दोस्तो आज की पोस्ट में हम शब्द शक्ति का अर्थ (shabad shakti ka arth)व शब्द शक्ति को अच्छे से समझेंगे
शब्द शक्ति का अर्थ और प्रकार(Meaning and type of word power)
Table of Contents
शब्द-शक्ति (Word-Power) की परिभाषा
शब्द शक्ति(shbad shakti) का अर्थ और परिभाषा – शब्द शक्ति का अर्थ है-शब्द की अभिव्यंजक शक्ति।
शब्द का कार्य किसी अर्थ की अभिव्यक्त तथा उसका बोध करता होता है।इस प्रकार शब्द एवं अर्थ का अभिन्न सम्बन्ध है। शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध ही शब्द शक्ति है।
’शब्दार्थ सम्बन्धः शक्ति।
अर्थात्(बोधक) शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध को शब्द शक्ति कहते हैं।
हम शब्द शक्ति की परिभाषा इस प्रकार भी जान सकते है- ’शब्दों के अर्थों का बोध कराने वाले अर्थ-व्यापारों को शब्द शक्ति कहते हैं।
शब्द शक्ति के भेद(Shbad shakti ke bhed) |
इस प्रकार शब्द के विभिन्न प्रकार के अर्थों के आधार पर शब्द शक्ति(shabd shakti) के प्रकारों का निर्धारण किया गया है।
शब्द के जितने प्रकार के अर्थ होते हैं, भाषा के जितने प्रकार के अभिप्राय होते हैं, उतने ही प्रकार की शब्द शक्तियां होती हैं।
शब्द के तीन प्रकार के अर्थ स्वीकार किए गए हैं-
- वाच्यार्थ या अभिधेयार्थ
- लक्ष्यार्थ
- व्यंग्यार्थ
इस अर्थों के आधार पर तीन प्रकार की शब्द शक्तियां(shabd shakti) मानी गई हैं
- अभिधा(abidha shbad shakti)
- लक्षणा(laxna shbad shakti)
- व्यंजना( vyanjna shbad shakti)
⇒ कुछ विद्वानों ने तात्पर्य नामक चौथी शब्द शक्ति भी स्वीकार की है, जिसका सम्बन्ध वाक्य से होता है।
(1) अभिधा शब्द शक्ति(Literal Sense Of a Word)
– शब्द को सुनने अथवा पढ़ने के पश्चात् पाठक अथवा श्रोता को शब्द का जो लोक प्रसिद्ध अर्थ तत्क्षण ज्ञात हो जाता है,
वह अर्थ शब्द की जिस सीमा द्वारा मालूम होता है, उसे अभिधा शब्द शक्ति(abidha shabd shakti) कहते हैं।
(2) लक्षणा शब्द शक्ति (Figurative Sense Of a Word)
– जहां मुख्य अर्थ में बाधा उपस्थित होने पर रूढ़ि अथवा प्रयोजन के आधार पर मुख्य अर्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को लक्ष्य किया जाता है,
वहां लक्षणा शब्द शक्ति होती है। जैसे -मोहन गधा है। यहां गधे का लक्ष्यार्थ है मूर्ख।
(3) व्यंजना शब्द शक्ति(Suggestive Sense Of a Word) –
अभिधा और लक्षणा के विराम लेने पर जो एक विशेष अर्थ निकालता है, उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं और जिस शक्ति के द्वारा यह अर्थ ज्ञात होता है, उसे व्यंजना शब्द शक्ति कहते हैं।
जैसे – घर गंगा में है।
यहां व्यंजना है कि घर गंगा की भांति पवित्र एवं स्वच्छ है।
शब्द शक्ति का महत्व – किसी शब्द का महत्व उसमें निहित अर्थ पर निर्भर होता हैं।
बिना अर्थ के शब्द अस्तित्व-विहीन एवं निरर्थक होता है।
शब्द शक्ति के शब्द में निहित इसी अर्थ की शक्ति पर विचार किया जाता है। काव्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ ग्रहण से ही काव्य आनन्ददायक बनता है।
अतः शब्द के अर्थ को समझना ही काव्य के आनन्द को प्राप्त करने की प्रधान सीढ़ी हैं और शब्द के अर्थ को समझने के लिए शब्द शक्तियों की जानकारी होना परम आवश्यक हैं।
लक्षणा शब्द शक्ति के भेद (lakshna shabd shakti ke bhed) |
(अ) लक्ष्यार्थ के आधार पर – इस आधार को लेकर लक्षणा के दो भेद हैं –
(1) रूढ़ा लक्षणा
(2) प्रयोजनवती लक्षणा
(1) रूढ़ा लक्षणा (rudha lakshna)
जहां मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढ़ि के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया जाता है, वहां रूढ़ा लक्षणा होती हैं।
जैसे –
पंजाब वीर हैं -इस वाक्य में पंजाब का लक्ष्यार्थ है -पंजाब के निवासी। यह अर्थ रूढ़ि के आधार पर ग्रहण किया गया है अतः रूढ़ा लक्षणा है।
(2) प्रयोजनवती लक्षणा(paryojanvati lakshana)
मुख्यार्थ में बाधा होने पर किसी विशेष प्रयोजन के लिए जब लक्ष्यार्थ का बोध किया जाता है, वहां प्रयोजनवती लक्षणा होती है।
जैसे- मोहन गधा है -इस वाक्य में ’गधा’ का लक्ष्यार्थ ’मूर्ख’ लिया गया है और यह मोहन की मूर्खता को व्यक्त करने के प्रयोजन से लिया गया है
अतः यहां प्रयोजनवती लक्षणा हैं।
(ब) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ के सम्बन्ध के आधार पर – इस आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं-
(1) गौणी लक्षणा
(2) शुद्धा लक्षणा।
(1) गौणी लक्षणा – जहां गुण सादृश्य के आधार पर लक्ष्यार्थ का बोध होता है, वहां गौणी लक्षणा होती है।
जैसे-मोहन शेर है।
इस वाक्य में मोहन को वीर दिखाने लिए उसको शेर कहा गया है, अर्थात् मोहन में और शेर में सादृश्य है अतः यहां गौणी लक्षणा है।
(2) शुद्धा लक्षणा – जहां गुण सादृश्य को छोङकर अन्य किसी आधार यथा-समीपता, साहचर्य, आधार-आधेय सम्बन्ध, के आधार पर लक्ष्यार्थ ग्रहण किया गया हो, वहां शुद्धा लक्षणा होती है।
यथा-
लाल पगङी आ रही है। यहां लाल पगङी का अर्थ है सिपाही। इन दोनों में साहचर्य सम्बन्ध है अतः शुद्धा लक्षणा है।
(स) मुख्यार्थ है या नहीं के आधार पर लक्षणा के भेद –
लक्ष्यार्थ के कारण मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो गया है या बना हुआ है, इस आधार पर लक्षणा के दो भेद किए गए हैं-
(1) उपादान लक्षणा, (2) लक्षण लक्षणा।
(1) उपादान लक्षणा – जहां मुख्यार्थ बना रहता है तथा लक्ष्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के साथ ही होता है वहां उपादान लक्षणा होती हैं। जैसे-लाला पगङी आ रही है।
इसमें लाल पगङी भी आ रही है और (लाल पगङी पहने हुए) सिपाही भी जा रहा है।
यहां मुख्यार्थ (लाल पगङी) के साथ-साथ लक्ष्यार्थ (सिपाही) का बोध हो रहा है अतः उपादान लक्षणा है।
(2) लक्षण लक्षणा – इसमें मुख्यार्थ पूरी तरह समाप्त हो जाता है, तभी लक्ष्यार्थ का बोध होता है।
जैसे-मोहन गया है। लक्षण लक्षणा का उदाहरण हैं।
(द) सारोपा एवं साध्यवसाना लक्षणा
– (1) सारोपा लक्षणा
– जहां उपमेय और उपमान में अभेद आरोप करते हुए लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो वहां सारोपा लक्षणा होती हैं।
इसमें उपमेय भी होता है और उपमान भी। जैसे – उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
यहां उदयगिरि रूपी मंच पर राम रूपी प्रभातकालीन सूर्य का उदय दिखाकर उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया गया है अतः सारोपा लक्षणा है।
(2) साध्यवसाना लक्षणा – इसमें केवल उपमान का कथन होता है, लक्ष्यार्थ की प्रतीति हेतु उपमेय पूरी तरह छिप जाता है।
जैसे-जब शेर आया तो युद्ध क्षेत्र से गीदङ भाग गए।
यहां शेर का तात्पर्य वीर पुरुष से और गीदङ का तात्पर्य कायरों से है। उपमेय को पूरी तरह छिपा देने के कारण यहां साध्यवसाना लक्षणा है।
व्यंजना शब्द शक्ति के भेद(vyanjna shabd shakti ke bhed) |
(अ) शाब्दी व्यंजना(shabdi vyanjna)
जहां शब्द विशेष के कारण व्यंग्यार्थ का बोध होता है और वह शब्द हटा देने पर व्यंग्यार्थ समाप्त हो जाता है वहां शाब्दी व्यंजना होती हैं। जैसे –
चिरजीवौ जोरी जुरै क्यों न सनेह गम्भीर।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के वीर।।
यहां वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्दों के कारण व्यंजना सौन्दर्य है।
इनके दो-दो अर्थ हैं-1. राधा, 2. गाय तथा 1. श्रीकृष्ण 2. बैल।
यदि वृषभानुजा, हलधर के वीर शब्द हटा दिए जाएं और इनके स्थान पर अन्य पर्यायवाची शब्द रख दिए जाएं, तो व्यंजना समाप्त हो जाएगी।
शाब्दी व्यंजना को पुनः दो वर्गों में बांटा गया है-अभिधामूला शाब्दी व्यंजना, लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना।
(1) अभिधामूला शाब्दी व्यंजना – जहां पर एक ही शब्द के नाना अर्थ होते हैं, वहां किस अर्थ विशेष को ग्रहण किया जाए, इसका निर्णय अभिधामूला शाब्दी व्यंजना करती हैं।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि अभिधामूला शाब्दी व्यंजना में शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाता है
तथा व्यंग्यार्थ का बोध मुख्यार्थ के माध्यम से होता है
जैसे-
सोहत नाग न मद बिना, तान बिना नहीं राग। यहां पर नाग और राग दोनों शब्द अनेकार्थी हैं,
परन्तु ’वियोग’ कारण से इनका अर्थ नियन्त्रित कर दिया गया है।
इसलिए यहां पर ’नाग’ का अर्थ हाथी और ’राग’ का अर्थ रागिनी है।
अब यदि यहां नाग का पर्यायवाची भुजंग रख दिया जाए तो व्यंग्यार्थी हो जाएगा।
(2) लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना – जहां किसी शब्द के लाक्षणिक अर्थ से उसके व्यंग्यार्थ पर पहुंचा जाए और शब्द का पर्याय रख देने से व्यंजना का लोप हो जाए,
वहां लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना होती है।
यथा –
’’आप तो निरै वैशाखनन्दन हैं।’’ यहां वैशाखनन्दन व्यंग्यार्थ पर पहुंचना होता है। लक्षण है-मूर्खता।
अब यदि यहां वैशाखनन्दन शब्द बदल दिया जाए तो व्यंजना का लोप हो जाए, परन्तु ’गधा’ रख देने से लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना तो चरियार्थ नहीं रहेगी।
(ब) आर्थी व्यंजना(arthi vyanjna)
जब व्यंजना किसी शब्द विशेष पर आधारित न होकर अर्थ पर आधारित होती है, तब वहां आर्थी व्यंजना मानी जाती हैं। यथा –
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।
यहां नीचे वाली पंक्ति से नारी के दो गुणों की व्यंजना होती है-उसका ममत्व भाव एवं कष्ट सहने की क्षमता।
यह व्यंग्यार्थ किसी शब्द के कारण है अतः आर्थी व्यंजना है।
यह व्यंजना तीन प्रकार की हो सकती है-अभिधामूला, लक्षणामूला एवं व्यंजनामूला आर्थी व्यंजना।
एक अन्य आधार पर व्यंजना के तीन भेद किए गए हैं-1. वस्तु व्यंजना, 2. अलंकार व्यंजना, 3. रस व्यंजना।
1. वस्तु व्यंजना – जहां व्यंग्यार्थी द्वारा किसी तथ्य की व्यंजना हो वहां वस्तु व्यंजना होती हैं।
जैसे-
उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी सी उदित हुई।
उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अन्तर्निहित हुई।।
यहां रात्रि बीत जाने और हृदय में आशा के उदय आदि की सूचना व्यंजित की गई है
अतः वस्तु व्यंजना है।
2. अलंकार व्यंजना – जहां व्यंग्यार्थ किसी अलंकार का बोध कराये वहां अलंकार व्यंजना होती हैं।
जैसे-
उसे स्वस्थ मनु ज्यों उठता है क्षितिज बीच अरुणोदय कान्त।
लगे देखने क्षुब्ध नयन से प्रकृति विभूति मनोहर शान्त।।
यहां उत्प्रेक्षा अलंकार के कारण व्यंजना सौन्दर्य है अतः इसे अलंकार व्यंजना कहेंगे।
3. रस व्यंजना – जहां व्यंग्यार्थ से रस व्यंजित हो रहा हो, वहां रस-व्यंजना होती है।
यथा –
जब जब पनघट जाऊं सखी री वा जमुना के तीर।
भरि-भरि जमुना उमङि चलति हैं इन नैननि के नीर।।
यहां ’स्मरण’ संचारीभाव की व्यंजना होने से वियोग रस व्यंजित है अतः रस व्यंजना है।
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