• मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • कहानियाँ
  • हिंदी व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • हिंदी कविता
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • हिंदी लेख
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

Harivansh Rai Bachchan-हरिवंशराय बच्चन- सम्पूर्ण परिचय

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:25th Nov, 2020| Comments: 4

आज के आर्टिकल में हम साहित्य के चर्चित कवि हालावाद के जनक हरिवंश राय बच्चन जी (Harivansh Rai Bachchan) के सम्पूर्ण परिचय को पढेंगे ,इनसे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्यों का अध्ययन करेंगे ।

Harivansh Rai Bachchan

हरिवंश राय बच्चन

Table of Contents

  • हरिवंश राय बच्चन
      •  सम्मान व पुरस्कार
      • आत्मकथात्मक चार खण्ड-
      • प्रमुख काव्य संग्रह
      • अन्य काव्य संग्रह-
      • डायरी-
      • सम्पूर्ण काव्य
      • निबंध संग्रह-
      • अनुवाद कार्य-
      • महत्त्वपूर्ण तथ्य 
      • प्रमुख पंक्तियाँ(Harivansh Rai Bachchan)
      • प्रो. कुमुद शर्मा के अनुसार-
      • हरिवंशराय बच्चन
      • हरिवंशराय बच्चन
      • हरिवंशराय बच्चन
      • हरिवंशराय बच्चन
        • हरिवंशराय बच्चन
      • हरिवंशराय बच्चन
    • आत्म परिचय(व्याख्या सहित)
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-
    • व्याख्या-
    • महत्त्वपूर्ण लिंक

 

  • जन्म- 27 नवम्बर 1907 ई. इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गाँव
  • मृत्यु- 18 जनवरी 2003 ई. मुम्बई
  • पूरा नाम- हरिवंश राय श्री वास्तव
  • पिता- प्रतापनारायण श्री वास्तव
  • माता- सरस्वती देवी
  • उपनाम- हालावादी
  •  इनको बाल्यकाल में ’बच्चन’ कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ ’बच्चा’ या ’संतान’ होता है बाद में से इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।
  •  प्रारंभिक शिक्षा- काव्यस्व पाठशाला से उर्दू की शिक्षा ली।

1. 1932 ई. में प्रथम रचना ’तेरा हार’,
2. 1942-1954 ई. तक इलाहाबाद विश्व विद्यालय अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे।
3. 1952-1954 ई. कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय पी. एच. डी
4. 1955 ई. में विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ
5. 1955 ई. राज्यसभा सदस्य


 सम्मान व पुरस्कार

  • सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार,(1966 ई.)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (दो चट्टाने),1968 ई. में
  • पद्म भूषण (साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में),1976 ई. में
  • प्रथम सरस्वती सम्मान (चार आत्म कथात्मक खण्डों के लिए),1991 ई.
  • कमल पुरस्कार (एफ्रो एशियाई सम्मेलन के द्वारा),1968 ई.

आत्मकथात्मक चार खण्ड-

  • क्या भूलूं क्या याद करूँ(1969 ई.)
  • नीङ का निर्माण फिर(1970 ई.)
  • बसेरे से दूर(1977 ई.)
  • दशद्वार तक सोपान तक(1985 ई.)

प्रमुख काव्य संग्रह

  • मधुशाला (1935 ई.)
  • मधुबाला (1938 ई.)
  • मधुकलश (1938 ई.)
  • निशा निमंत्रण (1938 ई.)
  • एकांत संगीत (1939 ई.)
  • आकुल अंतर (1943 ई.)
  • संतरंगिणी (1945 ई.)
  • मिलन यामिनी (1950 ई.)
  • हलाहल (1950 ई.)
  • धार के इधर-उधर (1954 ई.)
  • प्रणय पत्रिका (1955 ई.)
  • आरती और अंगारे (1958 ई.)
  • त्रिभंगिमा (1961 ई.)
  • चार खेमे चौसठ खूंटे (1962 ई.)
  • दो चट्टाने (1965 ई.)
  • जाल समेटा (1973 ई.)

अन्य काव्य संग्रह-

1. 1935 ई. खयाम की मधुशाला

डायरी-

1. प्रवासी की डायरी

सम्पूर्ण काव्य

1. 1983 ई. बच्चन ग्रन्थावली 10 खण्ड

निबंध संग्रह-

1. नए पुराने झरोखे
2. टूटी-फूटी कङियाँ

अनुवाद कार्य-

1. हैमलैट
2. मैकबैथ
3. जनगीता- (भगवद गीता का दोहे चौपाई में अनुवाद)
4. 64 रूसी कविता

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  •  क्षयी रोमांस का कवि-बच्चन
  •  जनता के कवि (बच्चन का उपमान)
  •  बंगाल के काल और ’महात्मा गांधी की हत्या’ पर लिखी कविताएं सर्वथा कवित्व रहित है।
  •  खादी के फूल– पंत तथा बच्चन द्वारा रचित रचना
  •  हालावाद के धर्मग्रंथ- मधुशाला 1935, मधुबाला, मधुकलश
  •  हाऊस आफ वाइन 1938 (लंदन) मधुशाला का अंग्रेजी अनुवाद।
  •  अनुवादकर्ता- 1. मार्जरी बोल्टन, 2. रामस्वरूप व्यास
  •  चाँद पत्रिका में भी कार्य किया।
  •  ’मदारी’ हास्य (पत्रिका) के सम्पादक रहे।
  •  प्रथम पत्नी श्यामा की मृत्यु पर ’निशा निमंत्रण’ लिखी।
  •  दूसरी पत्नी डाॅ. तेजी सिंह (मनोविज्ञान प्रोफेसर)
  •  ’सिसिफस बरक्स हनुमान’ लम्बी कविता।

प्रमुख पंक्तियाँ(Harivansh Rai Bachchan)

1. ’’पूर्व चले की बटोही, बाट की पहचान कर लो।’’
2. ’’प्रार्थना मतकर मतकर मतकर, मनुष्य पराजय के स्मारक है, मठ मस्जिद गिरिजाधर।’’
3. ’’है चिता की राख कर में माँगनी सिंदूर दुनिया’’
4. ’’गाता हूँ अपनी लय भाषा सीख इलाहाबाद नगर से’’
5. ’’कोई न खङी बोली लिखना आरंभ करे अंदाज मीर का बेजाने बेपहंचाने’’
6. ’’मुझमें देवत्व है जहाँ पर, झुक जाएगा लोक वहाँ पर’’
7. ’’है अंधेरी रात, पर दीवा जलाना कब माना है’’
8. ’’कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा मधुकलश’’
9. ’’वृद्ध जग को क्यों अखरती है क्षणिक मेरी जवानी’’
10. ’’मै जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ।’’

 

  •  निराला के देहांत के पश्चात उनके मृत शरीर का चित्र देखने पर बच्चन द्वारा लिखित कविता-
    ’’मरा
    मैनें गरूङ देखा
    गगन का अभिमान
    धराशायी, धूल धूसर, म्लान।’’ – (मरण काले)

 प्रो. कुमुद शर्मा के अनुसार-

’’इन्होंने (बच्चन) खङी बोली हिन्दी कविता को ही एक नया आयाम नहीं दिया बल्कि हिन्दी का आत्म कथा को भी एक नया मोङ दिया, जिसमें ’कविता, गद्य की गंगा और जीवनी की जमुना एक साथ उपस्थित हुई।’

प्रो. कुमुद शर्मा के अनुसार-

’’ ’मधुशाला’ प्रकाशित होने के बाद इसे शाब्दिक, सांस्कृतिक और तान्त्रिक रूप में बच्चन की भैरवी कहा गया।’’

अब हम इनके बारे विस्तृत जानकारी भी पढ़ लेते है ….

प्रगति-प्रयोग काल के पूर्वाभास के तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि है ही स्वच्छन्दतावादोत्तर काल के श्रेष्ठ कवियों में भी एक कवि है। स्वच्छन्दतावाद-काल की रचनाओं का औदात्य और गौरव स्वच्छन्दतावादोत्तर काल के न तो किसी कवित में मिलेगा और न समस्त रचनाओं में। पर इतिहास के विकास के क्रम में बच्चन ने कविता को जमीन पर उतारा, उसे इहलौकिक जीवन से सम्बद्ध किया और उसकी सीमा का विस्तार भी किया।

स्वच्छन्दतावादी कवियों ने भी अपने निजी दुःख को विस्तारर दिया है। निराला को छोङकर शेष कवियों में वह विस्तार लोक की सीमा का अतिक्रमण कर वायवीय हो जाता है। पर बच्चन भावनापरक होते हुए भी उसे धरती पर ही कायम रखते है।

बच्चन को प्रसिद्धि ’मधुशाला’ के गायन से मिली, जिसे वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक कवि सम्मेलन (1933) ने आद्यन्त सुना चुके थे। उसके आधार पर उन्हें ’हालावाद’ का प्रवर्तक भी कहा जाने लगा। हिन्दी में इस तरह को कोई वाद नहीं चला। यदि हालावाद नाम देना ही हो तो इस प्रवृत्ति का श्रेय बालकृष्ण शर्मा ’नवीन’ और भगवतीचरण वर्मा को देना चाहिए।

इसके पहले ’नवीन’, ’साकी भर-भर ला तू अपनी हाला’ और भगवतीचरण वर्मा ’बस मत कह देना अरे पिलाने वाले, हम नहीं विमुख हो जाने वाले’ लिख रहे थे।

हरिवंशराय बच्चन

इसमें सन्देह नहीं कि मधुशाला (1933), मधुबाला (1936) और मधुकलश (1937) पर उमरखैयाम की गहरी छाप है। उसकी रुबाइयों का उनका किया अनुवाद भी 1935 में छपा। किन्तु इसके पहले मैथिलीशरण गुप्त, गिरिधर शर्मा के अनुवाद सन् 1931 तथा कैलाशप्रसाद पाठ का अनुवाद 1932 में प्रकाशित हो चुके थे। खैयाम के प्रभाव को बच्चन ने ’ये पुराने झरोखे’ में स्वयं स्वीकार किया है। खैयाम और बच्चन का अन्तर यह है कि पहले का क्षण-वाद मृत्युभीति से पीङित है तो दूसरे का मृत्यु के अन्तर्भाव में उल्लसित।

’मधुशाला’ की लोकप्रियता का एक कारण और है कि उसमें स्वच्छन्दतावादी निषेध का निषेध है। ’मधुबाला’ और ’मधुकलश’ में वह जीवन-जगत की समस्याओं से निकट का साक्षात्कार करता है। इस दृष्टि से मधुबाला की ’प्याला’, ’हाला’, ’इसपार-उसपार’ और ’पगध्वनि’ द्रष्टव्य है। प्रथम दोनों कविताएँ कवि का भी परिचय देती है- ’मिट्टी का तन, मस्ती का मन। क्षण भर जीवन-मेरा परिचय।’ ’उल्लास-चपल, उन्माद तरल, प्रतिपल पागल-मेरा परिचय। ’इस पर उस पार’ पंत के परिवर्तन की याद दिलाती है जिसके झंझावाद में परिवर्तन खो गया है किन्तु बच्चन का इस पार उस पार के परिप्रेक्ष्य में सहज और मानवीय है।

हरिवंशराय बच्चन

’मधुकलश’ में लहरों से लङने का आमन्त्रण स्वीकार करते हुए कवि कहता है-
’डूबात मैं किन्तु उतराता
सदा व्यक्तित्व मेरा
हों युवक डूबे भले ही
कभी डूबा न यौवन।
तीर पर कैसे रुकूँ मैं,
आज लहरों में निमन्त्रण।

यौवन के प्रति गहन आस्था जीवन के प्रति आस्था है। वह मधुबाला में लिख चुका है-
’यह अपनी कागज की नावें
तट पर बाँधो, आगे न बढ़ो
ये तुम्हें डूबा देंगी गल कर
हे श्वेत-केश-धर कर्णधार।’

बच्चन का विकास का प्रथम चरण 1933 से 1947 तक है तो द्वितीय चरण 1947 से आज तक। इस अवधि में उनकी तीन प्रमुख कृतियाँ प्रकाशित हुई- निशा निमन्त्रण (1938), एंकान्त संगीत (1939) और आकुल अन्तर (1943)। अधिकांश लोगों की दृष्टि में ’निशा निमन्त्रण’ उनकी सर्वोत्तम रचना है। ’मधुकलश’ के प्रथम गीत का स्वर है आज भरा जीवन मुझमें, है आज भरी मेरी गागर’ यहाँ चुक जाता है। उसके स्थान पर वेदना, निराशा और अकेलेपन की काली घटा घिर आती है।

हरिवंशराय बच्चन

ये रचनाएँ पत्नी की मृत्यु से उद्भूत कवि के गम्भीर उद्गार है। इन्हें प्रणयगीत नहीं कहा जा सकता और न विरहगीत। शास्त्रीय शब्दावली में ये शोकगीत (एलेजी) है। शोकगीत का अनुभूत्यात्मक गाम्भीर्य जो कवि को उदारता की ओर ले जाता है और निश्चय ही अत्यन्त प्रभावशाली बन पङा है। इसके साथ ही निराला का एक शोकगीत (एलेजी) है।

शोकगीत का अनभूत्यात्मक गाम्भीर्य जो कवि को उदारता की ओर ले जाता है निश्चय ही अत्यन्त प्रभावशाली बन पङा है। इसके साथ ही निराला का एक शोकगीत भी मानस क्षितिज पर उभरता है। जो अपने सामाजिक सन्दर्भों और संघर्षों के कारण हिन्दी साहित्य में अद्वितीय हो गया है। बच्चन के इस शोकगीत में सामाजिक सन्दर्भ-संघर्ष प्रायः नहीं है। ऐसी स्थिति में इसका प्रभाव एक हद तक पङकर रह जाता है।

इस शोकगीत में चिङियों के नीङ, संध्या, पतझङ, पपीहा, उडु, चाँदनी आदि के माध्यम से कवि अपनी दुःखाभिव्यक्ति करता है। ये सभी प्रतीक पुराने हैं किन्तु उन्हें पूरे सन्दर्भ में कहीं विसंगति और कहीं सादृश्य के परिप्रेक्ष्य में रखकर अनुभूति को गहरा कर दिया गया है-

बच्चे प्रत्याक्षा में होंगे,
नीङो से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिङियों के भरता कितनी चंचलता है!
अन्तरिक्ष में आकुल-आतुर
कभी इधर उङ कभी उधर उङ,
पंथ नीङ का खोज रहा है पिछङा पंछी एक अकेला!
नीलम से पल्लव टूट गए,
मरकत से साथी छूट गए
अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम सखे!

चिङियों की नीङ में पहुँचने की आतुरता, बच्चों की सुधियाँ कवि को बहुत निरीह और अकेला बना देती है क्योंकि उसका नीङ नष्ट हो चुका है। फिर भी वह कहीं ईष्यालु नहीं है- ’मत देख नजर लग जायेगी, यह चिङियों का सुखधाम, सखे।’ यही दृष्टि उसे मानवीय बना देती है। पीत-पातों का जीवन डाली थाम कर लटके रहना इस प्रकार की आस्था ही है।

हरिवंशराय बच्चन

’एकान्त-संगीत’ में वह अपनी वेदना से उकेरने की कोशिश करता है। इसमें वह प्रश्न पूछता है- ’अस्त जो मेरा सितारा था हुआ, फिर जगमगाया ? पूछता, पाता न उत्तर।’ फिर भी वह कहता है- ’क्षतशीश मगर नतशीश नहीं।’ वह अपना आन्तरिक बल घनीभूत करता हुआ करता है-
अग्नि पथ ! ⋅अग्नि पथ ! अग्नि पथ!
वृक्ष हो भले खङे,
हो घने हो बङे,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
झुकी हुई अभिमानी गर्दन
बन्धे हाथ निष्प्रभ लोचन!
यह मनुष्य का चित्र नहीं, पशु का है रे कायर!

हरिवंशराय बच्चन

’निशा निमन्त्रण’ में आत्मान्वेषण की जो प्रक्रिया आरम्भ हुई तो वह एकान्त संगीत में आकर राह पकङ लेती है। लेकिन अभी उसकी खोज जारी है। ’आकुल अन्तर’ में वह लिखता है-
’मैं खोज रहा हूँ, अपना पथ
अपनी शंका समाधान
चाँद सितारे मिलकर गाओ
इतने मत उन्मत्त बनो’
में उसे मार्ग मिल जाता है। ’जिसके आगे झंझा रुकते’ में वह कहता है-
’जीवन में जो कुछ बचता है
उसका भी है कुछ आकर्षण।’

सतरंगिनी (1945) से मिलनयामिनी(1955), प्रणयपत्रिका (1955) तक इनके विकास का अगला चरण है। इस बीच ’बंगाल का काल’ (1946), हलाहल (1946), ’सूत की माला’ (1948) और खादी के फूल (1948) जैसी अनुभूति शून्य सामाजिक-राजनीतिक रचनाएँ भी लिखी गई।

’सतरंगिनी’ में उसे मार्ग मिल जाता है-
’हे अँधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है
जो बीत गई वह बात गई
नीङ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आवाह्न फिर-फिर’
से यह स्पष्ट हो जाता है। ’मिलनयामिनी’ और ’प्रणयपत्रिका’ में मिलनोत्सुक गीत है।

हरिवंशराय बच्चन

धार के इधर-उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), और बुद्ध नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चैंसठ खूँटे (1962) आदि में उनकी विषय-वस्तु व्यापक हो गई है। त्रिभंगिमा और चैंसठ खूँटे में ग्राम्यगीतों की सोंधी लय है। ’दो चट्टानें’ (1965) में ’सिसिफस बरक्स हनुमान’ नामक लम्बी रचना में ’येट्स की तरह’ मिथक निर्मित करने का सफल प्रयास दिखाई देगा।

बच्चन के सम्पूर्ण काव्य की विशेषता है कि वे (बंगाल का काल सूत की माला आदि को छोङकर) कहीं भी एक स्तर के नीचे नहीं जाते। भाषा और कथ्य में कहीं विक्षेप नहीं पङता। बच्चन की भाषा, वाक्य-विन्यास को आगे चलकर अधिकांश कवियों ने, बिना ऋण स्वीकार के, अपना आदर्श माना है।

आत्म परिचय(व्याख्या सहित)

आत्म परिचय- हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ’आत्म-परिचय’ कविता ’निशा निमंत्रण’ से संकलित है। इस गीत में यह प्रतिपादित किया गया है कि अपने को जानना दुनिया को जानने से कठिन है। समाज से व्यक्ति का सम्बन्ध खट्टा-मीठा तो होती ही है, जग-जीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है। व्यक्ति को चाहे दूसरों के आक्षेप कष्टकारी लगे, परन्तु अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। सांसारिक द्विधात्मक सम्बन्धों के रहते हुए भी व्यक्ति जीवन में सामंजस्य स्थापित कर सकता है।

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ !

·मैं स्नहे-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !

व्याख्या-

कवि कहता है कि मैं इस सांसारिक जीवन का भारत अपने ऊपर लिये हुए फिरता रहता हूँ। इस तरह की विवशता के बावजूद मेरे जीवन में प्यार-प्रेम सदा बना हुआ है। किसी प्रिय ने मेरे हृदय की भावनाओं का स्पर्श करके (हृदय रूपी वीणा के तारों से) इसे झंकृत कर दिया है इस तरह मैं अपनी साँसों के दो तार लिये हुए जग-जीवन में फिरता रहता हूँ।

कवि बच्चन कहते है कि मैं प्रेमरूपी शराब को पीकर मस्त रहता हूँ। इसी मस्ती में इस बात का विचार कभी नहीं करता हूँ कि लोग मेरे सम्बन्ध में क्या कहते है। मैं इस बात की चिन्ता नहीं करता हूँ। यह संसार तो उन्हें पूछता है जो उनके कहने पर चलते है, उनके अनुसार गाते है; किन्तु मैं अपने मन की भावनाओं के अनुसार गाता हूँ तथा अपने ही मनोभावों को अभिव्यक्ति देता हूँ।

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजा पर मस्त बहा करता हूँ !

व्याख्या-

कवि कहता है क मैं इस संसार के बारे में अपने हृदय में नये-नये भाव रखता हूँ, मैं उन्हीं मनोभावों को लेकर उङता-घुमङता रहता हूँ। मैं किसी अन्य के इशारे पर नहीं चलता, मैं अपने हृदय की भावना को ही श्रेष्ठ भेंट मानकर अपनाता रहता हूँ। मुझे यह सारा संसार अधूरा लगता है, इसमें प्रेम का अभाव-सा है। यह इसी कारण मुझे अच्छा नहीं लगता है। मेरे मन में प्रेममय सुन्दर सपनों का संसार है और उसी को लेकर मैं आगे बढ़ता रहता हूँ अर्थात् मैं अपने अनुसार प्रेममय संसार की रचना करना चाहता हूँ।

कवि कहता है कि मेरे हृदय में प्रेम की अग्नि जलती रहती है और मैं उसी की आँच से स्वयं तपा करता हूँ। कवि कहता है कि मैं प्रेम-दीवानगी में मस्त होकर जीवन में सुख-दुख दोनों दशाओं में मग्न रहता हूँ। यह संसार विपदाओं का सागर है, मैं इसे प्रेमरूपी नाव से पार करना चाहता हूँ। इसलिए भव-सागर की लहरों पर प्रेम की उमंग और मस्ती के साथ बहता रहता हूँ। इस तरह मैं मदमस्त जीवन-नाव से

संसार-सागर के किनारे लग जाता हूँ।
मैं योवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ !
का यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

व्याख्या-

कवि अपने सम्बन्ध में कहता है कि मैं जवानी की मस्ती में रहता हूँ, मेरे ऊपर प्रेम की अत्यधिक सनक सवार रहती है। इस दीवानगी में मुझे कदम-कदम पर निराशा भी मिलती है, अर्थात् दुःख विषाद की भावना विद्यमान रहती है। इससे मेरी मनःस्थिति बाहर से तो हँसते हुए अर्थात् प्रसन्नचित रहती है; परन्तु अन्दर-ही-अन्दर रुलाती रहती है। इस स्थिति का मूल कारण यह है कि मैं अपने हृदय में किसी प्रिय की मधुर स्मृति बसाए हुए हूँ और हर समय उसकी याद करता रहता हूँ और उसके न मिलने से दुःखी हो जाता हूँ।

कवि कहता है कि इस संसार को जानने के लिए अनेक प्रयत्न किये, सबने सत्य को जानने की कोशिश की, परन्तु जीवन-सत्य को कोई नहीं जान पाया। इस तरह जिसे भी देखों वही नादानी कर रहा है। इस संसार में जिसे जहाँ पर भी धन, वैभव और भोग-सामग्री मिल जाती है, वह वहीं पर दाना चुगने लगता है अर्थात् स्वार्थ पूरा करने लगता है; परन्तु कवि की दृष्टि में ऐसे लोग मूर्ख होते है, क्योंकि वे जान-बूझकर सांसारिक लाभ-मोह के चक्कर में उलझे रहते है। मैं संसार की इस नादानी को समझ गया हूँ। इसलिए मैं सांसारिकता का पाठ सीख रहा हूँ और सीखे हुए ज्ञान को अर्थात् पुरानी बातों को भूलकर अपने मन के अनुसार चलना सीख रहा हूँ।

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोङा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

व्याख्या-

कवि कहता है कि मैं भावुक कवि हूँ, जबकि संसारी लोग दुनियादारी निभाने में लगे रहते है, इस कारण मैं और संसार दोनों अलग-अलग है। अतः मेरा और संसार का कोई नाता या सम्बन्ध नहीं है। मेरा तो इस संसार के साथ टकराव-अलगावा चलता रहता है। मैं रोज एक नये संसार की अर्थात् नये आदर्श की रचना करता हूँ। यह संसार जिस धन-समृद्धि को एकत्र करने में लगा रहता है, मैं उसे पूरी तरह ठुकरा देता हूँ। इस तरह मैं कदम-कदम पर इस संसार की प्रवृत्ति को ठुकराता रहता हूँ।

कवि कहता है कि मेरे रोदन में भी प्रेम-भाव छलकता है। मैं अपने गीतों में प्रेम के आँसू बहाता हूँ। मेरी वाणी यद्यपि कोमल और शीतल है, फिर भी उसमें प्रेम की तीव्र ऊष्मा एवं वेदना का ताप है। इस धरती पर राजाओं के विशाल महल विद्यमान है; परन्तु प्रेम की निराशा के कारण मेरा जीवन एक खण्डर जैसा है, फिर भी मैं जीवन रूपी खण्डहर को जन उन महलों पर न्योछावर कर सकता हूँ। मैं अपने हृदय में उसी खण्डहर रूपी प्रेम-प्रासाद को जीवन्त बनाए हुए हूँ।

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पङा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ, एक नया दीवाना !

·मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !

व्याख्या-

कवि कहता है कि मैं रोया और मेरे हृदय का दुःख करुण शब्दों में व्यक्त हुआ तो संसार गाना (गीत) कहता है। जब मैं प्रेम के आवेग से भरकर पूरे उन्माद से अपने भावों को व्यक्त करता हूँ- मेरे हृदय के भाव शब्दों में फूट पङते है, तब संसार के लोग उसे छन्द कहने लगते है। दुनिया मुझे कवि के रूप में अपनाती है, मुझे व्यर्थ ही सम्मान देती है, वास्तव में तो मैं कवि नहीं हूँ, अपितु प्रेम-दीवाना हूँ, मेरा हृदय प्रेम-दीवानगी से पूर्णतया व्याप्त है।

कवि कहता है कि मैं संसार में प्रेम-दीवानों की तरह विचरण करता हूँ। मैं जहाँ भी जाता हूँ अपनी दीवानगी से सारा वातावरण मस्त से भर देता हूँ। मेरी हार्दिक भावना प्रेम की सम्पूर्ण मस्ती से छायी हुई है। मैं प्रेम और यौवन के गीत गाता हूँ। मेरे गीतों में ऐसी मस्ती है जिसे सुनक लोग झूम उठते है, प्रेम में झुक जाते है और मस्ती में लहराने लगते है। मैं सभी को इसी प्रेम की मस्ती में झूमने का संदेश देता रहता हूँ। लोग मेरे इसी संदेश को गीत समझ लेते है।

आज के इस आर्टिकल से आपको अच्छी जानकारी मिली होगी ……

महत्त्वपूर्ण लिंक

🔷सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      🔷कारक 

🔹क्रिया    🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  🔷 समास(हिंदी व्याकरण) 

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷  हिंदी मुहावरे 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

⋅harivansh rai bachchan poetry
harivansh rai bachchan biography

Tweet
Share174
Pin
Share
174 Shares
केवल कृष्ण घोड़ेला

Published By: केवल कृष्ण घोड़ेला

आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है l यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी l हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है l और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है l धन्यवाद !

Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

    रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas

    सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas

Comments

  1. AvatarSmita Kumari says

    21/04/2020 at 5:46 PM

    Very useful knowledge.

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेलाकेवल कृष्ण घोड़ेला says

      21/04/2020 at 6:07 PM

      जी धन्यवाद

      Reply
  2. Avatarreshma tripathi says

    23/04/2020 at 10:58 AM

    जी बहुत बहुत धन्यवाद्

    Reply
  3. AvatarRajnish Tripathi says

    29/12/2020 at 8:00 PM

    इस उपयोगी जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत आभार सर….

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Hindi Sahitya PDF Notes

Search

Recent Posts

  • अनुप्रास अलंकार – अर्थ | परिभाषा | उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
  • रेवा तट – पृथ्वीराज रासो || महत्त्वपूर्ण व्याख्या सहित
  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi
  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas
  • उजाले के मुसाहिब – कहानी || विजयदान देथा
  • परायी प्यास का सफर – कहानी || आलमशाह खान
  • हिन्दी उपन्यास – Hindi Upanyas – हिंदी साहित्य का गद्य
  • HPPSC LT GRADE HINDI SOLVED PAPER 2020

Join us

हिंदी साहित्य चैनल (telegram)
हिंदी साहित्य चैनल (telegram)

हिंदी साहित्य चैनल

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

Footer

Keval Krishan Ghorela

Keval Krishan Ghorela
आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है. यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी. हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है. और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है. धन्यवाद !

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
Tulsidas ka jeevan parichay || तुलसीदास का जीवन परिचय || hindi sahitya
Ramdhari Singh Dinkar || रामधारी सिंह दिनकर || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

जीवन परिचय

  1. मैथिलीशरण गुप्त
  2. सुमित्रानंदन पन्त
  3. महादेवी वर्मा
  4. हरिवंशराय बच्चन
  5. कबीरदास
  6. तुलसीदास

Popular Pages

हिंदी साहित्य का इतिहास-Hindi Sahitya ka Itihas
Premchand Stories Hindi || प्रेमचंद की कहानियाँ || pdf || hindi sahitya
Hindi PDF Notes || hindi sahitya ka itihas pdf
रीतिकाल हिंदी साहित्य ट्रिक्स || Hindi sahitya
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us