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भारत माता-कविता व्याख्या || सुमित्रानंदन पन्त

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:12th Apr, 2022| Comments: 7

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आज की पोस्ट में हम सुमित्रानंदन पन्त(Sumitranandan Pant) की चर्चित कविता भारत माता (Bhart mata ) की व्याख्या पढेंगे |

भारत माता (कविता व्याख्या )

सुमित्रानन्दन पंत(Sumitranandan Pant)

Table of Contents

  • सुमित्रानन्दन पंत(Sumitranandan Pant)
    • व्याख्या –
    • विशेष – 1.
    • व्याख्या –
    • विशेष –
    • व्याख्या –
    • विशेष –
    • महत्त्वपूर्ण लिंक :

भारत माता 

ग्रामवासिनी!
खेतों में फैला है श्यामल,
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी!
दैन्य जङित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी!

प्रसंग –

प्रस्तुत अवतरण सुमित्रानन्दन पंत की ’भारत माता’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने भारत की दुर्दशा के साथ प्राकृतिक परिवेश का भी चित्रण किया है।

व्याख्या –

कवि पन्त कहते है कि भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है तथा गाँवों में ही भारत माता के दर्शन हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली फैली रहती है और उनमें अनाज लहराता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मैला-सा अर्थात् गन्दगी से व्याप्त रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में गन्दगी रहती हैं।

गंगा और यमुना में भारत माता के आँसुओं का जल है, भारतीयों की दरिद्रता-दीनता एवं श्रमनिष्ठा का जल बहता है। भारतीयों की दीनता को देखकर मानो भारत माता करुणा के आँसू बहा रही है। वे आँसू ही गंगा-यमुना आदि नदियों की जलधारा के रूप में प्रकाहित हो रहे हैं। भारत माता मिट्टी की प्रतिभा अर्थात् दरिद्रता की मूर्ति है तथा सदा उदास एवं दुखिया दिखाई देती है।

कवि वर्णन करता है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, इसके अधरों पर मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है। यह भारत माता का दुर्भाग्य ही है।

विशेष – 1.

यह कविता अंग्रेजों के शासनकाल में लिखी गई थी, इस कारण इसमें भारतमाता को ’उदासिनी’ ’अपने घर में प्रवासिनी’ कहा गया है। गाँवों में निवास करने वाले भारत का तथा यहाँ के परिवेश का चित्रण यथार्थ रूप में हुआ है।
2. कवि का राष्ट्र-प्रेम और प्रगतिवादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
3. भाषा तत्सम-प्रधान, भावाभिव्यक्ति प्रखर, नवीन प्रतीक एवं उपमान विधान के साथ मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है।
4. अनुप्रास, रूपक एवं परिकर अलंकार प्रयुक्त है।

तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत-मस्तक
तरु जल निवासिनी!
स्वर्ग शस्य पर-पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कंुठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहू-ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी!

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित ’भारतमाता’ कविता से उद्धृत है। इसमें पराधीनता काल में भारत की जो दुर्दशा थी, उसका भावपूर्ण तथा यथार्थ चित्रण किया गया है।

व्याख्या –

कवि वर्णन करते हुए कहता है कि भारतमाता की तीस करोङ सन्तान गरीबी के कारण नंगे बदन है, ये आधा पेट भोजन मिलने से व्यथित, शोषण से ग्रस्त तथा प्रतिरोध करने में असमर्थ हैं। ये अन्धविश्वासों से ग्रस्त होने से अज्ञानी हैं, असभ्य, अशिक्षित एवं गरीब हैं। ये अत्याचारी के सामने सदा झुके हुए – दबे हुए रहते हैं। भारत माता पेङों के नीचे रहती हैं, अर्थात् भारतवासी गरीबी के कारण पेङों के नीचे निवास करते हैं, इनके पास उचित आवास-व्यवस्था नहीं है तथा ये खुले आसमान के नीचे सोने की विवश हैं।

कवि कहता है कि भारत भूमि पर सोने के समान मूल्यवान् धान उगता है, फिर भी आम भारतीय नागरिक या खेतिहर कृषक अत्याचारी शासकों एवं शोषकों के चरणों में लोटता है, उनका गुलाम बना रहता है। भारत के किसान का मन धरती के समान सहिष्णु और कुंठाग्रस्त है, वह करुण विलाप से काँपता हुआ भी अधरों से मन्द हास्य के साथ मौन रहता है।

शरत्कालीन चन्द्रमा जैसे राहु से ग्रस्त होने से धूमिल लगता है, उसी प्रकार विदेशी शासकों की नृशंस बर्बरता एवं अन्याय से भारतीयों का भाग्य रूपी चन्द्रमा सदा ग्रसित रहता है। आशय यह है कि प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्पन्न होने पर भी भारतीयों का जीवन कष्टों से घिरा रहता है।

विशेष –

1. यह कविता आजादी से दस वर्ष पूर्व की रचना होने से भारत की जनसंख्या तीस करोङ बतायी गई है। उस समय भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अज्ञान, अशिक्षा एवं गरीबी की जो स्थिति थी, कवि ने उसका यथार्थ चित्रण किया है।
2. पराधीनता काल में अंग्रेज शासक एवं जमींदार आदि जगत् का खूब शोषण करते थे, खेतिहर कृषक सदा गरीबी में रहते थे। कवि ने उनकी मजबूरी की सुन्दर व्यंजना की है।
3. शब्दावली तत्सम एवं मुक्त छन्द की तुकान्त गेयता द्रष्टव्य है।
4. अनुप्रास, परिकर एवं मानवीकरण अलंकार प्रयुक्त है।

चिन्तित भृकुटि-क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-श्रम,
जग जननी
जीवन विकासिनी!

प्रसंग –

यह अवतरण सुमित्रानन्दन पंत की ’भारत माता’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पराधीनता काल में भारत की जो दशा थी, उसका यथार्थ और आशा-विश्वास से संवलित चित्रण किया है।

व्याख्या –

कवि वर्णन करते हुए कहता है कि विदेशी शासकों और शोषकों से भारत माता का परिवेश चिन्ताग्रस्त रहा, उसके सामने कहीं कोई आशा की किरण नहीं है, निराशा-चिन्ता से उसकी भौंहें मुङी हुई व नेत्र झुके हुए हैं और आकाश भाव या धुन्ध से आच्छादित है। इस कारण भारत माता के मुख की शोभा छायाग्रस्त या कुहरे से ग्रस्त चन्द्रमा के समान एकदम धूमिल है।

कवि अतीव व्यथित स्वर में कहता है कि भारत ने ही संसार को सर्वप्रथम ज्ञान दिया था, परन्तु आज वह ज्ञानी भारत अज्ञानी-सा है। भारत माता ने गीता का प्रकाश फैलाया था, परन्तु आज इस ज्ञान-साधना की पुण्यभूमि एवं गीता की जन्मभूमि भारत अन्धानुकरण से ग्रस्त है। आज उसकी ज्ञान-चेतना कुंठित हो रही है। इतना होने पर भी आज भारत का तप-संयम सफल हो रहा है, उसमें नवीन आशा का संचार हो रहा है।

अब भारत माता अहिंसा रूपी प्राणदायक दूध पिला रही है जो कि अमृत के समान है तथा जनता के मन के भय को दूर करने वाला और संसार के अज्ञान-सा को समाप्त कर नयी आशा को संबल देने वाला है। यह संसार को अहिंसा रूपी आत्मबल दे रहा है। इस विशेषता से अब भारत विश्व की माता या लोकमाता बन रही है तथा जीवन का सम्पूर्ण विकास करने का सही मार्ग बतला रही है।

विशेष –

1. कवि ने इसमें गम्भीर भावों की व्यंजना की है। इसमें राष्ट्र प्रेम व क्रान्तिवादी स्वर व्यक्त करते हुए गीता के आध्यात्मिक सन्देश का महत्त्व बताया है।
2. कवि ने गांधीजी के आध्यात्मवाद, सत्य, अहिंसा एवं मानव-प्रेम के सिद्धान्तों की व्यंजना कर उन पर अपना विश्वास व्यक्त किया है।
3. शब्दावली तत्सम-प्रधान तथा भावानुकूल है। मुक्त छन्द की गेयता, लालित्य एवं पद-मैत्री प्रशस्य है।
4. अनुप्रास, उपमा, रूपक, परिकर एवं समासोक्ति अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है।

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Comments

  1. दीपक ठाकुर says

    02/02/2021 at 9:24 AM

    धन्यवाद सर

    Reply
  2. Kashish says

    16/06/2021 at 9:21 PM

    Thankful for my hindi language exam lekin thoda aur long hona tha visheshataen ko

    Reply
  3. Lileshwari Nishad says

    22/10/2021 at 12:16 PM

    Thankyou sir. Ji

    Reply
  4. Aarti sarthi says

    22/02/2022 at 9:29 PM

    Thank you sir ji mujhe achhe se samjh aa gya

    Reply
  5. RAMAN KUMAR says

    02/05/2022 at 3:53 PM

    Thanku sir ji

    Reply
  6. Anuj Mandavi says

    23/09/2022 at 10:29 AM

    thank you sirr ji

    Reply
  7. Mukesh chakradhari says

    07/11/2022 at 9:35 PM

    Thans so much

    Reply

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