य की कविताये पढ़ने लिखने में अच्छा लगता था। सुभद्रा की सबसे अच्छी दोस्त महादेवी वर्मा थी, जो एक प्रसिद्द कवयित्री थीं।

सुभद्रा कुमारी चौहान की शिक्षा – Subhadra Kumari Chauhan Education

इन्होने शुरूआती शिक्षा इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल में प्राप्त की । 1919 में इन्होने मिडिल स्कूल की परीक्षा उतीर्ण की।

सुभद्रा कुमारी चौहान का परिवार – Subhadra Kumari Chauhan Family

पिता का नामठाकुर रामनाथ सिंह
पति का नामठाकुर लक्ष्मण सिंह
बेटों के नामअजय चौहान, विजय चौहान और अशोक चौहान
बेटियों का नामसुधा चौहान और ममता चौहान
नोट : इनकी बेटी सुधा चौहान भी एक साहित्यकार है।

सुभद्रा कुमारी चौहान और असहयोग आंदोलन

1921 में सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति लक्ष्मण सिंह चौहान महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। सुभद्रा मित्रता संग्राम में सत्याग्रह में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी। सुभद्रा कुमारी चौहान को आंदोलनों के दौरान 1923 और 1942 में जेल भी जाना पड़ा।

प्रमुख रचनाएँ-

  • मुकुल- 1931 ई.
  • त्रिधारा-1930 ई.
  • नक्षत्र
  • सभा का खेल

प्रसिद्ध कविताएँ-

1. झांसी की रानी (सर्वप्रसिद्ध कविता)
2. जलियाँवाला बाग में वसंत
3. झंडे की इज्जत में
4. स्वदेश के प्रति

5. वीरों का कैसा हो बसंत

6. राखी की चुनौती

कहानी संग्रह

  • बिखरे मोती (1932 ई.)
  • उन्मादिनी (1934 ई.)
  • सीधे-सादे चित्र (1947)

सम्मान और पुरस्कार

  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें सेक्सरिया पुरस्कार दिया गया। ’मुकुल’ (1931) एवं ’बिखरे मोती’ (1932) रचना के लिए।
  • इनके नाम पर भारतीय डाक ने 25 पैसे की टिकट 1976 में जारी की गयी।
  • इंडियन नेवी का नामकरण भी इनके नाम पर किया गया।

सुभद्रा कुमारी चौहान डाक टिकट

विशेष तथ्य(परीक्षोपयोगी)

  • ’झाँसी की रानी’ इनकी अमर रचना है।
  • इनकी कविताओं में ’वात्सल्य-सुख’ की कामना दृष्टिगोचर होती है।
  • यदि निराला जी की ’सरोज स्मृति’ कविता को छोङ दिया जाये तो पारिवारिक संबंधों को लेकर कविता लिखने का सर्वप्रथम प्रयास सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा ही किया हुआ माना जाता है।
  • इनकी मृत्यु एक मोटर-वाहन दुर्घटना में अल्पायु (मात्र 43 वर्ष) में ही हो गयी थी।
  • डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त ने इनको ’राष्ट्रीयता एवं मानवता के उदात्त एवं कोमल स्वरों को झंकृत करने वाली कवयित्री कहा’ कहा है।
  • इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र 09 वर्ष की अल्पायु में ’नीम’ नाम से लिखी थी।
  • 28 अप्रैल, 2006 में उनकी राष्ट्र प्रेम की भावना के सम्मान में ’भारतीय तटरक्षक सेना’ ने अपने बेड़े के नवीन जहाज का नाम ’सुभद्रा कुमारी चौहान’ रखा।
  • सुभद्रा कुमारी चौहान के चितौड़ की महारानी पद्मिनी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा गांधी जी उनके आदर्श रहे है।

प्रमुख पंक्तियाँ

🔷सिंहासन हिल उठे राजवंशों में भृकुटी तानी थी,
बढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी।
खूब लङी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
🔷यह कदंब का पेङ अगर माँ होता यमुना तीर
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।

🔷’’स्त्री के हृदय को पहचानों और उसे चारों और फैलने दो यह न भूलो कि उसका अपना एक व्यक्तित्व हैं।’’

🔷’’वीणा बज सी पड़ी खुल गए नेत्र और कुल आया ध्यान
मुड़ने की थी देर मिल गया, उत्सव का प्यारा सम्मान’’

Subhadra Kumari Chauhan in Hindi

झांसी की रानी ( सुभद्राकुमारी चौहान)

Poem of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

झांसी की रानी

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

जलियाँवाला बाग में बसंत (सुभद्राकुमारी चौहान)

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।

यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।

FAQ

1. सुभद्रा कुमारी चौहान कौन थी ?

उत्तर – सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की चर्चित कवयित्री थी


2.सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ ?

उत्तर –  इनका जन्म 16 अगस्त, 1904 को निहालपुर, इलाहाबाद(उत्तर प्रदेश) में हुआ था ।


3.सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन कब हुआ ?

उत्तर –  15 फरवरी,1948


4.सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का क्या नाम था ?

उत्तर –  ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान


5.सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे चर्चित कविता कौन सी है ?

उत्तर –  झाँसी की रानी

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