• Home
  • PDF Notes
  • Videos
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • PDF NOTES
  • VIDEOS
  • कहानियाँ
  • व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • कविताएँ
  • Web Stories

तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:21st May, 2022| Comments: 12

Tweet
Share417
Pin
Share
417 Shares

दोस्तों आज की पोस्ट में भक्तिकाल के चर्चित कवि तुलसीदास के जीवन परिचय(Tulsidas ka Jeevan Parichay), Tulsidas ka jivan parichay,Tulsidas in hindi,Tulsidas Biography in hindi – के बारे में पढेंगे । इनसे जुड़े परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य जानेंगे और कुछ ट्रिक भी पढेंगे ,अगर फिर भी कोई जानकारी छूट जाएँ, तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरुर देवें ताकि हर हिंदी मित्र को इसका प्रतियोगिता परीक्षा में फायदा मिले ।

Tulsidas ka jeevan parichay
Tulsidas ka jeevan parichay

तुलसीदास का सम्पूर्ण परिचय – Tulsidas ka Jivan Parichay

Table of Contents

  • तुलसीदास का सम्पूर्ण परिचय – Tulsidas ka Jivan Parichay
    • विशेष (Tulsidas ka Jivan Parichay)
      • अवधी भाषा में रचित (Tulsi das in hindi)
      •  ब्रज भाषा में रचित (Tulsidas Biography in Hindi)
      •  ’मानस’ में सात काण्ड या सोपान हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं –
    • रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय  देखें 
    • तुलसीदास के बारे में महत्त्पूर्ण कथन-
    • तुलसीदास के काव्य में काव्य-सौंदर्य की भावना कैसे थी ?
    • भावपक्ष विशेषताएँ
      • काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा-
      • काव्य में रस चित्रण-
      • भक्ति-
      • वीर रस-
      • वात्सल्य रस-
      • करुण रस-
    • कलापक्ष विशेषताएँ
      • प्रबन्ध-निपुणता
      • भाषा-
      • विविध शैलियाँ-
      • छन्द और अलंकार-
    • हिंदी साहित्य योजना से जुड़ें 
  • जन्म-मृत्यु – 1532-1623 ई.
  • पिता – आत्माराम दूबे
  • माता – हुलसी
  • पत्नी – रत्नावली
  • दीक्षा गुरु – नरहर्यानन्द
  • शिक्षा गुरु – शेष सनातन

तुलसीदास के जन्म स्थान के विषय में मतभेद है, जो निम्न हैं –

⇒ लाला सीताराम, गौरीशंकर द्विवेदी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामनरेश त्रिपाठी, रामदत्त भारद्वाज, गणपतिचन्द्र गुप्त के अनुसार – तुलसीदास का जन्म स्थान – सूकर खेत (सोरों) (जिला एटा)

⇔ बेनीमाधव दास, महात्मा रघुवर दास, शिव सिंह सेंगर, रामगुलाम द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार तुलसीदास का जन्म स्थान – राजापुर (जिला बाँदा)

⇒ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तुलसीदास को ’स्मार्त वैष्णव’ मानते हैं।

⇔ आचार्य शुक्ल के अनुसार ’हिन्दी काव्य की प्रौढ़ता के युग का आरम्भ’ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हुआ।

⇒ तुलसीदास के महत्त्व के सन्दर्भ में विद्वानों की कही गई उक्तियाँ निम्न हैं –

विद्वानप्रमुख कथन
नाभादासकलिकाल का वाल्मीकि
स्मिथमुगलकाल का सबसे महान व्यक्ति
ग्रियर्सनबुद्धदेव के बाद सबसे बङा लोक-नायक
मधुसूदन सरस्वती आनन्दकानने कश्चिज्जङगमस्तुलसी तरुः।
कवितामंजरी यस्य रामभ्रमर भूषिता।।
रामचन्द्र शुक्ल‘‘इनकी वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों व्यवहारों तक है।
एक ओर तो वह व्यक्तिगत साधना के मार्ग में विरागपूर्ण शुद्ध भगवदभजन का उपदेश करती है दूसरी ओर लोक पक्ष में आकर पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का सौन्दर्य दिखाकर मुग्ध करती है।’’
रामचन्द्र शुक्ल
यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
रामचन्द्र शुक्लतुलसीदासजी उत्तरी भारत की समग्र जनता के हृदय   मन्दिर में पूर्ण प्रेम-प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं।
हजारीप्रसाद द्विवेदीभारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय   करने का अपार धैर्य लेकर आया हो।
रामविलास शर्माजातीय कवि
अमृतलाल नागरमानस का हंस।

⇒ गोस्वमी तुलसीदास रामानुजाचार्य के ’श्री सम्प्रदाय’ और विशिष्टाद्वैतवाद से प्रभावित थे। इनकी भक्ति भावना ’दास्य भाव’ की थी।

⇒ गोस्वामी तुलसीदास की गुरु परम्परा का क्रम इस प्रकार हैं –

राघवानन्द⇒रामानन्द⇒अनन्तानन्द⇒नरहर्यानंद (नरहरिदास)⇒तुलसीदास

⇒ तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ।

⇒ एक बार तुलसीदास की अनुपस्थिति में जब रत्नावली अपने भाई के साथ अपने पीहर चली गई तो तुलसी भी उनके पीछे-पीछे पहुँच गए वहाँ रत्नावली ने उनको बुरी तरह फटकारा।

रत्नावली की फटकार दो दोहों में प्रसिद्ध है –

’’लाज न लागत आपको दौरे आयहु साथ।
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहा कहौं मैं नाथ।।
अस्थि चर्म मय देह मम तामे जैसी प्रीति।
तैसी जौ श्री राम महँ होति न तौ भवभीति।।’’

विशेष (Tulsidas ka Jivan Parichay)

रत्नावली की इस फटकार ने तुलसी को सन्यासी बना दिया।

⇒ गोस्वामी तुलसीदास के स्नेही मित्रों में नवाब अब्दुर्रहीम खानखाना, महाराज मानसिंह, नाभादास, मधुसूदन सरस्वती और टोडरमल का नाम प्रसिद्ध है।

⇒ टोडरमल की मृत्यु पर तुलसीदास(Tulsidas) ने कई दोहे लिखे थे जो निम्न हैं –

’’चार गाँव को ठाकुरो मन को महामहीप।
तुलसी या कलिकाल में अथए टोडर दीप।।
रामधाम टोडर गए, तुलसी भए असोच।
जियबी गीत पुनीत बिनु, यहै जानि संकोच।।’’

⇒ रहीमदास ने तुलसी के सन्दर्भ में निम्न दोहा लिखा है –

सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहति अस होय। – तुलसीदास

गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सो सुत होय।। – रहीमदास

⇔ गोस्वामी तुलसीकृत 12 ग्रन्थों को ही प्रामाणिक माना जाता है। इसमें 5 बङे और 7 छोटे हैं।

⇒ तुलसी की पाँच लघु कृतियों – ’वैराग्य संदीपनी’, ’रामलला नहछू’, ’जानकी मंगल’, ’पार्वती मंगल’ और ’बरवै रामायण’ को ’पंचरत्न’ कहा जाता है।

⇔ कृष्णदत्त मिश्र ने अपनी पुस्तक ’गौतम चन्द्रिका’ में तुलसीदास की रचनाओं के ’अष्टांगयोग’ का उल्लेख किया है।

ये आठ अंग निम्न हैं –

(1) रामगीतावली
(2) पदावली
(3) कृष्ण गीतावली
(4) बरवै
(5) दोहावली
(6) सुगुनमाला
(7) कवितावली
(8) सोहिलोमंगल

⇒ तुलसीदास की प्रथम रचना ’वैराग्य संदीपनी’ तथा अन्तिम रचना ’कवितावली’ को माना जाता है। ’कवितावली’ के परिशिष्ट में ’हनुग्गनबाहुक’ भी संलग्न है। किन्तु अधिकांश विद्वान ’रामलला नहछू’ को प्रथम कृति मानते हैं।

⇒ गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न हैं –

ट्रिकः  जिन रचनाओं में राम व मंगल शब्द आते है वे अवधी में है शेष ब्रजभाषा में है।

Tulsidas in hindi

अवधी भाषा में रचित (Tulsi das in hindi)

1. 1574 ई.रामचरित मानस(सात काण्ड)
2. 1586 ई.पार्वती मंगल164 हरिगीतिका छन्द
3. 1586 ई.जानकी मंगल216 छन्द
4. 1586 ई.रामलला नहछु20 सोहर छन्द
5. 1612 ई.बरवै रामायण69 बरवै छन्द
6. 1612 ई.
रामाज्ञा प्रश्नावली49-49 दोहों के सात सर्ग

 ब्रज भाषा में रचित (Tulsidas Biography in Hindi)

1. 1578 ईगीतावली330 छन्द
2. 1583 ई.दोहावली573 दोहे
3. 1583 ई.विनय पत्रिका276 पद
4. 1589 ई.कृष्ण गीतावली61 पद
5. 1612 ई.कवितावली335 छन्द
6. 1612 ई.वैराग्य संदीपनी62 छन्द

⇒ ’रामचरितमानस’ की रचना संवत् 1631 में चैत्र शुक्ल रामनवमी (मंगलवार) को हुआ। इसकी रचना में कुल 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन लगे।

⇔ ’रामाज्ञा प्रश्न’ एक ज्योतिष ग्रन्थ है।

⇒ ’कृष्ण गीतावली’ में गोस्वामीजी ने कृष्ण से सम्बन्धी पदों की रचना की तथा ’पार्वती मंगल’ में पार्वती और शिव के विवाह का वर्णन किया।

⇔ ’रामचरितमानस’ और ’कवितावली’ में गोस्वामी जी ने ’कलिकाल’ का वर्णन किया है।

⇒ ’कवितावली’ में बनारस (काशी) के तत्कालीन समय में फैले ’महामारी’ का वर्णन ’उत्तराकाण्ड’ में किया गया है।

⇔ तुलसीदास ने अपने बाहु रोग से मुक्ति के लिए ’हनुमानबाहुक’ की रचना की।

⇒ ‘‘बरवै रामायण’’ की रचना रहीम के आग्रह पर की थी।

⇔ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’रामचरितमानस’ को ’लोकमंगल की साधनावस्था’ का काव्य माना है।

 ’मानस’ में सात काण्ड या सोपान हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं –

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. लंकाकाण्ड
  7. उत्तरकाण्ड

⇒ ’अयोध्याकाण्ड’ को ’रामचरितमानस’ का हृदयस्थल कहा जाता है। इस काण्ड की ’चित्रकूट सभा’ को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’एक आध्यात्मिक घटना’ की संज्ञा प्रदान की।

⇔ ’चित्रकूट सभा’ में ’वेदनीति’, ’लोकनीति’ एवं ’राजनीति’ तीनों का समन्वय दिखाई देता है।

⇒ ’रामचरितमानस’ की रचना गोस्वामीजी ने ’स्वान्तः सुखाय’ के साथ-साथ ’लोकहित’ एवं ’लोकमंगल’ के लिए किया है।

⇒ ’रामचरितमानस’ के मार्मिक स्थल निम्नलिखित हैं –

  • राम का अयोध्या त्याग और पथिक के रूप में वन गमन,
  • चित्रकूट में राम और भरत का मिलन,
  • शबरी का आतिथ्य,
  • लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम का विलाप,
  • भरत की प्रतीक्षा आदि।

⇒ तुलसी ने ’रामचरितमानस’ की कल्पना ’मानसरोवर’ के रूपक के रूप में की है। जिसमें 7 काण्ड के रूप में सात सोपान तथा चार वक्ता के रूप में चार घाट हैं।

⇔ तुलसीदास को ’लाला भगवानदीन और बच्चन सिंह’ ने ’रूपकों का बादशाह’ कहा है।

⇒ तुलसीदास को ’आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ ने ’अनुप्रास का बादशाह’ कहा है।

⇔ तुलसीदास को ’डाॅ. उदयभानु सिंह’ ने ’उत्प्रेक्षाओं का बादशाह’ कहा है।

⇒ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है, ’’तुलसी का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’’

⇔ ’रामचरितमानस’ पर सर्वाधिक प्रभाव ’अध्यात्म रामायण’ का पङा है।

रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय  देखें 

⇒ तुलसीदास ने सर्वप्रथम ’मानस’ को रसखान को सुनाया था।

⇒ ’रामचरितमानस’ की प्रथम टीका अयोध्या के बाबा रामचरणदास ने लिखी।

⇔ ’रामचरितमानस’ के सन्दर्भ में रहीमदास ने लिखा है –

रामचरित मानस विमल, सन्तन जीवन प्रान।
हिन्दुवान को वेद सम, यवनहि प्रकट कुरान।।

⇒ भिखारीदास ने तुलसी के सम्बन्ध में लिखा हैं –

तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार।
इनके काव्यन में मिली भाषा विविध प्रकार।।

⇒ अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ ने इनके सम्बन्ध में लिखा हैं –

’कविता करके तुलसी न लसे, कविता पा लसी तुलसी की कला’

⇔ आचार्य शुक्ल ने तुलसी के साहित्य को ’विरुद्धों का सांमजस्य’ कहा है।

⇒ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार –
’’तुलसीदास जी रामानंद सम्प्रदाय की वैरागी परम्परा में नही जान पङते। रामानंद की परम्परा में सम्मिलित करने के लिए उन्हें नरहरिदास का शिष्य बताकर जो परम्परा मिलाई गई है वह कल्पित प्रतीत होती है।’’

⇔ बाबू गुलाबराय ने तुलसीदास को ’सुमेरू कवि गोस्वामी तुलसीदास’ कहा है।

⇒ बाबू गुलाबराय के अनुसार – तुलसीदास को ’विश्वविश्रुत’ माना जाता है।

Tulsidas ka jeevan parichay

तुलसीदास के बारे में महत्त्पूर्ण कथन-

रामचंद्र शुक्ल –भारतीय भक्ति मार्ग सरलता और स्पष्टता का पक्षधर है क्योंकि उसके अनुसार भक्ति का संबंध भावना से है, कठिन योग साधना से नहीं।

रामचंद्र शुक्ल – भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा विनयपत्रिका में देखा जा सकता है, वैसा अन्यत्र नहीं। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलंबन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परमावश्यक अंग है। तुलसी के हृदय से इन दोनों अनुभवों के ऐसे निर्मल शब्द स्रोत निकले हैं, जिसमें अवगाहन करने से मन की मैल करती है और अत्यंत पवित्र प्रफुल्लता आती है।

रामचंद्र शुक्ल – हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी की एक प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।

रामचंद्र शुक्ल – तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे, संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे। जिस व्यक्त जगत के बीच उन्हें भगवान के रामरुप की कला का दर्शन कराना था, पहले चारों ओर दृष्टि दौङाकर उसके अनेक रूपात्मक स्वरूप को उन्होंने सामने रखा है।

रामचंद्र शुक्ल – शील और शील का, स्नेह और स्नेह का, नीति और नीति का मिलन है। (राम-भरत मिलन)

रामचंद्र शुक्ल – यदि कहीं सौन्दर्य है तो प्रफुल्लता, शक्ति है तो प्रणति, शील है तो हर्ष पुलक, गुण है तो आदर, पाप है तो घृणा, अत्याचार है तो क्रोध, अलौकिकता है तो विस्मय, पाखंड है तो कुढ़न, शोक है तो करुणा, आनंदोत्सव है तो उल्लास, उपकार है तो कृतज्ञता, महत्त्व है तो दीनता, तुलसीदास के हृदय में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव से विद्यमान है।

रामचंद्र शुक्ल – अनुप्रास के तो वह बादशाह थे। अनुप्रास किस ढंग से लाना चाहिए, उनसे यह सीखकर यदि बहुत से पिछले फुटकर कवियों ने अपने कवित सवैये लिखे होते तो उनमें भद्दापन और अर्थन्यूनता न आने पाती।

हजारी प्रसाद द्विवेदी – तुलसीदास को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका कारण यह था कि वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर सामने आया हो।

हजारी प्रसाद द्विवेदी – तुलसीदास जी की कविता में लोकजीवन को बहुत दूर तक प्रभावित किया है। उत्तर भारत में जन्म से लेकर मरण काल तक के सभी अनुष्ठानों और उत्सवों में तुलसीदास की रामभक्ति का कुछ न कुछ असर जरुर है।

रामनरेश त्रिपाठी – महात्मा गाँधी का आत्मशुद्धि का उपदेश और तुलसीदास का रामचरितमानस दोनों एक ही वस्तु है।

उदयभानु सिंह – विनयपत्रिका उत्तम प्रगीत काव्य का उत्कृष्ट नमूना है।

उदयभानु सिंह – मानस भक्तिजल से लबालब भरा है। पहले ही सोपान के आरंभ से भक्तिरस मिलने लगता है। पाठक ज्यों-ज्यों गहराई में उतरता जाता है त्यों-त्यों भक्तिजल में प्रवेश करता जाता है और सातवें सोपान पर पहुँचकर वह भक्ति रस में पूर्णतः मग्न हो जाता है।

रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का राष्ट्रीय महत्त्व यह है कि उनसे भारतीय जनता की भावात्मक एकता दृढ़ हुई।

रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का अन्यतम सामाजिक महत्त्व यह है कि इनमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध-भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है। भारत के नए जागरण का कोई महान कवि भक्ति आंदोलन और तुलसीदास से पराङ मुख नहीं रह सकता।

ग्राउस – महलों और झोपङियों में समान रुप से लोग इसमें रस लेते हैं। वस्तुतः भारतवर्ष के इतिहास में गोस्वामी जी का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसकी समानता में कोई आता ही नहीं, उसकी ऊँचाई को कोई छू नहीं पाता।

लल्लन सिंह – तुलसी ने काव्य के संबंध में अपने लिए जो प्रतिमान निर्धारित किए थे, उनमें समाजनिष्ठता सर्वोपरि है।

विश्वनाथ त्रिपाठी – तुलसी की पंक्तियाँ लोगों को बहुत याद है। वे उत्तरी भारत के गाँवों, पुरबों, खेतों, खलिहानों, चरागाहों, चौपालों में दूब, जल, धूल, फसल की भाँति बिखरी हैं।

रामकिंकर उपाध्याय – रामचरितमानस के राम ज्ञानियों के परब्रह्म परमात्मा हैं। भक्तों के सगुण साकार ईश्वर हैं। कर्म मार्ग के अनुयायियों के लिए महान मार्ग दर्शक और दीनों के लिए दीनबंधु हैं। चार बाटों के माध्यम से रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने सारे समाज के व्यक्तियों को आमंत्रण दिया कि वे श्रीराम के चरित्र से अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लें।

तुलसीदास के काव्य में काव्य-सौंदर्य की भावना कैसे थी ?

तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे तथा उच्च शिक्षा प्राप्त गुणज्ञ पण्डित थे, सन्त थे, महात्मा थे। उन्होंने समाज को गहराई से अध्ययन किया था। एक ओर नाथपंथी योगी और अलख-निरंजन की रट लगाकर उस ब्रह्मा को केवल उस घट में उपस्थिति बताते थे और लोक की तरफ से व्यक्ति को उदासीन बना रहे थे, दूसरी ओर नाना प्रकार के दार्शनिक मत-मतान्तर मनुष्य को केवल बुद्धि जाल हमें उलझाए हुए थे। ऐसी स्थिति में तुलसीदास ने विचारर्पूवक अपना पथ निर्धारित किया था।

उनका काव्य यद्यपि ’स्वान्तःसुखाय’ लिखा गया व्यक्तिगत काव्य है, किन्तु तुलसी की व्यापक समस्त विशेषताओं का आकलन करना अत्यन्त कठिन काम है। कुछ विशेषताओं की निर्देश इस प्रकार किया जा सकता है-

1. भावपक्ष विशेषताएँ

2. कलापक्ष विशेषताएँ

भावपक्ष विशेषताएँ

काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा-

तुलसी के युग में विभिन्न विरोधी सम्प्रदाय, धर्म, जातियाँ, उपासना-पद्धतियाँ, दर्शन, शास्त्र-तन्त्र, रीति-नीति अपने खिंचाव से वातावरण को विषाक्त कर रहे थे। तुलसीदास ने विरोधी ध्रुवों में समन्वय के तत्त्व निकाले जो एक दूसरे के अस्तित्व को ललकराते थे। वे सहअस्तित्व के समर्थक हो गए। तुलसीदास ने भारतीय संस्कृति और धर्म को मौलिक एकता का मार्ग बताया। बुद्ध के पश्चात् कदाचित तुलसीदास एकमात्र लोकनायक थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करके समाज, धर्म, संस्कृति को दिशा-बोध कराया। उन्होंने सन्यासी, वैरागी, लोक और शास्त्र, समाज और संस्कृति, राजा और प्रजा के बीच में समन्वय स्थापित किया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में ’’उनका सारा काव्य समन्वय के विराट चेष्टा है।’’

काव्य में रस चित्रण-

तुलसीदास के काव्य में सभी रसों की पूर्णतया है किन्तु विशेषतः भक्ति, वीर और शृंगार रस की सिद्धि उन्हंे प्राप्त थी। आचार्य शुक्ल का कहना है- ’’मानव प्रकृति के जितने अधिक रूपों के साथ गोस्वामी जी के हृदय का रागात्मक सामंजस्य हम देखते है, उतना अधिक हिन्दी भाषा के और किसी कवि के हृदय का नहीं।’’

भक्ति-

तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है जिसमें अपने इष्टदेव के सामने पूर्ण रूप से आत्मविसर्जन है। रामचरितमानस में तो अनेक पात्रों के बहाने भक्ति का उत्कर्ष दिखाया ही गया है साथ ही विनय-पत्रिका में भक्ति का ऐसा आनंद विधायक स्वरूप उपलब्ध है कि हृदय स्वतः प्रणतः होकर विगत कलुष हो जाता है। इसमें राम नाम का स्मरण, मन की चेतना, आत्म निवेदन, अखण्ड विश्वास, इष्टदेव की महानता, भक्त की लघुता और सात्विक जीवन की कामना है।

’ऐसी कौ उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं।।’

शृंगार रस का वह उत्कर्ष तो नहीं है, जो सूरदास में है किन्तु मर्यादित शृंगार का प्रसार तुलसी में भी कम नहीं है। जनकपुर वाटिका प्रसंग में सीता के सामने अकृत्रिम सौंदर्य, उनके क्षण-क्षण में बदलते सात्विक अनुभव शृंगार के उन्नत रूप का उद्रेक करते है। विवाह के अवसर पर सीता, राम के सौंदर्य का बिम्ब अगूंठी के नग में देखती है। कैसा अनूठा मर्यादापूर्ण शृंगार है! विप्रलम्भ शृंगार का अवसर सीता-हरण के बाद आता है। राम सामान्य मनुष्य की तरह पेङ-पौधों से पूछते है और सीता का स्मरण करते है। सीता भी राम के वियोग में व्याकुल है। अशोक वाटिका में सीता की दयनीय दशा का चित्र देखा जा सकता है।

वीर रस-

वीररस का चरित्र शोल-भक्ति और चरित्र की त्रिवेणी से बना है। एक ओर कुसुमादपि कोमल है तो दूसरी ओर ब्रजादपि कठोर है। जिस रूप सौंदर्य से वे अयोध्या, जनकपुर तथा वनवासी लोगों को मोहते हैं, वे अपने पराक्रम से सुबाहु ताङका, मारीच, खर-दूषण, मेघनाथ, कुम्भकरण और रावण का वध करते है। वन में अनेक राक्षसों से उन्हें युद्ध करना पङता है। उन्होंने भुजा उठाकर प्रतिज्ञा की थी कि मैं पृथ्वी को निशाचरों से मुक्त कर दूँगा। राम और लक्ष्मण, अंगद और हनुमान, कुम्भकरण-रावण और मेघनाद के चरित्रों में वीर भाव की उत्साहपूर्वक की गई।

वात्सल्य रस-

माता कौशल्या के साथ बाल राम की अलौकिक क्रीङाओं का चित्रण तुलसीदास ने भी किया है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि वात्सल्य के क्षेत्र में सूर की बराबरी अन्य कोई नहीं कर सकता, फिर भी तुलसीदास इस भाव की दृष्टि से भी विपन्न नहीं है। कवितावली का प्रारम्भ हो बालक राम के सौन्दर्य, अंग-सौष्ठव और क्रीङाओं से होता है। कभी बालक राम चन्द्रमा को देखकर उसे पकङने की जिद करते है और कभी अपने ही प्रतिबिम्ब से डरते हैं। पाँव में पैंजनी और गले में कठुला पहले राम माता-पिता तथा परिजनों को सुख दे रहे है। राम जब वन में चले जाते हैं, तब वियोग-जन्य वात्सल्य भी अत्यन्त द्रवित करने वाला है।

करुण रस-

दशरथ-मरण तथा लक्ष्मण शक्ति के ऐसे दो अवसर रामकथा में उपलब्ध हैं जिनमें करुणा का यथेष्ट अंश स्वतः है। तुलसी ने अपनी गीतावली और रामचरितमानस में इन्हीं अवसरों पर करुणा की धार बहा दी है। लक्ष्मण के शक्ति लगने पर धीर गम्भीर राम अपने आवेग को रोक नहीं पाते है और शोकावेग में यहाँ तक कह देते हैं कि यदि मुझे यह ज्ञात होता कि वन मे बन्धु बिछोह भी हो सकता है तो मैं पिता के वचन भी नहीं मानता लक्ष्मण-विरह में राम की यह दशा करुणार्द्र करने में समर्थ है।
’मेरा सब पुरुषारथ थाको।
विपति बंटावन बन्धु-बाहु बिनु करौ भरोसा काको।।’
इसी प्रकार सुन्दर काण्ड के लंका-दहन में भयानक, लंका काण्ड में रौद्र और वीभत्स, नारद मोह में हास्य रस और उत्तर काण्ड में शान्त रस की सशक्त सृष्टि तुलसीदास ने की है।

कलापक्ष विशेषताएँ

प्रबन्ध-निपुणता

ईश्वर-प्रदत्त सम्पन्न महाकवि थे। उनका रामचरितमानस महाकाव्य प्रबन्ध की दृष्टि से एक उत्तम रचना है जिसमें रचना-कौशल, प्रबन्ध-प्रभुत्ता विषय-समायोजन आदि गुणों का अद्भूत निर्वाह है। कथानक के सभी आवश्यक तत्त्व और महाकाव्य की गरिमा है। तुलसी ने अपने मानस में नाना पुराण, निगमागम तथा लोक-प्रचलित राम कथा को ही प्रकट करने की बात दोहराई है। इसमें चार वक्ता और चार श्रोता है। तुलसी अपने श्रोताओं को बार-बार राम के ब्रह्म स्वरूप का रमरण कराते है। उधर शिव-पार्वती से काकभुशुण्डि गरुङ से और याज्ञवल्क्य भारद्वाज से बराबर संबंध स्थापित किये रहते है। यह क्रम टूटता नहीं है।

भाषा-

तुलसीदास ने भाषा की दृष्टि से भी अनूठा प्रयोग किया है। उन्होंने रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा। तुलसी की अवधी परिष्कृत और साहित्यिक अवधी है। अवधी की पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों शैलियों पर उनका अधिकार था। विनय-पत्रिका और कवितावली आदि रचनाएँ ब्रजभाषा के साहित्यिक परिष्कृत स्वरूप में रची गयी है। इनकी ब्रज और अवधी भाषा में संस्कृत की कोमलकान्त पदावली का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास संस्कृत भाषा के भी प्रकाण्ड पंडित थे। रामचरितमानस में प्रत्येक काण्ड के प्रारम्भ में मंगलाचारण संस्कृत में ही है। उनकी भाषा में भी समन्वय की चेष्टा है। उनकी भाषा जितनी लौकिक है उतनी ही शास्त्रीय भी। भाषा, विषय और भाव के अनुकूल सहज रूप में सुघङ है।

विविध शैलियाँ-

तुलसीदास के समय साहित्य की अनेक शैलियाँ प्रचलित थी। तुलसी ने इन शैलियों का सफल प्रयोग अपने काव्य में किया है। उन्होंने युद्ध-प्रसंगों में ओजवर्द्धक वीरगाथा-काल की छप्पय शैली का प्रयोग किया है तथा अपने भक्ति पदों में और कोमल प्रसंगों में विद्यापति की कोमलकान्त पदावली से युक्त गेय पद शैली का सुन्दर प्रयोग किया है, जिसमें संस्कृत का लालित्य और देश-भाषा का माधुर्य एवं भाव-प्रकाशन की अचूर क्षमता है। तुलसीदास की कवितावली में गंग आदि भाटों की सवैया-कथित-पद्धति के दर्शन होते है तो दोहावली में नीति उपदेश देने वाली सूत्र-पद्धति के। तुलसीदास का प्रसिद्ध काव्य रामचरितमानस भी दोहा-चोपाई शैली पर लिखा गया एक उत्कृष्ट महाकाव्य है। एक ओर उन्होंने रहीम की बरवै छन्द पद्धति का प्रयोग किया तो दूसरी ओर मुक्तक काव्य में भी वे पीछे नहीं रहे।

छन्द और अलंकार-

तुलसीदास काव्य-शास्त्र के जानकार पारंगत विद्वान थे। उन्हें छन्द, अलंकार-शास्त्र के विभिन्न भेदोपभेदों का शास्त्रीय ज्ञान था। वे भाषा, संस्कृत, अलंकार, छन्द आदि को भाव-प्रेषण की कसौटी पर कसते थे। उन्होंने अपने युग के तथा वीरगाथा काल के प्रचलित सभी छन्दों का सफल और शुद्ध प्रयोग किया है। दोहा, सोरठा, चैपाई, गीतिका, कवित्त, सवैया, छप्पय, बरवै आदि छन्द तुलसी की काव्य-कला में उत्कर्ष तक पहुँचे है। अलंकारों की दृष्टि से भी तुलसीदास अत्यन्त सम्पन्न है। वे रस-सिद्ध कवि है।

स्थान-स्थान पर अलंकार-प्रयोग से भी तुलसीदास ने काव्य में अपनी प्रतिभा दिखाई है। वस्तु और भाव का उत्कर्ष दिखाने वाले अगणित अलंकार तुलसी के काव्य की निधि है। उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकार को तुलसी के प्रिय अलंकार है। बाल-काण्ड का मानस-रूपक राम-कथा रूपक भक्ति-रूपक बङे प्रसिद्ध तथा विराट सांगरूपक है। इनके अतिरिक्त सन्देह, भ्रान्तिमान्, प्रतीक, उल्लेख, व्यतिरेक, परिसंख्या, अनुप्रास, विभावना आदि अलंकारों का भी प्रचुर मात्रा में तुलसीदास के काव्य में प्रयोग हुआ है।

अभ्यास प्रश्न :

1.तुलसीदास का जन्म कब हुआ था – Tulsidas ka janm kab hua tha

2. तुलसीदास के गुरु कौन थे – Tulsidas ke guru kaun the

3. तुलसीदास की पत्नी का क्या नाम था – (Tulsidas ki patni ka kya Naam tha)

4. तुलसीदास की माता का नाम क्या था – Tulsidas ki mata ka naam kya Naam tha

  • हिंदी साहित्य योजना से जुड़ें 

  • अज्ञेय जीवन परिचय देखें 
  • विद्यापति जीवन परिचय  देखें 
  • अमृतलाल नागर जीवन परिचय देखें 
  • रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय  देखें 
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी  जीवन परिचय देखें 
  • डॉ. नगेन्द्र  जीवन परिचय देखें 
  • भारतेन्दु जीवन परिचय देखें 
  • साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 
Tweet
Share417
Pin
Share
417 Shares
Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

    My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

    First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

    Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

Comments

  1. Pooja devra says

    09/05/2020 at 5:26 PM

    बहुत ही सारगर्भित वर्णन है वीडियो मे वक़्त ज्यादा लगता है लेकिन इसमे कम समय में ज्यादा चीजें कवर हो जाती है बहुत बहुत धन्यवाद साधुवाद, पूजा देवडा बीकानेर Rajasthan

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      10/05/2020 at 7:17 AM

      जी धन्यवाद

      Reply
  2. Anil Kumar Sharma says

    10/05/2020 at 3:09 PM

    वहुत खूब महोदय जी

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      11/05/2020 at 8:30 AM

      जी धन्यवाद

      Reply
  3. Vinay Kumar says

    14/06/2020 at 2:43 PM

    Very nice

    Reply
  4. राहुल कुमार गुप्ता says

    22/07/2020 at 6:28 PM

    आपके मन मे हिंदी के प्रति जो प्रेम ,स्नेह आदर और आदर्श हैं उससे हम हिंदी विद्यार्थियों को सदा लाभ मिलता रहेगा । आपको कोटि -कोटि प्रणाम
    धन्यवाद सर्

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      23/07/2020 at 8:53 AM

      जी आपका धन्यवाद

      Reply
    • ब्रजेश कुमार उपाध्याय says

      24/08/2021 at 7:43 PM

      हिंदी साहित्य को उचित आदर और सम्मान मिलता रहे ।इस दिशा में आपका प्रयास अत्यंत सराहनीय और शिक्षाप्रद है ।निश्चित रूप से आपका यह प्रयास हिंदी के विद्यार्थियों
      के लिए लाभदायक है ।

      Reply
      • केवल कृष्ण घोड़ेला says

        25/08/2021 at 11:17 AM

        जी धन्यवाद ,आपका यही स्नेह हमें कुछ नया लिखने को प्रेरित करता है

        Reply
  5. KAILASH CHAND SAINI says

    24/11/2020 at 8:20 AM

    अति सुन्दर संकलन

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      24/11/2020 at 11:25 AM

      जी धन्यवाद

      Reply
  6. Dr. Rakesh Kumar says

    05/12/2020 at 11:21 PM

    बेहतरीन /विरल

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Subscribe Us Now On Youtube

Search

सम्पूर्ण हिंदी साहित्य पीडीऍफ़ नोट्स और 5000 वस्तुनिष्ठ प्रश्न मात्र 100रु

सैकंड ग्रेड हिंदी कोर्स जॉइन करें

ट्विटर के नए सीईओ

टेलीग्राम चैनल जॉइन करें

Recent Posts

  • द्वन्द्व समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dwand samas
  • द्विगु समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dvigu Samas
  • NTA UGC NET Hindi Paper 2022 – Download | यूजीसी नेट हिंदी हल प्रश्न पत्र
  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register
  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF
  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game
  • कर्मधारय समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Karmadharaya Samas
  • Rush Apk Download – Latest Version App, Login, Register
  • AJIO App Download – Latest Version Apk, Login, Register
  • अव्ययीभाव समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण || Avyayibhav Samas

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • App Review
  • General Knowledge
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • विलोम शब्द
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • संधि
  • समास
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी पाठ प्रश्नोत्तर
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

हमारा यूट्यूब चैनल देखें

Best Article

  • बेहतरीन मोटिवेशनल सुविचार
  • बेहतरीन हिंदी कहानियाँ
  • हिंदी वर्णमाला
  • हिंदी वर्णमाला चित्र सहित
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुमित्रानंदन पन्त
  • महादेवी वर्मा
  • हरिवंशराय बच्चन
  • कबीरदास
  • तुलसीदास

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay
रामधारी सिंह दिनकर – Ramdhari Singh Dinkar || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Footer

हिंदी व्याकरण

 वर्ण विचार
 संज्ञा
 सर्वनाम
 क्रिया
 वाक्य
 पर्यायवाची
 समास
 प्रत्यय
 संधि
 विशेषण
 विलोम शब्द
 काल
 विराम चिह्न
 उपसर्ग
 अव्यय
 कारक
 वाच्य
 शुद्ध वर्तनी
 रस
 अलंकार
 मुहावरे लोकोक्ति

कवि लेखक परिचय

 जयशंकर प्रसाद
 कबीर
 तुलसीदास
 सुमित्रानंदन पंत
 रामधारी सिंह दिनकर
 बिहारी
 महादेवी वर्मा
 देव
 मीराबाई
 बोधा
 आलम कवि
 धर्मवीर भारती
मतिराम
 रमणिका गुप्ता
 रामवृक्ष बेनीपुरी
 विष्णु प्रभाकर
 मन्नू भंडारी
 गजानन माधव मुक्तिबोध
 सुभद्रा कुमारी चौहान
 राहुल सांकृत्यायन
 कुंवर नारायण

कविता

 पथिक
 छाया मत छूना
 मेघ आए
 चन्द्रगहना से लौटती बेर
 पूजन
 कैदी और कोकिला
 यह दंतुरित मुस्कान
 कविता के बहाने
 बात सीधी थी पर
 कैमरे में बन्द अपाहिज
 भारत माता
 संध्या के बाद
 कार्नेलिया का गीत
 देवसेना का गीत
 भिक्षुक
 आत्मकथ्य
 बादल को घिरते देखा है
 गीत-फरोश
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us