Muktibodh – गजानन माधव मुक्तिबोध || हिंदी साहित्य

आज के आर्टिकल में हम नवलेखन के प्रमुख हस्ताक्षर बहुमुखी प्रतिभा के धनी गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) का जीवन परिचय व प्रमुख रचनाएं पढेंगे ।

Muktibodh

🔷जन्म – 13 नवंबर 1917 ई. (मध्य प्रदेश )
💠मृत्यु- 11 सितंबर 1964 ई. (भोपाल )
🔷 पिता – माधवराव गोपालराव मुक्तिबोध ग्वालियर स्टेट में सब इंस्पेक्टर थे )
💠माताजी – पार्वतीबाई( घरेलू और धर्म परायण महिला )
🔷मुक्ति बोध – चार भाई थे

  • गजानन माधव मुक्तिबोध (हिंदी साहित्यकार )
  • शरतचंद्र मुक्तिबोध (मराठी साहित्यकार )
  • बसंत मुक्तिबोध
  • चंद्रकांत मुक्तिबोध

💠शरद चंद्र के शब्दों में– “बड़े भैया बहुत लाड़ प्यार में पले थे। पहले दो पुत्र गुजर जाने के बाद माता-पिता उनके आंखों से ओझल होने नही देते ।इसी कारण बड़े भैया बहुत जिद्दी बन गए थे और घर में हमें उन्हें बाबू साहब का कह कर पुकारते थे ।”

🔷शिक्षा- पिताजी सब के सब इंस्पेक्टर के तबादले कारण मुक्तिबोध का पढ़ाई का सिलसिला टूटता जुड़ता रहा। 🔷1930 उज्जैन मिडिल क्लास में असफलता , इस घटना को मुक्तिबोध अपनी महत्वपूर्ण घटना मानते थे ।

💠 उस समय राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा था। एक तरफ क्रांतिकारी थे तो दूसरी तरफ गांधी विचार।
🔷 मुक्तिबोध घुमक्कड़ की भांति अपने मित्र शांताराम क्षीर सागर के साथ रात देर देर तक घूमते रहते थे
💠 मुक्तिबोध एक जगह टिक नहीं पाते अपनी इसी प्रवृत्ति को मुक्तिबोध स्थानांतरगामी प्रवृत्ति कहते थे

🔷विवाह:- मुक्तिबोध का परिवार संपन्न था, परिवार की आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने काम वाली लड़की के साथ विवाह किया यह जाति भेद तो नहीं था किंतु वर्ग भेद अवश्य था,
💠मुक्तिबोध के स्वेच्छा पूर्वक विवाह के पश्चात जीवन संघर्ष का सिलसिला प्रारंभ हुआ जो अंतिम क्षण तक चलता रहा

🔷नौकरी:- मुक्तिबोध नौकरी में भी एक जगह टिक नहीं सके अनेक स्कूलों में इन्होंने नौकरी की
💠दैनिक पत्र ‘जय हिंद’ में भी इन्होंने काम किया
🔷नागपुर के रेडियो स्टेशन में समाचार विभाग में न्यूज़ रीडर की नौकरी इन्हें मिली

💠1946 ई.  में नया खून का संपादन इन्होंने किया
🔷1948 ई. राजनांदगांव के कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में इन्हें नियुक्ति मिली यही इन्होंने ‘ब्रह्मराक्षस ‘और ‘अंधेरे में ‘कविताओं की रचना की

काव्य रचना काल:-

इनका काव्य रचना काल”1935″से आरंभ होता है मुक्तिबोध की शुरुआती रचनाओं में छायावाद का प्रभाव था किंतु आगे चलकर मुक्तिबोध की कविता में कल्पना के स्थान पर यथार्थ में जगह ले ली मुक्तिबोध प्रगतिवादी परंपरा से प्रभावित हुए दिखाई देते हैं
🔷मुक्तिबोध जनवादी कवि थे

💠साहित्य जगत में वह तार सप्तक से प्रविष्ठ हुए
🔷काव्य संग्रह “चांद का मुंह टेढ़ा है “:-1964 ई. मे उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित संग्रह है इसमें 28 कविताएं संग्रहित है श्रीकांत वर्मा के सहयोग से यह काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ
💠रामस्वरूप चतुर्वेदी ने चाँद का मुँह टेढ़ा है को “बड़े कलाकार की स्केच बुक कहा है ”

🔷”भूरी भूरी खाक धूल “:-1980 ई. में प्रकाशित इन का काव्य संग्रह जिसमें 47 कविताएं संग्रहित है इस संग्रह में मार्क्सवाद का प्रभाव है

💠 इनकी कविताएं अक्सर लंबी है’ ब्रह्म राक्षस’, ‘ अंधेरे में’, ‘चंबल की घाटी ‘, ‘जिंदगी का रास्ता ‘सभी कविताएं इनकी लंबी कविताएं है
🔷अँधेरे मे 1957 ई. मे लिखी गई लम्बी कविता है जो 1964 ई. कल्पना मे प्रकाशित हुई
💠’अँधेरे मे ‘कविता का पहले नाम “आशंका के द्वीप” था
यह “चाँद का मुँह टेढ़ा है” काव्य संग्रह मे प्रकाशित है

🌴🔷अँधेरे मे कविता पर विशेष तथ्य :-

राम विलास शर्मा ने “अपराध भावना का अनुसंधान “कहा है नामवर सिंह :-अस्मिता की खोज कहा है
प्रभाकर माचवे :-लावा
रामविलास शर्मा ने :-“आरक्षित जीवन की कविता “कहा है

💠तार सप्तक में प्रकाशित कविताएं ‘आत्मा के मित्र मेरे’, ‘दूर तारा’, ‘ खोल आंखें ‘, ‘मेरे अंतर’, ‘ बिहार ‘आदि
“एक आत्मा व्यक्तव्य ” कविता के पूर्व ‘पुनश्च’ में इन्होंने लिखा है :-“इससे छोटी कविता मैं नहीं लिख सकता”

🔷निबंध

“नई कविता का आत्म संघर्ष ” -यह 13 निबंधों का संग्रह है

💠”समीक्षा की समस्याएं” प्रस्तुत पुस्तक में संकलित निबंध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे “समीक्षा की समस्याएं” के अंतर्गत “अंधा युग :-एक समीक्षा “इनकी महत्वपूर्ण आलोचनात्मक निबंध है इस निबंध में सामाजिक पक्ष पर प्रभाव डाला गया है

🔷’ मैं जो कुछ भी देखता हूं “:-एक समीक्षा आलोचनात्मक निबंध के अंतर्गत जटिल चरणों के रेखाचित्र उपस्थित किए गए हैं

💠”लू सुन की कहानियां” आलोचनात्मक निबंध में मुक्तिबोध ने ‘लू सुन की कहानियों’ की समीक्षा की है

🔷”एक साहित्यिक की डायरी “:-जबलपुर में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘वसुधा ‘ में प्रकाशित हुई 1957, 58और 1960 में यह डायरी प्रकाशित हुई
💠’वसुधा ‘पत्रिका में ‘एक साहित्यिक डायरी ‘नाम से चला एक साहित्यिक की डायरी में कुल 13 प्रकरण हैं

🔷कामायनी एक पुनर्विचार (आलोचनात्मक निबंध):-

  • हंस और आलोचना पत्रिका में 1940 ई. मे प्रकाशित
  • इसमें 13 अध्याय हैं
  • फैंटेसी का प्रयोग किया गया है

💠’नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’:- मुक्तिबोध के पुत्र रमेश गजानन मुक्तिबोध ने 1981 में इसे प्रकाशित करवाया
इसमें मुक्तिबोध ने:- “कलाकृति को जीवन की पुनर्रचना कहा है”

🔷कहानी संग्रह” काठ का सपना”1967 ई. , इसमें 11 कहानियों का संग्रह है

💠 ‘क्लोड ईथरली’:-यह सर्वश्रेष्ठ कहानी है, इसमें आधुनिक सभ्यता का भयावह रूप दिखाया गया है
🔷’पक्षी और दीमक'(कहानी ):-व्यक्ति स्वतन्त्रा पर जोर दिया गया है
💠’विपात्र ‘:-मुक्तिबोध की सबसे महत्वपूर्ण कहानी, इसमें मध्य्मवर्गीय विडंबना को दर्शाया गया है

🔷”सतह से उठता आदमी ‘:-यह दूसरा कहानी संग्रह है
इसमें ‘जिंदगी की ख़तरनाक’, ‘भूत के उपचार ‘, ‘समझोता ‘जैसी मूल्यवान कहानियां है
💠विपात्र :-लघु उपन्यास, लम्बी कहानी, निबंध का मिश्रण है

🔷”भारत इतिहास और संस्कृति “:-मुक्तिबोध की सर्वश्रेष्ठ बहुचर्चित और विवादित कृति, मध्यप्रदेश शासन द्वारा” भद्रता और नैतिकता “के विरुद्ध ठहराई गई इस पुस्तक पर मुकदमा चला

💠पदवी, उपाधि(Muktibodh) :-

  • “मुक्तिबोध स्वाधीनता भारत का इस्पाती ढांचा है “:-शमशेर बहादुर सिंह
  • तीव्र इन्द्रिय बोध का कवि
  • भयानक खबरों का कवि
  • फैंटेंसी का कवि

महत्त्वपूर्ण लिंक

🔷सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      🔷कारक 

🔹क्रिया    🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  🔷 समास(हिंदी व्याकरण) 

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷  हिंदी मुहावरे 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

6 thoughts on “Muktibodh – गजानन माधव मुक्तिबोध || हिंदी साहित्य”

  1. Bahut hi gyanvardhak jankariya saral shabdo me mil jati hai, aise hi nit nai jankariya preshit karte rahe, apka bahut bahut aabhar

  2. आपका बहुत- बहुत धन्यवाद! बहुत ही सरल शब्दों में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की है।

  3. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी
    सर अगर आपका कोई टेलीग्राम चैनल हो तो उसे उपलब्ध करना की कृपा करें।

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