दूरस्थ शिक्षण विधि || teaching methods in hindi || hindi shikshn vidhiyan

दूरस्थ शिक्षण विधि

दूरस्थ शिक्षण विधि(doorasth shikshan vidhi)

teaching methods in hindi

दूरस्थ शिक्षण का अर्थ है- घर बैठे शिक्षण प्राप्त करना।

इस विधि में अध्यापक बालक के सम्मुख ना होकर एक पाठ्यक्रम के रूप में होता है। बालक द्वारा सीखे हुये ज्ञान का

मूल्यांकन अध्यापक द्वारा किया जाता है। बालक अपने घर पर ही रहकर स्वाध्याय द्वारा विषय वस्तु का ज्ञान प्राप्त करता है।

निरौपचारिक शिक्षा की पद्धति है।

सम्पूर्ण विषय में जहाँ जटिलता पाई जाती है, उसको दूर करने एवं जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए अध्यापक-छात्र

सम्पर्क कार्यक्रम रखा जाता है।

दूरस्थ शिक्षा प्रणाली परिभाषाएँ 

पीटर्स के अनुसार, ‘‘दूरस्थ शिक्षा ज्ञान, कौशल तथा अभिवृद्धि प्रदान करने की एक नवीन तथा उभरती हुई, विशिष्ट

आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली शैक्षिक संरचना है, जो दूरगामी शिक्षा के रूप में लोगों को शिक्षा देने में समर्थ है।’’

 

फिलिप कौम्बस के अनुसार, ‘‘ पहले से स्थापित औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में बाहर चलने वाली सुसंगठित शैक्षिक प्रणाली

को दूरस्थ शिक्षा कहा जाता है।

यह एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप में अथवा किसी बड़ी प्रणाली के अंग के रूप में सीखने वालों के एक निश्चित समूह को

निश्चित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मदद देती है।’’

वर्तमान शैक्षिक परिवेश में दूरस्थ शिक्षा एक ऐसा सम्प्रत्यय है जिसमें शिक्षण में स्थान व दूरी की बाधाऐं दूर कर

शिक्षार्थी को घर बैठे सीखने के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।

निर्मित व औपचारिक शिक्षा से वंचित लोगों को शिक्षा का अवसर देने का यह अभिनव प्रयोग था। दूरस्थ शिक्षा

मूलतः शिक्षा के सार्वजनीकरण का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।

 

दूरस्थ शिक्षण विधि के उपनाम– पत्राचार शिक्षा, बहु माध्यम शिक्षा, गृह अध्ययन, स्वतंत्र अध्ययन, मुक्त अधिगम,

टेली एजूकेशन, नवाचार विधि।

दूरस्थ शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँः-

⇒ औपचारिक शिक्षा से वंचित बालको हेतु उपयोगी साबित हुई है।

⇒प्रणाली छात्रों की आवश्कताओं, स्तर एवं उनके दैनिक कार्यों से जुङी रहती है।

⇒  एक लचीली विधि है।

⇒ यह विधि छात्रों के सुनिश्चित एवं विशिष्ट समूह के लिये पूर्व निर्धारित तथा विशिष्ट उद्देश्यों के लिये प्रदान

करती है।

⇒  विधि स्वगत अधिगम के सिद्धान्त पर कार्य करती है।

⇒ छात्रों को इस विधि द्वारा अपनी इच्छानुसार समय लगाकर, उसकी अपनी योग्यता तथा गति के अनुसार पढ़ने

के अवसर मिलते हैं।

 ⇒ दूरस्थ शिक्षा, शिक्षण-अधिगम की एक सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित प्रणाली है।

    यह विधि कामकाजी या सेवारत लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

 ⇒ इसमें आमने-सामने बैठकर पढ़ने-पढ़ाने का बन्धन नहीं होता।

    दूरस्थ शिक्षा की तकनीकों का प्रयोग सभी आयु वर्ग के लोगों को शिक्षित करने के लिये अनेक प्रकार के

     व्यावसायिक एवं अव्यावसायिक शास्त्रों से सम्बन्धित पाठयक्रमों के शिक्षण हेतु किया जाता है।

 ⇒ दूरस्थ शिक्षा-स्व अनुदेश की प्रणाली पर आधारित होती है।

    इससे  शिक्षा से ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तीनों प्रकार के उदेश्यों की प्राप्ति संभव होती है।

 ⇒ इसमें शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न माध्यमों-मुद्रित तथा अमुद्रित का प्रयोग किया जाता है।

    अनुदेशन सामग्री के अध्ययन का उत्तरदायित्व छात्रों पर अधिक होता है।

    यह शिक्षा को देश के दूर-दूर तक के स्थानों तक पहुँचाने का प्रयास करती हैं।

दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यः-

 ⇒ ज्ञान व अधिगम को विभिन्न विधाओं के प्रयोग द्वारा छात्रों तक पहुँचाने का सफल प्रयास करना।

     ऐसे लोगों के लिये शिक्षा के अवसर पुनः प्रदान करना, जो किन्हीं कारणों से अपने जीवन में शिक्षित होने के

अवसर खो चुके हैं।

 ⇒ दूरस्थ शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य है-देश के सुदूर कोने में स्थित विभिन्न स्थानों पर पढ़ने वालों के द्वार-द्वार

तक शिक्षा पहुँचाना।

     छात्रों के स्तर, आवश्कताओं, योग्यताओं, क्षमताओं तथा आयु के अनुसार अधिगम सामग्री तैयार करना तथा

   निर्दिष्ट विधियों द्वारा छात्रों तक पहुँचाने का सफल प्रयास करना।

 ⇒ संविधान में वर्णित ’सभी को शिक्षा के समान अवसर’ सिद्धान्त को बढ़ावा देना।

दूरस्थ शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता एवं महत्त्व:-

⇒ दूरस्थ शिक्षा ऐसे लोगों के लिये वरदान है जो अपनी शिक्षा को आगे जारी रखने के लिये अन्यत्र जाने में

पूर्णतय असमर्थ हैं।

⇒ यह दूरस्थ शिक्षा, बहुमाध्यमीय उपागम का प्रयोग करती है-फलस्वरूप छात्रों की अधिगम प्रक्रिया को

अधिक बल मिलता है।

⇒ दूरस्थ शिक्षा, शैक्षिक तथा व्यावसायिक अवसरों की समानता प्रदान करने वाला एक सशक्त माधयम है।

⇒ यह दूरस्थ शिक्षा ऐसे लोगों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है जिन्हें ज्ञान के उन्नयन के लिये कुछ अतिरिक्त शैक्षिक

प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

⇒ समृद्ध समाजों के लोगों के लिये दूरस्थ शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

⇒ दूरस्थ शिक्षा, निरक्षर किसानों, मजदूरों, गृहणियों तथा विकंलाग व्यक्तियों आदि के लिये भी महत्त्वपूर्ण है

जो औपचारिक विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ रहे हैं।

⇒ यह छात्र-केन्द्रित या व्यक्ति-केन्द्रित व्यवहार है, अतः इसके अन्तर्गत छात्रों के स्तरों के अनुरूप बेहतर अधिगम

सामग्री उपलब्ध कराई जा सकती है।

⇒ दूरस्थ शिक्षा छात्रों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित करती है

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