उत्प्रेक्षा अलंकार – परिभाषा, भेद, 50 उदाहरण – Utpreksha Alankar

आज के आर्टिकल में हम भारतीय काव्यशास्त्र के अंतर्गत उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar) को पढेंगे, इससे जुड़े परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण उदाहरणों के माध्यम से समझेंगे।

उत्प्रेक्षा अलंकार – Utpreksha Alankar

Table of Contents

उत्प्रेक्षा अलंकार

आज के आर्टिकल में हम क्या सीखेंगे?

  • उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा
  • उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
  • उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
  • उत्प्रेक्षा अलंकार के महत्त्वपूर्ण प्रश्न

उत्प्रेक्षा का अर्थ:

⇒ उत्प्रेक्षा शब्द ’उद् + प्र + ईक्षा’ के योग से बना है। अर्थात – प्रकृष्ट रूप में देखना ही उत्प्रेक्षा है।

उत्प्रेक्षा अलंकार परिभाषा – Utpreksha Alankar ki Paribhasha

जब किसी पद में उपमेय को उपमान के समान तो नहीं माना जाता है, परन्तु यदि उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रकट कर दी जाती है, तो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।

स्पष्टीकरण – जब एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाये, अर्थात – एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाए।

प्रकृतस्य समेन यत् सम्भावनम्

स्पष्टीकरण–

उपर्युक्त संस्कृत लक्षण का हिन्दी अर्थ निम्नानुसार ग्रहण किया जाता है-
प्रकृतस्य – उपमेय की, समेन – उपमान के साथ, यत् – जो, सम्भावनम् – सम्भावना व्यक्त की जाती है, उसे उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण – Utpreksha Alankar ke Udaharan

’’दादुर धुनि चहुँ ओर सुहाई। वेद पढ़त जनु बटु समुदाई।।’’

स्पष्टीकरण – वर्षा ऋतु में चारों ओर से मेंढ़कों की आवाज सुनाई दे रही है। वह आवाज ऐसी लगती है जैसे कि किसी आश्रम में शिष्य समुदाय वेद पाठ कर रहा हो।
वहाँ उपमेय (दादुर धुनि) में उपमान (वेद-पाठ) की संभावना को व्यक्त किया गया है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

’नेत्र मानो कमल हैं।’

स्पष्टीकरण–

नेत्र वास्तव में कमल नहीं हैं परन्तु मान लिया है (सम्भावना कर ली गयी है) कि वे कमल हैं।

’’अम्बर में तारे मानो मोती अनगन हैं।

स्पष्टीकरण–

यहाँ पर तारों में मोतियों की सम्भावना की गयी है, स्पष्टीकरण – तारों को मोती माना गया है।

’’नाना-रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे।

स्पष्टीकरण–

योधा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं।।
यहाँ अनेक रंग के मेघों में अनेक रंग के वस्त्र पहने हुए योद्धाओं की कल्पना की गयी है।

कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।।

स्पष्टीकरण–

यहाँ आँसुओं से भरे हुए उत्तरा के नेत्र में ओस-कण-युक्त पंकजों की सम्भावना की गयी है।

अति कटु बचन कहति कैकेई।
मानहु लोन जरे पर देई।।

स्पष्टीकरण–

यहाँ कटु वचन के कथन में जले पर नमक लगाने की सम्भावना की गयी है, कटु वचन कहने को जले पर नमक लगाना माना गया है।

उत्प्रेक्षा वाचक शब्द –

हिन्दी के पदों में ’मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु’ इत्यादि शब्द उत्प्रेक्षा वाचक शब्द माने जाते हैं।

’’मन्ये शंके धु्रवं प्रायो नूनमित्येवमादिभिः।
उत्प्रेक्षा व्यञ्जते शब्दैरिवशब्दोऽपि तादृशः।।’’

स्पष्टीकरण – ’मन्य, शंके, धु्रवं, नूनम्, इव’ इत्यादि उत्प्रेक्षा वाचक शब्द हैं, परन्तु हिन्दी के पदों में ’मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु’ इत्यादि शब्द उत्प्रेक्षा वाचक शब्द माने जाते हैं।

विशेष – उत्प्रेक्षा सादृश्यगर्भ अलंकारों में अध्यवसायमूलक अभेद प्रधान अलंकार है। ’अध्यवसाय’ का अर्थ है –
’निश्चय’। यह दो प्रकार का होता है – 1. साध्य 2. सिद्ध
1. साध्य – जहाँ असत्यता की प्रतीति होती है।
2. सिद्ध – जहाँ सत्यता की प्रतीति होती है।
यह अध्यवसाय जब साध्य रहता है, तब वह उत्प्रेक्षा का विषय बनता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद – Utpreksha Alankar ke Bhed

उपमेय में उपमान की सम्भावना वस्तु रूप में, हेतु रूप में और फल रूप में की जा सकती है। इस आधार पर उत्प्रेक्षा के मुख्यतः तीन भेद माने जाते हैं:-

  1. वस्तूत्प्रेक्षा
  2. हेतूत्प्रेक्षा
  3. फलोत्प्रेक्षा

(अ) वस्तूत्प्रेक्षा (वस्तु+उत्प्रेक्षा) –

जब किसी पद में एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना प्रकट की जाती है, वहाँ वस्तूत्प्रेक्षाअलंकार माना जाता है। इसे ’स्वरूपोत्पे्रक्षा’ भी कहा जाता है।

वस्तूत्प्रेक्षाअलंकार उदाहरण –

1.’’कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।’’

स्पष्टीकरण– प्रस्तुत पद में आँसुओं से भरी उत्तरा की आँखों में (एक वस्तु, उपमेय) कमल पर जमा हिमकणों (अन्य वस्तु, उपमान) की संभावना को प्रकट किया जा रहा है। अतः यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।

2.’’सोहत ओढे़ पीत पट स्याम सलोने गात।
मनों नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।’’
उपमेय – पीताम्बरधारी सांवले शरीर वाले श्रीकृष्ण
उपमान – नीलमणि पर्वत पर प्रातःकाल पङती धूप
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मनों

स्पष्टीकरण– यहाँ पीताम्बर पहने हुए भगवान श्याम (कृष्ण) की शोभा में (उपमेय) नीलमणि पर्वत पर प्रातःकाल पङती सूर्य की आभा (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है। इस प्रकार एक वस्तु में अन्य वस्तु की संभावना होने के कारण यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।

3.’’झीने पट में झुलमुली, झलकति ओप अपार।
सुरतरु की मनु सिंधु में, लसति सपल्लव डार।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – झीने (पतले या पारदर्शी) वस्त्रों से झलकती नायिका के शरीर की शोभा।
उपमान – स्वच्छ सिंधु में पत्तों सहित झलकती देववृक्ष की डाली
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मनु

वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

4.’’नील परिधान बीच सुकुमार, खुला रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघवन बीच गुलाबी रंग।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – नीले वस्त्रों में से दिखाई दे रहे कामायनी के कोमल अंग
उपमान – बादलों के बीच से चमकती गुलाबी रंग की बिजली
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – ज्यों

5.’’अति कटु वचन कहति कैकई। मानहु लोन जरै पर देई।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – कैकेयी के कटु वचन
उपमान – जले पर नमक छिङकना
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मानहु

6.’’स्वर्ण शालियों की कलमें थीं, दूर दूर तक फैल रहीं।
शरद इन्दिरा के मन्दिर की, मानो कोई गैल रही।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – दूर-दूर तक फैली स्वर्ण-शालियों की कलमें।
उपमान – शरद ऋतु की शोभा
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मानो

7.’’लसत मंजु मुनि मंडली, मध्य सीय रघुचंद्र।
ज्ञान सभा जनु तनु धरे, भगति सच्चिदानंद।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – राम व सीता के मध्य बैठी मुनि-मंडली
उपमान – सच्चिदानंद द्वारा शरीर रूप धारण करना
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – जनु

8. ’’उन्नत हिमालय से धवल, वह सुरसरि यों टूटती।
मानों पयोधर से धरा के, दुग्ध धारा छूटती।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – हिमालय से निकली गंगा
उपमान – पृथ्वी के स्तनों (पर्वतों) से छूटती दुग्धधारा
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मानों

वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

9. ’’प्राण प्रिया मुख जगमगाती, नीले अंचल चीर।
मनहुँ कलानिधि झलमलै, कालिन्दी के नीर।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – नीले (सुंदर) वस्त्रों में से जगमगाता नायिका का मुख
उपमान – कालिंदी (यमुना) के जल में झलकती चंद्रमा (कलानिधि) की आभा
उत्पे्रक्षा वाचक शब्द – मनहुँ

10. ’’रत्नाभरण भरे अंगों में, ऐसे सुन्दर लगते थे।
ज्यों प्रफुल्ल वल्ली पर सौ सौ जुगनू जगमग जगते थे।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – शरीर के अंगों पर पहने आभूषण
उपमान – प्रफुल्लित लता पर जगमगाते जुगनू
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – ज्यों

11. ’’नीको सतु ललाट पर, टीको जरित जराइ।
छबिहिं बढावत रवि मनौ, ससि मंडल में आइ।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – नायिका के ललाट पर जगमग करता टीका
उपमान – सूर्य द्वारा अपनी सोभा बढ़ाने के लिए शशिमंडल में प्रवेश
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मनौ
यहाँ नायिका के ललाट पर रत्नजङित टीका उपमेय है, जिसमें शशिमण्डल में सूर्य के प्रवेश को उपमान रूप में संभावित किया गया है। इस प्रकार एक वस्तु में अन्य वस्तु की संभावना होने के कारण यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।

वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

12. ’’जान पङता नेत्र देख बङे-बङे। हीरकों में गोल नीलम हैं जङे।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – नायिका की बङी-बङी आँखें
उपमान – हीरे में जङा गोलाकार नीलक
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – जान पङता

13. ’’चमचमाता चंचल नयन, बिच घूँघट पट झीना।
मानहु सुरसरिता विमल, जल उछलत युग मीना।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – झीने वस्त्र के घूँघट में से चंचल नयनों का चमचमाना
उपमान – गंगा के स्वच्छ जल में दो मछलियों का उछलना
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मानहु

14. ’’नाहिन ये पावक प्रबल, लुएँ चलत चहँपास।
मानहु विरह वसन्त के, ग्रीष्म लेत उसास।।’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – ग्रीष्म ऋतु में तेज लुएँ चलना
उपमान – वसंत के वियोग में ग्रीष्म द्वारा उच्छ्वास छोङना
उत्प्रेक्षा वाचक शब्द – मानहु

’’पुलक प्रकट करती है धरती मंद पवन के झोंकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी, मंद पवन के झोंकों से।।’’

वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

16. ’’निशान्त के साथ निशेश भी चला।
मानों मही के सिर से टली बला।।’’

17. ’’भौंहे स्याम धनुक जनु ताना। जासहुँ हेर मार विष बाना।।’’

18. ’’विप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत।’’

19. ’’सेनापति उनए नए जलद सावन के, चारिहू दिसान घुमरत भरे तोय के।
सोभा सरसाने न बखाने जात कैहूँ भाँति, आने हैं पहार मानों काजर के ढोय कै।।’’

20. ’’लट लोल कपोल कलोल करैं कलकंठ बनी जलजावलि द्वै।
अंग अंग तरंग उठै दुति की परिहै मनो रूप अबै धर च्वै।।’’

(ब) हेतूत्प्रेक्षा (हेतु+उत्प्रेक्षा) –

जब किसी पद में अहेतु की हेतुु रूप में सम्भावना या कल्पना प्रकट की जाती है अर्थात जो वास्तविक कारण नहीं है, पर उसी में कारण खोजने की कल्पना की जाती है, तो वहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।
उदाहरण –
1.’’मोर मुकुट की चन्द्रिकनु, यों राजत नँदनंद।
मनु ससि सेखर की अकस, किय सेखर सतचंद।।’’

स्पष्टीकरण–

बिहारी द्वारा रचित प्रस्तुत पद में नायिका की सखी नायिका से मोर-मुकुटधारी श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन करके उसके चित्त में उस अद्भुत शोभा को देखने की लालसा उत्पन्न करना और उससे अभिसार कराना चाहते हुई कहती है-’’मानो श्रीकृष्ण ने भगवान् शंकर (ससिसेखर) से ईर्ष्या करने के लिए (ईष्यावश) अपने मस्तक पर सैंकङों चन्द्रमा धारण कर लिये हैं।’’
यहाँ भी अहेतु में हेतु की संभावना मात्र है, अतः यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

2.’’मनो कठिन आँगन चली, ताते राते पाय।।’’

स्पष्टीकरण– यहाँ नायिका के पैर प्रकृति-प्रदत्त लाल (राते) हैं, पर कवि उनमें कठोर आँगन पर पैदल चलने के कारण को सम्भावित कर रहा है, अतः कारण खोजने का प्रयास मात्र होने के कारण यहाँ हेतुत्प्रेक्षा अलंकार है।

हेतूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

3.’’घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस अवलंबित मुख के पास।
नील घन शावक से सुकुमार, सुधा भरने को विधुके पास।।’’
स्पष्टीकरण – कामायनी के घुंघराले बाल उसके मुख तथा कंधे तक फैले हुए थे, जिनको देखकर ऐसा लगता था मानो नीलमेघ के बालक अमृतपान करने के लिए चन्द्रमा के पास आ गये हों। यहाँ भी जो कारण बतलाया गया है, उसमें कोई वास्तविकता नहीं होकर कल्पना मात्र है। अतः यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

4. ’’भाल लाल बेंदी ललन, आखत रहे विराजी।
इन्दुकला कुज में बसी, मनों राहुभय भाजि।।’’

स्पष्टीकरण– प्रस्तुत पद में कवि शिरोमणि बिहारी जी कह रहे हैं कि ’’नायक (ललन) ने अपने माथे (भाल) पर लाल टीका लगा रखा है, तथा उस लाल टीके पर चावल (आखत) भी लगे हुए हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा की कलाएँ (इन्दुकला) राहु के भय से मंगल ग्रह (कुज) में जाकर बस गई हों।’’
यहाँ उपमेय (चावल लगा लाल टीका) एवं उपमान (इन्दुकला का कुज में बसना) में बिना किसी कारण (अहेतु) के ही कारण (हेतु) खोजने का प्रयास किया गया है, अतः यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

5. ’’अरुण भये कोमल चरण भुवि चलिबे ते मानु।
स्पष्टीकरण – शायद भूमि पर पैदल चलने के कारण नायक के पैर लाल हो गये हैं।

हेतूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

6. ’’सोवत सीता नाथ के, भृगु मुनि दीनी लात।
भृगुकुल पति की गति हरी, मनो सुमिरि वह बात।।’’

स्पष्टीकरण – पहले भृगु ऋषि ने सोये हुए विष्णु की छाती पर लात मारी थी, इस बात को याद करके श्रीराम ने भृगुकुल के पति परशुराम जी की गति का हरण कर लिया।
यहाँ पर भी परशुराम जी की गति को हरण करने का जो कारण बतलाया गया है, वह वास्तविक कारण नहीं है, अतः यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. ’’मुख सम नहिं याते कमल मनु जल रह्यो छिपाय।’’
’’मुख सम नहिं याते रहत मनु चन्दहि छाया छाय।’’

स्पष्टीकरण – ’’मैं नायिका के मुख के समान नहीं हूँ, यह सोचकर कमल जल में जाकर छिप गया तथा चन्द्रमा पर सदैव कालिमा छायी रहती है।’’ यहाँ पर कमल के जल में छिपने एवं चन्द्रमा पर कालिमा छाने का जो कारण बतलाया गया है, वह कोई वास्तविक कारण नहीं है। अतः अहेतु में हेतु की सम्भावना होने के कारण यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

हेतूत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

8. ’’हँसत दसन अस चमके, पाहन उठे छरक्कि।
दारिउँ सरि जो न करि सका, फाटेउ हिया दरक्कि।।’’

9. ’’विरह हे आगि सुर जरि काँपा।
मानहुँ राति दिवस जरै ओहि तापा।।’’

10. ’’भुज भुजंग सरोज नयननि, बदन विधु जित्यौ लरनि।
रहे बिबरनि सलिल नभ, उपमा अपर दुनि उरनि।।’’

11. ’’बार-बार उस भीषण रव से, कंपती धरणी देख विशेष।
मानों नील व्योम उतरा हो, आलिंगन के हेतु अन्य शेष।।’’

12. ’’वह मुख देख-देख पांडू सा पङकर, गया चन्द्र पश्चिम की ओर।’’

13. ’’इन्हहिं देखि बिधि मन अनुरागा। पटतर जोग बनावै लागा।।
कीन्ह बहुत श्रम ऐक न आये। तेहि इरषा बन आनि दुराये।।’’ (प्रतीयमाना हेतूत्प्रेक्षा)

(स) फलोत्प्रेक्षा (फल+उत्प्रेक्षा) –

जब किसी पद में अफल में फल की कल्पना की जाती है अर्थात जो फल नहीं है, उसे फल के रूप में कल्पित किया जाता है तो वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।
फलोत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

1.’’बाजि बली रघुबंसिन के मनों सूरज के रथ चूमन चाहै’’

स्पष्टीकरण–

उपमेय – रघुवंश के बलवान घोङे
उपमान – सूरज के रथ को चूमने की इच्छा
वाचक शब्द – मनों

2.’’बढ़त ताङ को पेङ यह, मनु चूमन को आकास।’’
स्पष्टीकरण – शायद आकाश को चूम लेने की आशा की इच्छा से यह ताङ का पेङ इतना ऊँचा बढ़ गया है। यहाँ आकाश को छूने (चूमने) के फल की इच्छा से ताङ का ऊँचा बढ़ना विसंगत सा लगता है, किन्तु कवि ने उसे फल रूप में चित्रित किया है। अतः अफल में फल की संभावना करने के कारण यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

फलोत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

3.’’विकसि प्रात में जलज ये, सरजल में छबि देत।
पूजत भानुहि मनहु ये, सिय मुख समता हेत।।’’

स्पष्टीकरण– प्रस्तुत पद में कमलों के सरोवर में खिलने की शोभा इस दोहे का वर्ण्य विषय है, जिसमें अफल में फल की संभावना का रूप देते हुए कवि कहता है कि ’वे कमल मानो सीताजी के मुख की समता प्राप्त करने के लिए भानु (सूर्य) की पूजा करते हैं।’’
वस्तुतः कमलों का सरोवर में खिलना स्वाभाविक है, किन्तु उसमें सूर्यपूजा के कार्य का विधान करके अफल में फल की संभावना की गई है, अतः यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

4.’’तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झूके कूल सों जल परसन, हिल मनहुँ सुहाये।।’’

स्पष्टीकरण– यहाँ वृक्ष स्वाभाविक रूप से यमुना के जल की ओर झुक रहे हैं, पर कवि यहाँ यह कहना चाहता है कि वे जलस्पर्श के फल के लिए झुके हुए हैं। इस प्रकार अफल में फल की संभावना होने के कारण यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

फलोत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

5.’’खंजरीट नहिं लखि परत, कछु दिन साँची बात।
बाल दृगन सम होन को, करत मनो तप जात।।’’

स्पष्टीकरण– प्रस्तुत पद में ’कुछ समय के लिए खंजन पक्षियों का न दिखाई देना’ जैसे वर्ण्य विषय को लेकर कवि ने उसकी अदृश्यता का कारण यह सम्भावित किया है कि वे मानो उस सुंदर बाला (नायिका) के नेत्रों की शोभा प्राप्त करने के लिए हिमालय पर तपस्या करने के लिए चले गये हैं। कवि की यह कल्पना इस पद में फलोत्प्रेक्षा को प्रकट कर रही है।

6. ’’तब मुख समता लहन को जल सेवत जलजात।।’’

स्पष्टीकरण– मानो तुम्हारे मुख की समता प्राप्त करने को कमल जल में खङा होकर तपस्या कर रहा है।
कमल जल में एक पैर अर्थात कमल-नाल पर खङा रहता है, पर इस उद्देश्य से नहीं कि मुख की समता प्राप्त करे। मुख की समता प्राप्त करना उसका उद्देश्य नहीं है, वह इस फल को ध्यान में रखकर इस प्रकार खङा होने का कार्य नहीं करता ऐसी आकांक्षा न होने पर भी इसकी सम्भावना की गयी है। अतः फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. ’’तो पद समता को कमल, जल सेवत इक पाँय।’’

फलोत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण –

8. ’’रोज अन्हात है छीरधि में ससि,
तो मुख की समता लहिबे को।’’

स्पष्टीकरण– चन्द्रमा सदा क्षीर-सागर में मग्न होता है और उसका उद्देश्य यह नहीं होता कि मुख की समता प्राप्त करे। इस फल की कामना वह नहीं करता। पर माना गया है कि वह इसी फल की कामना करके ऐसा करता है। इस प्रकार यहाँ अफल को फल माना है जिससे फलोत्प्रेक्षा हुई।

9. ’’नाना सरोवर खिले नव पंकजों को, ले अंक में विहँसते मन मोहते थे।
मानों प्रसार अपने सहसा करों को, वे माँगते शरद से सुविभूतियाँ थे।।’’

10. ’’मानहुँ विधि तन अच्छ छवि, स्वच्छ राखिबै काज।
दृग पग पौंछन को किये भूषण पायंदाज।।’’

11. ’’मानो स्वर्ग सिमटकर आये, भूधर को विभोर सा करने।
फूटे हों विराट वीणा के तारों से कम्पित करने।।’’

12. ’’नित्य ही नहाता है चन्द्रमा क्षीर सागर में।
सुन्दरि! मानो तुम्हारे मुख की समता के लिए।।’’

13. ’’मधुप निकारन के लिए मानो रुके निहारि।
दिनकर निज कर देत है सतदल-दलनि उघारि।।’’

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल हमने उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar) को विस्तार से पढ़ा और महत्त्वपूर्ण उदाहरण पढ़े । हम आशा करतें है कि इस विषयवस्तु को आपने अच्छे से समझ लिया होगा ।

FAQ –

1 . उत्प्रेक्षा अलंकार के कितने भेद होते हैं?

उत्तर –  उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते है।

  • वस्तूत्प्रेक्षा
  • हेतूत्प्रेक्षा
  • फलोत्प्रेक्षा

2. उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है?

उत्तर  – जब किसी पद में उपमेय को उपमान के समान तो नहीं माना जाता है, परन्तु यदि उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रकट कर दी जाती है, तो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण क्या होगा?

उत्तर  – 

कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।।

’’भुज भुजंग सरोज नयननि, बदन विधु जित्यौ लरनि।
रहे बिबरनि सलिल नभ, उपमा अपर दुनि उरनि।।’’

4. उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण दीजिए?

उत्तर  – अति कटु बचन कहति कैकेई।
मानहु लोन जरे पर देई।।

1- उत्प्रेक्षा अलंकार के मुख्यतया कितने भेद होते हैं?
तीन ( वस्तूत्प्रेक्षा,हेतूत्प्रेक्षा,फलोत्प्रेक्षा )
2- उत्प्रेक्षा अलंकार में कौनसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है ?
’मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु’ आदि।

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