आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आदिकाल के अंतर्गत नाथ साहित्य (Nath Sahitya) को पढेंगे , इस टॉपिक में हम नाथ साहित्य ,प्रमुख काव्य ग्रन्थ और नाथ साहित्य की विशेषताएँ जानेंगे।
नाथ साहित्य – Nath Sahity
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दोस्तो महायान से सहजयान और सहजयान से नाथ सम्प्रदाय का विकास हुआ। सिद्धों की वाममार्गी भोगप्रधान योगसाधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथ पन्थियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। राहुल सांकृत्यायन नाथपंथ को सिद्धों की परम्परा का ही विकसित रूप मानते हैं।
इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ तथा गोरखनाथ माने गए है। डाॅ. रामकुमार वर्मा नाथपंथ के चरमोत्कर्ष का समय 12 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी के अन्त तक मानते है।
- डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार नाथपंथ या नाथ सम्प्रदाय के सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग सम्प्रदाय, अवधूत मत एवं अवधूत-सम्प्रदाय नाम भी प्रसिद्ध है। सिद्धगण नारी भोग में विश्वास करते थे, परन्तु नाथपंथी उसके विरोधी थे।
- वामाचार्य के विरुद्ध इन्होंने पवित्र योगसाधना को आधार बनाया। इन्होंने सिद्धों की बहिर्वती साधना के विपरीत अन्तःसाधना पर बल दिया। पतंजलि के योगदर्शन का आधार लेकर इन्होंने हठयोग दर्शन को विकसित किया।
- इन्होंने षठचक्रभेदन, कुण्डलिनी जागरण तथा नादबिन्दु की साधना को महत्त्वपूर्ण माना। हठयोग की जटिलता तथा साधना पद्धति में दुरुहन्ता के कारण इनकी साधना में गुरु का महत्त्व दिखाई देता है। नाथपंथ जीवन के प्रति सहज और सन्तुलित दृष्टि को अपनाने के साथ-साथ सामाजिक एवं आध्यात्मिक अतिचारों और अतिवादों का विरोध रहा। पश्चिम भारत में प्रचार-प्रसार के कारण नाथपंथियों की भाषा ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी एवं हरियाणवी तत्त्वों से प्रभावित रही।
- नाथपंथ के प्रवर्तक – मत्स्येन्द्रनाथ व गोरखनाथ
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है, ’’शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बङे नेता थे।’’
- भगवान शिव के उपासक नाथों के द्वारा जो साहित्य रचा गया, वही नाथ साहित्य कहलाता है।
- राहुल सांकृत्यायन जी ने नाथपंथ को सिद्धों की परम्परा का ही विकसित रूप माना है।
- डाॅ. रामकुमार वर्मा ने नाथपंथ का चरमोत्कर्ष काल बारहवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी के अंत तक माना है।
- नाथपंथ का ही विकसित रूप भक्तिकाल के संतमत के रूप में देखने को मिलता है।
- मिश्र बन्धुओं ने गोरखनाथ को हिन्दी का प्रथम गद्य लेखक माना है।
- गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येन्द्रनाथ था।
- आदिनाथ को परवर्ती संतों ने ’शिव’ माना है।
- चर्पटनाथ का पूर्व नाम ’चरकानन्द’ था।
- चौरंगीनाथ गोरक्षनाथ के शिष्य थे और ये ’पूरनभगत’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
- नाथ सम्प्रदाय में जलन्धर को ’बालनाथ’ कहा जाता है।
- ’नागार्जुन’, ’गोरखनाथ’, ’चर्पट’ तथा ’जलंधर’ का नाम नाथ और सिद्ध दोनों में गिना जाता है। ट्रिकः जगो नाच
- नाथों में ’रसायनी’ नागार्जुन को माना जाता है।
- नाथ पंथ के जोगियों को कनफटा भी कहा जाता है।
- नाथपंथियों की भाषा ’सधुक्कङी’ भाषा थी, जिसका ढाँचा कुछ खङी बोली लिये हुए राजस्थानी थी।
- गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु-महिमा, इंद्रिय-निग्रह, प्राण-साधना, वैराग्य, मनःसाधना, कुण्डलिनी-जागरण, शून्य-समाधि आदि का वर्णन किया है।
- मत्स्येन्द्रनाथ का वास्तविक नाम विष्णु शर्मा माना जाता है। इनकी लिखी संस्कृत रचना ’काल ज्ञान निर्णय’ का सम्पादन प्रबोधचन्द्र बागची ने किया है।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार- “नाथ-पंथ या नाथ संप्रदाय के सिद्ध-मत, सिद्ध-मार्ग, योग-मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत-मत एवं अवधूत संप्रदाय नाम भी प्रसिद्ध हैं।” (‘कबीर’ पुस्तक से)
आचार्य शुक्ल के अनुसार- “गोरखनाथ के नाथपंथ का मूल भी बौद्धों की यही वज्रयान शाखा है। चौरासी सिद्धों में गोरखनाथ (गोरक्षपा) भी गिन लिये गए हैं। पर यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपना मार्ग अलग कर लिया।”
रामचन्द्र शुक्ल – “गोरखनाथ की हठयोग-साधना ईश्वरवाद को लेकर चली थी। अतः उसमें मुसलमानों के लिए भी आकर्षण था। ईश्वर से मिलाने वाला योग हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के लिए सामान्य साधना के रूप में आगे रखा जा सकता है, यह बात गोरखनाथ में दिखाई पड़ी थी।”
हजारीप्रसाद द्विवेदी- “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित व्यक्तित्व भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाए जाते हैं। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।”
रामकुमार वर्मा- “गोरखनाथ ने नाथ संप्रदाय को जिस आंदोलन का रूप दिया वह भारतीय मनोवृत्ति के सर्वथा अनुकूल सिद्ध हुआ है । उसमें जहाँ एक ओर ईश्वरवाद की निश्चित धारणा उपस्थित की गई वहाँ दूसरी ओर विकृत करने वाली समस्त परंपरागत रूढियों पर भी आघात किया। जीवन को अधिक से अधिक संयम और सदाचार के अनुशासन में रखकर आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए सहज मार्ग की व्यवस्था करने का शक्तिशाली प्रयोग गोरख ने किया।”
नाथ साहित्य रचनाकाल –
नाथ साहित्य की अधिकांश रचनाएँ गुरु गोरखनाथ के द्वारा रची हुई मानी जाती हैं। विविध इतिहासकारों ने गोरखनाथजी का समय निम्नानुसार निर्धारित किया हैं:-
राहुल सांकृत्यायन | 845 ई. |
डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी | 9 वीं शताब्दी |
डाॅ. पीताम्बर दत्त बङथ्वाल | 11 वीं शताब्दी |
डाॅ. रामकुमार वर्मा | 13 वीं शताब्दी |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल | 13 वीं शताब्दी |
नोट: नवीनतम खोजों के अनुसार गोरखनाथजी का सर्वमान्य रचनाकाल 13 वीं शताब्दी का प्रारंभिक काल ही निर्धारित किया जाता है।
नाथों की कुल संख्या –
गोरक्ष सिद्धान्त ग्रंथ के अनुसार 9 नाथों के नाम –
1. नागार्जुन 2. जड़भरत 3. हरिश्चंद्र
4. सत्यनाथ 5. भीमनाथ 6. गोरखनाथ
7. चर्पटनाथ 8. जलन्धर नाथ 9. मलयार्जुन
डाॅ. रामकुमार वर्मा के अनुसार , नाथ पंथ के अन्तर्गत कुल नौ नाथ प्रसिद्ध हुए माने जाते हैं। जिनका सही क्रम निम्नानुसार माना जाता हैं:-
1. आदिनाथ (भगवान शिव) 2. मत्स्येन्द्रनाथ
3. गोरखनाथ 4. चर्पटनाथ 5. गाहिणीनाथ
6. ज्वालेन्द्रनाथ 7. चौरंगीनाथ 8. भर्तृहरिनाथ 9. गोपीचंदनाथ
नाथ साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ –
- इस साहित्य में नारी निंदा का सर्वाधिक उल्लेख प्राप्त होता है।
- नाथपंथियों की भाषा पंजाबी, राजस्थानी और खड़ी बोली के मिश्रण से निर्मित सधुक्कड़ी है।
- इसमें ज्ञान निष्ठा को पर्याप्त महत्त्व प्रदान किया गया है।
- इसमें मनोविकारों की निंदा की गई है।
- इसमें सिद्ध साहित्य के भोग-विलास की भर्त्सना की गई है।
- इस साहित्य में गुरु को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है।
- इस साहित्य में हठयोग का उपदेश प्राप्त होता है।
- नाथ साहित्य में शून्य साधना, और सहज समाधि पर जोर दिया है
- नाथ पंथियों ने पुस्तकीय ज्ञान और वेदशास्त्र के अध्ययन को व्यर्थ ठहराया है। साथ ही वर्णाश्रम व्यवस्था का विरोध किया है ।
- नाथ पंथ ने दार्शनिकता, सैद्धान्तिक रूप से शैवमत से ग्रहण की है। परन्तु व्यवहारिक रूप से हठयोग के समीप है ।
- नाथपंथियों ने एकेश्वरवाद को अधिक महत्ता दी है।
- गोरखनाथ ने षट्चक्रों वाला योगमार्ग हिन्दी साहित्य में चलाया।
- संतकाव्य पर नाथ संप्रदाय का व्यापक प्रभाव पड़ा।
हठयोग – गोरखनाथ के ’सिद्ध-सिद्धान्त-पद्धति’ ग्रंथ के अनुसार ’हठ’ शब्द में प्रयुक्त ’ह’ का अर्थ ’सूर्य’ तथा ’ठ’ का अर्थ ’चन्द्रमा’ ग्रहण किया जाता है। इन दोनों के योग को ही हठयोग कहते हैं।
नाथों के उपनाम:
- जलंधरनाथ – बालनाथ
- मत्स्येन्द्रनाथ – मीननाथ,मछन्दरनाथ, चौथे बोधिसत्व अवलोकितेश्वर
- नागार्जुन – रसायनी
- चौरंगीनाथ – पूरणभगत
गोरखनाथ:
इनके समयकाल के बारे में मतभेद है –
राहुल सांकृत्यायन | 845 ई. |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | 9 वीं शताब्दी |
पीताम्बर दत्त बडथ्वाल | 11 वीं शताब्दी |
रामचंद्र शुक्ल | 13 वीं शताब्दी |
रामकुमार वर्मा | 13 वीं शताब्दी |
रचनाएँ –
गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित कुल ग्रंथों की संख्या चालीस मानी जाती है। परन्तु डाॅ. पीताम्बर दत्त बङथ्वाल ने इनके द्वारा रचित कुल ग्रंथों की संख्या 14 मानी है।
सबदी | पद |
प्राण संकली | शिष्यादरसन |
नरवैबोध | अभैमात्राजोग |
आतम-बोध | पन्द्रह-तिथि |
सप्तवार | मछींद्र गोरखबोध |
रोमावली | ग्यानतिलक |
ग्यानचौंतीसा | पंचमात्रा |
1. गोरख गणेश गोष्ठी 2. दत्त गोरख संवाद 3. महादेव गोरख संवाद
4. गोरखनाथ की सत्रह कला 5. गोरखनाथ की बानी 6. योगेश्वरी साखी
7. गोरखसार 8. ज्ञानामृत योग 9. योग चिंतामणि
10. योगबीज 11. आत्मबोध 12. महिन्द्र गोरख बोध
गोरखनाथ जी द्वारा निम्न संस्कृत ग्रंथों की रचना भी की गई थीं-
सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति | विवेक मार्तंड |
शक्ति-संगम-तंत्र | निरंजन पुराण |
वैराट पुराण | योगसिद्धान्त पद्धति |
- हिन्दी साहित्य में डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त करने सर्वप्रथम विद्वान् डाॅ. पीताम्बर दत्त बङथ्वाल ने 1942 ई. में ’गोरखबानी’ के नाम से इनकी रचनाओं का संकलन किया है।
- आचार्य शुक्ल के अनुसार ये रचनाएँ गोरखनाथ जी के द्वारा नहीं अपितु उनके अनुयायियों द्वारा रची गई थीं।
- गोरखनाथ ने षट्चक्रों वाला योगमार्ग हिन्दी साहित्य में चलाया था।
- मिश्र बंधुओं ने इन्हें हिंदी का प्रथम गद्य लेखक कहा।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के माध्यम से ’’नाथ-सिद्धि की बानियाँ’’ नामक पुस्तक का संपादन किया था।
नाथ साहित्य से जुड़ी महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ
नौलख पातरि आगे नाचैं, पीछे सहज अखाड़ा
ऐसे मन लै जोगी खेलै, तब अंतरि बसै भंडारा – गोरखनाथ
तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया – गोरखनाथ
मूरति मांहि अमूरति परस्या मया निरंतरि खेल ॥ – गोरखनाथ