मानवीकरण अलंकार – Manvikaran Alankar | परिभाषा, उदाहरण, पहचान

आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।

मानवीकरण अलंकार – Manvikaran Alankar

Manvikaran Alankar ke Udaharan

परिभाषा – मानवीकरण अलंकार

जब किसी पद में किसी प्राकृतिक पदार्थ को (जङ या अमूर्त पदार्थ को) मानव के रूप में मान लिया जाता है अथवा प्राकृतिक पदार्थों में मानवीय क्रियाओं का आरोपण कर दिया जाता है

मानवीकरण अलंकार की परिभाषा  – Manvikaran Alankar ki Paribhasha

जहाँ प्राकृतिक जङ या अमूर्त पदार्थ भी मानवों के जैसी क्रियाएँ करते दिखलाई पङते हैं, इस प्रकार की क्रियाएं ही मानवीकरण अलंकार(Manvikaran Alankar)कहलाती है।

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण – Manvikaran Alankar ke Udaharan

1. ’’बीती विभावरी जाग री।
अम्बर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी।
खगकुल कुलकुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा।
लो यह लतिका भी भर लाई,
मधु मुकुल नवल रस गागरी।।’’

स्पष्टीकरण – जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रस्तुत गीत में ’उषा’ को एक नागरी (नगर में रहने वाली नारी) के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त पक्षी समूह (खगकुल) का कुलकुल की ध्वनि करते हुए बोला, किसलय रूपी अंचल का डोलना, लतिका (लता) के द्वारा मधु मुकुल के रूप में नवल रस की गागरी (कलश) भरना जैसे प्रयोगों के द्वारा प्राकृतिक पदार्थों में मानवीय क्रियाओं का आरोपण किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार(Manvikaran Alankar)  है।

2. ’’धीरे-धीरे हिम आच्छादन, हटने लगा धरातल से।
जगी वनस्पतियाँ अलसायी, मुख धोती सीतल जल से।।’’

स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में प्राकृतिक पदार्थ वनस्पतियों में मानवीय क्रियाओं (आलस्य से जागना, ठण्डे पानी से मुख धोना आदि) का आरोपण किया गया है, अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

3. ’’सन्ध्या घनमाला की ओढ़े रंग बिरंगी छींट।।’’

स्पष्टीकरण – बादलों से घिरी (आच्छादित) सन्ध्या को रंग-बिरंगे कपङे (छींट) पहना दिये जाने के कारण यहाँ मानवीकरण अलंकार(Manvikaran Alankar) है।

4.’’ऊधौ! मन न भये दस-बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस।।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ मन को मानव की तरह गतिशील बताया गया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।

5. ’’फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।’’

स्पष्टीकरण – इस कथन में फूल हंस रहे है एवं कलियाँ मुस्करा रही है। जैसा कि हंसने और मुस्कराने की क्रियाएं सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है, यह कोई प्राकृतिक चीजें नहीं है। ऐसा असलियत में संभव नहीं है और जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीजों में किया जाता है तब यहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

6. ’’सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुर गान।’’

स्पष्टीकरण – इस कथन में लहरों को नाचता व गाता हुआ वर्णित किया गया है। नाचना गाना की क्रियाएँ केवल मनुष्य की होती है, यह कोई निर्जीव की नहीं होती। यहाँ नाचने गाने की क्रियाएँ निर्जीवों में सजीवों की भावनाएँ दिखायी गयी है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

 मानवीकरण अलंकार के अन्य उदाहरण –  Manvikaran Alankar ke 10 Udaharan

7. छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,
मत झुको अनर्थ पर, भले ही व्योम फट जाए।

8. आशा! तेरी अमित महिमा, धन्य तू देवि आशा।
तू छू के है मृतक बनते प्राणियों को जिलाती।।

9. चुपचाप खङी थी वृक्ष पांत।
सुनती जैसी कुछ निजी बात।।

10. नेत्र निमीलन करती मानो,
प्रकृति प्रबुद्ध लगने लगी।

11. पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,
मानों तरु भी झूम रहे हों मंद पवन के झोंको से।

12. मेघमय आसमान से उतर रही है,
संध्या सुन्दरी परी सी धीरे धीरे धीरे।

13. सुनि अध नरकहूँ नाक सँकोरी।

14. जिसके आगे पुलकित हो जीवन सिसकी भरता।

15. उषा सुनहरे तीर बरसाती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमनें काव्यशास्त्र के अंतर्गत मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar) को पढ़ा , इसके उदाहरणों को व इसकी पहचान पढ़ी। हम आशा करतें है कि आपको यह अलंकार अच्छे से समझ में आ गया होगा …धन्यवाद

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top