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कैमरे में बन्द अपाहिज || व्याख्या सहित || रघुवीर सहाय

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:30th Apr, 2020| Comments: 0

आज के आर्टिकल में रघुवीर सहाय की चर्चित कविता कैमरे में बन्द अपाहिज(kaimare mein band apaahij) की व्याख्या को समझाया गया है 

कैमरे में बन्द अपाहिज(रघुवीर सहाय)

Table of Contents

  • कैमरे में बन्द अपाहिज(रघुवीर सहाय)
    • रचना परिचय-
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-

रचना परिचय-

रघुवीर सहाय की ’कैमरे में बन्द अपाहिज’ कविता उनके ’लोग भूल गये हैं’ काव्य-संग्रह से संकलित है। इसमें शारीरिक चुनौती को झेलते व्यक्ति से टेलीविजन-कैमरे के सामने किस तरह से सवाल पूछे जाएँगे और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उसमें कैसे भंगिमा की अपेक्षा की जाएगी, इसका सपाट तरीके से बयान करते हुए एक तरह से पीङा के साथ दृश्य-संचार माध्यम से सम्बन्ध को निरूपित किया गया है।

वस्तुतः किसी की पीङा को बहुत बङे दर्शक वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीङा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए; परन्तु दूरदर्शनकर्मी वैसी संवेदनशीलता नहीं रखते है। वे तो उस व्यक्ति के प्रति कठोरता का व्यवहार करते हैं तथा अपने कारोबारी स्वार्थ को ऊपर रखकर कार्यक्रम को आकर्षक एवं बिकाऊ बनाने का प्रयास करते रहते है। दूरदर्शन के सामने आकर जो व्यक्ति अपना दुःख-दर्द और यातना-वेदना को बेचना चाहता है, वह ऐसा अपाहिज बताया गाया है, जो लोगों की करुणा का पात्र बनता है। प्रस्तुत कविता में मीडिया-माध्यम की ऐसी व्यावसायिकता एवं संवेदनशीलता का आक्षेप किया गया है।


·हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेेंगे तो आप क्या अपाहिज है ?
तो आप क्यों अपाहिज है ?
आपका अपाहिजपन तो दुःख देता होगा
देता है ?
(कैमरा दिखाओ इसे बङा-बङा)
हाँ तो बताइए आपका दुःख क्या है
जल्दी बताइए वह दुःख बताइए।
बात नहीं पाएगा।

व्याख्या-

कवि वर्णन करते हुए बताता है कि दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचनालन स्वयं को समर्थ और शक्तिमान मानकर चलते है। वे अपनी बात को सुदूर तक प्रसारित करने में समर्थ है, इस कारण अहंभाव रहता है और दूसरे को कमजोर मानते है। दूरदर्शन का कार्यक्रम संचालक कहता है कि हम स्टूडियो के बन्द कमरे में एक कमजोर एवं व्यथित व्यक्ति को बुलाएँगे। उस अपंग व्यक्ति को स्टूडियों के कैमरे के सामने लाकर हम उससे पूछेंगे कि क्या आप अपाहिज है ? जबकि वह व्यक्ति स्पष्टतया अपंग दिखाई दे रहा है तो भी पूछेंगे कि आप अपंग क्यों है ? उससे ऐसा पूछना सर्वथा अनुचित है।

अपाहिज इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएगा तब उसके दुःख को कुरेदा जाएगा और उससे अगला प्रश्न पूछा जाएगा कि आपको अपना अपाहिज होना काफी दुःख देता होगा अर्थात् अपंगता का सुख तो कभी नहीं मिलता होगा ? इस तरह अपाहिज जब कुछ नहीं कह पाएगा, तो उसे अपाहिज होने से सचमुच दुःखी होने का समर्थन किया जाएगा।

कार्यक्रम-संचालक द्वारा इस तरह पूछने के साथ कैमरामैन को निर्देश दिया जाएगा कि इसके चेहरे पर और अधिक बङा करके दिखाओ तो कैमरामैन उसके चेहरे को कैमरे के सामने लाकर उसकी अपंगता को स्पष्ट दिखाएगा। फिर संचालक उत्तेजित होकर अपंग व्यक्ति से पूछेगा कि जल्दी से बताइए, आपका दुःख क्या है ? आप अपने दुःख के बारे में सभी दर्शकों को बताइए; परन्तु वह व्यक्ति अपने दुःख के बारे में कुछ नहीं बताएगा। संचालक को अपंग व्यक्ति की पीङा के प्रति कोई संवेदना नहीं है। वह जानता है कि अपंग व्यक्ति ऐसे प्रश्न पर चुप ही रहेगा। इसलिए वह कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए ऐसे प्रश्न करना अपना कत्र्तव्य मानता है।

सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ?)
सोचिए
बताइए
थोङी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे ?)
आप जानते है कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते है आप भी उसके रो पङने का
करते हैं ?
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)

व्याख्या-

कवि के वर्णनानुसार दूरदर्शन कार्यक्रम का संचालन एक अपंग व्यक्ति का साक्षात्कार लेते समय उससे अटपटे प्रश्न करता है। वह उससे पूछता है कि आप सोचकर बताइए कि आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है अर्थात् अपाहिज होने से आपको कितना दुःख होता है ? यदि वह अपंग नहीं बता पाता है तो संचालक उसे संकेत करके बताता है, बेहूदे इशारे करते हुए कहता है कि आपको इस तरह का  दर्द  होता  है ?

थोङा कोशिश कीजिए और अपनी पीङा से लोगों को परिचित कराइए। आपके सामने लोगों को अपनी पीङा बताने का यह अच्छा अवसर है, दूरदर्शन पर सारे लोग आपको देख रहे है। अपना दर्द नहीं बताने से आप यह मौका खो देंगे। आपको ऐसा मौका फिर नहीं मिल सकेगा।
कार्यक्रम का संचालक कहता है कि आपको पता है कि हमें अपने इस कार्यक्रम को रोचक बनाना है। इसके लिए यह जरूरी है कि अपाहिज व्यक्ति अपना दुःख-दर्द स्पष्टतया बता दे। इसलिए वे उससे इतने प्रश्न पूछेंगे कि पूछ-पूछकर रुला देंगे। उस समय दर्शक भी उस अपंग व्यक्ति के रोने का पूरा इंतजार करते है, क्योंकि दर्शन भी दूरदर्शन पर अपंग व्यक्ति के दुःख-दर्द को उसके मुख से सुनना चाहते है। क्या वे भी रो देंगे अर्थात् क्या उनकी प्रतिक्रिया मिल सकेगी ?

फिर हम परदे पर दिखलाएँगे।
फूली हुई आँख की एक बङी तस्वीर
बहुत बङी तस्वीर
और उसके होठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप इसे उसकी अपंगता की पीङा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है।)

व्याख्या-

दूरदर्शन कार्यक्रम-संचालक का यह प्रयास रहता है कि उसके बेहूदे प्रश्नों से अपाहिज रोये और वह उससे सम्बन्धित दृश्य का प्रसारण करे। इसलिए वह अपाहिज की सूजी हुई आँखें बहुत बङी करके दिखाता है। इस प्रकार वह उसके दुःख-दर्द को बहुत बङा करके दिखाना चाहता है। वह अपाहिज के होंठों की बैचेनी एवं लाचारी भी दिखाता है। संचालक कार्यक्रम को रोचक बनाने के प्रयास में सोचता है कि अपाहिज की बेचैनी को देखकर दर्शकों को उसकी अनुभूति हो जायेगी।

इसलिए वह कोशिश करता है कि अपाहिज के दुःख दर्द को इस तरह दिखाये कि दर्शक केवल उस अपाहिज को देखें और धैर्यपूर्वक उसके दर्द का आत्मसात् कर सकें; परन्तु कार्यक्रम-संचालक जब दर्शकों को रुलाने की चेष्टा में सफल नहीं होता है तो तब वह कैमरामैन को कैमरा बन्द करने का आदेश देता है तथा कहता है कि अब बस करो, यदि अपाहिज का दर्द पूरी तरह प्रकट न हो सका, तो न सही। परदे का एक-एक क्षण कीमती होता है।

समय और धन-व्यय का ध्यान रखना पङता है। आशय यह है कि कार्यक्रम को दूरदर्शन पर प्रसारित करने में काफी समय एवं धन का व्यय होता है। इसलिए अपाहिज के चेहरे से कैमरा हटवाकर संचालक दर्शकों को सम्बोधित कर कहता है कि अभी आपने सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु दिखाया गया कार्यक्रम प्रत्यक्ष देखा। इसका उद्देश्य अपाहिजों के दुःख-दर्द को पूरी तरह सम्प्रेषित करना था; परन्तु इसमें थोङी-सी कमी रह गई अर्थात् अपाहिज के रोने का दृश्य नहीं आ सका तथा दर्शक भी नहीं रो पाए। अगर दोनों एक साथ रो देते तो कार्यक्रम सफल हो जाता। अन्त में कार्यक्रम-संचालक दर्शकों को धन्यवाद देता है। यह धन्यवाद मानों उसके संवेदनाहीन व्यवहार पर व्यंग्य है।

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