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Hindi Varnamala || हिंदी वर्णमाला || Hindi Grammar

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:16th Feb, 2021| Comments: 1

दोस्तो आज की पोस्ट में हिंदी व्याकरण के अंतर्गत हम हिंदी वर्णमाला(Hindi Varnamala) को पढेंगे जो आपकी सुविधा के लिए चार्ट के माध्यम से समझाया गया है 

हिंदी वर्णमाला(Hindi Varnamala)

Table of Contents

  • हिंदी वर्णमाला(Hindi Varnamala)
    • वर्णमाला (Hindi Varnamala Full)
    • 1. स्वर –
    • Hindi Vyakaran Varnamala
    • 2. व्यंजन (hindi varnmala)
      • व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार भी पढ़ें ⇓⇓
      • 1. स्पर्श व्यंजनः-
      • 2. अन्तःस्थ व्यंजनः-
      • 3. ऊष्म व्यंजनः-
      • 1. उच्चारण स्थान के आधार परः-
      • (।) आभ्यन्तर प्रयत्नः-
      • (घ) उत्क्षिप्त व्यंजनः-
      • (।।) बाह्य प्रयत्नः-
      • 1. अल्पप्राण व्यंजनः-
      • 2. महाप्राण व्यंजनः-
      • 2. घोष या सघोष व्यंजनः-
      • ✔️ वर्णों की संख्या के प्रश्नः-
      • Varnamala

 

hindi varnamala

व्यक्ति को अपने विचार विनिमय करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। भाषा का निर्माण वाक्यों से, वाक्यों का निर्माण सार्थक शब्दों से तथा शब्दों का निर्माण वर्णों के सार्थक मेल से होता है।
ध्वनि- भाषा की वह सबसे छोटी इकाई जिसके और खण्ड करना संभव न हो, उनकी मौखिक अभिव्यक्ति ध्वनियाँ कहलाती है।
वर्णः- भाषा की वह सबसे छोटी इकाई जिसके और खण्ड करना सम्भव न हो, उनकी लिखित अभिव्यक्ति वर्ण कहलाते है। जैसे अ, आ, इ, ई, क्, ख्, ग् आदि।


अक्षरः- वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण श्वास के एक ही झटके में हो जाए, वे अक्षर कहलाते हैं-
यथा- आम्, स्नान् आदि।
यहाँ ’म्’, ’न्’ का उच्चारण श्वास के एक ही आघात में हो रहा है।
लिपिः- भाषा का आदान-प्रदान बोलकर होता है परन्तु कभी-कभी उसे लिखना भी पङता है। लिखित भाषा में मूल ध्वनियों के लिए जो चिह्न मान लिये गये हैं उन्हें जिस रूप में लिखा जाता है, उसे लिपि कहते है।
भाषा को लिखकर प्रकट करने के लिए निश्चित किये गये ध्वनि चिह्न लिपि कहलाते है। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है।

वर्णमाला (Hindi Varnamala Full)

वर्णों या ध्वनियों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते है।
मात्राएँ- व्यंजनों के अनेक प्रकार के उच्चारणों को स्पष्ट करने के लिए जब उनके साथ स्वर का योग होता है, तब स्वर का वास्तविक रूप जिस रूप में बदलता है, उसे ’मात्रा’ कहते है। (गुरु कामता प्रसाद के अनुसार)
✔️ भाषा की सबसे छोटी इकाई-वर्ण
✅ अर्थ के आधार पर भाषा की सबसे छोेटी इकाई– शब्द
✔️ भाषा की पूर्णतः इकाई– वाक्य
✅ हिन्दी विश्व की सभी भाषाओं में सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है।

वर्ण भाषा की लघुतम इकाई है, हिन्दी में जितने वर्ण प्रयक्त होते हैं, उनके समूह को ’वर्णमाला’ कहते हैं, हिन्दी की वर्णमाला स्वर और व्यंजन से मिलकर बनी है, जो इस प्रकार है –

हिंदी वर्णमाला के दो भाग होते हैं :-
1. स्वर(swar)
2. व्यंजन(vyanjan)

1. स्वर –

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास मुख के कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना किसी बाधा के निकलता हो, उन्हें स्वर कहते हैं, उच्चारण काल की दृष्टि से स्वर वर्ण दो प्रकार के होते हैं –

1.दीर्घ स्वर वर्ण –

इनके उच्चारण में अधिक समय लगता है, अतः ये दीर्घ स्वर वर्ण कहलाते हैं, आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, और औ दीर्घ स्वर हैं।

(2) ह्रस्व स्वर वर्ण –

इनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों की अपेक्षा कम समय लगता है, इसलिए इन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं, अ, इ, उ, और ऋ ह्रस्व स्वर हैं।

हिंदी वर्णमाला

विशेष – हिन्दी वर्णमाला में स्वरों के अन्तर्गत अनुस्वार और विसर्ग का भी उल्लेख किया जाता रहा है, किन्तु संस्कृत में अनुस्वार और विसर्ग को स्वर और व्यंजन से भिन्न माना जाता है और उन्हें ’अयोगवाह’ कहते हैं, अयोगवाह का अर्थ है – योग न होने पर भी जो साथ बहे,

स्वर के उच्चारण स्थान तथा उच्चारण में जीभ की सक्रियता के आधार पर भी स्वर वर्णों के भेद किए गए हैं, जैसे – इ, ई, ऋ, ए तथा ऐ स्वर वर्णों के उच्चारण में जीभ के आगे का भाग सक्रिय होता है, इसलिए इन्हें ’अग्र स्वर’ कहते हैं, अ स्वर वर्ण के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग सक्रिय होता है, अतः इसे ’मध्य स्वर’ कहते हैं, आ, उ, ऊ, ओ तथा औ के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग सक्रिय होता है, अतः ये ’पश्च स्वर’ कहलाते हैं।

इसके अतिरिक्त उच्चारण स्थान और उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वर वर्णों के भेद को निम्नलिखित तालिका से समझा जा सकता है –

Hindi Vyakaran Varnamala

स्वर  उच्चारण स्थान  उच्चारण काल
अ कंठ्य   ह्रस्व
आ  कंठ्य  दीर्घ
इ तालव्य   ह्रस्व
ई  तालव्य  दीर्घ
उ  ओष्ठ्य  ह्रस्व
ऊ ओष्ठ्य  दीर्घ
ऋ  मूर्धंन्य ह्रस्व
ए कंठतालव्य दीर्घ
ऐ  कंठतालव्य  दीर्घ
ओ कंठोष्ठ्य  दीर्घ
औ  कंठोष्ठ्य  दीर्घ

नोट – ए, ओ की गणना ह्रस्व स्वर में भी होती है।

Varnamala in Hindi

2. व्यंजन (hindi varnmala)

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास मुख के कंठ, तालु आदि स्थानों से बाधित होकर निकलता हो, उन्हें ’व्यंजन’ कहते हैं, व्यंजन का उच्चारण स्वर की सहायता के बिना सम्भव नहीं, प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में पहले या बाद में ’अ’ स्वर लगा रहता है, जैसे – ’क’ व्यंजन वर्ण वस्तुतः ’क्’ व्यंजन वर्ण और ’अ’ स्वर के योग का चिह्न अथवा ध्वनि है, तात्पर्य यह है कि व्यंजन वर्णों के उच्चारण में पहले अथवा बाद में ’अ’ स्वर का योग अवश्य रहता है, इसीलिए व्यंजन अकरान्त कहे जाते हैं।

व्यंजन की निम्नलिखित श्रेणियाँ हैं –

घोष और अघोष – जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में झंकार उत्पन्न हो, उन्हें घोष और शेष अन्य व्यंजन वर्णों को अघोष कहते हैं, देखें तालिका –

अघोष घोष
क्, ख्  ग्, घ्, ङ्
च्, छ्  ज्, झ्, ञ्
ट्, ठ्  ड्, ढ्, ण्
त्, थ्  द्, ध्, न्
प्, फ्  ब्, भ्, म्
ष्, श्, स्  य्, र, ल्, व्, ह्

अल्प प्राण-महाप्राण – जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में मुख से कम श्वास निकले, उन्हें ’अल्पप्राण’ और जिनके उच्चारण में श्वास अधिक निकले, उन्हें ’महाप्राण’ कहते हैं, यहाँ ’प्राण’ का अर्थ श्वास ही है, जैसे –

अल्प प्राण महाप्राण
क्, ग्, ङ् ख्, घ्
च्, ज्, ञ्  छ्, झ्
ट्, ड्, ण्, ङ्   ठ्, द्, ढ़्
त्, द्, न्  थ्, ध्
प्, ब्, म्   फ्, भ्
स्, र्, ल्, व्    ष्, श्, स्, ह्

उच्चारण स्थान, घोष-अघोष तथा महाप्राण-अल्पप्राण के अनुसार व्यंजन वर्णों की श्रेणियों को निम्नलिखित तालिका द्वारा आसानी से समझा जा सकता है –

Hindi Aksharmala

 

व्यंजन वर्ण  स्थान के अनुसार  प्राण के अनुसार  घोष के अनुसार 
क् कंठ्य अल्पप्राण अघोष
ख्  कंठ्य  महाप्राण  अघोष
ग्  कंठ्य अल्पप्राण घोष
घ्  कंठ्य  महाप्राण  घोष
ङ् कंठ्य  अल्पप्राण घोष
च् तालव्य  अल्पप्राण अघोष
छ् तालव्य   महाप्राण  अघोष
ज्  तालव्य अल्पप्राण  घोष
झ्  तालव्य महाप्राण  घोष
ञ्  तालव्य अल्पप्राण घोष
ट्  मूर्धन्य अल्पप्राण अघोष
ठ्  मूर्धन्य महाप्राण अघोष
ड्  मूर्धन्य अल्पप्राण घोष
ढ्, ढ़़् मूर्धन्य महाप्राण घोष
ण्, ङ्  मूर्धन्य अल्पप्राण घोष
त् दंत्य-वर्त्स्य अल्पप्राण अघोष
थ् दंत्य-वर्त्स्य महाप्राण अघोष
द्  दंत्य-वर्त्स्य  अल्पप्राण घोष
ध्  दंत्य-वर्त्स्य  महाप्राण घोष
न् दंत्य-वर्त्स्य  अल्पप्राण  घोष
प् ओष्ठ्य  अल्पप्राण अघोष
फ्  ओष्ठ्य  महाप्राण अघोष
व्  ओष्ठ्य अल्पप्राण घोष
भ्  ओेष्ठ्य  महाप्राण घोष
म् ओष्ठ्य महाप्राण  घोष
य्  तालव्य  अल्पप्राण  घोष
र्  वर्त्स्य अल्पप्राण  घोष
ल् वर्त्स्य अल्पप्राण  घोष
व्  दंतोष्ठ्य अल्पप्राण घोष
श्  तालव्य महाप्राण  अघोष
ष्  तालव्य महाप्राण  अघोष
स्  वर्त्स्य  महाप्राण  अघोष
ह्  कंठ्य  महाप्राण  

 

व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार भी पढ़ें ⇓⇓

Hindi Vyanjan

परिभाषाः- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय फेफङों से उठने वाली वायु मुखविवर के उच्चारण अवयवों से बाधित होकर बाहर निकले, व्यंजन कहलाते हैं।
व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वरों का योगदान रहता है अर्थात् प्रत्येक व्यंजन वर्ण ’अ’ स्वर से ही उच्चारित होता है। इनकी कुल संख्या 33 है।
मुख्य रूप से व्यंजनों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

1. स्पर्श व्यंजनः-

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त आदि स्थानों के स्पर्श से होता है, वे स्पर्श व्यंजन हैं।
नोटः- हिन्दी वर्णमाला की वे पक्तियाँ जिनमें वर्णों की संख्या पाँच होती है, वे वर्ग कहलाते हैं तथा इनका नामकरण उस पंक्ति के प्रथम वर्ण के के अनुसार होता है। वर्गों के सभी वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। (संख्या-25)
क् वर्ग- क् ख् ग् घ् ङ्
च् वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ
ट् वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण्
त् वर्ग- त् थ् द् ध् न्
प् वर्ग- प् फ् ब् भ् म्

2. अन्तःस्थ व्यंजनः-

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण न तो स्वरों की भाँति होता है और न ही व्यंजनों की भाँति, अर्थात् जिनके उच्चारण में जीभ, तालु, दाँत और ओठों को परस्पर सटाने से होता है परन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। (संख्या-4)
यथा- य् र् ल् व्
नोटः- य् तथा व् को अर्द्धस्वर भी कहा जाता है।

3. ऊष्म व्यंजनः-

वे व्यंजन ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करते समय घर्षण के कारण गर्म वायु बाहर निकलती है, वे ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। (संख्या-4)
यथा- श् ष् स् ह्

व्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण

व्यंजनों का वर्गीकरण प्रमुख रूप से दो आधारों पर किया जाता है।
1. उच्चारण स्थान के आधार पर
2. प्रयत्न के आधार पर

1. उच्चारण स्थान के आधार परः-

फेफङों से उठने वाली वायु मुख के विभिन्न भागों से जिह्वा का सहारा लेकर टकरताी है जिससे विभिन्न वर्णों का उच्चारण होता है, इस आधार पर उस अवयव को वर्ण का उच्चारण स्थान मान लिाय जाता है, इस आधार पर व्यंजनों के निम्न भेद हैं-
व्यंजनों के प्रकार व्यंजन उच्चारण स्थान

  • कण्ठ्य    क् ख् ग् घ् ङ् ह् विसर्ग    कण्ठ
  • तालव्य    च् छ् ज् झ् ,ञ य् श्        तालु
  • मूर्धन्य      ट् ठ् ड् ढ् ण् र् ष्          मूर्धा
  • दन्त्य       त् थ् द् ध् न् ल् स्          दन्त
  • ओष्ठ्य    प् फ् ब् भ् म् व्             ओष्ठ

नोटः-
✅ प्रत्येक वर्ग के पंचमाक्षर का उच्चारण करते समय फेफङों से उठने वाली वायु मुख के साथ-साथ नाक के द्वारा भी बाहर निकलती है। अतः इन वर्णों को नासिक्यय वर्ण कहा जाता है।
यथा- ङ् ञ ण् न् म्
✅ .व् तथा .फ् का उच्चारण करते समय नीचे का ओष्ठ ऊपर वाले दाँतों को स्पर्श करता है। अतः इन्हें दन्तोष्ठ्य व्यंजन भी का जाता है।
✔️ ह् तथा विसर्ग का उच्चारण कण्ठ के नीचे काकल स्थान से होता है। अतः इन्हें काकल्य ध्वनि का जाता है।

✅ ऊपर के दाँतों तथा मसूड़ों के संधि स्थल से थोङा ऊपर का भाग वर्त्स कहलाता है। न् ल् स् ज् का उच्चारण करते समय जीभ वर्त्स क्षेत्र को स्पर्श करती है। अतः ये वर्त्स्य ध्वनियाँ कहलाती है।
2. प्रयत्न के आधार परः- वर्णों का उच्चारण करते समय मुख द्वारा किया जाने वाला यत्न प्रयत्न कहलाता है।
प्रत्यन दो प्रकार का होता है-
(।) आभ्यन्तर प्रयत्न
(।।) बाह्य प्रयत्न

(।) आभ्यन्तर प्रयत्नः-

वर्णों के उच्चारण के समय प्रारम्भ में जो प्रयत्न किया जाता है उसे आभ्यन्तर प्रयतन कहते हैं, जो निम्न हैं-
(क) स्पर्शी व्यंजनः- जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का जिह्वा या होठों से स्पर्श होता है तथा कुछ अवरोध के बाद श्वास स्फोट के बाद बाहर निकल जाती है।
यथा- क् वर्ग, ट् वर्ग, त् वर्ग, प् वर्ग के आरम्भिक चार वर्ण-

  • क् ख् ग् घ्
  • ट् ठ् ड् ढ्
  • त् थ् द् ध्
  • प् फ् ब् भ्

(ख) स्पर्श संघर्षी व्यंजनः- वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कुछ घर्षण के साथ श्वास वायु बाहर निकलती है।
यथा- च् छ् ज् झ्
(ग) नासिक्य व्यंजनः- जिनके उच्चारण में श्वास वायु मुख तथा नाक दोनों से बाहर निकले।
यथा- ङ् ञ ण् न् म्

(घ) उत्क्षिप्त व्यंजनः-

जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय जीभ उलटकर श्वास वायु को बाहर फेंकती है वे उत्क्षिप्त या द्विस्पृष्ट या द्विगुण या ताङनजात व्यंजन कहलाते है।
यथा- ड़ ढ़
(ङ) लुंठित व्यंजनः- जिस व्यंजन वर्ण उच्चारण करते समय वायु जीभ के ऊपर से लुढ़कती हुई बाहर निकल जाती है। उसे लुंठित व्यंजन कहा जाता है चूँकि इस वर्ण का उच्चारण करते समय जीभ में कम्पन भी होता है। अतः इसे प्रकम्पित व्यंजन भी कहा जाता है।
यथा- र्

(च) संघर्षहीन व्यंजनः- वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हवा बिना संघर्ष के बाहर निकल जाती है, वे संघर्षहीन व्यंजन या अर्द्धस्वर कहलाते है।
यथा- य् व्
(छ) पाश्र्विक व्यंजनः- पाश्र्व शब्द का शाब्दिक अर्थ बगल होता है अर्थात् जिस व्यंजन का उच्चारण करते समय वायु जीभ के दोनांे बगल से बाहर निकल जाती है। वह पाश्र्विक व्यंजन है।
यथा- ल्
(ज) संघर्षी व्यंजनः- जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय दो उच्चारण अवयव इतने निकट आ जाते हैं कि वायु निकासी का मार्ग इतना संकरा हो जाता है कि वायु को बाहर निकलते समय संघर्ष करना पङता है अतः ये संघर्षी व्यंजन कलाते हैं।
यथा- श् ष् स् ह्

(।।) बाह्य प्रयत्नः-

वर्णों के उच्चारण के अन्त में होने वाला प्रयत्न बाह्य प्रयत्न कहलाता है। बाह्य प्रयत्न के भी दो आधार होते हैं।
(क) श्वास वायु के आधार पर
(ख) नाद या कम्पन के आधार पर

(क) श्वास वायु के आधार परः- उच्चारण में लगने वाली श्वास वायु के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं।

1. अल्पप्राण व्यंजनः-

वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कम श्वास वायु बाहर निकलती है।
अल्पप्राण व्यंजनों की संख्या- 19
अल्पप्राण स्वरों की संख्या- 11
कुल अल्पप्राण वर्णों की संख्या- 30
यथा-
✔️ प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण होते हैं।
✅ अन्तःस्थ व्यंजन (य् र् ल् व्) भी अल्पप्राण होते हैं।
✔️ सभी स्वर भी अल्पप्राण होते है।

2. महाप्राण व्यंजनः-

वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण मे श्वास मात्रा अल्पप्राण व्यंजनों की अपेक्षा दुगुनी बाहर निकलती है।
महाप्राण वर्णों की संख्या- 14
यथा-
✔️ प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण महाप्राण होते हैं।
✅ ऊष्म व्यंजन (श् ष् स् ह्) भी महाप्राण होते है।

(ख) नाद (आवाज) या कम्पन के आधार पर व्यंजनो का वर्गीकरणः- कम्पन के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं।

1. अघोष व्यंजनः- वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन्न उत्पन्न नहीं होता वे अघोष व्यंजन कहलाते हैं। (कुल संख्या-13)
यथा-
✔️ प्रत्येक वर्ग का पहला तथा दूसरा वर्ण अघोष होता है।
✅ ऊष्म व्यंजन (श् ष् स्) भी अघोष होते है।

2. घोष या सघोष व्यंजनः-

जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन्न उत्पन्न होता है वे घोष या सघोष व्यंजन कहलाते हैं। (कुल सघोष वर्णों की संख्या-20)
कुल सघोष वर्णों की संख्या- 20+11=31 (स्वर जोङने पर)
यथा-
✔️ प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण सघोष होते हैं।
✅ अन्तःस्थ व्यंजन (य् र् ल् व्) भी सघोष होते है।
✔️ ऊष्म व्यंजनों में से ह् सघोष होता है।
✅ सभी स्वर भी सघोष होते है।

 

✔️ इनके अतिरिक्त हिन्दी भाषा में चार संयुक्त व्यंजन और शामिल है। जिनका उच्चारण दो व्यंजनों तथा एक स्वर की सहायता से होता हैं।
क्ष = क् + ष / क् + ष् + अ
त्र = त् + र / त् + र् + अ
ज्ञ = ज् + ´ / ज् + ञ + अ
श्र = श् + र / श् + र् + अ
✔️ यदि किसी शब्द में एक वर्ण स्वर रहित तथा उसे बाद वही वर्ण सस्वर आ जाये तो वे वर्ण ’द्वित्व व्यंजन’ या ’युग्मक ध्वनि’ कहलाते हैं और यदि स्वर रहित वर्ण के आगे कोई अन्य सस्वर वर्ण हो तो उन्हें ’व्यंजन गुच्छ’ कहा जाता है।
यथा-
द्वित्व व्यंजन- बच्चा, कच्चा, पक्का, चक्की, हल्ला
व्यंजन गुच्छ- शिष्य, संकल्प, कल्प, पुष्प, पृथ्वी

✔️ वर्णों की संख्या के प्रश्नः-

कुल स्वरों की संख्या- 11
⇒कुल व्यंजनों की संख्या-33
कुल स्वर और व्यंजनों की संख्या- 44
संयुक्त व्यंजनों की संख्या- 04
उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या- 02
अयोगवाह वर्णों की संख्या- 02

देवनागरी हिन्दी वर्णमाला के कुल वर्णों की संख्याः-

  • स्वर  व्यंजन  संयुक्त व्यंजन   उत्क्षिप्त    अयोगवाह        कुल
  • 11      33             04          02            02          = 52

नोटः- इनके अतिरिक्त 5 आगत व्यंजन ध्वनियाँ भी हैं जो अरबी-फारसी भाषा से ली गई हैं, ये अरबी-फारसी शब्दों में ही प्रयुक्त होती है।
.क, .ख, .ग, .ज, .फ

hindi letters

Varnamala

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समास क्या होता है ?

 

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केवल कृष्ण घोड़ेला

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Comments

  1. Avatarrakesh arya says

    23/07/2019 at 9:12 PM

    बहुत बडिया

    Reply

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जीवन परिचय

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