छंद क्या है – परिभाषा, प्रकार || छंद का अर्थ, उदाहरण

आज की पोस्ट में काव्यशास्त्र के अंतर्गत छंद क्या है(Chhand kya hota hai)  छंद की परिभाषा(chhand ki paribhasha),छंद के भेद(chhand ke bhed),छंद के उदाहरण(chhand ke udaharan), Chhand in Hindi  के बारे में  विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है तथा उसके प्रकारों का भी विस्तार से विवेचन किया गया है। महत्वपूर्ण उदाहरण भी इसमें सम्मिलित है। आपकी सुविधा के लिए आर्टिकल के अंत में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का समावेश किया गया है।

छंद क्या है

छंद की परिभाषा – Chhand ki Paribhasha

Table of Contents

अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रागणना तथा यति-गति से संबद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना ’छंद’ (chhand) कहलाती है। ’छंद’ की प्रथम चर्चा ’ऋग्वेद’ में हुई है। यदि गद्य का नियामक व्याकरण है, तो कविता का छंदशास्त्र। छंद पद्य की रचना का मानक है और इसी के अनुसार पद्य की सृष्टि होती है। पद्यरचना का समुचित ज्ञान ’छंदशास्त्र’ का अध्ययन किए बिना नहीं होता।
छंद हृदय की सौदर्यभावना जागरित करते है। छंदोबद्ध कथन में एक विचित्र प्रकार का आह्लाद रहता है, जो आप ही जगता है। तुक छंद का प्राण है- यही हमारी आनंद-भावना को प्रेरित करती है। गद्य में शुष्कता रहती है और छंद में भाव की तरलता। यही कारण है कि गद्य की अपेक्षा छंदोबद्ध पद्य हमें अधिक आनंद देता है।

छंद
छंद

जैसा कि आप जानते है कि छंदोमयी रचना को पद्य कहते हैं और छंदोविहीन रचना को गद्य। पद्य या छंदोमयी रचना अनेक चरणा में विभक्त होती है और प्रत्येक चरण में वर्णों या मात्राओं की एक निश्चित संख्या होती है। गद्य या छंदोविहीन रचना अनेक वाक्यों में विभक्त होती है पर इन वाक्यों में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती।

पद्य रचना क्या होती है

उदाहरणार्थ-
1. प्रभु ने तुम को कर दान किये।
सब वांछित-वस्तु-विधान किये।।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो!।
फिर है किसका यह दोष, कहो!।
समझो न अलभ्य किसी धन को।
नर हो, न निराश करो मन को।।

✔️ इस रचना में तोटक छंद के छह चरण हैं। प्रत्येक में 12-12 वर्ण है।

अन्य उदाहरण-

2. धन्य जनम जगती-तल तासू।
पितहि प्रमोद चरति सुनि जासू।।
चारि पदारथ कर-तल ताके।
प्रिय पितु-मात प्रान-सम सके।।

✔️ इस रचना में चौपाई छंद के चार चरण है। प्रत्येक में 16-16 मात्राएँ हैं।

गद्य रचना क्या होती है

✔️ सत्य के बराबर तप नहीं और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं। जिसके हृदय में सत्य रहता है, उसके हृदय में स्वयं भगवान रहते है।
✔️ इस रचना में दो वाक्य है। दोनों वाक्यों में वर्णों और मात्राओं की संख्या भिन्न-भिन्न है। यह गद्य रचना का उदाहरण है।

वर्ण और मात्राएँ क्या होती है

✔️ वर्ण- वर्ण के दो प्रकार होते हैं- 1. हृस्व, और 2. दीर्घ।

छंदशास्त्र में हृस्व को लघु और दीर्घ को गुरु कहा जाता है। लघु वर्ण की एक मात्रा गिनी जाती है और गुरु वर्ण की दो मात्राएँ। छंद-शास्त्र में दो से अधिक मात्राएँ किसी वर्ण की ही गिनी जाती है।

✔️ मात्रा केवल स्वर की होती है, व्यंजन की नहीं। छंदों में वर्ण या मात्रा गिनने में केवल स्वर को ध्यान में रखा जाता है, व्यंजन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, उसे छोङ दिया जाता है। ’स्वास्थ्य’ शब्द की तीन मात्राएँ होगी, दो आ की और एक अ की; स् व् स् थ् य् इन व्यंजनों की कोई मात्रा नहीं होगी (स्वास्थ्य=स् + व् + आ + स् + थ् + य् + अ)।

✔️ अ इ उ ऋ लृ ’लघु’ वर्ण है और इनकी एक-एक मात्रा होती है।

✅ आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ औ ’गुरु’ वर्ण हैं और इनकी दो-दो मात्राएँ होती है।

✔️ लघु वर्ण का गुरु- नीचे बतायी स्थितियों में लघु वर्ण गुरु हो जाता है और उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैः

1. अनुस्वार से युक्त होने पर। जैसे- हंस में ’हं’, चंद्र में ’च’ और संयम में ’सं’ गुरु है।

2. विसर्ग से युक्त होने पर। जैसे- दुःख में ’दुः’ और निःसृत में ’निः’ गुरु है।

3. संयुक्त व्यंजन के पूर्व। जैसे- सत्य में ’स’, मन्द में ’म’ और व्रज में ’व’ गुरु है।

4. हलन्त व्यंजन के पूर्व। जैसे- सत् में ’स’, महत् में ’ह’ और राजन् में ’ज’ गुरु है।

5. चरण के अन्त में यदि आवश्यकता हो तो। जैसे- वही हमारी यह मातृ-भूमि। यह उपेन्द्रवज्रा छंद का चरण है जिसके अन्त में गुरु वर्ण होना चाहिए। यहाँ उपेन्द्रवज्रा छंद के चरण के अन्त में आने से ’मि’ लघु होने पर भी गुरु माना जायेगा।

✔️ ध्यान रखने योग्य –

1. चन्द्रबिन्दु से युक्त होने पर वर्ण की मात्रा में अन्तर नहीं पङता। चन्द्रबिन्दु से युक्त वर्ण की एक ही मात्रा गिनी जायगी तथा गुरु वर्ण की दो ही मात्राएँ। जैसे- हँसी में ’हँ’ वर्ण लघु है तथा हाँसी में ’हाँ’ वर्ण गुरु हैं।

2. संयुक्त व्यंजन के पूर्व का लघु वर्ण तभी गुरु माना जायेगा जब उसे पढ़ने में उस पर जोर पङे, यदि जोर न पङे तो वह लघु ही रहेगा और उसकी एक ही मात्रा गिनी जायेगी। जैसे-

(अ ) तुम्हारा में ’तु’ को पढ़ने में उस पर जोर नहीं पङता। अतः उसकी एक ही मात्रा (लघु) होगी।

(ब) तुम्मारा में ’तु’ को पढ़ने में उस पर जोर पङता है अतः उसकी दो मात्राएँ (गुरु) होगी।

(स ) देश-प्रेम को यदि देश-प्रेम की तरह पढ़ा जाएगा, अर्थात् ’श’ पर जोर पङेगा तो ’श’ वर्ण गुरु हो जायेगा, पर यदि ’देश-प्रेम’ पढ़ा जायेगा और ’श’ पर जोर नहीं पङेगा तो ’श’ लघु ही रहेगा।

✔️ हिन्दी में साधारणतया एक शब्द के भीतर होेने पर ही संयुक्त व्यंजन के पूर्व का वर्ण गुरु होता है।

✅ गुरु वर्ण का लघु- नीचे बतायी स्थितियों में गुरु वर्ण लघु गिना जाता हैः

(अ) एक और ओ वर्णों का जब ह्रस्व या एकमात्रिक उच्चारण हो।

जैसे-

जेहि कर जेहि पर सत्य सनेहू।
सो तेहि मिलहि, न कछु सन्देहू।।

✔️इन पंक्तियों में जेहि, जेहि और तेहि में ’ए’ का लघु उच्चारण है अतः उसकी एक-एक मात्रा ही गिनी जायेगी।
प्रभु दोउ चाप- खण्ड महि डारे।

✅इस पंक्ति में दोड में ’ओ’ का उच्चारण लघु है अतः उसकी एक ही मात्रा गिनी जायेगी।

✔️ सवैया, मनहरण कवित्त आदि छंदों में आवश्यकता हो तो किसी भी गुरु वर्ण को लघु पढ़ा जा सकता है।

जैसे- कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।

✔️ इस पंक्ति में ’लसी’ का ’सी’ और ’की’ वर्ण लघु पढ़े जायेंगे।

धूरि-भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।

इस पंक्ति में ’जू’ और ’सी’ लघु पढ़े जायेंगे।

Chhand in Hindi

   वर्णों और मात्राओं की गिनती कैसे करें

क्र. स.वर्णमात्राएँ
1. क 1 वर्ण, 1 मात्रा
2.क्ल1 वर्ण, 1 मात्रा
3.स्थ्य1 वर्ण, 1 मात्रा
4.र्क1 वर्ण, 1 मात्रा
5.का1 वर्ण, 2 मात्रा
6.क्ला1 वर्ण, 2 मात्रा
7.कल2 वर्ण, 2 मात्रा
8.क्लम2 वर्ण, 2 मात्रा
9.काल2 वर्ण, 3 मात्रा
10.सत्य2 वर्ण, 3 मात्रा
11.स्वास्थ्य2 वर्ण, 3 मात्रा
12.कात्स्नर्य2 वर्ण, 3 मात्रा
13.सिन्धु2 वर्ण, 3 मात्रा
14.सिंधु2 वर्ण, 3 मात्रा
15.हंस2 वर्ण, 3 मात्रा
16.हंसी2 वर्ण, 4 मात्रा
17.हँसी2 वर्ण, 3 मात्रा
18. हाँसी 2 वर्ण, 4 मात्रा
19.दुःख2 वर्ण, 3 मात्रा
 20.कार्य2 वर्ण, 3 मात्रा
21.जगत्2 वर्ण, 3 मात्रा
22. श्रवण3 वर्ण, 3 मात्रा
23.अमृत3 वर्ण, 3 मात्रा
24.अमृत (उच्चारण=अम्मृत)3 वर्ण, 4 मात्रा
25.कर्ता3 वर्ण, 4 मात्रा
26.तुम्हारा3 वर्ण, 5 मात्रा
27.तुम्मारा3 वर्ण, 6 मात्रा
28.कन्हैया3 वर्ण, 5 मात्रा
29.देश-प्रेम (उच्चारण देश प्रेम)4 वर्ण, 6 मात्रा
30.देश-प्रेम (उच्चारण देश प्रेम)4 वर्ण, 7 मात्रा

 छंदों में गण क्या होते है

✔️ गण– तीन वर्णों के समूह को गण कहते है। गणों के आठ भेद हैं। उनके नाम, लक्षण, रूप और उदाहरण आगे दिये जाते हैः

क्र.स.नामलक्षण रूपउदाहरणउदाहरण
1. मगणतीनों गुरुऽऽऽ मातारासावित्री
2.नगणतीनों लघु ।।।नसलअनल
3.भगणआदि गुरु ऽ।।मानसशंकर
4.जगणमध्य गुरु।ऽ।जभानगणेश
5.सगणअन्त्य गुरु।।ऽसलगाकमला
6.यगणआदि लघु।ऽऽयमाताभवानी
7.रगणमध्य लघु ऽ।ऽराजभाभारती
8.तगणअन्त्य लघुऽऽ।ताराजआदित्य

✔️ गणों को याद करने का सूत्र-

नीचे लिखे सूत्र से ऊपर बताये गणों का ज्ञान सरलता से किया जा सकता है- य-मा-ता-रा-ज-भा-न-स-गा ✔️

जिस गण का रूप ज्ञात करना हो उसके आदि वर्ण को सूत्र में देखों, फिर उसके आगे के दो वर्ण और ले लो। तीनों को मिलाने से जो शब्द या रूप बनेगा, वही उस गण का रूप होगा। उदाहरण के लिए; यगण का रूप ज्ञात करना है तो य को और उसके आगे के दो वर्णों को, अर्थात् मा और ता को मिलाने से ’यमाता’ हुआ। ’यगण’ का रूप ।ऽऽ होगा। इसी प्रकार ’मगण’ का ’मतारा’ अर्थात् ऽऽऽ होगा और ’तगण’ का ’ताराज’ (ऽऽ।) होगा।

यति और गति क्या होती है

✔️ यति- छंद को पढ़ते समय प्रत्येक चरण के अन्त में ठहरना पङता है। कभी-कभी चरण लम्बा होता है तो बीच में भी एक या अधिक स्थानों पर ठहरना पङता है। इस ठहरने को यति या विराम या विश्राम कहते है।

जैसे- तारे डूबे, तम टल गया, छा गयी व्योम लाली।

✅ मन्दाक्रान्ता छंद में इस चरण के पहले चार वर्णों के बाद, फिर छह वर्णों के बाद और फिर सात वर्णों के बाद, इस प्रकार कुल तीन बार ठहरना पङता है। मन्दाक्रान्ता के चरण में 4।6।7 पर यति होती है। यति शब्द के मध्य में नहीं पङनी चाहिए।

✔️ गति-छंद के पढ़ने की लय का नाम गति है। प्रत्येक छंद की अपनी लय होती है। मात्रिक छंदों और मुक्तक वर्णित छंदों में लय का विशेष रूप से ध्यान रखना पङता है क्योंकि मात्राएँ या वर्ण पूरे होने पर भी यदि गति नहीं होती तो छंद नहीं बन पाता।

जैसे-
बरखा-काल मेघ नभ छाये।

इस चौपाई के इस चरण को यदि निम्न प्रकार कर दिया जाय
मेघ नभ बरखा-काल छाये। या
छाये नभ बरखा-काल मेघ।
✔️ तो यह चौपाई का चरण नहीं रह जायेगा, 16 मात्राएँ होने पर भी यहाँ गति के अभाव में चौपाई छंद नहीं माना जायेगा।

छंद कितने प्रकार के होते है –  Chhand kitne prakar ke hote hain

chhand ke prakar
छंद के प्रकार

✔️ छंदों के दो प्रकार होते हैं-

  1. मात्रिक
  2. वर्णिक

मात्रिक छंदों में मात्राओं की संख्या नियत रहती है और वर्णिक छंदों में वर्णों की। कुछेक आचार्य ’लय’ के आधार पर ’छंद’ का एक अन्य प्रकार (भेद) ’लयात्मक’ भी मानते है। लयात्मक छंद के अन्तर्गत ’गीत’ आते है।

मात्रिक छंद किसे कहते है – Matrik Chhand kise kahate hain

मात्रिक छंद – जिस छंद की गणना मात्राओं के आधार पर की जाती है, उसे मात्रिक छंद कहते है।

वर्णिक छंद किसे कहतें है – Varnik Chhand kise kahate hain

वर्णिक छंद – जिस छंद की गणना वर्णों के आधार पर होती है, उसे वर्णिक छंद कहते है।

✔️ छंदों के पुनः तीन प्रकार होते हैं-

1. सम,

2. अर्धसम

3. विषम

सम छंद किसे कहते हैं ?

⇒ सम छंदों के समस्त चरणों में मात्राओं (या वर्णों) की संख्या बराबर होती है। जैसे- चौपाई और वंशस्थ।

अर्धसम छंद किसे कहते हैं ?

⇒ अर्धसम छंदों के दो-दो चरणों में मात्राओं (या वर्णों) की संख्या बराबर होती है। जैसे- दोहा और वियोगिनी।

विषम छंद किसे कहते हैं ?

⇒ जो छंद सम या अर्धसम नहीं होते उन्हें विषम छंद कहते है। चार से अधिक (छह आदि) चरणों वाले छंदों को भी विषम छंद कहा जाता है। जैसे- छप्पय और कुण्डलिया।

वर्णिक छंदों के दो और भी प्रकार होते हैं-

1. गणबद्ध

2. मुक्तक

✔️ गणबद्ध छंदों के चरणों में वर्ण, और साथ ही गण, दोनों की संख्या नियत रहती है। जैसे- इन्द्रवज्रा वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, मन्दाक्रान्ता, सवैया आदि।

✔️ मुक्त छंदों के चरणों में केवल वर्णों की संख्या नियत रहती है, गुणों या लघु-गुरु का कोई नियत नहीं होता। जैसे- मनहरण कवित्त, अनुष्टुप् आदि।

✅ बत्तीस से कम मात्राओं के और छब्बीस से कम वर्णों के, छंद साधारण कहलाते है।

✔️ बत्तीस से अधिक मात्राओं के और छब्बीस से अधिक वर्णों के छंद दण्डक कहलाते है।

छंद

1. चौपाई छंद किसे कहते है – Chaupai Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है।
3. प्रत्येक चरण के अन्त में जगण या तगण आना वर्जित माना जाता है।
4. यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।
5. तुक सदैव पहले चरण की दूसरे चरण के साथ व तीसरे की चैथे चरण के साथ मिलती है।

चौपाई छंद के उदाहरण – Chaupai Chhand ke udaharan

 उदाहरण –

धीरज धरम मित्र अरु नारी।
ऽ।।     ।।।   ऽ।    ।।  ऽ ऽ
आपद काल परखिए चारी।।
ऽ।।     ऽ।     ।।।ऽ     ऽ ऽ

रघुकुल रीति सदा चलि आई
।।।।      ऽ।   ।ऽ    ।।    ऽऽ
प्राण जाय पर वचन न जाई
ऽ।     ऽ।   ।।  ।।।    ।  ऽऽ

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,
।।    ।।ऽ।      ऽ।   ।।    ऽ।।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।
।।    ।ऽ।     ।।    ऽ।    ।ऽ।।

कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि
ऽ।।      ऽ।।      ऽ।।  ।।    ।।
कहत लषन सन राम हृदय गुनि
।।।    ।।।    ।।   ऽ।   ।।।   ।।

राम दूत अतुलित बल धामा,
ऽ।    ऽ।  ।।।।      ।।   ऽ ऽ
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
ऽ।।      ऽ।   ।।।।।     ऽऽ

2. दोहा छंद किसे कहते है – Doha Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
2. इसमें विषम (पहले व तीसरे) चरणों में 13-13 मात्राएँ तथा सम (दूसरे व चौथे) चरणों में 11-11 मात्राएँ होती है।
3. इसके विषम चरणों के आरम्भ में जगण आना वर्जित माना जाता है, जबकि सम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है।
4. यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।
5. तुक प्रायः सम चरणों में मिलती है।

दोहा छंद के उदाहरण – Doha Chhand ke udaharan

 उदाहरण –

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोङो छिटकाय।
।।।।     ऽऽ     ऽ।   ऽ    ।।  ऽऽ    ।।ऽ।
टूटे से फिर ना जुङे, जुङे गाँठ पङ जाय।।
ऽऽ ऽ    ।।  ऽ   ।ऽ    ।ऽ  ऽ।    ।।  ऽ।

बङा भया तो क्या भया, जैसे पेङ खजूर।
।ऽ    ।ऽ    ऽ  ऽ     ।ऽ     ऽऽ  ऽ।   ।ऽ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
ऽऽ    ऽ    ऽऽ    ।ऽ   ।।     ऽऽ   ।।    ऽ।

हंसा बगुला एक से, रहत सरोवर माँहि।
ऽऽ    ।।ऽ    ।।    ऽ ।।।    ।ऽ।।   ऽ।
बगुला ढूँढै माछरी, हंसा मोती खाँहि।।
।।ऽ     ऽऽ  ऽ।ऽ      ऽऽ   ऽऽ     ऽ।

जहां मंथरा की तरह, बसते दासी-दास।
आज्ञा-पालक राम को, मिलता है वनवास।।

छाया माया एक सी, बिरला जाने कोय।
भगता के पीछे फिरे, सन्मुख भागे सोय।।

मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
ऽऽ    ।।   ऽऽ   ।ऽ    ऽऽ    ऽ।।    ऽ।
जा तन की झांई परे, स्यामु हरित दुति होय।।
ऽ    ।।   ।   ऽऽ   ।ऽ    ऽ।     ।।।    ।।   ऽ।

3. सोरठा छंद किसे कहते है – Sortha Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
2. यह दोहा छंद के विपरीत लक्षणों वाला छंद माना जाता है।
3. इसके विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती है।
4. इसके सम चरणों के आरम्भ में जगण आना वर्जित माना जाता है जबकि विषम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है।
5. यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
6. तुक प्रायः सम चरणों में मिलती है।

सोरठा छंद के उदाहरण – Sortha Chhand ke udaharan

 

जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाहि कहि।
ऽ।      ऽ।     ।।ऽ।     ।।     ।।   ।।।  ।   ऽ।    ।।
मंजुल मंगल मूल, वाम अंग फरकन लगे।।

सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद तन पुलक भर
।।।     ।ऽ।।     ऽ।   ।।    ।ऽ।   ।।   ।।।    ।।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल
।।।   ।ऽ।।     ऽ।    ।।ऽ   ।ऽ   ।ऽ।    ।।

कपि करि हृदय विचार, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
।।     ।।   ।।।    ।ऽ।      ऽ।      ऽ।ऽ     ऽ।  ।।
जनु असोक अंगार, लीन्हि हरषि उठिकर गहउ।।
।।    ।ऽ।      ऽऽ।     ऽ।     ।।।    ।।।।     ।।।

अस विचार मति धीर, तजि कुतर्क संसय सकल।
भजहु राम रघुवीर, करुनाकर सुन्दर सुखद।।

सुनि कैवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
।।    ऽ।।    ऽ  ऽ।   ऽ।   ।ऽऽ   ।।।ऽ
विहँसे करुणा ऐन, लखन जानकी सहित प्रभु।।
।।ऽ     ।।ऽ     ऽ।    ।।।    ऽ।ऽ     ।।।     ।।

हिम्मत कीमत होय, बिन हिम्मत कीमत नहीं
ऽ।।       ऽ।।     ऽ।    ।।     ऽ।।      ऽ।।    ।ऽ
करे न आदर कोय, रद कागद ज्यूं राजिया
।ऽ   ।  ऽ।।    ऽ।    ।।   ऽ।।     ऽ    ऽ।ऽ

मतलब री मनुहार, चुपकै लावै चूरमो
बिन मतलब मनुहार, राब न पावै राजिया

4. हरिगीतिका छंद किसे कहते है – Harigitika Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है।
3. इसमें यति क्रमशः 16 व 12 मात्राओं पर होती है।
4. इसके प्रत्येक चरण में 5वीं, 12वीं, 19वीं, व 26वीं मात्रा लघु होती है।
5. इसके प्रत्येक चरण के अन्त में क्रमशः एक लघु व एक गुरु मात्रा आती है।
6. तुक प्रायः पहले चरण की दूसरे से व तीसरे चरण की चैथे चरण से मिलती है।

हरिगीतिका छंद के उदाहरण – Harigitika Chhand ke udaharan

कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गये।
।।ऽ    ।ऽ   ऽ   ऽ।ऽ    ऽ   ऽ।   ।।   ऽ  ।।  ।ऽ
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।
।।    ऽ  ।ऽ     ऽ  ऽ।    ऽऽ    ऽ  ।ऽ   ऽ।।   ।ऽ

लघु लागि विधि की निपुणता, अवलोकि पुर सोभा सही
।।    ऽ।     ।।     ऽ   ।।।ऽ        ।।ऽ।      ।।   ऽऽ    ।ऽ
वन बाग कूप तङाग सरिता, सुभग सब सक को कहीं
।।   ऽ।    ऽ।   ।ऽ।    ।।ऽ      ।।।    ।।   ।।   ऽ   ।ऽ
मंगल विपुल तोरण पताका, केतु गृह गृह सोहहीं
ऽ।।     ।।।     ऽ।।    ।ऽऽ      ऽ।   ।।  ।।    ऽ।ऽ
वनिता पुरुष सुन्दर चतुर छवि, देखि मुनि मन मोहहीं
।।ऽ     ।।।    ऽ।।     ।।।   ।।     ऽ।    ।।    ।।   ऽ।ऽ

श्री रामचन्द्रकृपालुभजुमन, हरण भव भय दारुणं।
ऽ    ऽ।ऽ। ।ऽ। ।।।।             ।।।   ।।  ।।   ऽ।ऽ
नवकंजलोचनकंजमुखकर, कंज पद कंजारुणं।
।।ऽ। ऽ।। ऽ। ।।।।              ऽ।   ।।     ऽऽ।ऽ
कन्दर्प अगणित अमित छबि नव, नील नीरद सुन्दरं।
ऽऽ।      ।।।।।      ।।।     ।।   ।।     ऽ।   ऽ।।    ऽ।ऽ
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि, नौमि जनक सुतावरं।।
।।ऽ।      ऽ।।    ।।।     ।।   ।।      ऽ।    ।।।     ।ऽ।ऽ

संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो
ऽऽ।      ऽ  ।।।ऽ।         ऽ ऽ।ऽ     ऽ।।    ।ऽ
चलते हुए निज इष्ट पथ पर संकटों से मत डरो
।।ऽ    ।ऽ    ।।   ऽ।   ।।   ।।  ऽ।ऽ    ऽ  ।।   ।ऽ
जीते हुए भी मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो
ऽऽ    ।ऽ  ऽ   ।।।    ।।    ।।।।  ।   ऽ।।    ।।   ।ऽ
वर वीर बन कर आप अपनी, विघ्न बाधाएं हरो
।।  ऽ।   ।।  ।।   ऽ।     ।।ऽ     ऽ।      ऽऽऽ   ।ऽ

कोई न मेरे राज्य में, भूखा तथा नंगा रहे
सुख का हिमालय हो खङा, सुख चैन की गंगा बहे

हे तात! हे मातुल! जहाँ हो, है प्रणाम तुम्हें वहीं
अभिमन्यु का इस भाँति मरना, भूल मत जाना कहीं

5. द्रुतविलम्बित छंकिसे कहते है – Drut Vilambit chhand kise kahate hain

लक्षण-  ’’द्रुतविलम्बितमाहनभोभरौ’’

।।। ऽ ।। ऽ। । ऽ।ऽ
1. यह वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते है, जो क्रमशः नगण, भगण व रगण के रूप में लिखे जाते हैं।
3. प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होने के कारण यह जगती का छंद माना जाता है।
4. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।
5. तुक प्रायः सम चरणों में मिलती है।

द्रुतविलम्बित छंद के उदाहरण – Drut Vilambit chhand ke udaharan

दिवस का अवसान समीप था,
।।।     ऽ   ।।ऽ।      ।ऽ।     ऽ
गगन था कुछ लोहित हो चला
।।।    ऽ   ।।     ऽ।।    ऽ  ।ऽ
तरु शिखा पर थी अब राजती,
।।   ।ऽ     ।।  ऽ   ।।   ऽ।ऽ
कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा
।।।ऽ        ।।    ऽ।।     ऽ   ।ऽ

6. सवैया छंद किसे कहते है – Savaiya Chhand kise kahate hain

लक्षण

1. यह वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं।
3. वर्णों की संख्या एवं गणों की प्रकृति के आधार पर इस छंद के ग्यारह भेद किये जाते हैं।
यथा –

सवैया के ग्यारह भेद –

’’मदिरा मालती सुमुखी, चकोर दुर्मिल किरीट।
अरसात अरविन्द सुन्दरी, लवंगलता कुंदल।।’’
ग्यारह भेदों के क्रमानुसार लक्षण
’’सात भगु-दो जलगु में, सात भगुल आठ सभा।
सात भर आठ सलगु में, आठ जल सल एक बढ़ा।।’’

सवैया छंद के भेद व लक्षण

क्र.सं.सवैया का नामलक्षणलक्षण प्रत्येक चरण में वर्णों की सं.सवैया की जाति
1.मदिरा सवैयासात भगण +एक गुरु22 वर्ण  आकृति
2.मालती सवैयासात भगण + दो गुरु23 वर्णविकृति
3.सुमुखी सवैयासात जगण + एक लघु + एक गुरु23 वर्णविकृति
4.चकोर सवैयासात भगण + एक गुरु + एक लघु23 वर्णविकृति
5.दुर्मिल सवैयाआठ सगण24 वर्णसंकृति
6.किरीट सवैयाआठ भगण24 वर्णसंकृति
7.अरसात सवैयासात भगण + एक रगण24 वर्णसंकृति
8.अरविंद सवैयाआठ सगण + एक लघु25 वर्णअतिकृति
9.सुन्दरी सवैयाआठ सगण + एक गुरु24 वर्णअतिकृति
10.लवंगलता सवैयाआठ जगण + एक लघु24 वर्णअतिकृति
11.कुंदलता सवैयाआठ सगण + दो लघु26 वर्णउत्कृति

सवैया छंद के उदाहरण – Savaiya Chhand ke udaharan

भस्म लगावत शंकर के अहि लोचन आनि परी झरिकै
ऽऽ ।ऽ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ
7 भगण + 1 गुरु = मदिरा सवैया

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
ऽ ।।ऽ ।। ऽ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽऽ
7 भगण + गुरु = मालती सवैया

हिये वनमाल रसाल धरे सिर मोर किरीट महा लसिबो
।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ
7 जगण + 1 लघु + गुरु = सुमुखी सवैया

धन्य वही नर नारि सराहत या छवि काटत जो भव फंद
ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ।

सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहे जहँ एक घटी
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ । ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ

मानुष हो तु वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव कि ग्वारिन
ऽ।। ऽ । ।ऽ ऽ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ।। ऽ। । ऽ।।
8 भगण = किरीट सवैया

अन्य उदाहरण

सो कर मांगन को बलि पै करतारहु ने करतार पसारियो
ऽ ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ।ऽ
7 भगण + 1 रगण = अरसात सवैया

नित राम पदै अरविंदन को मकरंद पियो सुमिलिंद समान
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ ।।ऽ। ।ऽ।

सुख शांति रहे सब ओर सदा अविवेक तथा अघ पास न आवे
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽ ऽ
8 सगण + 1 गुरु = सुन्दरी सवैया

भजौ रघुनंदन पाप निकंदन श्री जग बंदन नित्य हिये धर।
।ऽ ।।ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ।ऽ। ।ऽ ।।
8 जगण + एक लघु = लवंगलता सवैया

यहि भाँति हरी जसुदा उपदेसहि भाषत नेह लहैं सुख सों धन।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।
8 सगण + 2 गुरु = कुंदलता या सुख सवैया

जय राम रमा रमनं शमनं भव ताप भयाकुल पाहिजनं
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ।।ऽ
8 सगण = दुर्मिल सवैया

सखि नील नभः सर में उतरा यह हंस अहा तरता तरता
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
8 सगण = दुर्मिल सवैया

7. कवित्त (मनहरण कवित्त) छंद किसे कहते है – Kavitt Chhand kise kahate hain

लक्षण

1. यह दण्डक श्रेणी का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है।
3. इसमें लघु -गुरु आदि के नियम लागू नहीं होते है, केवल वर्णों की संख्या को गिना जाता है।
4. इसमें यति क्रमशः 16 व 15 वर्णों पर अथवा 8,8,8, व 7 वर्णों पर होती है।

कवित्त छंद उदाहरण – Kavitt Chhand ke udaharan

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगुला सौहें तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै केकी कीर बतरावे ’देव’
कोकिल हलावे हुलसावे कर तारी दै।
पूरित पराग सो उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर मारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडव सुअंभ पर
रावण संदभ पर रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर संभु रतिनाह पर
ज्यों सहस्त्र बाहु पर राम द्विजराज है।
दावा दु्रमदंड पर चीता मृग झुंड पर
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर
त्यों मलेच्छ वंस पर सेर सिवराज है।

पात भरी सहरी सकल सुत बारै-बारै,
केवट की जाति कछु वेद न पढ़ाइहौं।
सब परिवार मेरो याहि लागि है राजाजू,
दीन वित्तहीन कैसे दूसरी गढ़ाइहौं।।
गौतम की घरनी ज्यौं तरनी तरेगी मेरी,
प्रभु सो निषाद ह्वै के बात न बढ़ाइहौं
तुलसी के ईस राम! रावरे सौं साँची कहौं
बिना पग धोये नाथ! नाव न चढ़ाइहौं

बिरह बिथा की कथा अकथ अथाह महा
कहत बनै न जौ प्रवीन सुकवीनि सौं।
कहै ’रतनाकर’ बुझावन लगै ज्यों कान्ह
ऊधौं कौं कहन हेतु व्रज जुव तीनि सौं।
गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं
प्रेम पर्यौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं।
नैकु कही बैननि अनेक कही नैननि सौं
रही सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनि सौं।

8. घनाक्षरी छंद किसे कहते है – Ghanakshari Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह भी दण्डक श्रेणी का वर्णिक सम छंद होता हैं।
2. इसके प्रत्येक चरण में 32 या 33 वर्ण होते है।
3. इसमें लघु – गुरु आदि का कोई नियम लागू नहीं होते है।
4. वर्णों की संख्या के आधार पर इसके दो भेद माने जाते हैं।
1. रूप घनाक्षरी – प्रत्येक चरण में 32 वर्ण – यति 16 – 16 पर अथवा 8, 8, 8, 8 पर
2. देव घनाक्षरी – प्रत्येक चरण में 33 वर्ण – यति 16 – 17 पर अथवा 8, 8, 8, 9 पर

घनाक्षरी छंद के उदाहरण – Ghanakshari Chhand ke udaharan

(अ) रूप घनाक्षरी

नगर से दूर कुछ गाँव सी बस्ती है एक,
हरे भरे खेतों के समीप अति अभिराम।
जहाँ पत्रजाल अन्तराल से झलकते हैं,
लाल रूपरैल श्वेत छज्जों के सँवारे धाम।।

प्रभु रुख पाइ कैं बोलाइ बाल धरनिहिं,
बन्दि कै चरन चहुँ दिसि बैठे घेरि घेरि।
छोटो सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजू को,
धोई पाँय पीवत पुनीत बारि फेरि-फेरि।
तुलसी, सराहैं ताको भाग सानुराग सुर,
बरसैं सुमन जय-जय कहैं टेरि-टेरि।
विबुध सनेह सानी बानी असयानी सुनि,
हँसे राधौ जानकी लखत तन हेरि हेरि।

(ब) देव घनाक्षरी –

झिल्ली झनकारै पिक चातक पुकारे बन,
मोरनि गुहारे उठै जुगनू चमकि-चमकि।
घोर घन कारे भारे धुरवा धुरावे धाय,
धूमनि मचावै नाचै दामिनी दमकि दमिक।।
झूकनि बयार बहै, लूकनि लगावै अंग,
हूकनि भभूकनि की उर में खमकि खमकि।
कैसे करि राखाँ प्राण प्यारे जसवंत बिना,
नान्हीं नान्हीं बूँद झरै झमकि झमकि।।

9. मन्दाक्रान्ता छंद किसे कहते है – Mandakranta Chhand kise kahate hain

लक्षण –

मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैमोंभनोतौग युग्मम्।
ऽ ऽ ऽ ऽ। । ।।। ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ऽ ऽ

1. यह अत्यष्टि जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, व गुरु, गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति क्रमशः चार, छह व सात वर्णों पर होती है।

मन्दाक्रान्ता छंद के उदाहरण – Mandakranta Chhand ke udaharan

तारे डूबे, तम टल गया, छा गई व्योम लाली
ऽऽ   ऽऽ  ।।   ।।   ।ऽ     ऽ   ।ऽ    ऽ।    ऽऽ
पंछी बोले, तमचुर जगे, ज्योति फैली दिशा में
ऽऽ     ऽऽ   ।।।।    ।ऽ     ऽ।       ऽऽ   ।ऽ    ऽ
शाखा डोली, सकल तरु की, कंज फूले सरों में
ऽऽ      ऽऽ    ।।।    ।ऽ   ऽ     ऽ।  ऽऽ    ।ऽ  ऽ
धीरे धीरे दिनकर कढ़े, तामसी रात बीती
ऽऽ    ऽऽ  ।।।।     ।ऽ    ऽ।ऽ      ऽ।   ऽऽ

जो मैं कोई विहग उङता देखती व्योम में हूँ,
तो उत्कण्ठावश विवश हो चित्त में सोचती हूँ।
होते मेरे निबल तन में पक्ष जो पक्षियों के,
तो यों ही मैं समुद उङती श्याम के पास जाती।।
ऽ    ऽ  ऽ  ऽ  ।।।    ।।ऽ    ऽ।     ऽ   ऽ।   ऽ ऽ

पीछे बातें, विविध करती, कांपती कष्ट पाती
आयी लेके, स्व प्रिय पति को, सद्म में बन्द वामा
आशा की है, अमित महिमा, धन्य तू देवि आशा
तू छू के है, मृतक बनते, प्राणियों को जिलाती

सूखी जाती, मलिन लतिका, जो धरा में पङी हो
तो तू पंखों, निकट उसको, श्याम के ला गिराना
यों सीधे तू प्रगट करना, प्रीति से वंचिता हो
मेरा होना, अति मलिन औ, सूखते नित्य जाना

10. मालिनी छंद किसे कहते है – Malini Chhand kise kahate hain

लक्षण –

ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलौकेः।
।।।।।। ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ। ऽ ऽ

1. यह अतिशक्करी जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते है, जो क्रमशः नगण, नगण, मगण, यगण, यगण के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति क्रमशः आठ व सात वर्णों पर होती है।

मालिनी छंद उदाहरण –Malini Chhand ke udaharan

प्रिययति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है?
।।।।       ।।   ऽ ऽ  ऽ।   ऽ ऽ    ।ऽ  ऽ
दुख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है?
।।    ।। ।।      ऽ ऽ  ऽ   । ऽ ऽ  । ऽ  ऽ
लख मुख जिसका मैं आज लौं जी सकी हूँ,
।।    ।।    ।।ऽ      ऽ   ऽ।    ऽ   ऽ   ।।   ऽ
वह हृदय हमारा नैन तारा कहाँ है?
।।   ।।।  ।ऽऽ     ऽ।   ऽऽ   ।ऽ   ऽ

11. शिखरिणी छंद किसे कहते है – Shikhrini Chhand kise kahate hain

लक्षण –

यती छः ग्यारा पे यमनसभलागा शिखरिणी।
।ऽ ऽ ऽऽ ऽ ।।।।।ऽऽ ।।। ऽ
अर्थात्
1. यह अत्यष्टि जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः यगण, भगण, मगण, नगण, सगण, भगण व लघु, गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति क्रमशः छह व ग्यारह वर्णों पर होती है।

 

शिखरिणी छंद उदाहरण – Shikhrini Chhand ke udaharan

मिली मैं स्वामी से पर कह सकी क्या सबल के,
।ऽ     ऽ   ऽऽ     ऽ  ।।  ।।   ।ऽ     ऽ    ।।।    ऽ
बहे आँसू होके सखि! सब उपालम्भ गल के।
।ऽ   ऽऽ    ऽऽ   ।ऽ     ।।    ।ऽऽ।      ।।   ऽ
उसे हो आई जो निरख मुझको नीरस दया,
।ऽ   ऽ  ऽऽ    ऽ  ।।।      ।।ऽ     ऽ।।    ।ऽ
उसी की पीङा का अनुभव मुझे यों रह गया।।
।ऽ    ऽ   ऽऽ    ऽ    ।।।।    ।ऽ   ऽ   ।।  ।ऽ

अनूठी आभा से, सरस सुषमा से सुरस से
।ऽऽ     ऽऽ    ऽ    ।।।   ।।ऽ    ऽ   ।।।   ऽ
बना जो देती थी बहु गुणमयी भू विपिन की
।ऽ    ऽ   ऽऽ   ऽ  ।।   ।।।ऽ      ऽ  ।।।     ऽ
निराले फूलों की, विविध दलवाली अनुपमा
।ऽऽ      ऽऽ    ऽ    ।।।     ।।ऽऽ      ।।।ऽ
जङी बूटी नाना, बहु फलवती थी विलसती
।ऽ    ऽऽ    ऽऽ    ।।   ।।।ऽ     ऽ  ।।।ऽ

12. भुजंगप्रयातम् छंद किसे कहते है – Bhujang Prayat Chhand kise kahate hain

लक्षण –

भुजंगप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः।
।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
अर्थात्
1. यह जगती जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः चार यगण के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति चरण के अन्त में होती है।

भुजंगप्रयातम् छंद उदाहरण – Bhujang Prayat Chhand ke Udaharan

बनाती रसोई सभी को खिलाती
इसी काम में आज मैं तृप्ति पाती
रहा किन्तु मेरे लिए एक रोना
खिलाऊँ किसे मैं अलोना सलोना।

बना लो जहाँ ही वहीं स्वर्ग होगा,
।ऽ    ऽ   ।ऽऽ ।   ।ऽ   ऽ।    ऽऽ
स्वयंभूत थोङा कहीं स्वर्ग होगा।
।ऽऽ।       ऽऽ    ।ऽ    ऽ।   ऽऽ
भलों के लिए तो यहीं स्वर्ग होगा।।
।ऽ    ऽ   ।ऽ    ऽ  ।ऽ    ऽ।    ऽऽ

कभी आँख से आँख तेरी लङेगी
कभी कंठ में व्याह-माला पङेगी
कभी चित्त की ग्रन्थि की खोज कोई,
तुझे स्थान देगी, मुझे मान देगी।

13. भुजंगी छंद किसे कहते है – Bhujangi Chhand kise kahate hain

लक्षण –

त्रियालाग सों थे भुजंगी रचो।
।ऽऽ। ऽ ऽ ।ऽऽ ।ऽ

1. यह त्रिष्टुप् जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः तीन यगण व लघु, गुरु के रूप में लिखे जाते हैं।
3. इसमें यति चरण के अन्त में होती है।

भुजंगी छंद उदाहरण – Bhujangi Chhand ke Udaharan

यही वाटिका थी, यहीं थी मही।
यही चन्द्र था चाँदनी थी यही।।
यही वल्लकी थी लिये गोद में।
उसे छोङती थी महा मोद में।।

सखी सत्य क्या मैं घुली जा रही,
।ऽ     ।ऽ      ऽ   ऽ   ।ऽ   ऽ   ।ऽ
मिलूँ चाँदनी में बुरा क्या यही।
।ऽ      ऽ।ऽ    ऽ ।ऽ    ऽ    ।ऽ
नहीं चाहते किन्तु वे चाँदनी,
।ऽ    ऽ।ऽ     ।ऽ    ऽ   ऽ।ऽ
तपोमग्र हैं आज मेरे धनी।।
।ऽऽ।     ऽ  ऽ।    ऽऽ  ।ऽ

सदा देश की कीर्ति गाते रहें
बढ़ा जाति को मोद पाते रहें
पढ़े पूर्वजों की कथा ध्यान दें
चढ़े शीघ्र ऊँचे उन्हें मान दें।

14. इन्द्रवज्रा छंद किसे कहते है – Indravajra Chhand kise kahate hain

लक्षण –

स्यादिन्द्रवज्रायदितौज गौगः।
ऽ ऽ। ऽ ऽ ।।ऽ। ऽ ऽ
1. यह त्रिष्टुप जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः तगण, तगण, जगण व गुरु-गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त मेंहोती है।

इन्द्रवज्रा छंद उदाहरण – Indravajra Chhand ke Udaharan

धन्या मही में शक राजधानी।
माया सशुद्धोधन धन्य धन्या।
धन्या कथा श्री धन जन्म की जो।
धन्या बनाती कवि कीर्ति को भी।

मैं जो नया ग्रंथ विलोकता हूँ,
ऽ   ऽ  ।ऽ    ऽ।     ।ऽ।ऽ     ऽ
भाता मुझे वो नव मित्र सा है।
ऽ ऽ    ।ऽ   ऽ   ।।   ऽ।   ऽ  ऽ
देखूँ उसे मैं नित सार वाला,
ऽऽ   ।ऽ   ऽ  ।।    ऽ।   ऽऽ
मानो मिला मीत मुझे पुराना।।
ऽऽ      ।ऽ    ऽ।    ।ऽ    ।ऽऽ

15. उपेन्द्रव्रज्रा छंद किसे कहते है – Upendravajra Chhand kise kahate hain

लक्षण –

उपेन्द्रवज्राजतजास्त तो गौ
। ऽ। ऽ ऽ।। ऽ । ऽ ऽ

1. यह भी त्रिष्टुप् जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः जगण, तगण, जगण व गुरु-गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

उपेन्द्रव्रज्रा छंद उदाहरण – Upendravajra Chhand ke Udaharan

अनेक ब्रह्मादि न अंत पायो।
अनेकधा वेदन गीत गायो।।
तिन्हें न रामानुज बंधु जानों।
सुनौ सुधि केवल ब्रह्म मानों।।

बङा कि छोटा कुछ काम कीजै,
।ऽ   ।    ऽऽ    ।।    ऽ।    ऽऽ
परन्तु थोङा कुछ सोच लीजै।
।ऽ।     ऽऽ    ।।    ऽ।    ऽऽ
बिना विचारे यदि काम होगा,
।ऽ     ।ऽऽ     ।।   ऽ।    ऽऽ
कभी न अच्छा परिणाम होगा।।
।ऽ    ।     ऽऽ     ।।ऽ।     ऽ ऽ

16. उपजाति छंद किसे कहते है – Upjati Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. जब किसी छंद के किसी चरण में इन्द्रवज्रा के तो किसी चरण में उपेन्द्रवज्रा के लक्षण पाये जाते है, तो वहाँ उपजाति छंद माना जाता है।
2. इस प्रकार अन्य जातियों के मिश्रण को भी ’उपजाति’ छंद के नाम से पुकारा जाता है, ’उपजाति’ का यह मिश्रण कुल चौदह प्रकार से हो सकता है।

उपजाति छंद उदाहरण –Upjati Chhand ke Udaharan

संसार है एक अरण्य भारी।
हुए जहाँ है हम मार्गचारी।
जो कर्म रूपी न कुठार होगा।
तो कौन निष्कंटक भार होगा।।

परोपकारी बन वीर आओ,
।ऽ।ऽऽ       ।।  ऽ।   ऽऽ (उपेन्द्रवज्रा)
सोये पङे भारत को जगाओ।
ऽऽ    ।ऽ  ऽ।।     ऽ  ।ऽऽ (इन्द्रवज्रा)
है मित्र त्यागो मद मोह माया,
ऽ   ऽ।    ऽऽ    ।।   ऽ।    ऽऽ (इन्द्रवज्रा)
नहीं रहेगी यह नित्य काया।।
।ऽ    ।ऽऽ   ।।   ऽ।     ऽऽ (उपेन्द्रवज्रा)

17. वसन्ततिलका छंद किसे कहते है – Vasant Tilka Chhand kise kahate hain

लक्षण –

उक्तावसन्ततिलकातभजाजगौगः
ऽ ऽ । ऽ।।। ऽ । । ऽ। ऽ ऽ

1. यह शक्वरी जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः तगण, भगण, जगण, जगण व गुरु – गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

वसन्ततिलका छंद उदाहरण – Vasant Tilka ke Udaharan

थे दीखते परम वृद्ध नितान्त रोगी
ऽ   ऽ।ऽ    ।।।   ऽ।    ।ऽ।      ऽऽ
या थी नवागत वधू गृह में दिखाती
ऽ    ऽ  ।ऽ।।     ।ऽ  ।।   ऽ  ।ऽऽ
कोई न और इनको तज के कहीं था
ऽऽ   ।   ऽ।    ।।ऽ   ।।    ऽ  ।ऽ   ऽ
सूने सभी सदन गोकुल के हुए थे।

बातें बङी सरस थे कहते बिहारी,
ऽऽ    ।ऽ   ।।।   ऽ  ।।ऽ   ।ऽऽ
छोटे बङे सकल का हित चाहते थे।
ऽऽ   ।ऽ    ।।।    ऽ   ।।    ऽ।ऽ   ऽ
अत्यन्त प्यार सँग थे मिलते सबों से,
ऽ ऽ।        ऽ।   ।।    ऽ  ।।ऽ     ।ऽ   ऽ
वे थे सहायक बङे दुख के दिनों में ।।
ऽ   ऽ  ।ऽ।।    ।ऽ   ।।   ऽ   ।ऽ   ऽ

भू में रमी शरद की कमनीयता थी
नीला अनन्त नभ निर्मल हो गया था
थी छा गई ककुभ में अमिता सितामा
उत्फुल्ल सी प्रकृति थी प्रतिभास होती

16. प्रमाणिका छंद किसे कहते है – Pramanika Chhand kise kahate hain

लक्षण –

प्रमाणिका जरौ लगौ।
।ऽ।ऽ ।ऽ ।ऽ

1. यह अनुष्टुप् जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं, जो क्रमशः जगण, रगण, व लघु, गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

प्रमाणिका छंद उदाहरण – Pramanika Chhand ke Udaharan

हिमाद्रि तुङ्ग शृङ्ग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
।ऽ।       ऽ।     ऽ।    ऽ   ।ऽ।   ऽ।   ऽ।ऽ
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती।।
 ।ऽ।ऽ       ।ऽ।ऽ           ऽ।ऽ        ।ऽ।ऽ
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।
।ऽ।      ऽ।   ऽ।  ऽ  ।ऽ   ।ऽ।     ऽ।    ऽ
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़ै चलो बढ़ै चलो।।
।ऽ।      ऽ।    ऽ।  ऽ  ।ऽ   ।ऽ    ।ऽ  ।ऽ

19. विद्युन्माला छंद किसे कहते है – Vidunmala Chhand kise kahate hain

लक्षण –

मामा गागा विद्युन्माला
ऽऽ ऽऽ ऽऽऽऽऽ

1. यह भी अनुष्टुप् जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं, जो क्रमशः मगण, मगण, गुरु, गुरु, के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें आठों वर्ण ही गुरु वर्ण होते हैं।
4. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

विद्युन्माला छंद उदाहरण – Vidunmala Chhand ke Udaharan

गंगा माता तेरी धारा,
ऽऽ    ऽऽ     ऽऽ  ऽऽ
काटे फंदा मेरा सारा।
ऽऽ    ऽऽ   ऽऽ  ऽऽ
तोङे पापों केरी कारा,
ऽऽ    ऽऽ   ऽऽ   ऽऽ
तारे प्राणी माता सारा।।
ऽऽ    ऽऽ    ऽऽ    ऽऽ

20. तोटक (नंदिनी) छंद किसे कहते है – Totak Chhand kise kahate hain

लक्षण –

सससास सुभूषित तोटक है।
।।ऽ। ।ऽ।। ऽ।। ऽ

1. यह जगती जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होेते हैं, जो क्रमशः चार सगण के रूप में लिखे जाते हैं।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है।

तोटक (नंदिनी) छंद उदाहरण –Totak Chhand ke Udaharan

निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
।।     ऽ।।   ऽ   ।।     ऽ।   ।ऽ
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
।।   ऽ   ।।   ऽ  ।।   ऽ।    ।ऽ
सब जाय अभी पर मान रहे,
।।    ऽ।   ।ऽ    ।।   ऽ।   ।ऽ
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।।
।।ऽ।।       ऽ।।      ऽ।   ।ऽ

21. बरवै छंद किसे कहते है – Barve Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
2. इसके विषम चरणों में 12-12 एवं सम चरणों में 7-7 मात्राएँ होती है।
3. इसे ’ध्रुव’ व ’कुरंग’ छंद के नाम से भी पुकारा जाता है।

बरवै छंद उदाहरण – Barve Chhand ke Udaharan

वाम अंग शिव शोभित, शिवा उदार।
 ऽ।   ऽ।    ।।    ऽ।।      ।ऽ    ।ऽ।
सरद सुवारिद में जनु, तडित विहार।।
।।।     ।ऽ।।   ऽ   ।।    ।।।    ।ऽ।

सबसे मिलकर रह मन, बैर बिसार।
।।ऽ    ।।।।     ।।   ।।    ऽ।  ।ऽ।
दुर्लभ नर तन पाकर, कर उपकार।।
।ऽ।    ।।   ।।   ऽ।।    ।।   ।।ऽ।

22. शालिनी छंद किसे कहते है – Shalini Chhand kise kahate hain

लक्षण –

मात्तौगौचेच्छालिनी बेदलोकैः।
ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ। ऽऽ

1. यह त्रिष्टुप् जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते है, जो क्रमशः मगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु के रूप में लिखे जाते हैं।
3. इसमें यति क्रमशः चार व सात वर्णों पर होती है।

शालिनी छंद उदाहरण – Shalini Chhand ke Udaharan

वीथी वीथी साधु को संग पैये,
ऽऽ     ऽऽ    ऽ।    ऽ   ऽ।   ऽऽ
संगै संगै कृष्ण की कीर्ति गैये।
ऽऽ   ऽऽ   ऽ।     ऽ   ऽ।     ऽऽ
गाये गाये एकताई प्रकासै,
ऽऽ    ऽऽ    ऽ।ऽऽ    ।ऽऽ
एकै एकै सच्चिदानंद भासै।।
ऽऽ    ऽऽ  ऽ।ऽऽ।       ऽऽ

23. चौपाई छंद (चउपई) किसे कहते है – Chaupai Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ होती हैं।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण की दूसरे चरण से व तीसरे चरण की चैथे चरण से मिलती है।

चौपाई छंद (चउपई) उदाहरण – Chaupai Chhand ke Udaharan

विनती सुनलो हे भगवान।
।।ऽ     ।।ऽ     ऽ   ।।ऽ।
हम सब बालक हैं नादान।।
।।   ।।   ऽ।।    ऽ  ऽऽ।

बापू थे तुम पुरुष महान्।
किया विलक्षण तुमने त्राण।।

रघुपति राघवराजाराम, पतित पावन सीताराम।
।।।।      ऽ।।ऽऽ ऽ।        ।ऽ।    ऽ।।    ऽऽऽ।
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।।
।ऽ।     ऽऽ     ऽऽ  ऽ।    ।।ऽ      ।।।।     ऽ  ।।ऽ।

जननी जन्मभूमि की पीर।
तुमने हरी मुक्त रह वीर।।

24. चवपैया छंद किसे कहते है – Chavpai Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 30 मात्राएँ होती हैं
3. इसमें यति क्रमशः दस, आठ व बारह मात्राओं पर होती है।
4. इसमें तुक प्रायः पहले चरण की दूसरे चरण से व तीसरे चरण की चैथे से मिलती है।

चवपैया छंद उदाहरण – Chavpai Chhand ke Udaharan

भै प्रकटकृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी,
ऽ   ।।।।ऽऽ        ऽ।। ऽ ऽ      ऽ ऽ ऽ      ।।ऽ ऽ
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी।
।।।।     ।।ऽऽ     ।।    ।।    ऽऽ   ऽ।।    ऽ।  ।ऽऽ
लोचन अभिरामा तनु घन श्यामा निज आयुध भुज चारी,
ऽ।।      ।।ऽऽ       ।।   ।।   ऽऽ       ।।   ऽ।।     ।।    ऽऽ
भूषण बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी।।
ऽ।।    ।।ऽऽ       ।।।    ।ऽऽ      ऽऽ     ऽ।    ।ऽऽ

25. गीतिका छंद किसे कहते है – Gitika Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती है।
3. प्रत्येक चरण में अन्त में क्रमशः एक लघु व एक गुरु वर्ण आना आवश्यक है।
4. इसमें यति क्रमशः चौदह व बारह मात्राओं पर होती है।
5. इसमें तुक पहले चरण की दूसरे चरण के साथ व तीसरे चरण की चैथे चरण के साथ मिलती है।

गीतिका छंद उदाहरण – Gitika Chhand ke Udaharan

धर्म के मग में अधर्मों, से कभी डरना नहीं
ऽ।   ऽ   ।।   ऽ  ।ऽऽ     ऽ   ।ऽ   ।।ऽ    ।ऽ
चेतकर चलना कुमारग, में कदम धरना नहीं
ऽ।।।     ।।ऽ     ।ऽ।।     ऽ   ।।।    ।।ऽ   ।ऽ
शुद्ध भावों में भयानक, भावना भरना नहीं
ऽ।   ऽऽ    ऽ   ।ऽ।।      ऽ।ऽ      ।।ऽ    ।ऽ
बोध वर्द्धक लेख लिखने, में कमी करना नहीं
ऽ।    ऽ।।    ऽ।    ।।ऽ     ऽ  ।ऽ    ।।ऽ    ।ऽ

हे प्रभो आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए,
ऽ  ।ऽ    ऽऽ।ऽऽ        ऽ।    ।।ऽ    ऽ।ऽ
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
ऽ।     ऽऽ  ।ऽऽ     ऽ  ऽ।   ।।ऽ   ऽ।ऽ
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें,
ऽ।ऽ      ।।ऽ     ।।।    ऽ ।।    ।ऽऽऽ     ।ऽ
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर वृतधारी बनें।।
ऽऽ।ऽ       ऽ।।।।      ऽ।   ।।ऽऽ     ।ऽ

यज्ञरूप प्रभो हमारे, भाव निर्मल कीजिये।
छोङ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये।
वेद की बोले ऋचाएं, सत्य को धारण करे।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर में तरें।

सिद्ध यह सुकरात ईसा, ने किया मरते हुए।
किस तरह से हाथ जलते, हैं हवन करते हुए।।

26. रोला छंद किसे कहते है – Rola Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
3. इसमें यति क्रमशः 11 व 13 मात्राओं पर होती है।
4. इसमें तुक प्रायः दो-दो चरणों में मिलती है।

रोला छंद उदाहरण –Rola Chhand ke Udaharan

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
ऽऽ।।        ।।ऽ।      ।।।    ।।  ।।   ऽ।।   ऽ
सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
ऽ।    ऽ।    ।।   ।।।     ऽ।ऽ      ऽऽ।।    ऽ
नदियां प्रेम-प्रवाह, फूल-तारा-मण्डल है।
।।ऽ      ऽ। ।ऽ।      ऽ।    ऽऽ    ऽ।।     ऽ
बन्दीजन खगवृंद, शेष फन सिंहासन हैं।।
ऽऽ।।       ।।ऽ।      ऽ।  ।।     ऽऽ।।    ऽ

हुआ बाल रवि उदय, कनक नभ किरणै फूटीं।
भरित तिमिर पर परम, प्रभामय बनकर टूटीं।
जगत जगमगा उठा, विभा वसुधा में फैली।
खुली अलौकिक ज्योति-पुंज की मंजुल थैली।।

हे देवी। यह नियम सृष्टि में सदा अटल है,
ऽ  ऽऽ    ।।  ।।।      ऽ।     ऽ  ।ऽ   ।।।   ऽ
रह सकता है वही, सुरक्षित जिसमें बल है।
।।   ।।ऽ   ऽ  ।ऽ     ।ऽ।।      ।।ऽ    ।।  ऽ
निर्बल का है नहीं, जगत में कहीं ठिकाना,
ऽ।।      ऽ  ऽ  ।ऽ    ।।।    ऽ  ।ऽ   ।ऽऽ
रक्षा साधन उसे, प्राप्त हों चाहे नाना।।
ऽऽ    ऽ।।     ।ऽ    ऽ।   ऽ   ऽऽ   ऽऽ

नन्दन वन था जहाँ, वहीं मरूभूमि बनी है।
जहाँ सघन थे वृक्ष, वहाँ दावाग्नि घनी है।।
जहाँ मधुर मालती, सुरभि रहती थी फैली।
फूट रही है आज, वहाँ पर फूट विषैली।।

27. कुण्डलिया छंद किसे कहते है – Kundaliya Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह विषम मात्रिक छंद होता है।
2. यह छंद दोहा व रोला छंदों को मिलाकर बनाया जाता है।
3. इसमें कुल छह चरण होते है।
4. इसके प्रथम दो चरणों में ’दोहा’ छंद के लक्षण व अन्तिम चार चरणों में ’रोला’ छंद के लक्षण पाये जाते है।
5. इसके ’दोहा’ छंद का अन्तिम चरण ’रोला’ छंद के प्रथम चरण में दोहराया जाता हैं।
6. यह छंद जिस ’शब्द’ से आरम्भ होता है, उसी शब्द से समाप्त किया जाता हैं।
7. इसे गाथा छंद भी कहा जाता है।

कुण्डलिया छंद उदाहरण –Kundaliya Chhand ke Udaharan

लाठी में गुन बहुत हैं, सदा राखिए संग,
ऽऽ ऽ ।। ।।। ऽ ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।
गहरे नद नाला जहाँ, तहाँ बचावै अंग।
।।ऽ ।। ऽऽ ।ऽ ।ऽ ।ऽऽ ऽ।
तहाँ बचावै अंग, झपट कुत्ता को मारै,
।ऽ ।ऽऽ ऽ। ।।। ऽऽ ऽ ऽऽ
दुसमन दावागीर, होय ता हू को झारै।
।।।। ऽऽऽ। ऽ। ऽ ऽ ऽ ऽऽ
कह गिरधर कविराय, सुनहु हे मेरे बाटी,
।। ।।।। ।।ऽ। ।।ऽ ऽ ऽऽ ऽऽ
सब हथियारन छोङ, हाथ में लीजै लाठी।।
।। ।।ऽ।। ऽ। ऽ। ऽ ऽऽ ऽऽ

बीती ताहिं बिसारि दै, आगे की सुधि लेय
ऽऽ    ऽ।     ।ऽ।     ऽ   ऽऽ    ऽ   ।।    ऽ।
जो बनि आवे सहज में, ताही में चित देय
ऽ    ।।    ऽऽ   ।।।   ऽ   ऽऽ    ऽ  ।।    ऽ।
ताही में चित देय, बात जो ही बनि आवे
ऽऽ    ऽ  ।।     ऽ।  ऽ।     ऽ  ऽ  ।।    ऽऽ
दुरजन हँसे न कोय, चित्त में खेद न पावे
।।।।     ।ऽ ।   ऽ।      ऽ।    ऽ  ऽ।  ।   ऽऽ
कह गिरधर कविराय, यहै कर मन पर तीती
।।    ।।।।     ।।ऽ।      ।ऽ ।।  ।।    ।।   ऽऽ
आगे की सुधि लेय, समुझि बीती सो बीती
ऽऽ     ऽ   ।।    ऽ।     ।।।    ऽऽ    ऽ   ऽऽ

बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सम्मान, राग रंग मनहिं न भावै।।
कह गिरधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारै।
खटकत है जिय माहिं, कियो जो बिना विचारे।।

’और’ शब्द का लोप हो, द्वन्द्व होवे समाप्त
ऽ।      ऽ।   ऽ    ऽ।   ऽ    ऽ।        ऽऽ    ।ऽ।
संख्यावाची प्रथम पद, आता द्विगु के साथ।
ऽ ऽ ऽ ऽ       ।।।   ।।    ऽऽ     ।।      ऽ  ऽ।
आता द्विगु के साथ, कर्म में बने विशेषण,
ऽ ऽ      ।।    ऽ  ऽ।      ऽ।  ऽ  ।ऽ   ।ऽ।।
कह ’मिश्रा’ कविराय, व्रीहि में पद का न ठौर,
।।     ऽऽ      ।।ऽ।      ऽ।    ऽ  ।।  ऽ  ।   ऽ।
तत्पुरुष में कारक, चिह्न छिपता कहीं और।।
ऽ।।।      ऽ  ऽ।।      ऽ।      ।।ऽ      ।ऽ   ऽ।

तुक बन्दी का बढ़ रहा, कविता में अति जोर।
लगे नाचने मुर्ग भी, समझि स्वयं को मोर।।
समझि स्वयं को मोर, अर्थ तक नहीं जानते।
पढ़ औरों के गीत, काव्य का रस बखानते।।
कहे कपिल समझाय, चल रही है दलबन्दी।
कविता रोती आज, हँस रही है तुकबन्दी।।

28. उल्लाला छंद किसे कहते है – Ullala Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
2. इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
4. इसमें तुक सदैव सम चरणों में मिलती है।

उल्लाला छंद उदाहरण – Ullala Chhand ke Udaharan

करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की
।।ऽ    ।।ऽ।      ।ऽ।   ऽ    ।।ऽऽ     ।।   ऽ।   ऽ
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की
ऽ   ऽ।ऽ।     ऽ   ऽ।    ऽ  ।।।     ऽ।    ऽऽ।   ऽ

हे शरणदायिनी देवि! तू, करती सबका त्राण है।
ऽ । ।।ऽ।ऽ        ऽ।     ऽ  ।।ऽ     ।।ऽ    ऽ।   ऽ
हे मातृभूमि संतान हम, तू जननी तू प्राण है।।
ऽ  ऽ।ऽ।        ऽऽ।   ।।    ऽ  ।।ऽ    ऽ   ऽ।  ऽ

उसकी विचार धारा, धरा के धर्मों में है वही-
सब सार्वभौम सिद्धान्त, का आदि प्रवर्तक है वही

निर्मल अति मन में सदा, उठता यह उद्गार है
सुगति स्वर्ग-अपवर्ग का, गुरु प्रसाद ही द्वार है

29. छप्पय छंद किसे कहते है – Chappay Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह विषम मात्रिक छंद होता है।
2. यह छंद रोला व उल्लाला छंदों को मिलाकर बनाया जाता है।
3. इसमें कुल छह चरण होते है।
4. इसके प्रथम चार चरणों में ’रोला’ छंद के लक्षण व अन्तिम दो चरणों में ’उल्लाला’ छंद के लक्षण पाये जाते है।
5. इसे ’गाथा’ छंद भी कहा जाता है।

छप्पय छंद उदाहरण – Chappay Chhand ke Udaharan

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है,
ऽऽ।।        ।।ऽ।      ।।।   ।।   ।।  ऽ।।    ऽ
सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर हैं।
ऽ।    ऽ।   ।।   ।।।     ऽ।ऽ      ऽऽ।।     ऽ
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारा मण्डल है,
।।ऽ      ऽ।  ।ऽ।     ऽ।   ऽऽ    ऽ।।    ऽ
वन्दीजन खग वृंद, शेष फन सिंहासन है।
ऽ ऽ।।      ।।   ऽ।    ऽ।  ।।    ऽऽ।।     ऽ
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
।।ऽ     ।।ऽ।     ।ऽ।    ऽ  ।।ऽऽ      ।।  ऽ।   ऽ
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
ऽ   ऽ।ऽ।      ऽ  ।ऽ    ऽ   ।।।    ऽ।     ऽऽ।   ऽ

सर्वभूत हित महामन्त्र का, सबल प्रचारक।
सदय हृदय से एक-एक जन का उपकारक।।
सत्यभाव से विश्व बन्धुता का अनुरागी।
सकल सिद्धि सर्वस्व सर्वगत सच्चा त्यागी।।
इसकी विचारधारा धरा के धर्मों में है वही।
सब सार्वभौम सिद्धान्त का आदि प्रवर्तक है वही।।

30. आल्हा छंद किसे कहते है – Alaha Chhand kise kahate hain

लक्षण –

1. यह मात्रिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 31 मात्राएँ होती है।
3. इसके प्रत्येक चरण के अंत में क्रमशः एक गुरु व एक लघु वर्ण अवश्य आता हैं।
4. इसमें यति क्रमशः 16 व 15 मात्राओं पर अथवा 8, 8, 8, व 7 मात्राओं पर होती है।
5. इसमें तुक प्रायः दो-दो चरणों में मिलती है।

आल्हा छंद उदाहरण – Alaha Chhand ke Udaharan

हिमगिरि के उत्तुुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
।।।। ऽ ऽऽ। ।।। ।। ऽ। ।ऽ ऽ ऽ।। ऽ।
एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
ऽ। ।।। ऽऽ ।।ऽ ऽ ऽ। ।ऽ ऽ ।।। ।ऽ।
नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन
ऽऽ ।। ऽ ऽ।। ।। ऽ ऽ। ।।। ऽ ऽ। ।।।
एक तत्त्व की ही प्रधानता, कहो उसे जङ या चेतन।।
ऽ। ऽ। ऽ ऽ ।ऽ।ऽ ।ऽ ।ऽ ।। ऽ ऽ।ऽ

जे नर सरन तकैं, मलखे की उनकी आस तकै मलखान
व्यर्थहिं खीर दियो माता ने क्यों नहिं गरल करायो पान?
सुत मंत्री परिवार सनेही संकट परे करत मोहि याद
विपति परे तिन को मग हेरौं मेरे जीवन को धिरकार।

नोट –

1. यहाँ तीसरे व चैथे चरण में छंद की आवश्यकतानुसार अन्तिम वर्ण को विकल्प से गुरु माना गया है।
2. इस छंद को वीर छंद भी कहा जाता है।
3. आदिकालीन रासो कवि ’जगनिक’ द्वारा रचित ’परमालरासो’ काव्य इसी छंद में रचा गया है, अतः उसे ’आल्हाखंड’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

31. वंशस्थ छंद किसे कहते है – Vanshsth Chhand kise kahate hain

लक्षण –

जतौतु वंशस्थमुदीरितं जरौ
।ऽ । ऽऽ।।ऽ।ऽ ।ऽ
अर्थात्
1. यह ’जगती’ जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं, जो क्रमशः जगण, तगण, जगण, रगण, के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।

वंशस्थ छंद उदाहरण – Vanshsth Chhand ke Udaharan

दिनान्त था वे दिननाथ डूबते,
।ऽ।       ऽ   ऽ  ।।ऽ।     ऽ।ऽ
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे
।ऽ।     ऽऽ   ।।    ऽ।    ऽ।   ऽ
दिगन्त में गो-रज थी समुत्थिता
।ऽ।      ऽ   ऽ।।      ऽ   ।ऽ।ऽ
विषाण नाना बजते सवेणु थे।
।ऽ।       ऽ ऽ  ।।ऽ     ।ऽ।   ऽ

32. शार्दूलविक्रीडितम् छंद किसे कहते है – Shardul Vikriditm chhand kise kahate hain

लक्षण –

सूर्याश्वैर्यदिमः सजौ सततगा शार्दूलविक्रीडितम्
ऽ ऽ ऽ।। ऽ ।ऽ ।।।ऽऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ
1. यह ’अतिधृति’ जाति का सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण व गुरु के रूप में लिखे जाते है।
3. इसमें यति क्रमशः 12 व 5 वर्णों पर होती है।

शार्दूलविक्रीडितम् छंद उदाहरण – Shardul Vikriditm ke Udaharan

जाति-प्रेम न जाति पाँति तुझसे पूछी किसी की कहीं,
ऽऽ     ऽ।    ।  ऽ।     ऽ।    ।।ऽ     ऽऽ   ।ऽ     ऽ   ।ऽ
तेरे सम्मुख रंक और नृप का है भेद होता नहीं।
ऽऽ   ऽ।।      ऽ।   ऽ।  ।।   ऽ   ऽ  ऽ।  ऽऽ    ।ऽ
दोनों ही वन और गेह जग में है तुल्य तेरे लिए
ऽऽ     ऽ ।।    ऽ।   ऽ।  ।।   ऽ ऽ   ऽ।    ऽऽ  ।ऽ
ऊँचे मन्दिर से कुटी तक सभी है चाह तेरी किए।।
ऽऽ    ऽ।।     ऽ  ।ऽ    ।।   ।ऽ    ऽ ऽ।    ऽऽ  ।ऽ

33. स्रग्धरा छंद किसे कहते है – Srgdhra Chhand kise kahate hain

लक्षण –

म्रभ्नैयौनां त्रयेण-त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम्
ऽ ऽ ऽ ऽ ।ऽऽ ।।।।। । ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽऽ
अर्थात्
1. यह प्रकृति जाति का वर्णिक सम छंद होता है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 21 वर्ण होते है, जो क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण, व तीन यगण के रूप में लिखे जाते हैं।
3. इसमें यति क्रमशः 7, 7, 7 वर्णों पर होती है।

स्रग्धरा छंद उदाहरण – Srgdhra Chhand ke Udaharan

नाना फूलों फलों से, अनुपम जग की, वाटिका है विचित्रा,
ऽऽ     ऽऽ     ।ऽ   ऽ   ।।।।     ।।   ऽ    ऽ।ऽ     ऽ   ।ऽऽ
भूले हैं सैकङों ही, मधुप शुक तथा कोकिला गानशीला
ऽऽ   ऽ  ऽ।ऽ     ऽ  ।।।     ।।  ।ऽ    ऽ।ऽ       ऽ।ऽऽ
कौए भी हैं घनेरे, पर धन हरने, में सदा अग्रगामी,
ऽऽ    ऽ  ऽ  ।ऽऽ    ।।  ।।  ।।ऽ    ऽ ।ऽ    ऽ।ऽऽ
कोई है एक माली सुधि इन सबकी जो सदा ले रही है।
ऽऽ   ऽ  ऽ।    ऽऽ    ।।   ।।    ।।ऽ     ऽ  ।ऽ    ऽ ।ऽ  ऽ

भारतीय काव्य शास्त्र
छंद के प्रश्न (Chhand ke Question)

प्रश्न 1. किस छंद के विषम चरणो मे 11-11एवं सम चरणो मे 13-13 मात्राए होती है?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) रोला
(द) उल्लाला
(ब)✔

प्रश्न 2. किस छंद के सम चरणो मे 11-11 एवं विषम चरणो मे 13 -13 मात्राए होती है?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) रोला
(द) उल्लाला
(अ )✔

प्रश्न 3. चौपाई के चरण के अन्त मे निम्न मे से किस मात्रा विधान का निषेध है?
(अ) लघु-लघु
(ब) लघु -गुरु
(स) गुरु -गुरु
(द) गुरु – लघु
(द)✔

प्रश्न 4. हिन्दी मे दोहा छंद अपभ्रंश के किस छंद के समान है ?
(अ) सोरठा
(ब) चौपाई
(स) दूहा
(द) सुक्ति
(स)✔

प्रश्न 5. निम्न मे से अर्द्वसममात्रिक छंद है-
(अ) चौपाई
(ब) उल्लाला
(स) रोला
(द) कुन्डलिया
(ब)✔

प्रश्न 6. देव घनाक्षारी के प्रत्येक चरण मे वर्ण होते है-
(अ) 30
(ब) 31
(स) 32
(द) 33
(द)✔

प्रश्न 7. द्रुतविलम्बित छंदके प्रत्येक चरण का क्रमशः गण होते है-
(अ) नगण भगण भगण रगण
(ब) नगण नगण भगण रगण
(स) नगण भगण भगण नगण
(द) रगण रगण भगण भगण
(अ )✔

प्रश्न 8. हिन्दी साहित्य मे छंदशास्त्र की परम्परामे उपल्ब्ध प्रथम ग्रंथ है-
(अ) छंदसार
(ब) छंद पयोनिधि
(स) छंदमाला
(द) वृत चंद्रोदय
(स)✔

प्रश्न 9. बेमेल छाटिए।
(अ) केशवदास – छंदमाला
(ब) मतिराम – छंदसार
(स) हरिदेव – छंद पयोनिधि
(द) अमीरदास – वृत चंद्रोदय
(ब)✔

प्रश्न 10. किस छंद के प्रत्येक चरण मे 24 मात्राए और 11, 13 मात्राओ पर विराम होता है।
(अ) हरिगीतिका
(ब) गीतिका
(स) रोला
(द) उल्लाला
(स)✔

प्रश्न 11. छंद है –

दिवस का अवसान समीप था
गगन था कुछ लोहित हो चला
तरु शिखा पर थी अब राजती
कमलिनी कुल वल्लभ की प्रथा

(अ) हरिगीतिका
(ब) रोला
(स) द्रुतविलम्बित
(द) चौपाई
(स)✔

प्रश्न 12. छंद वाचन के समय लिया जाने वाला विराम कहलाता है-
(अ) गति
(ब) यति
(स) पाद
(द) चरण
(ब)✔

प्रश्न 13. निम्न मे से समवर्णिक छंद है-
(अ) द्रुतविलम्बित
(ब) हरिगीतिका
(स) रोला
(द) चौपाई
(अ)✔

प्रश्न 14. छंद के अंतर्गत “लय” का तात्पर्य होता है?
(अ) अंतिम वर्ण की समान मात्रा
(ब) उच्चारण में लगा समय
(स) संगीतात्मकता एवं गेयता
(द) वर्णों का निश्चित समूह
(स)✔

प्रश्न 15. “यति” का अर्थ है?
(अ) उच्चारण
(ब) विराम
(स) गेयता
(द) प्रवाह
(ब)✔

प्रश्न 16. छंद पढ़ते समय विशेष प्रवाह को कहते हैं?
(अ) गति
(ब) उच्चारण
(स) प्रवाह
(द) विराम
(अ)✔

प्रश्न 17. लिखित भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है, वर्ण के उच्चारण में लगे समय को कहते हैं?
(अ) मात्रा
(ब) गणना
(स) गति
(द) यति
(अ)✔

प्रश्न 18. निम्न में से कौन सी मात्रा लघु मात्रा है?
(अ) आ
(ब) ई
(स) ऋ
(द) ओ
(स)✔

प्रश्न 19. वर्णों के निश्चित क्रम से बनाए गए समूह को कहते हैं ?
(अ) मात्रा
(ब) गण
(स) प्रवाह
(द) लय
(ब)✔

प्रश्न 20. गण की संख्या कितनी होती है ?
(अ) 7
(ब) 6
(स) 8
(द) 9
(स)✔
व्याख्या:- गणसूत्र -यमाताराजभानसलगा

Chhand MCQ Practice Question

प्रश्न 21. चरण के अंत में आए सामान वर्णों को कहते हैं?
(अ) मात्रा
(ब) गण
(स) तुक
(द) लय
(स)✔

प्रश्न 22. एक गण में कितने वर्ण होते हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) सात
(ब)✔

प्रश्न 23. निम्न में से छंदो के भेद हैं?
(अ) मात्रिक छंद
(ब) वर्णिक छंद
(स) उपरोक्त दोनों
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
(स)✔

प्रश्न 24. निम्न में से कौन सा छंद मात्रिक छंद नहीं है ?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) चौपाई
(द) कवित्त
(द)✔

प्रश्न 25. रोला छंद के साथ किस छंद के योग से “छप्पय” छंद बनता है?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) उल्लाला
(द) गीतिका
(स)✔

प्रश्न26.  किस छंद को 4 बार लिखने पर उसी छंद का एक चरण निर्मित हो जाता है-
(अ) गीतिका
(ब) हरिगीतिका
(स) कुंडलियां
(द) छप्पय
(ब)✔

प्रश्न 27. निम्न में से सबसे कम मात्रा वाला छंद है?
(अ) दोहा
(ब) रोला
(स) बरवै
(द) गीतिका
(स)✔

प्रश्न 28.     28 मात्राओं के चरण वाला छंद है?
(अ) उल्लाला
(ब) बरवै
(स) गीतिका
(द) हरिगीतिका
(द)✔

प्रश्न 29. उल्लाला छंद है?
(अ) वर्णिक छंद
(ब) अर्द्ध सम मात्रिक छंद
(स) सम मात्रिक छंद
(द) विषम मात्रिक छंद
(ब)✔

प्रश्न 30.   छ :चरणों वाला छंद है ?
(अ) छप्पय
(ब) कुंडलिया
(स) उपरोक्त दोनों
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
(स)✔

प्रश्न 31. दोहे का उल्टा छंद कौन सा है ?
(अ) चौपाई
(ब) सोरठा
(स) हरिगीतिका
(द) बरवै
(ब)✔

प्रश्न 32. छप्पय छंद के प्रथम चरण में होता है?
(अ) रोला
(ब) उल्लाला
(स) दोहा
(द) सोरठा
(अ)✔

प्रश्न 33. किस शब्द में प्रथम शब्द ही छंद का अंतिम शब्द होता है ?
(अ) कुंडलिया
(ब) गीतिका
(स) बरवै
(द) छप्पय
(अ)✔

34.चौपाई छंद के बारे में कोनसा कथन उपयुक्त है?

अ प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ,अंत मे भगण नही
ब प्रत्येक चरण में 18 मात्राएँ, अंत मे जगण ओर तगण
स प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ,अंत मे जगण ओर तगण नहीं✅
द प्रत्येक चरण में 18 मात्राएँ, अंत मे लघु ओर गुरु नहीं

35.वसन्ततिलका छंद की विशेषता नही है

1 यह वार्णिक सम छंद है
2 इसके प्रत्येक चरण में 16 वर्ण होते है✅
3 इसके प्रत्येक चरण तगण, भगण,जगण,जगण का क्रम होता है

4 प्रत्येक चरण के अंत मे दो गुरु आते है

36.मात्रिक अर्ध्दसम छंद है

अ चौपाई
ब गीतिका
स हरिगीतिका
द सोरठा✅

37. नंदिनी शब्द में कितनी मात्राएँ है ?

अ चार
ब पांच✅
स तीन
द छह

38.दोहा मूलतः किस भाषा का छंद है ?

अ प्राकृत
ब हिंदी
स अपभ्रंश✅
द पाली

39 कितने वर्णो से अधिक के वृत दंडक की श्रेणी में आते है

अ 24 से अधिक
ब 25 से अधिक
स 26 से अधिक✅
द 28 से अधिक

40 गीतिका छंद की विशेषता नही है

अ प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ
ब 14,12 पर यति, विराम होता है
स चरण के अंत मे लघु,गुरु का क्रम होता है
द यह एक मात्रिक अर्ध्दसम छंद है✅

Chhand Ke Question Answer

41. स्वरों के उच्चारण में जो समय(काल) लगता है,उसे कहते है

अ मात्रा✅
ब ध्वनि
स चरण
द वर्ण

42. वंशस्थ छंद के संदर्भ में कोनसा कथन गलत है

अ प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण,रगण
ब वार्णिक सम छंद है
स प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते है
द प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते है✅

43. कुण्डलिया छंद किन के योग से बना होता है

अ रोला ओर दोहा
ब रोला ओर उल्लाला
स दोहा ओर रोला✅
द सोरठा ओर रोला

44.निम्न में से किस छंद को श्लोक भी कहते हैं❓
अ मात्रिक छंद
ब दोहा छंद
स मुक्त छंद
द वर्णिक छंद✅

*45. यह एक सम वर्ण वृत्त छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं।
अ  बसंत लतिका
ब   इंद्रवज्रा
स  उपेंद्रवज्रा
द  इंद्रवज्रा व उपेंद्रवज्रा दोनों✅

46.”बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
किस छंद के उदाहरण है❓
अ  दोहा
ब  रोला
स  चौपाई✅
द  कवित्त

47.दोहों के बीच एक रोला मिला कर _______बनती है।

अ चौपाई
ब सोरठा
स कवित्त
द कुण्डलिया✅

48. छंद के संदर्भ में कही गयी कथन में सही कूट का चयन करें❓
1 छंद से हृदय का सौंदर्य बोध होता है।

2 छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते है।

3 छंद में स्थायित्व होता है।

4 छंद सरस् होने के कारण मन को भाता है।

कूट-
अ केवल 1,2 व 4 सही
ब केवल 2 व 4 सही
स केवल 1, 2 व 3 सही
द सभी सही✅

49.हिंदी छंदशास्त्र के रचना व रचनाकार के सही कूट का चयन करे-
A छंद प्रभाकर– जगन्नाथ प्रसाद ‘भानू’

B हिंदी छंद प्रकाश- रघुनंदन शास्त्री

C हिंदी छंदोलक्षण- नारायण दास

D छंद रत्नाकर– बृजेश सिंह

कूट
अ केवल A, B व C सही
ब केवल A, C व D सही
स केवल B, C व D सही
द सभी सही✅

50. किसे *’वेदों का पैर’* कहा गया है❓
A रस
B अलंकार
C छंद✅
D इनमें से किसी को नही

51..छंदशास्त्र में मुख्य विवेच्य विषय हैं ❓
A 2
B 3
C 4
D 5✅

52. निम्न में से किस छंद में 6 चरण होते हैं। प्रथम चार चरण रोला छंद के होते हैं तथा अंतिम 2 उल्लाला के होते हैं❓
A छप्पय छंद✅
B बरवै छंद
C कवित्त छंद
D द्रुत विलंबित छंद

53..”हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।”
किस छंद का उदाहरण है❓
A गीतिका छंद✅
B हरिगीतिका छंद
C उल्लाला छंद
D कुंडलियां

54.यह अर्धसममात्रिक छंद है❓
A सोरठा छंद✅
B रोला छंद
C सोरठा व रोला
D कोई नही

55. इसमें प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में11-11 मात्राएँ होती है। चरण के अंत में लघु ( l ) होना आवश्यक है❓
A चौपाई
B दोहा✅
C कुंडलियां
D सोरठा

56.”मुझे नहीं ज्ञात कि मैं कहाँ हूँ

प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।”

ये किस छंद का उदाहरण है❓
A सममात्रिक✅
B अर्ध सममात्रिक
C विषम मात्रिक
D वर्णिक छंद

57.. जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर होती है, उन्हें कहते हैं❓
A मात्रिक छंद✅
B वर्णिक छंद
C मुक्त छंद
D कोई नही

58. इनमें से किस छंद को *रबर या केंचुआ* छंद भी कहा जाता है❓
A मात्रिक छंद
B वर्णिक छंद
C मुक्त छंद✅
D इनमें से कोई नही

59. छंद के कितने अंग होते है❓
A 2
B 3
C 4
D 6✅

60. किस छंद का दूसरा नाम सिद्धोन्नता है?
अ.मालिनी
ब.बसंततिलका✅
स.मन्दाक्रान्ता
द.इन्द्रवज्रा

61. वर्णिक छंद के कितने भेद होते है  ?
अ.2✅
ब.3
स.1
द.4
62.चंचला में कितने वर्ण होते है ?
अ.8
ब.12
स.16✅
द.21

प्रश्न=63. बिहारी के काव्य में कौन से छंद का प्रयोग हुआ है?
(अ) दोहा
(ब) रोला
(स) गीतिका
(द) हरिगीतिका
(a)✔

प्रश्न 64. छंद प्रभाकर के रचयिता कौन है?
(अ) कुन तक
(ब) लाला भगवानदीन
(स) जगन्नाथ प्रसाद भानु
(द) कोई नहीं
(c)✔

प्रश्न 65. छप्पय छंद के प्रथम चरण में होता है?
(अ) रोला
(ब) उल्लाला
(स) सोरठा
(द) दोहा
(अ)✔

प्रश्न 66. उल्लाला के प्रथम चरण में मात्राएं होती हैं?
(अ) 11
(ब) तेरा
(स) 15
(द) 16
(c)✔

प्रश्न 67. रोला छंद के साथ किस छंद के योग से छप्पय छंद बनता है ?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) उल्लाला
(द) गीतिका
(3)✔

प्रश्न 68. जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर?
(अ) चौपाई
(ब) रोला
(स) सोरठा
(द) कोई नही
(1)✔

प्रश्न 69. दोहा छंद में मात्राओं की कुल संख्या होती है ?
(अ) 11
(ब) 13
(स) 24
(द) 48
(4)✔

प्रश्न 70. किसी छंद के किसी एक चरण की मात्राओं का योग भिन्न होने पर वह छंद होगा ?
(अ) सम मात्रिक छंद
(ब) अर्द्ध सम मात्रिक
(स) विषम मात्रिक
(द) वर्णिक छंद
( 3 )✔

प्रश्न 71. छंद शास्त्र के रचयिता हैं?
(अ) पिंगल
(ब) महर्षि शेष
(स) रघुवर दयाल
(द) भानु
(A)✔

प्रश्न 72. निम्न में से कौन सा सम मात्रिक छंद है ?
(अ) बरवे
(ब) उल्लाला
(स) रोला
(द) कोई नहीं
(C)✔

प्रश्न 73.वर्ण, मात्रा, गति,यति के नियमों से नियंत्रित रचना कहलाती है?
(अ) काव्य
(ब) गीत
(स) छंद
(द) अलंकार
(स)✔

प्रश्न 74. तीन वर्णों का समूह कहलाता है?
(अ) गण
(ब) यति
(स) तुक
(द) लय
(अ)✔

प्रश्न 75.किस गण में तीनों वर्ण गुरु होते हैं ?
(अ) नगण
(ब) तगण
(स) जगण
(द) मगण
(द)✔

प्रश्न 76.किस वर्ण में तीनों वर्ण लघु होते हैं ?
(अ) भगण
(ब) सगण
(स) नगण
(द) मगण
(स)✔

प्रश्न 77.जिन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं, कहलाते हैं ?
(अ) मात्रिक
(ब) वर्णिक
(स) मुक्तक
(द) विषम
(अ)✔

प्रश्नन 78. बत्तीस से अधिक मात्राओं के और छब्बीस से अधिक वर्णों के छंद कहलाते हैं?
(अ) साधारण
(ब) दंडक
(स) मात्रिक
(द) वर्णिक
(ब)✔

प्रश्न 79.छंद की प्रत्येक पंक्ति कहलाती हैं ?
(अ) चरण
(ब) लय
(स) प्रवाह
(द) तुक
(अ)✔

प्रश्न 80.चारों चरणों में समान मात्राओं वाले छंद को क्या कहते हैं?
(अ) मात्रिक सम छंद
(ब) मात्रिक विषम छंद
(स)मात्रिक अर्द्धसम छंद
(द) गणबद्ध छंद
(अ)✔


प्रश्न 81.निम्नलिखित में मात्रिक सम छंद है ?
(अ) द्रुतविलंम्बित
(ब) दोहा
(स) चौपाई
(द) कुंडलिया
(स)✔


प्रश्न 82. श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुवर विमल जसु
जो दायक फल चारि ।। ?
(अ) रोला
(ब) दोहा
(स) सोरठा
(द) चौपाई
(ब)✔

महत्त्वपूर्ण लिंक :

सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      

  🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

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