Hindi Essay

Hindi Essay – हिंदी निबंध – || Hindi Nibandh – सभी कक्षाओं के लिए उपयोगी

आज के आर्टिकल में विद्यार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण हिंदी निबंध (Hindi Essay) दिए गए है ,आप इन्हें अच्छे से तैयार करें |

हिंदी  निबन्ध – Hindi Essay

Hindi Essay
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1. स्वच्छ भारत: स्वस्थ भारत

  • स्वच्छता क्या है?
  • स्वच्छता के प्रकार
  • स्वच्छता के लाभ
  • स्वच्छताः हमारा योगदान
  • उपसंहार।

स्वच्छता क्या है? – निरंतर प्रयोग में आने पर या वातावरण के प्रभाव से वस्तु या स्थान मलिन होता रहता है। धूल, पानी, धूप, कूङा-करकट की पर्त को साफ करना, धोना, मैल और गंदगी को हटाना ही स्वच्छता कही जाती है। अपने शरीर, वस्त्रों, घरों, गलियों, नालियों, यहाँ तक कि अपने मोहल्लों और नगरों को स्वच्छ हम सभी का दायित्व है।

स्वच्छता के प्रकार – स्वच्छता को मोटे रूप में दो प्रकार से देखा जा सकता है – व्यक्तिगत स्वच्छता और सार्वजनिक स्वच्छता। व्यक्तिगत स्वच्छता में अपने शरीर को स्नान आदि से स्वच्छ बनाना, घरों में झाडू-पोंछा लगाना, स्नानगृह तथा शौचालय को विसंक्रामक पदार्थों द्वारा स्वच्छ रखना। घर और घर के सामने से बहने वाली नालियों की सफाई, ये सभी व्यक्तिगत स्वच्छता के अंतर्गत आते हैं। सार्वजनिक स्वच्छता में मोहल्ले और नगर की स्वच्छता आती है जो प्रायः नगर पालिकाओं और ग्राम पंचायतों पर निर्भर रहती है। सार्वजनिक स्वच्छता भी व्यक्तिगत सहयोग के बिना पूर्ण नहीं हो सकती।

⇒स्वच्छता के लाभ – ’कहा गया है कि स्वच्छता ईश्वर को भी प्रिय है। ’ईश्वर का कृपापात्र बनने की दृष्टि से ही नहीं अपितु अपने मानव जीवन को सुखी, सुरक्षित और तनावमुक्त बनाए रखने के लिए भी स्वच्छता आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। मलिनता या गंदगी न केवल आँखों को बुरी लगती है, बल्कि इसका हमारे स्वास्थ्य से भी सीधा संबंध है। गंदगी रोगों को जन्म देती है। प्रदूषण की जननी है और हमारी असभ्यता की निशानी है।

अतः व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता बनाए रखने में योगदान करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।स्वच्छता के उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त इसके कुछ अप्रत्यक्ष और दूरगामी लाभ भी है। सार्वजनिक स्वच्छता से व्यक्ति और शासन दोनों लाभान्वित होते हैं। बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है तथा स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय होने वाले सरकारी खर्च में भी कमी आती है। इस बचत को अन्य सेवाओं में उपयोग किया जा सकता है।

स्वच्छता: हमारा योगदान – स्वच्छता केवल प्रशासनिक उपायों के बलबूते नहीं चल सकती। इसमें प्रत्येक नागरिक की सक्रिय भागीदारी परम आवश्यक होती है। हम अनेक प्रकार से स्वच्छता से योगदान कर सकते हैं, जो निम्नलिखित हो सकते हैं-
घर का कूङा-करकट गली या सङक पर न फेंके। उसे सफाईकर्मी के आने पर उसकी ठेल या वाहन में ही डालें। कूङे-कचरे की नालियाँ में न बहाएँ। इससे नालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं। गंदा पानी सङकों पर बहने लगता है।
पालीथिन का बिल्कुल प्रयोग न करें। यह गंदगी बढ़ाने वाली वस्तु तो है ही, पशुओं के लिए भी बहुत घातक है। घरों के शौचालयों की गंदगी नालियों में न बहाएँ। खुले में शौच न करें तथा बच्चों को नालियों या गलियों में शौच न कराएँ। नगर पालिका के सफाईकर्मियों का सहयोग करें।

उपसंहार- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान चलाया है। इसका प्रचार-प्रसार मीडिया के माध्यम से निरंतर किया जा रहा है। अनेक जन प्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी, सेलेब्रिटीज (प्रसिद्ध लोग) इसमें भाग ले रहे हैं। जनता को इसमें अपने स्तर से पूरा सहयोग देना चाहिए। इसके साथ गाँवों में खुले में शौच करने की प्रथा को समाप्त करने के लिए लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के प्रेरित किया जा रहा है। उसके लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान की जा रही है। इन अभियानों  में समाज के प्रत्येक वर्ग को पूरा सहयोग करना चाहिए।

डिजिटल इंडिया

परिचय –डिजिटल इंडिया’ भारतीय समाज को अंतर्राष्ट्रीय रीति-नीतियों से कदम मिलाकर चलने की प्रेरणा देने वाला एक प्रशंसनीय और साहसिक प्रयास है। यह भारत सरकार की एक नई पहल है। भारत के भावी स्वरूप को ध्यान में रखकर की गई एक दूरदर्शितापूर्ण संकल्पना है।

उद्देश्य – इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत को डिटिजल दृष्टि से सशक्त समाज और ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था में बदलना है। इस संकल्प के अंतर्गत भारतीय प्रतिभा को सूचना प्रौद्योगिकी से जोङकर कल के भारत की रचना करना है। इस दृष्टि से ’डिजिटल इंडिया’ के तीन प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं-
(1) हर नागरिक के लिए एक उपयोगी डिजिटल ढाँचा तैयार करना।
(2) जनता की माँग पर आधारित डिजिटल सेवाओं का संचालन तथा उन्हें लोगों को उपलब्ध कराना।
(3) लोगों को डिजिटल उपकरणों के प्रयोग में दक्षता प्रदान करना।

डिजिटल होने का अर्थ – आम आदमी के लिए डिजिटल बनने का आशय है कि नकद लेन-देन से बचकर आनलाइन (मोबाइल, पेटीएम, डेविट कार्ड आदि) लेन-देन का प्रयोग करना, कागजी काम को कम से कम किया जाना। सरकारी तथा बैंकिंग कार्यों में और व्यापारिक गतिविधियों में पारदर्शिता आना। ठगी और रिश्वत से बचाव होना आदि है।

डिजिटल अभियान के लाभ – यह अभियान समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुँचाने वाला है-

  • यह व्यवस्था गृहणियों को पारवारिक आय-व्यय, खरीददारी, मासिक और वार्षिक प्रबंधन आदि में सहायक है।
  • छात्रों के लिए उपयुक्त विद्यालय के चयन, अध्ययन सामग्री की सहज उपलब्धता, छात्रवृत्ति आदि के लिए ऑनलाइन प्रार्थना-पत्र भेजने में, पुस्तकों के बोझ को कम करने में सहायक होगा।
  • बेरोजगार नौजवान उपयुक्त नौकरियों की तलाश सरलता से कर पाएँगे तथा डिजिटल प्रार्थना-पत्रों के प्रयोग से पारदर्शी चयन प्रणाली का लाभ उठाएँगे। ऑनलाइन प्रमाण-पत्र जमा कर सकेंगे।
  • व्यापारी और उद्योगी भी इससे लाभान्वित होंगे, नकद लेन-देन के झंझट से बचाव होगा। ग्राहक संतुष्ट रहेंगे। सरकारी कामों, आयकर, ट्रांसपोर्ट तथा व्यापार के विस्तार में पारदर्शिता आएगी।
  • अभिलेखों की सुरक्षा, ई-हस्ताक्षर, मोबाइल बैंकिंग, सरकारी कामों में दलालों से मुक्ति, जमीन-जायदाद के क्रय-विक्रय में पारदर्शिता, ई-पंजीकरण आदि ’डिजिटल इंडिया’ के अनेक लाभ हैं।

चुनौतियाँ – डिटिजल प्रणाली को लागू करने के अभियान में अनेक चुनौतियाँ भी हैं। सबसे प्रमुख चुनौती है- जनता को इसके प्रति आश्वस्त करके इसमें  भागीदार बनाना। नगरवासियों को भले ही डिजिटल उपकरणों का प्रयोग आसान लगता हो, लेकिन करोङों ग्रामवासियों, अशिक्षितों को इसके प्रयोग में सक्षम बनाना एक लम्बी और धैर्यशाली प्रक्रिया है। इसके अतिरिक्त कर चोरी के प्रेमियों को यह प्रणाली राम नहीं आएगी। इलेक्ट्राॅनिक सुरक्षा के प्रति लोगों में भरोसा जमाना होगा। साइबर अपराधो, हैकिंग और ठगों से जनता को सुरक्षा प्रदान करनी होगी।
आगे बढ़ें – चुनौतियाँ, शंकाएँ और बाधाएँ तो हर नए और हितकारी काम में आती रही है। शासकीय ईमानदारी और जन-सहयोग से, इस प्रणाली को स्वीकार्य और सफल बनाना, देशहित की दृष्टि से बङा आवश्यक है। आशा है, हम सफल होंगे।

बेटी बचाओ: बेटी पढ़ाओ
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या: महापाप

  • घोर पाप
  • कन्या-भू्रण हत्या के कारण
  • कन्या-भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम
  • कन्या-भू्रण हत्या रोकने के उपाय।

घोर पाप – हमारी भारतीय संस्कृति में कन्या को देवी का स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि और देवी जागरण के समय कन्या-पूजन की परम्परा से सभी परिचित हैं। हमारे धर्मग्रन्थ भी नारी की महिमा का गुणगान करते हैं। आज उसी भारत में कन्या को माँ के गर्भ में ही समाप्त कर देने की लज्जाजनक परम्परा चल रही है। इस घोर पाप ने सभ्य जगत के समाने हमारे मस्तक को झुका दिया है।

कन्या-भ्रूण हत्या के कारण – कन्या-भू्रण को समाप्त करा देने के पीछे अनेक कारण है। कुछ राजवंशों और सामन्त परिवारों में विवाह के समय वर-पक्ष के सामने न झुकने के झूठे अहंकार ने कन्याओं की बलि ली। पुत्री की अपेक्षा पुत्र को महत्व दिया जाना, धन लोलुपता, दहेज प्रथा तथा कन्या के लालन-पालन और सुरक्षा में आ रही समस्याओं ने भी इस निन्दनीय कार्य को बढ़ावा दिया है। दहेज लोभियों ने भी इस समस्या को विकट बना दिया है। झूठी शान के प्रदर्शन के कारण कन्या का विवाह सामान्य परिवारों के लिए बोझ बन गया है।

⇒कन्या-भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम – चिकित्सा विज्ञान को प्रगति के कारण आज गर्भ में ही संतान के लिंग का पता लगाना सम्भव हो गया है। अल्ट्रासाउण्ड मशीन से पता लग जाता है कि गर्भ में लङकी है या लङका। यदि गर्भ में लङकी है, तो कुबुद्धि लोग उसे डाॅक्टरों की सहायता से नष्ट करा देते हैं। इस निन्दनीय आचरण के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। देश के अनेक राज्यों में लङकियों और लङकों के अनुपात में चिन्ताजनक गिरावट आ गई है। लङकियों की कमी हो जाने से अनेक युवक कुँवारे घूम रहे हैं। अगर सभी लोग पुत्र ही पुत्र चाहेंगे तो पुत्रियाँ कहाँ से आएँगी। विवाह कहाँ से होंगे? वंश कैसे चलेेंगे? इस महापाप में नारियों का भी सहमत होना बङा दुर्भाग्यपूर्ण है।

कन्या-भ्रूणहत्या रोकने के उपाय – कन्या-भू्रण हत्या को रोकने के लिए जनता और सरकार ने लिंग परीक्षण को अपराध घोषित करके कठोर दण्ड का प्रावधान किया है फिर भी चोरी छिपे यह काम चल रहा है। इसमें डाॅक्टरों तथा परिवारीजन दोनों का सहयोग रहता है। इस समस्या का हल तभी सम्भव है जब लोगों में लङकियों के लिए हीन भावना समाप्त हो। पुत्र और पुत्री में कोई भेद नहीं किया जाए।

बेटी बचाओ – बेटियाँ देश की सम्पत्ति है। उनको बचाना सभी भारतवासियों का कर्तव्य है। वे बेटों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। परिवार तथा देश के उत्थान में उनका योगदान बेटों से भी अधिक है। उसके लिए उनकी सुरक्षा के साथ ही उनको सुशिक्षित बनाना भी जरूरी है। हमारे प्रधानमंत्री ने यह सोचकर ही ’बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया है।

राष्ट्रीय एकता की सुरक्षा – हमारा कर्तव्य

  • राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय
  • राष्ट्रीय एकता-अखण्डता की आवश्यकता
  • राष्ट्रीय एकता, अखण्डता की सांस्कृतिक विरासत
  • राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप
  • राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्तव्य
  • उपसंहार।

राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय – राष्ट्रीय एकता का अर्थ है – हमारी एक राष्ट्र के रूप में पहचान। हम सर्वप्रथम भारतीय हैं इसके बाद हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख आदि हैं। अनेक विविधताओं और भिन्नताओं के रहते हुए भी आन्तरिक एकता की भावना, देश के सभी धर्मों, परम्पराओं, आचार-विचारों, भाषाओं और उपसंस्कृतियों का आदर करना, भारतभूमि और सभी भारतवासियों से हार्दिक लगाव बनाए रखना, यही राष्ट्रीय एकता का स्वरूप है।

भारत एक विशाल-विस्तृत सागर के समान हैं। जिस प्रकार अनेक नदियाँ बहकर सागर में जा मिलती हैं और उनकी पृथकता मिट जाती है, उसी प्रकार विविध वर्णों, धर्मों, जातियों, विचारधाराओं के लोग भारतीयता की भावना से बँधकर एक हो जाते हैं। जिस प्रकार अनेक पेङ-पौधे मिलकर एक वन प्रदेश का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार विविध मतावलम्बियों की एकता से ही भारत का निर्माण हुआ है।

⇒राष्ट्रीय एकता-अखण्डता आवश्यकता – भारत विविधताओं का देश है। यह एक संघ-राज्य है। अनेक राज्यों या प्रदेशों का एकात्म स्वरूप है। यहाँ हर राज्य में भिन्न-भिन्न रूप, रंग, आचार, विचार, भाषा और धर्म के लोग निवास करते हैं। इन प्रदेशों की स्थानीय संस्कृतियाँ और परम्पराएँ हैं। इन सभी से मिलकर हमारी राष्ट्रीय या भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। हम सब भारतीय हैं, यही भावना सारी विभिन्नताओं को बाँधने वाला सूत्र है।

यही हमारी राष्ट्रीय एकता का अर्थ और आधार है। विविधता में एकता भारत राष्ट्र की प्रमुख विशेषता है। उसमें अनेक धर्मों और सांस्कृतिक विचारधाराओं का समन्वय है। भारतीयता के सूत्र में बँधकर ही हम दृढ़ एकता प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के बिना भारत का भविष्य अंधकारमय है।

राष्ट्रीय एकता-अखण्डता सांस्कृतिक विरासत – राष्ट्रीय एकता और अखण्डता भारतीय संस्कृति की देन है। भारत विभिन्न धर्मों, विचारों और मतों को मानने वालों का निवास रहा है। भारतीय संस्कृति इन विभिन्नताओं का समन्वित स्वरूप है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी इस सामाजिक संस्कृति के निर्माण में योगदान किया है। विभिन्न आघात सहकर भी भारतीय एकता सुरक्षित रही है, इसका कारण उसका भारत की सामाजिक संस्कृति से जन्म होना ही है।

⇒राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप – आज हमारी राष्ट्रीय एकता संकट में है। यह संकट बाहरी नहीं आंतरिक है। हमारे राजनेता और शासकों ने अपने भ्रष्ट आचरण से देश की एकता को संकट में डाल दिया है। अपने वोट-बैंक को बनाए रखने के प्रयास में इन्होंने भारतीय समाज को जाति-धर्म, आरक्षित-अनारक्षित, अगङे-पिछङे, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक और प्रादेशिक कट्टरता के आधार पर बाँट दिया है। इन बङबोले, कायर और स्वार्थी लोगों ने राष्ट्रीय एकता को संकट में डाल दिया है।

राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्तव्य – राष्ट्रीय एकता पर हो रहे इन प्रहारों के रूप में भारत के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। इस संकट का समाधान किसी कानून के पास नहीं है। आज हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक को भ्रष्टाचार के विरुद्ध खङा होना है। आपसी सद्भाव और सम्मान के साथ प्रेमभाव को बढ़ावा देना है। समाज के नेतृत्व व संगठन का दायित्व राजनेताओं से छिनकर निःस्वार्थ समाजसेवियों के हाथों में सौंपना है। इस महान कार्य में समाज का हर एक वर्ग अपनी भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रीय एकता को बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।

उपसंहार – भारत विश्व का एक महत्त्वपूर्ण जनतंत्र है। लम्बी पराधीनता के बाद वह विकास के पथ पर अग्रसर है। भारत की प्रगति के लिए उसकी एकता-अखण्डता का बना रहना आवश्यक है, प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि भारत की अखण्डता को सुनिश्चित करे।

आतंकवाद: विश्वव्यापी समस्या

  • आतंकवाद क्या है?
  • आतंकवाद विश्वव्यापी समस्या
  • आतंकवाद की नर्सरी
  • भारत में आतंकी विस्तार
  • मुम्बई में ताज पर हमला
  • समाप्ति के उपाय।

आतंकवाद क्या है? – संसार का कोई भी धर्म मनुष्य को हिंसा और परपीङन की शिक्षा नहीं देता। तुलसीदास कहते हैं- ’परहित सरिस धरम नहिं भाई। पर पीङा सम नहिं अधमाई।’ धर्म की आङ लेकर निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला महान पापी और नीच है। आज कुछ धर्मान्ध और सत्ता के भूखे लोग स्वयं को ’जेहादी’ कहकर निर्दोष स्त्री, पुरुष, बालक और वृद्धों के प्राण ले रहे हैं। ये आतंकी लोग इस घृणित कार्य से अपने धर्म को ही लज्जित और बदनाम कर रहे हैं। आतंक फैलाकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना ही आतंकवाद है।

⇒आतंकवाद विश्वव्यापी समस्या – आज संसार का हर देश आतंकवाद का निशाना बना हुआ है। अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन जैसे महाशक्ति कहलाने वाले देश भी इनके आघात को झेल चुके हैं। भारत तो लगभग पन्द्रह वर्षों से आतंकी घटनाओं से लहूलुहान हो रहा है। आज आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। इस समस्या के विस्तार के लिए ऐसे देश जिम्मेदार हैं जो अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए आतंकवाद को संरक्षण दे रहे हैं।

आतंकवाद की नर्सरी – आज अनेक देशों में विभिन्न नामों से आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, सीरिया, फिलिस्तीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि देशों में आतंकी घटनाएँ होती रहती हैं। लेकिन इन सभी देशों में पाकिस्तान आतंक की पौधशाला बना हुआ है। यहाँ न केवल कुख्यात आतंकवादी आश्रय पाते हैं बल्कि यहाँ आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर भी संचालित हो रहे हैं। पाकिस्तान भले ही इससे इन्कार करता रहे लेकिन अमेरिकी कमांडो दल द्वारा पाकिस्तान के एबटाबाद में तालिबान प्रमुख, संसार के सबसे दुर्दान्त आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से पाकिस्तान का असली चरित्र संसार के सामने उजागर हो चुका है।

भारत में आतंकी विस्तार – भारत में आतंकवादी घटनाओं का आरम्भ उत्तर-पूर्वी राज्यों मिजोरम, नागालैण्ड, असम आदि से हुआ। इसके बाद पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी घटनाएँ कश्मीर और पंजाब में चरम स्थिति पर जा पहुँची। मुम्बई में 1992 के विस्फोटों के पश्चात् धीरे-धीरे सारे देश में आतंकवाद का विस्तार हो चुका है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बँगलूरू, पंजाब में अनेक आतंकवादी घटनाएँ हो चुकी हैं। कश्मीर में तो आतंकियों के हमले होते ही रहते हैं। 2016 में उङी के वायुसेना बेस पर भयंकर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें लगभग 150 सैनिक शहीद हुए थे।

समाप्ति के उपाय – आतंकवाद से टुकङों में नहीं निपटा जा सकता। अब तो संसार के सभी जिम्मेदार राष्ट्रों को संगठित होकर आतंकवाद के विनाश में सक्रिय भूमिका-निभानी होगी।
मोदी सरकार आने के बाद भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहनशीलता (जीरोटालरेंस) की नीति अपनाई है। उङी की घटनाओं को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकवादियों के क्रूर तथा कायराना हमले के बाद भारत ने सर्जीकल स्ट्राइक द्वारा न केवल पाकिस्तान को, बल्कि पूरी दुनिया को कठोर संदेश दिया है।
आतंकवाद मानव-सभ्यता पर कलंक है। उसे धर्म का अंग बताकर निर्दोषों का खून बहाने वाले मानव नहीं दानव हैं। उनका संहार करना हर सभ्य राष्ट्र का दायित्व है।

Essay in hindi
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बेरोजगारी: समस्या और समाधान

  • रोजगार अनिवार्य आवश्यकता
  • बेरोजगारी बढ़ने के कारण
  • बेरोजगारी के दुष्परिणाम
  • बेरोजगारी दूर करने के उपाय।

रोजगार अनिवार्य आवश्यकता – मनुष्य को जीवन-यापन करने के लिए भोजन, वस्त्र इत्यादि अनेक चीजों की आवश्यकता होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसको धन चाहिए। धन का उपार्जन नौकरी, खेती अथवा व्यापार करके ही किया जा सकता है। समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को जीवन-यापन के लिए कोई न कोई आजीविका का साधन या रोजगार अवश्य चाहिए। दुर्भाग्यवश हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या विकट होती जा रही है।

बेरोजगारी बढ़ने के कारण – हमारे देश में बेरोजगारी बढ़ने के अनेक कारण हैं, जो संक्षेप में इस प्रकार हैं-
1. जनसंख्या बढ़ते जाने से बेरोजगारी भी बढ़ती जाती है। जिस गति से जनसंख्या बढ़ती है, उस गति से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ते।
2. हमारा देश कृषि-प्रधान देश है लेकिन उद्योगों को आगे बढ़ाने और कृषि की उपेक्षा करने के कारण लोग खेती छोङने को मजबूर हो रहे हैं।
3. हमारी शिक्षा-व्यवस्था समय के अनुकूल नहीं है। तकनीकी शिक्षा बहुत महँगी है। नौकरी पर ही जोर है। स्वरोजगार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता।
4. हमारी अर्थ-व्यवस्था विदेशों की नकल पर चल रही है। खेती की उपेक्षा हो रही है।
5. विदेशी बाजारों में होने वाली मंदी भी रोजगार को प्रभावित करती है।
6. नवम्बर 2016 में विमुद्रीकरण (नोटबंदी) ने भी बेरोजगारी बढ़ाई है।

⇒बेरोजगारी के दुष्परिणाम – बेरोजगारी बढ़ने के दुष्परिणाम दिन-प्रतिदिन हमारे सामने आ रहे हैं। देश की अधिकांश पूँजी थोङे से लोगों के हाथों में सिमटती जा रही है। अमीर और अमीर तथा गरीब और अधिक गरीब होता जा रहा है। बेरोजगार नौजवान अपराधों की ओर मुङ रहे हैं। आम आदमी में भीतर ही भीतर वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश और असंतोष धधकने लगा है। यह स्थिति कभी भी विस्फोट का रूप ले सकती है। इससे हमारी राष्ट्रीय एकता तथा स्वतंत्रता को भी संकट पैदा हो सकता है।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय – बेरोजगारी बढ़ाने वाले कारणों का निवारण करके ही रोजगारों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। एक या दो बच्चों वाले परिवारों को रोजगार में सुविधा दी जानी चाहिए। शिक्षा प्रणाली सस्ती और रोजगार के योग्य बनाने वाली होनी चाहिए। बङे-बङे उद्योगों पर ही जोर न देकर अतिलघु और कुटीर उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए और उन्हें विशालकाय उद्योगों के मुकाबले सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्था और योजनाएँ अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करने वाली होनी चाहिए।

सरकारी प्रयास – बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी स्तर भी काफी प्रयास किए जा रहे हैं। मनरेगा ने भ्रष्टाचार की समाप्ति, स्वरोजगार के लिए बैंकों से सस्ते ऋण की व्यवस्था, विदेशी पूँजी आकर्षित करने के लिए जी. एस. टी. आदि कर प्रणाली में सुधार, मुद्रा, स्टेण्डअप उद्योग स्थापना में सरकारी अनुमतियों की सुलभता अनेक उपाय सरकार ने किए हैं।
राज्य सरकारों का सहयोग तथा युवाओं का नौकरियों के पीछे भटकना छोङ स्वरोजगारों की ओर मुङना भी बेरोजगारी से मुक्ति दिलाने के लिए आवश्यक है।

बढ़ती जनसंख्या: विकट चुनौती

  • समस्याओं की जङ
  • जनसंख्या वृद्धि के कारण
  • बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम
  • नियंत्रण के उपाय।

समस्याओं की जङ – यदि यह कहा जाय कि बढ़ती जनसंख्या देश की सारी समस्याओं की जङ है तो यह बात बहुत कुछ सच माननी पङेगी।
बाजारों में चलना दुश्वार है, रेलों और बसों में मारामार है।
महँगाई से हाहाकार है, राशन पानी, नौकरी के लिए लम्बी कतार है।
एक खाली जगह के लिए प्रार्थना-पत्र हजारों हजार हैं।
सिर्फ जनसंख्या वृद्धि के कारण सारे विकास कार्यों का बन्टाढार है।
संक्षेप में कहें तो ’सौ बीमार हैं और एक अनार है।’ यह देश लगभग एक सौ इक्कीस करोङ से भी अधिक लोगों का भार ढो रहा है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण – जनसंख्या में वृद्धि के अनेक कारण हैं। धार्मिक अंधविश्वास इसका एक प्रमुख कारण है। संतान को ईश्वर का वरदान मानने वाले लोग इसके लिए जिम्मेदार है। चाहे खिलाने के लिए रोटी, पहनाने के लिए वस्त्र, पढ़ाने को धन और रहने को एक छप्पर न हो लेकिन ये मूढ़ लोग भूखे, अधनंगे, अनपढ़ अनपढ़ बच्चों की कतारें खङी करने में नहीं शरमाते। पुत्र को पुत्री से अधिक महत्त्व देना, गरीबी, बाल-विवाह, असुरक्षा की भावना आदि अन्य कारण भी जनसंख्या को बढ़ाने वाले हैं।

बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम – जनसंख्या की अबाध वृद्धि ने देश में अनेक समस्याएँ खङी कर दी हैं। विकट बेरोजगारी, हाहाकार मचाती महँगाई, गरीबी, अशिक्षा, बढ़ते अपराध, कुपोषण, बढ़ता प्रदूषण आदि जनसंख्या वृद्धि के ही कुपरिणाम हैं। बिजली, पानी, सङक एवं स्वास्थ्य सेवाएँ दुर्लभ होते जा रहे हैं। जनसंख्या का यह विकराल दैत्य सारे विकास कार्यों और प्रगति को हजम कर जाता है। राजनेता भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। इस राष्ट्रीय समस्या पर भी उनका दृष्टिकोण सम्प्रदायवादी है।

नियंत्रण के उपाय – जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस समस्या के हल के लिए विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि होनी चाहिए। परिवार को सीमित रखने के उपायों का समुचित प्रचार होना चाहिए। सरकार की ओर से छोटे परिवार वालों को प्रोत्साहन और विशेष सुविधाएँ मिलनी चाहिए। मनोवैज्ञानिक प्रचार भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है किन्तु वह आजकल टीवी पर दिखाए जाने वाले भौंङे और अश्लील विज्ञापनों जैसा न हो। इसके अतिरिक्त कुछ कठोर उपाय भी अपनाने होंगे। दो बच्चों से अधिक पैदा करने वालों को राशन की सुविधा से वंचित किया जाय। आरक्षण या छूट केवल दो या तीन बच्चों तक ही सीमित रहे। धर्माचार्यों को भी अंधविश्वासों पर प्रहार करते हुए लोगों का सही मार्गदर्शन करना चाहिए।

बढ़ती जनसंख्या पूरी मानव जाति के लिए खतरे की घंटी है। यदि हम इसी तरह आँख बंद करके जनसंख्या बढ़ाते रहे तो हमारी धरती एक दिन भूखी-नंगी, उजाङ और हिंसक मनुष्यों की निवास स्थली बनकर रह जायेगी।

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जल बचाओ: जीवन बचाओ

  • जल संरक्षण की आवश्यकता
  • जल की महत्ता
  • जल संरक्षण का तात्पर्य
  • राजस्थान में जल संरक्षण
  • जल संरक्षण के अन्य उपाय
  • जल संरक्षण सभी का दायित्व।

जल की महत्ता – ’जल’ का एक नाम ’जीवन’ भी है। सचमुच इस भूमंडल पर जल ही जीवन का आधार है। जल नहीं तो जीवन भी नहीं। प्रकृति ने मानव को भूमि, वायु, प्रकाश आदि की भाँति जल भी बङी उदारता से प्रदान किया है लेकिन मनुष्य ने अपनी मूर्खता और स्वार्थ के कारण प्रकृति के इस वरदान को भी दूषित और दुर्लभ बना दिया है।

जल संरक्षण का तात्पर्य – जल संरक्षण का तात्पर्य है – जल का अपव्यय रोकना और वर्षा के समय व्यर्थ बह जाने वाले जल को भविष्य के लिए सुरक्षित करके रखना। बताया जाता है कि धरती का तीन-चैथाई भाग जल से ढँका हुआ है किन्तु पीने योग्य या उपयोगी जल की मात्रा बहुत सीमित है। हम प्रायः धरती के भीतर स्थित जल को उपयोग में लाते हैं। कुएँ, हैण्डपंप, नलकूप, सबमर्सिबिल पम्प आदि से यह जल प्राप्त होता है। धरती के ऊपर नदी, तालाब, झील, झरनों आदि का जल उपयोग में आता है किन्तु प्रदूषण के चलते ये जल के स्रोत अनुपयोगी होते जा रहे हैं। धरती के भीतर स्थित जल की अंधाधुंध खिंचाई के कारण जल का स्तर निरंतर नीचे जा रहा है। यह भविष्य में जल के घोर संकट का संकेत है। अतः जल का संरक्षण करना अनिवार्य हो गया है।

राजस्थान में जल संरक्षण – राजस्थान में धरती के अंदर जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। भू-गर्भ के जल का यहाँ जल-संरक्षण बहुत जरूरी है। संतुलन वर्षा के जल से होता है जो राजस्थान में अत्यन्त कम होती है अतः धरती को पानी वापस नहीं मिल पाता। अब जल-संरक्षण की चेतना जाग्रत हो रही है। लोग परम्परागत रीतियों से जल का भण्डारण कर रहे हैं। सरकार भी इस दिशा में प्रयास कर रही है। खेती में जल की बरबादी रोकने के लिए सिंचाई की फब्बारा पद्धति, पाइप लाइन से आपूर्ति, हौज-पद्धति, खेत में ही तालाब बनाने आदि को अपनाया जा रहा है। मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त श्री राजेन्द्र सिंह का ’तरुण भारत संघ’ तथा अन्य स्वयंसेवी संगठन भी सहयोग कर रहे हैं।

जल संरक्षण के अन्य उपाय – उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त जल संरक्षण के अन्य उपायों का अपनाया जाना भी परम आवश्यक है। शीतल पेय बनाने वाली कम्पनियों तथा बोतल बंद जल बेचने वाले संस्थाओं पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। वर्षा के जल को संग्रह करके रखने के लिए तालाब, पोखर आदि अधिक से अधिक बनाये जाने चाहिए। नगरों में पानी का अपव्यय बहुत हो रहा है। अतः जल के अपव्यय पर कठोर नियंत्रण हो तथा सबमर्सिबिल पम्प आदि के साथ एक रिचार्ज बोरिंग अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

⇒जल संरक्षण सभी का दायित्व – धरती के अंदर जल-स्तर का गिरते जाना आने वाले जल-संकट की चेतावनी है। भूमण्डल का वातावरण गर्म हो रहा है। इससे नदियों के जन्म-स्थल ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि हमारी प्रसिद्ध नदियों का नाम ही मात्र शेष रह जाये। यदि जल संकट इसी तरह बढ़ता गया तो निकट भविष्य में यह संघर्ष का कारण बन सकता है। कुछ विचारकों का कहना है कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह जल पर अधिकार को लेकर होगा। अतः हम सभी का दायित्व है कि जल के संरक्षण में तन, मन, धन से योगदान करें।

दहेज प्रथा: विकट समस्या

  • नारी का स्थान
  • दहेज का वर्तमान स्वरूप
  • दहेज के कुपरिणाम
  • समस्या का समाधान।

नारी का स्थान – भारतीय नारी के सम्मान को सबसे अधिक आघात पहुँचाने वाली समस्या दहेज प्रथा है। भारतीय महापुरुषों ने और धर्मग्रन्थों ने नारी की महिमा में बङे सुन्दर-सुन्दर वाक्य रचे हैं किन्तु दहेज ने इस सभी कीर्तिगानों को उपहास का साधन बना दिया है। आज दहेज के भूखे और पुत्रों की ही कामना करने वाले लोग गर्भ में ही कन्याओं की हत्या करा देने का महापाप कर रहे हैं।

दहेज का वर्तमान रूप – आज दहेज कन्या के पति प्राप्ति की ’फीस’ बन गया है। दहेज के लोभी बहुओं को जीवित जला रहे हैं, फाँसी पर चढ़ा रहे है। समाज के धनी लोगों ने अपनी कन्याओं के विवाह में धन के प्रदर्शन की जो कुत्सित परम्परा चला दी, वह दहेज की आग में भी घी का काम कर रही है। साधारण लोग भी इस मूर्खतापूर्ण होङ में शामिल होकर अपना भविष्य दांव पर लगा रहे हैं।

⇒दहेज के दुःपरिणाम – दहेज के कारण एक साधारण परिवार की कन्या और कन्या के पिता का सम्मानसहित जीना कठिन हो गया है। इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या-कुसुम बलिदान हो चुके हैं। लाखों परिवारों के जीवन की शान्ति को नष्ट करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया है।

समस्या का समाधान – इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या है? इसके दो पक्ष हैं – जनता और शासन। शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता है और कर भी रहा है, किन्तु बिना जन-सहयोग के ये कानून फलदायक नहीं हो सकते। इसलिए महिला वर्ग को और कन्याओं को स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलम्बी बनना होगा। ऐसे वरों का तिरस्कार करना होगा जो उन्हें केवल धन-प्राप्ति का साधन मात्र समझते है।
इसके अतिरिक्त विवाहों में सम्पन्नता के प्रदर्शन तथा अपव्यय पर भी कठोर नियंत्रण आवश्यक है। विवाह में व्यय की एक सीमा निर्धारित की जाए  और उसका कठोरता से पालन कराया जाए।

यद्यपि दहेज विरोधी कानून काफी समय से अस्तित्व में है, किन्तु प्रशासन की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। आयकर विभाग, जो निरंतर नए-नए करों को थोपकर सामान्य जन को त्रस्त करता है, इस ओर क्यों ध्यान नहीं देता ? विवाहों में एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय पर अच्छा-खासा कर लगाया जाय। साधु-संत और धर्मोपदेशक क्यों नहीं इस नारी-विरोधी प्रथा की आलोचना करते हैं? जनता और प्रशासन दोनों को ही इस दिशा में सक्रिय होना चाहिए और इस सामाजिक कलंक को समाप्त कर देना चाहिए।

विज्ञान और मानव जीवन

  • विज्ञान की व्यापकता
  • विभिन्न क्षेत्रों में विज्ञान का योगदान
  • विज्ञान और मानव का आदर्श संबंध
  • विज्ञान और मानव का भविष्य।

विज्ञान की व्यापकता – आज विज्ञान मानव जीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। विज्ञान के आविष्कारों से जीवन की हर गतिविधि प्रभावित हो रही है। विज्ञान ने मनुष्य को अकल्पनीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में विज्ञान का योगदान – विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक आविष्कारों से प्राप्त लाभ और सुविधाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है-
कृषि और खाद्य पदार्थों के क्षेत्र में – विज्ञान ने खेती के कठिन कार्य को नए-नए यंत्रों के द्वारा बहुत सुविधाजनक बना दिया है। मशीनी हल, थे्रशर, कटर, कीटनाशक, रासायनिक खादें, भण्डारण की सुविधा, ंिसंचाई की फब्बारा पद्धति आदि ने कृषि और खाद्य क्षेत्र में अपूर्व प्रगति की है। अधिक उत्पादन को बीजों की नई किस्में आविष्कृत की गई है।

चिकित्सा के क्षेत्र में – चिकित्सा एवं शरीर-विज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान ने क्रान्तिकारी आविष्कार प्रदान किए हैं। एक्सरे, अल्ट्रासाउण्ड, कैट स्केन से रोग निदान सरल और सुनिश्चित हो गया है। शल्यचिकित्सा में जो चमत्कार हुए हैं उनमें अंग प्रत्यारोपण ऐसा ही चमत्कार है। सामान्य अंगों के प्रत्यारोपण के साथ ही गुर्दा, फेफङा, हृदय और मस्तिष्क प्रत्यारोपण जैसे कठिन कार्य भी संभव हो रहे हैं। जीन्स के क्षेत्र में नित्य नयी खोजों ने कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों की चिकित्सा में अपूर्व प्रगति की है। शरीर विज्ञान की दिशा में ’क्लोन’ के विकास ने आदर्श रोग मुक्त मानव की संभावनाएँ बढ़ा दी है।

संवाद-संचार के क्षेत्र में – संवाद-संचार के क्षेत्र में टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, फैक्स, ई-मेल, मोबाइल, फोटो फोन, इण्टरनेट, एप जैसे लाभदायक आविष्कार हो चुके हैं जिनसे हमें  जीवन में अपार सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।

सुरक्षा, ऊर्जा एवं अन्य क्षेत्र – इसी प्रकार सुरक्षा के क्षेत्र में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और सामूहिक विनाश के साधन भी उपलब्ध कराए गए हैं। मिसाइलें, परमाणु बम, रासायनिक और जीवाणुबम आदि को सुरक्षा के साधन कहा जाए या विनाश के, यह एक विचारणीय विषय है। ऊर्जा के अनेकानेक साधनों का आविष्कार हो रहा है।

जल, ताप और अणुशक्ति जैसे परम्परागत साधनों के अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा, जैसे – सौर ऊर्जा, वायु और समुद्री लहरों से प्राप्त ऊर्जा के साधनों का भी विस्तार हो रहा है। पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस आदि से आगे हाइड्रोजन चालित, सौर ऊर्जा चालित इंजिनों का विकास हो रहा है। इनके अतिरिक्त वस्त्र, भवन, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में भी विज्ञान ने मानव जीवन को अनेक सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं।

विज्ञान और मानव का आदर्श संबंध – विज्ञान जीवन को सुखी, उन्नत और सुरक्षित बनाने की युक्तियाँ प्रदान करने वाला ज्ञान है। इसको जीवन का सहायक उपकरण बनाना तो ठीक है लेकिन इस पर पूरी तरह आश्रित हो जाना संकट का कारण हो सकता है। विज्ञान एक अच्छा सेवक है लेकिन बुरा स्वामी है। विज्ञान दुधारी तलवार है इसका प्रयोग अत्यन्त सावधानी से किया जाना चाहिए।

⇒विज्ञान और मानव का भविष्य – विज्ञान और मानव के भावी संबंध कैसे होंगे, इसका निर्णय मनुष्य की बुद्धिमता पर निर्भर है? विज्ञान ने मानव जीवन के विकास के ही नहीं विनाश के साधन भी उपलब्ध करा दिए हैं। अतः विज्ञान मनुष्य के लिए है मनुष्य विज्ञान के लिए नहीं, इस सूत्र वाक्य को ध्यान में रखते हुए विज्ञान को उसकी सीमाओं से बाहर नहीं जाने देना चाहिए।

कम्प्यूटर की बढ़ती उपयोगिता

  • एक महान आविष्कार
  • कम्प्यूटर के बढ़ते चरण
  • भारत में कम्प्यूटर का विस्तार
  • कम्प्यूटर से लाभ-हानि
  • कम्प्यूटर का भविष्य।

एक महान आविष्कार – यदि विज्ञान के सबसे अधिक उपयोगी आविष्कारों की गणना की जाये तो निश्चय ही कम्प्यूटर को उनमें प्रथम स्थान प्राप्त होगा। आज ज्ञान, विज्ञान, साहित्य, व्यवसाय, सुरक्षा, ज्योतिष, शिक्षा, खेल आदि कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ कम्प्यूटर ने अपनी उपयोगिता प्रमाणित न की हो। कम्प्यूटर के बिना सामाजिक-जीवन की कल्पना भी कठिन प्रतीत होती है।

कम्प्यूटर के बढ़ते चरण – आज जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रवेश होता जा रहा है। शिक्षा, परीक्षा, अनुसंधान, व्यवसाय, अंतरिक्ष-अभियान, उद्योग-संचालन, शस्त्र-परीक्षण, युद्ध-संचालन आदि विविध क्षेत्रों में कम्प्यूटर की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गयी है। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर घर बैठे सारी सूचनाएँ उपलब्ध करा रहा है। वैज्ञानिक कम्प्यूटर को निरंतर अधिक उपयोगी और सक्षम बनाने में जुटे हुए हैं।

भारत में कम्प्यूटर का विस्तार – हमारे देश में भी कम्प्यूटर का प्रसार बङी तेजी से हो रहा है। बैंक, व्यवसाय, विद्यालय, कार्यालय सभी स्थानों पर कम्प्यूटर का प्रवेश निरंतर हो रहा है। कम्प्यूटर पर आधारित व्यवसाय देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। देश से कम्प्यूटर साफ्टवेयर का निर्यात और आउटसोर्सिंग लाखांे लोगों को रोजगार प्राप्त करा रहे हैं।

कम्प्यूटर के लाभ – कम्प्यूटर विज्ञान का एक अद्भुत चमत्कार है। इसने मानव-समाज की जीवन-शैली को ही बदल डाला है। कम्प्यूटर से मनुष्य की कार्य-क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। सैकङों व्यक्तियों का कार्य अकेला कम्प्यूटर कर देता है। अब कम्प्यूटर की स्क्रीन पर बिना जोखिम के घातक अस्त्रों का परीक्षण और उसका परिणाम देखा जा सकता है। आज जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर एक आवश्यक अंग बन गया है।

⇒कम्प्यूटर के हानियाँ – कम्प्यूटर से जहाँ अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं, वहीं अनेक हानियाँ भी सामने आयी हैं। अकेले ही सैकङों का कार्य करने की क्षमता के कारण कम्प्यूटर ने बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न की है। कम्प्यूटर के प्रयोग से मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमताएँ क्षीण होती जा रही हैं। निरंतर कम्प्यूटर पर काम करने वाले व्यक्ति की आँखों पर बुरा प्रभाव पङता है और सिरदर्द तथा मानसिक तनाव की समस्याएँ भी उत्पन्न हो गयी हैं। कम्प्यूटर खेलों ने बच्चों और युवाओं को अध्ययन से विमुख और एकांतजीवी बना दिया है।

कम्प्यूटर का भविष्य – कम्प्यूटर ने मनुष्य के हाथों में एक ऐसी क्षमता दे दी है जो प्रगति और सुख-सुविधा के साथ ही अनेक अमंगलों की आशंका भी उत्पन्न कर रही है। गलत लोगों के द्वारा धोखाधङी और आतंकवादी घटनाओं को भी कम्प्यूटर द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। फिर भी कम्प्यूटर का हमारे दैनिक जीवन में अधिकाधिक प्रवेश होते जाना अनिवार्य प्रतीत होता है। हर पेशे और व्यवसाय के अलावा अब तो हर गृहणी के लिए भी कम्प्यूटर-शिक्षित होना आवश्यक बनता जा रहा है।

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इंटरनेट: लाभ और हानि

  • इंटरनेट का परिचय और व्यापकता
  • कार्यविधि
  • भारत में इंटरनेट का प्रसार
  • इंटरनेट से लाभ
  • इंटरनेट से हानि
  • इंटरनेट का भविष्य।

इंटरनेट का परिचय और व्यापकता – इंटरनेट का सामान्य अर्थ है – सूचना-भण्डारों को सर्वसुलभ बनाने वाली तकनीक। आज इंटरनेट दूर-संचार का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और आवश्यक अंग बन चुका है। कम्प्यूटर तथा इंटरनेट का चोली-दामन का साथ है। कम्प्यूटर के प्रसार के साथ-साथ इंटरनेट का भी विस्तार होता जा रहा है। घर बैठे ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी सूचना-भण्डार से जुङ जाना इंटरनेट ने ही सम्भव बनाया है।

⇒इंटरनेट की कार्यविधि – सारे संसार में स्थित टेलीफोन प्रणाली अथवा उपग्रह संचार-व्यवस्था की सहायता से एक-दूसरे से जुङे कम्प्यूटरों का नेटवर्क ही इंटरनेट है। इस नेटवर्क से अपने कम्प्यूटर को सम्बद्ध करके कोई भी व्यक्ति नेटवर्क से जुङे अन्य कम्प्यूटरों में संग्रहित सामग्री से परिचित हो सकता है। इस उपलब्ध सामग्री को संक्षेप में w.w.w. (वर्ल्ड वाइड वेव) कहा जाता है।

भारत में इंटरनेट का प्रसार – भारत में इंटरनेट का निरंतर प्रसार हो रहा है। बहुउपयोगी होने के कारण हर क्षेत्र के लोग इससे जुङ रहे हैं। शिक्षा-संस्थान, औद्योगिक-प्रतिष्ठान, प्रशासनिक-विभाग, मीडिया, मनोरंजन-संस्थाएँ, संग्रहालय,
पुस्तकालय सभी धीरे-धीरे इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इंटरनेट से जुङे व्यक्तियों एवं संस्थाओं की संख्या करोङों तक पहुँच चुकी है।

इंटरनेट से लाभ – इंटरनेट की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इंटरनेट कनेक्शन धारक व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी विषय पर तत्काल इच्छित जानकारी प्राप्त कर सकता है। छात्र, शिक्षक, वैज्ञानिक, व्यापारी, खिलाङी, मनोरंजन-इच्छुक तथा सरकारी विभाग इंटरनेट से अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं। युवा वर्ग के लिए तो इंटरनेट ने ज्ञान और मनोरंजन के असंख्य द्वार खोल दिये हैं।

ई-मेल, टेली-बैंकिंग, हवाई और रेल-यात्रा के लिए अग्रिम टिकट-खरीद, विभिन्न बिलों  का भुगतान, ई-मार्केटिंग इत्यादि नई-नई सुविधाएँ इंटरनेट द्वारा उपलब्ध करायी जा रही हैं। इंटरनेट द्वारा राजनेताओं और सरकारों के कुटिल कर्मों और दोहरे चरित्रों का पर्दाफाश किया जा रहा है। ’विकलीक्स’ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। हमारे देश की कई जनहितकारी योजनाएँ इंटरनेट द्वारा उपलब्धता सुविधाओं के आधार पर चल रही हैं।

⇒इंटरनेट से हानि – आज नगरों में स्थान-स्थान पर इंटरनेट ढाबे (साइबर कैफे) खुलते जा रहे है। इनमें आने वाले युवा ज्ञानवर्धन के लिए कम, अश्लील मनोरंजन के लिए अधिक आते हैं। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर में संचित गोपनीय सामग्री सुरक्षित नहीं रह गयी है। वायरस का प्रवेश कराके उसे नष्ट किया जा सकता है। विरोधी देश एक-दूसरे की गोपनीय सूचनाएँ चुरा रहे हैं। इंटरनेट ने साइबर अपराधों को जन्म दिया है। इंटरनेट से अब व्यक्ति की निजता भी असुरक्षित हो गई है।

इंटरनेट का भविष्य – इंटरनेट का सदुपयोग मानव-समाज के लिए वरदान बन सकता है। इंटरनेट सारे विश्व को एक ग्राम के समान छोटा बना रहा है। लोगों को पास-पास ला रहा है। देशों की सीमाओं को ढहा रहा है। इंटरनेट के साथ अनेक उपयोगी संभावनाएँ जुङी हैं। भविष्य में एक मर्यादित और नियंत्रित इंटरनेट व्यवस्था विश्व में राजनीतिक अनुशासन, विश्वव्यापी जनमत के निर्माण तथा एक अधिक सुलझे हुए मानव-समाज की संरचन में सहायक हो सकती है।

दूरदर्शन: वरदान या अभिशाप

  • दूरदर्शन की व्यापकता
  • दूरदर्शन एक सशक्त माध्यम
  • दूरदर्शन का प्रभाव
  • दूरदर्शन वरदान या अभिशाप
  • दूरदर्शन का सदुपयोग।

दूरदर्शन की व्यापकता – दूरदर्शन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। घर-घर में इस ’बुद्धू बक्से’ ने अपनी पैठ बना ली है। अब यह केवल मनोरंजन या समाचार का माध्यम मात्र नहीं रह गया है बल्कि हमारे जीवन के हर क्षेत्र और हर पक्ष में अपनी उपस्थिति और उपयोगिता का प्रमाण दे रहा है। इसकी बढ़ती उपयोगिता और व्यापकता इसे अधिकाधिक लोकप्रिय बनाती जा रही है।

⇒दूरदर्शन एक सशक्त माध्यम – प्रभाव के मामले में दूरदर्शन ने समाचार-पत्र, रेडियो, सिनेमा आदि सभी को पीछे छोङ दिया है। इसमें श्रव्य (सुनने) और दृश्य (देखने) दोनों माध्यमों का आनंद लिया जा सकता है, वह भी घर बैठे। आज शिक्षा, मनोरंजन, व्यवसाय, राज-काज, सामाजिक-क्षेत्र, सुरक्षा एवं कला आदि सभी दूरदर्शन से लाभान्वित हो रहे हैं।

दूरदर्शन का प्रभाव – दूरदर्शन से हमारे जीवन का कोई क्षेत्र प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका है। मनोरंजन का तो यह भण्डार है। युवाओं की भाषा, वेशभूषा, फैशन, संस्कृति, रुचि आदि सब दूरदर्शन से प्रभावित हो रहे हैं। दूरदर्शन ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति-सी ला दी है। हर विषय को दूरदर्शन ही सहायता से अधिक स्पष्ट और ज्ञानवर्धक बनाया जा सकता है। व्यापार का आधार विज्ञापन है। दूरदर्शन नए-नए उत्पादों का परिचय कराता है।

घर बैठे अपनी रुचि की वस्तुएँ खरीदना दूरदर्शन से ही संभव है। सारी राजनैतिक गतिविधियाँ, सभा, रैली, आदि को दूरदर्शन का सहारा चाहिए। घर बैठे तीर्थ-यात्राओं का आनंद लेना, प्रवचन सुनना, नृत्य, संगीत, शिल्प तथा साहित्यिक आयोजनों को जन-जन तक पहुँचाना, अपराध-नियंत्रण, शान्ति-व्यवस्था में सहायता, दूरदर्शन ने ही सम्भव बनाया है। इस प्रकार हमारे सामाजिक-जीवन के हर क्षेत्र पर आज दूरदर्शन का व्यापक और गहरा प्रभाव है।

⇒दूरदर्शन वरदान या अभिशाप – लगता है दूरदर्शन समाज के लिए बहुत बङा वरदान है किन्तु इससे पङने वाले कुप्रभावों को भी नहीं भुलाया जा सकता। दूरदर्शन ने देश के युवा-वर्ग को सबसे अधिक कुप्रभावित किया है। युवक-युवतियों की वेश-भूषा, खान-पान, हाव-भाव, व्यवहार, स्वच्छन्दता, चरित्र की शिथिलता सभी दूरदर्शन से प्रभावित हैं। छात्रों का बहुत सारा समय दूरदर्शन की भेंट चढ़ रहा है। विदेशी-संस्कृति और आचार-विचार का अन्धानुकरण हमारे राष्ट्रीय-चरित्र को छिन्न-भिन्न कर रहा है।

आज तो दूरदर्शन, दर्शकों के मानसिक और आर्थिक शोषण का साधन भी बन गया है। अपनी दर्शक संख्या बढ़ाने की लालसा में दूरदर्शन चैनल सनसनीखेज खबरों की तलाश में रहते हैं। भ्रामक और अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम दिखाए जाते हैं।

दूरदर्शन का सदुपयोग – दूरदर्शन के प्रायोजित चैनल घोर व्यावसायिक दृष्टि से संचालित हो रहे हैं। इनको अपने सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्वों की चिंता नहीं रह गई है। अब समय आ गया है कि दूरदर्शन के कार्यक्रमों के लिए एक आचार-संहिता बनाई जाए। दूरदर्शन को अपनी सीमाएँ और मर्यादाएँ सुनिश्चित करनी चाहिए। दूरदर्शन का सदुपयोग होना चाहिए। उसकी स्वच्छन्दता पर नियंत्रण लगना चाहिए।

जनतंत्र और मीडिया

प्रस्तावना – जनतंत्र में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी तथा चैथा स्तम्भ माना जाता है। विधायिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका द्वारा हुई चूक को सामने लाकर वह लोकतंत्र की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। मीडिया के कारण ही अनेक घोटाले उजागर होते हैं तथा जनता के अधिकारों की रक्षा होती है।

मीडिया का स्वरूप – मीडिया पत्रकारिता को ही कहते हैं। यद्यपि पत्रकारिता शब्द समाचार-पत्रों से सम्बन्धित है किन्तु आज उसका व्यापक रूप मीडिया ही है। मीडिया के दो रूप हैं – एक मुद्रित या प्रिन्ट मीडिया तथा दूसरा, इलैक्ट्राॅनिक मीडिया। मुद्रित मीडिया के अन्तर्गत दैनिक समाचार-पत्र, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकायें आदि आते हैं। इनमें समाचारों के अतिरिक्त विभिन्न घटनाओं और सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक इत्यादि विषयों के बारे में प्रकाशित किया जाता है। टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि इलैक्ट्राॅनिक मीडिया के अन्तर्गत आते हैं। आज इलैक्ट्राॅनिक मीडिया का प्रभाव तथा प्रसार बढ़ने के कारण मुद्रित पत्रकारिता पिछङ गई है किन्तु उसकी आवश्यकता कम नहीं हुई है।

समाचार-पत्रों का विकास – समाचार-पत्र शब्द आज पूरी तरह लाक्षणिक हो गया है। अब समाचार-पत्र केवल समाचारों से पूर्ण पत्र नहीं रह गया है, बल्कि यह साहित्य, राजनीति, धर्म, विज्ञान आदि विविध विधाओं को भी अपनी कलेवर-सीमा में सँभाले चल रहा है। किन्तु वर्तमान स्वरूप में आते-आते समाचार-पत्र ने एक लम्बी यात्रा तय की है। भारत में अंग्रेजी शासन के साथ समाचार-पत्र का आगमन हुआ। इसके विकास और प्रसार में ईसाई मिशनरियों, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर और राजा राममोहन राय का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा।

प्रचलित पत्र-पत्रिकाएँ तथा चैनल – देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात् समाचार-पत्रों का तीव्रता से विकास हुआ और आज अनेक अखिल भारतीय एवं क्षेत्रीय समाचार-पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। इनमें हिन्दी भाषा में प्रकाशित-नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, जनसत्ता, पंजाब केसरी, नवजीवन, जनयुग, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, भारत, आज, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर आदि हैं तथा अँग्रेजी भाषा में प्रकाशित – टाइम्स आॅफ इण्डिया, इण्डियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स, नाईर्न इण्डिया, स्टेट्समैन आदि हैं। इनके अतिरिक्त अनेक साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हो रही हैं।

इलेक्ट्रोनिक मीडिया – मुद्रित मीडिया के साथ ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया (रेडियो, दूरदर्शन के न्यूज चैनल) का भी देश में बङी तेजी से प्रसार हुआ है। टी. वी. पर चैनलों की बाढ़ आई हुई जो चैबीस घंटे दर्शकों को समाचारों के साथ-साथ अनेक रोचक सामग्रियाँ परोसते रहते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी भी आजकल दृश्य मीडिया या इलेक्ट्राॅनिक मीडिया का पूरा सहयोग कर रही है।

मीडिया जनतंत्र का प्रहरी – मीडिया एक सूचना प्रदायक और मनोरंजन का उपकरण मात्र नहीं है। जनतंत्र की सुरक्षा और विकास में भी इसका बङा योगदान रहा है। आजकल मीडिया जनमत के निर्माण, जनतंत्र को सही दिशा देना, जनतंत्रीय संस्थाओं के गौरव की रक्षा करना, निर्वाचन प्रणाली की विवेचना, चुनावों के समय जनता को नव्यतम सूचनाओं से अवगत कराना आदि महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अदा कर रहा है।

मीडिया के दायित्व – एक सशक्त माध्यम होने के कारण मीडिया के कुछ दायित्व भी बनते हैं, से आत्मनियंत्रण और आत्मानुशासन की प्रणाली विकसित करनी चाहिए। पाठकों और दर्शकों की संख्या बढ़ाने के लिए, सनसनीखेज खबरों, कठिन भाव-भंगिमाओं और विवादों से बचते हुए जनतंत्र को प्रौढ़ और स्थायी बनाने में अपनी महती भूमिका अदा करनी चाहिए।
आशा है, भारतीय मीडिया जनतंत्र का सच्चा प्रहरी बनकर जनगणना का सच्चा मित्र बनेगा।

वृक्ष हमारे सच्चे मित्र

  • वृक्षों का महत्त्व
  • वृक्षों के लाभ
  • वृक्षों का विकास
  • हमारा दायित्व।

वृक्षों का महत्त्व – वृ़क्ष और मानव दोनों ही प्रकृति माता की संतान हैं। वृक्ष अग्रज हैं जो उन पर निर्भर मानव उनके अनुज हैं। हमारे जीवन में वृक्षों का सदा से महत्त्व रहा है। वृक्ष हमारे सच्चे मित्र है। सुख-दुख के साथी हैं। इनका हृदय बङा उदार है। ये हमें देते ही देते हैं। हमसे बदले में केवल मित्रता की आशा रखते हैं। ये पर्यावरण के संरक्षक हैं। वृक्षों के अभाव में सुखी-समृद्ध जीवन की कल्पना असंभव है।

वृक्षों के लाभ – वृक्षों का सामूहिक नाम वन या जंगल है। प्रकृति ने मनुष्य को अपार वन-संपदा की अमूल्य भेंट दी है। हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में वृक्षों की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है। वृक्षांे से हमें अनेक लाभ हैं।
वृक्ष सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों का सृजन करते हैं। मन की प्रसन्नता और शान्ति प्रदान करते हैं।
वृक्षों से हमें अनेक लाभदायक और आवश्यक पदार्थ प्राप्त होते है। ईंधन, चारा, फल, फूल, औषधियाँ आदि ऐसी ही वस्तुएँ हैं।
अनेक उद्योग वृक्षों पर ही आश्रित हैं। फर्नीचर उद्योग, भवन निर्माण उद्योग, खाद्य पदार्थ-तेल मसाले, अनाज आदि से संबंधित उद्योग, औषधि उद्योग वृक्षों पर निर्भर हैं।
वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। बाढ़ों को रोकते हैं। वर्षा को आकर्षित करते हैं। उपयोगी मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं।

वृक्षों का विकास – ऐसे निष्कपट, परोपकारी सच्चे मित्रों का विकास करना, हमारा नैतिक ही नहीं लाभप्रद दायित्व भी है। यद्यपि प्रकृति वृक्षों का स्वयं ही विकास करती है। किन्तु आज के उद्योग प्रधान और सुख-साधनों पर केन्द्रित मानव-जीवन ने वृक्षों के विनाश में ही अधिक योगदान किया है। मानव-समाज का विकास वृक्षों के विकास का शत्रु सा बन गया है। अतः हमें वृक्षों के विकास और संरक्षण पर अधिक ध्यान देना अपरिहार्य हो गया है।
वृक्षों का विकास अधिकाधिक वृक्षारोपण और वनों, उपवनों, पार्कों आदि के संरक्षण से ही संभव है। नई-नई योजनाओं में वृक्षों की अविवेकपूर्ण और अंधाधुंध कटाई पर नियंत्रण भी परम आवश्यक है। वृक्षारोपण और वृक्ष-संरक्षण को एक अभियान के रूप में चलाना शासन का दायित्व है।

हमारा दायित्व – यद्यपि शासन और प्रशासन के स्तर से वृक्ष (हरियाली) संरक्षण की दिशा में अधिक सक्रियता की आशा है तथापि हमारा अर्थात् समाज के प्रत्येक वर्ग का, यह दायित्व है कि वह अपनी-अपनी क्षमता और संसाधनों से वृक्ष मित्रों की सुरक्षा में तत्पर हों।
वृक्षों को हानि पहुँचाने वालों  की सूचना छण्ळण्ज्ण् (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) को दें।
राष्ट्रीय, धार्मिक तथा सामाजिक पर्वों, उत्सवों, दिवसों आदि पर वृक्षारोपण कराए जाएँ।
छात्र-छात्राएँ वृक्षारोपण में विशेष रुचि लें।

गृहणियाँ घरों में गृहवाटिकाएँ (किचिन गार्डन) लगाने में रुचि लें। विवाह में गोदान नहीं, वृक्ष-दान की परंपरा चलाएँ। समाज के प्रतिष्ठित और प्रभावशाली महाशय विभिन्न आयोजनों में तथा मीडिया के माध्यम से वृक्षों की सुरक्षा और आरोपण की प्रेरणा दें।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

  • प्रस्तावना
  • जीवन-वृत्त
  • देश-सेवा
  • विचारधारा
  • उपसंहार।

प्रस्तावना – जब-जब मानवता हिंसा, स्पद्र्धा और शोषण से त्रस्त होती है, अहंकारी शासकों के क्रूर दमन से कराहने लगती है तो परमपिता की करुणा कभी कृष्ण, कभी राम, कभी गौतम, और कभी गांधी बनकर इस धरती पर अवतरित होती है और घायल मानवता के घावों को अपनी स्नेह-संजीवनी का मरहम लगाती है।

जीवन-वृत्त – मेरे आदर्श जननायक महामानव गांधी ने 2 अक्टूबर, 1869 ई. को जन्म लेकर गुजरात में पोरबंदर, काठियावाङ की धरती को पवित्र किया था। ऐसा लगता था मानो सृष्टि सरोवर में मानवता का शतदल कमल खिल उठा हो, मानो पीङित, अपेक्षित, दासताबद्ध जन-जन की निराशा आशा का सम्बल पा गयी हो।

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी है। इनके पिता करमचन्द गांधी एक रियासत के दीवान थे। गाँधीजी ने प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। तत्पश्चात् वे पाठशाला में प्रविष्ट हुए और हाईस्कूल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् वे इंग्लैण्ड गये। वहाँ से बैरिस्ट्री की शिक्षा प्राप्त कर वे भारत लौट आये। भारत में आकर गाँधीजी ने बैरिस्टर के रूप में जीवन आरम्भ किया। इसी सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पङा। वहाँ पर भारतीयों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों के साथ होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। गांधीजी के सतत् प्रयत्नों के कारण दक्षिण अफ्रीका के मजदूरों और भारतीयों की दशा में बहुत सुधार हुआ।

देश-सेवा – दक्षिण अफ्रीका में सफलता पाकर गांधीजी ने स्वदेश-सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया। उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन से पीङित भारतीय जनता के उद्धार का व्रत ग्रहण किया। यद्यपि भारत के अनेक स्वदेशप्रेमी इसी प्रयास में लगे हुए थे, किन्तु गांधीजी एक अपूर्व संघर्ष-पद्धति को लेकर स्वतन्त्रता-संग्राम में अवतरित हुए-
ले ढाल अहिंसा की कर में, तलवार प्रेम की लिए हुए।
आये वह सत्य समर करने, ललकार क्षेम की लिए हुए।।

इस अद्भुत रणपद्धति के सम्मुख हिंसा और असत्य की शक्तियाँ नहीं टिक सकीं। अंग्रेजी शासन का सारा बल गांधीजी के विरुद्ध सक्रिय हो गया। दमन-चक्र आरम्भ हो गया। जेलें भर गयीं, किन्तु जनता ने अपनी शक्ति को और अपने मार्गदर्शक को पहचान लिया था। तभी तो –
चल पङे जिधर ’दो डग’ मग में, चल पङे कोटि पग उसी ओर।
उठ गयी जिधर भी ’एक दृष्टि’ उठ गये कोटि दृग उसी ओर।।
गांधीजी द्वारा प्रदर्शित यह मार्ग देश को स्वतन्त्रता की मंजिल तक ले पहुँचा। जिसके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, वह ब्रिटिश सत्ता गांधी के चरणों में नत हो गई। गांधीजी के नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता का अमूल्य उपहार प्राप्त किया।

विचारधारा – गांधीजी ने यद्यपि कोई सर्वथा नयी विचारधारा संसार के सम्मुख प्रस्तुत नहीं की, किन्तु एक महान विचारधारा को आचरण में परिणत करके दिखाया। सत्य, अहिंसा और प्रेम भारतीय संस्कृति की सनातन विचार-पद्धतियाँ हैं। शास्त्रों में, धर्मग्रन्थों में और उपदेशों में उनकी महानता बहुत गायी गयी थी, किन्तु गांधीजी ने इनका प्रयोग जीवन में करके दिखाया।
महाकवि पंत ने गांधीजी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है-

जङता, हिंसा, स्पद्र्धा में भर चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया, तुमने मानवता का सरोज।
गांधीजी का मनुष्य की महानता में विश्वास था। वह अपराधी के नहीं, अपराध के विरोधी थे। हृदय-परिवर्तन द्वारा समाज का सुधार करने में उनका पूर्ण विश्वास था।
वे छुआछूत, ऊँच-नीच, धार्मिक भेदभाव और हर प्रकार के शोषण के विरोधी थे। हरिजनों के उद्धार में उनकी विशेष रुचि थी।

उपसंहार – 30 जनवरी, 1948 ई. को प्रार्थना सभा में प्रवचनरत, गांधीजी के वक्ष में एक पागल ने गोलियाँ उतार दीं। लगा कि गोलियाँ गांधीजी के नहीं अपितु मानवता के ही वक्ष में मारी गई हैं। इस प्रकार संसार के दीन-दुःखी और शोषित मानवों की आशाओं का दीपक बुझ गया। भले ही आज गांधीजी तन से उपस्थित नहीं हैं, किन्तु वह मुझ जैसे कोटि-कोटि भारतवासियों के मन में विराज रहे हैं। फूल झर गया, किन्तु उसकी संजीवनी सुगन्ध अब भी मानवता की साँसों को महका रही है।

जीवन में अनुशासन का महत्त्व

  •  अनुशासन का महत्त्व
  • आज के विद्यार्थी
  • विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता
  • अनुशासनहीनता समाप्ति के उपाय
  • उपसंहार।

अनुशासन का महत्त्व –

अनुशासन का महत्त्व जीवन की सभी अवस्थाओं में है, परंतु विद्यार्थी मानव जीवन का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण भाग है, जिसे हम भावी जीवन की भूमिका कह सकते हैं। जैसे नई भूमि में जो बीज बो दिए जाते हैं, उन्हीं के अनुकूल पेङ-पौधे उगते हैं। उसी प्रकार विद्यार्थी जीवन में जो संस्कार ग्रहण किये जाते हैं, भावी जीवन मेें वही अच्छी आदतों के रूप में हमारे सामने आते हैं।

आज के विद्यार्थी –

आज के विद्यार्थी प्राचीन काल के भारतीय शिष्यों के बिल्कुल विपरीत हैं। वे आज्ञाकारी, श्रद्धालु और अनुशासनमय नहीं हैं। वे प्रायः स्वच्छंद, अहंमन्य और निरकुंश होते जा रहे हैं। विगत वर्षों में विद्यार्थियों के आंदोलन ने इतना उग्र रूप धारण किया है कि कई बार तो पुलिस को हस्तक्षेप करना पङा। अशिक्षित मजदूरों के हिंसात्मक कार्यों पर किसी को आश्चर्य नहीं हो सकता, किंतु विद्यार्थियों से ऐसे अभद्र व्यवहार की आशा नहीं की जा सकती। ऐसी निरंकुशता छात्र जीवन का अभिशाप है।

विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता –

तदनुसार विद्यार्थियों में अनेक प्रकार की अनुशासनहीनता पाई जाती है- विद्यार्थियों में अधिकारियों के प्रति उचित सम्मान नहीं देखा जाता। वे बङों की आज्ञा मानने में ढील करते हैं। बहुधा उनका व्यवहार उत्तेजनापूर्ण एवं दुर्दमनीय हो जाता है। वे विद्यालय की सम्पत्ति को अपनी न समझकर उसे हानि पहुँचाने की चेष्टा करते हैं। विद्यार्थियों के भाषणों से अशिष्टता टपकती है और गालियों का अभ्यास दिनों-दिन अधिक होता जा रहा है।

अनुशासनहीनता समाप्ति के उपाय –

विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता समाप्त कराने के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं। अनुशासन का मूल आधार प्रेम और सहानुभूति होनी चाहिए। अध्यापक छात्रों के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करें और छात्र अध्यापकों के प्रति आदर दृष्टि रखे। अध्यापक विद्यार्थियों की कठिनाइयां दूर करने में सहायता दे और विद्यार्थी अध्यापकों के इस प्रयत्न में अपना पूर्ण सहयोग दे। दोनों पक्षों की सद्भावना और प्रयत्न से ही अनुकूल वातावरण की सृष्टि हो सकती है। छात्रों को अपने गुरुओं पर विश्वास हो और गुरुओं को अपने छात्रों पर। दोनों में आदर्श और कत्र्तव्य की भावना होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि शिक्षा के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए प्रशासन संबंधी त्रुटियों को दूर करे। योग्य अध्यापकों की नियुक्ति की जाए, उनके कार्य का भार हल्का करके उन्हें अवसर दिया जाए कि वे विद्यार्थियों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित कर सकें।

उपसंहार –

छात्र-छात्राएँ स्वभाव से अनुकरण-प्रिय होते हैं। वे विद्यालय में केवल अपने साथियों का ही अनुकरण नहीं करते, अपितु अपने शिक्षकों का भी अनुकरण करते हैं। अनुभव से यह देखा गया है कि शिक्षकों की अनेक बातें चाहने पर भी विद्यार्थियों में अपने आप ही आ जाती हैं, इसलिए अनुशासन की इस जटिल समस्या को इस प्रकार हल किया जा सकता है, जिससे विद्यार्थी शिक्षकों की प्रेरणा तथा वातावरण की पवित्रता से सद्व्यवहार के प्रति अग्रसर हों। शिक्षालयों में ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाए जिससे विद्यार्थी प्रतिदिन के जीवन में अपने आप ही अनुशासनबद्ध होता चला जाए।

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