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Teaching Skills || शिक्षण कौशल

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:3rd May, 2022| Comments: 2

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दोस्तो आज की पोस्ट में हम महत्त्वपूर्ण विषय शिक्षण कौशल(Teaching skills) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ,आप इसे अच्छे से पढ़ें |

  teaching skills

शिक्षण कौशल(Teaching Skills)

शिक्षण कौशल क्या है ?(what is Teaching skills)

शिक्षण कौशल – प्रत्यक्ष रूप से अध्यापक अधिगम को सरल एवं सहज बनाने के उद्देश्य से किये जाने वाले शिक्षण कार्यों का व्यवहारों का समूह शिक्षण कौशल या अध्यापन कौशल कहलाता है।

⇒शिक्षण एक विज्ञान है। इस आधार पर प्रशिक्षण द्वारा अच्छे शिक्षक तैयार किये जा सकते हैं। उनमें शिक्षण के लिए आवश्यक कौशलों को विकसित किया जा सकता है। इन्हीं कौशलों का उपयोग कर कक्षा में प्रभावी शिक्षण कर अच्छे शिक्षक बन सकते है। अतः शिक्षक प्रशिक्षण में इन कौशलों का विकास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

शिक्षण कौशल की परिभाषाएं (Teaching Skills Definition)

डॉक्टर बी के पासी के अनुसार- “शिक्षण कौशल, छात्रों के सीखने के लिए सुगमता प्रदान करने के विचार से संपन्न की गई संबंधित शिक्षण क्रियाओं या व्यवहारिक का समूह है।”

मेकइंटेयर एवं व्हाइट के अनुसार- “शिक्षण कौशल, शिक्षण व्यवहार से संबंधित वह स्वरूप है ,जो कक्षा की अंतः प्रक्रिया द्वारा उन विशिष्ट परिस्थितियों को जन्म देता है। जो शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है और सीखने में सुगमता प्रदान करती है।”

डॉ कुलश्रेष्ठ के अनुसार- ” शिक्षण कौशल शिक्षक की हाथ में वह शस्त्र है। जिसका प्रयोग करके शिक्षक अपनी कक्षा शिक्षण को प्रभावी तथा सक्रिय बनाता है एवं कक्षा की अंतर प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास करता है।”

हिन्दी-शिक्षण के लिए शिक्षण-कौशल –

सन् 1960 के दशक में ’’शिक्षण और उसकी प्रभावकारिता’’ पर अमेरिका में सघन चिंतन और अनुसंधान हुए। फ्लेंडर और उसके साथियों ने कक्षा-शिक्षण का विश्लेषण करके यह स्थापित किया कि कक्षा-शिक्षण वस्तुतः तीन घटकों की अन्तक्र्रिया का नाम है।

वे तीन घटक हैं – अध्यापक की सक्रियता, छात्र की सक्रियता और मौन। इस विश्लेषणात्मक उपागम ने कई तरह की अध्यापन-कुशलताओं के विकास का रास्ता खोल दिया।
शिक्षण-कुशलता-’’ऐसे शिक्षण व्यवहारों या क्रियाओं का नाम है जिनका लक्ष्य छात्रों को प्रत्यक्ष या परोक्ष द्वारा से सीखने मदद करना हैं।’’

शिक्षण कौशलों की विशेषताएँ (Character of teaching skills)

(1) शिक्षण कौशलों के प्रशिक्षण से शिक्षक व्यवहार में परिवर्तन आता है।
(2) शिक्षण कौशल कक्षा में शिक्षण की परिस्थिति उत्पन्न करते है।
(3) शिक्षण कौशल शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते है।
(4) शिक्षण कौशल प्रभावी शिक्षण में सहायक होते हैं।

भारत देश में अध्यापन-कुशलताओं पर कार्य 1972 में आरंभ हुआ और कुछ प्रशिक्षण-महाविद्यालयों ने इस पर अनुसंधान और प्रयोग किए। 1975 तक यहाँ के अनुकूल कुछ कुशलताओं की सूची तैयार की गई।
वह इस प्रकार हैं –

⇒ अध्यापन के उद्देश्य लिखने की कुशलता।
⇔ किसी पाठ की प्रस्तावना करने की कुशलता।
⇒ प्रश्नों में प्रवाह लाने की कुशलता।
⇔ उत्खन्न करने की कुशलता या खोजी प्रश्न करने की कुशलता।
⇒ व्याख्या करने की कुशलता या उदाहरणों द्वारा समझाने की कुशलता।
⇔ उद्दीपनों में विविधता लाने की कुशलता।
⇒ मौन सम्प्रेषण की कुशलता।
⇔ पुनर्बलन की कुशलता।
⇒ छात्रों का प्रतिभागित्व बढ़ाने की कुशलता।
⇔ श्यामपट्ट के उपयोग की कुशलता।
⇒ पाठ के समापन की कुशलता।

फ्लेण्डर और उनके साथियों ने 1960 के दशक में शिक्षण और उसकी प्रभावकारिता पर अमेरिका में सघन चिंतन और अनुसंधान किये। शिक्षण तीन घटकों- (। ) अध्यापक की सक्रियता, (।। ) छात्र की सक्रियता (।।। ) मौन आदि घटकों के नाम है।

शिक्षण कौशल कितने प्रकार के होते हैं

शिक्षण कौशल के प्रकार (Types of teaching skills)

प्रमुख शिक्षण कौशल –

  • प्रस्तावना कौशल
  • प्रश्न सहजता कौशल
  • खोजपूर्ण प्रश्न कौशल
  • प्रदर्शन कौशल
  • व्याख्या कौशल
  • प्रबलन कौशल
  • श्यामपट्ट कौशल।

1. प्रस्तावना कौशल

प्रस्तावना कौशल का सम्बन्ध पाठ को प्रारम्भ करने से पूर्व किया जाता है।
इस कौशल से सम्बन्धित सूक्ष्म पाठ तैयार करने के लिये हमें पूर्वज्ञान, सम्बन्ध-शृंखलाबद्धता सहायक सामग्री का ध्यान रखना चाहिए।
प्रस्तावना कौशल में प्रस्तावना अधिक लम्बी या अधिक छोटी नहीं होनी चाहिए। इस कौशल में 5 से 7 मिनट का समय लगता है। प्रस्तावना से बालक पाठ के अध्ययन में रुचि लेगा।
इस कौशल में अध्यापक छात्रों से प्रश्न, कहानी कह कर या किसी का उदाहरण देकर या निदर्शेन से या पाठ का सार या मन्तव्य बताकर इसमें से किसी भी तकनीक या कथन का सहारा ले सकता है।
इसके लिए तीन प्रकार के प्रश्नों का उपयोग भी करता है –

1. प्रत्यास्मरण प्रश्न – ऐसे प्रश्न जिनका जवाब बालक पूर्व ज्ञान पर आधारित एवं आसानी से दे सकें।
2. निबंधात्मक प्रश्न – शिक्षक ही पूछता है एवं स्वयं ही जवाब देता है।
3. आज्ञापालन प्रश्न – जिनका जवाब ’हाँ’ या ’ना’ में दे सके।

2. प्रश्न सहजता कौशल

कक्षा-शिक्षण में प्रश्न पूछने की प्रक्रिया का बङा महत्व है प्रश्न के माध्यम से अध्यापक बालक को अधिक चिन्तनशील बनाता है तथा विद्यार्थियों के ज्ञान, बोध, रुचि, अभिवृत्ति आदि का पता लगाता रहता है। सहज प्रश्न कौशल से अभिप्राय है – प्रश्न एवं शिक्षक की भाषा सहज हो।
शिक्षण प्रक्रिया के आधार पर तीन प्रकार के प्रश्न होते हैं –
(।) प्रस्तावना प्रश्न, (।। ) शिक्षणात्मक प्रश्न (।।। ) परीक्षणात्मक प्रश्न।

अध्यापक को प्रश्न पूछते समय धैर्य तथा सहानूभूतिपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए।
विषय-वस्तु व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध प्रश्न बालकों से पूछना चाहिए। इसमें गति और विराम का भी ध्यान रखना चाहिए।

इसमें उचित संख्या में प्रश्न होने चाहिए। अध्यापक को सरल एवं स्पष्ट तथा संक्षिप्त प्रश्न पूछना चाहिए।

3. खोजपूर्ण प्रश्न कौशल

शिक्षक अपने विद्यार्थियों से विषय-वस्तु के गहन अध्ययन एवं गहराई तक पहुँचने के लिए विद्यार्थियों से खोजपूर्ण प्रश्न पूछता है।
यह एक ऐसा कौशल है जो विद्यार्थियों की नई खोज, नवीन जानकारी कल्पना करने आदि के लिए प्रेरित करता है।
खोजपूर्ण प्रश्न पूछने से विद्यार्थियों के ज्ञान को काम में लिया जा सकता है।

शिक्षक द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करे तो शिक्षक को विषय-वस्तु से सम्बन्धित आलोचनात्मक सजगता के लिए खोजपूर्ण प्रश्न पूछता है।

ध्यान रखने योग्य –

  • छात्रों का ध्यान केन्द्रित करने वाले प्रश्न होना।
  • आगे की सूचना खोजने वाला प्रश्न होगा।
  • अर्थ संकेतकता होना – इसमें छात्र को किस दशा में उत्तर की खोज करनी है।
  • बातों को अन्य की ओर मोङना
  • गलत उत्तर देने पर प्रश्नों के माध्यम से धीरे-धीरे सही उत्तरों की ओर ले जाना।

4. प्रदर्शन कौशल

शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया केवल मौखिक रूप से नहीं चल सकती इसीलिए इस कौशल में किसी विषय-वस्तु को स्पष्ट करने के लिए तथा रोचक बनाने के उद्देश्य से सहायक सामग्री जैसे चित्र, आर्ट आदि से प्रदर्शन किया जाता है।
किसी पदार्थ या उत्पादन के बारे में एक सार्वजनिक प्रदर्शन और उसके मुख्य-मुख्य गुणों, उपयोगिता, कार्य-कुशलता आदि पर जोर देना ही प्रदर्शन है। प्रदर्शन कौशल से पूर्व अध्यापक को प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है।

ध्यान रखने योग्य –

  • बालकों की सहभागिता
  • विषय-वस्तु से सम्बद्धता
  • प्रदर्शन का स्पष्ट उद्देश्य
  • प्रदर्शन की उपयुक्त गति, रोचकता।
  •  छात्रों के स्तर के अनुकूल
  • ध्यान के क्रम, प्रदर्शन, योजनाबद्ध एवं पूर्व अभ्यास किया हुआ हो।

5. व्याख्या कौशल

उच्च कक्षाओं में से गद्य, पद्य कविता आदि का भाव प्रकट करने, अर्थ बताने या अपने विचारों और सिद्धातों को शाब्दिक रूप में पहुँचाना ही व्याख्या कौशल कहलाती है –
थाॅमस एम. रिस्क – ने अपनी पुस्तक ’’Principle and Practices of Teaching in Secondary School’’ ने कहा है कि –
व्याख्यान उन तथ्यों, सिद्धान्तों या अन्य सम्बन्धों का स्पष्टीकरण है, जिनको शिक्षक चाहता है कि उसके सुनने वाले समझे।
व्याख्या – वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, तर्कात्मक
सहायक सामग्री से भी चार्ट, चित्र, टेप रिकाॅर्डर आदि के प्रयोग से या माध्यम से भी व्याख्या की जाती है।

ध्यान रखने योग्य –

  • व्याख्यान की भाषा सरल होनी चाहिए।
  • पाठ की गति प्रारम्भ में मंद फिर सतत् हो।
  •  दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग होना चाहिए।
  •  आवाज का स्पष्ट होना आवश्यक है।
  • निष्कर्षात्मक कथन आवश्यक है।
  • छात्र से जाँच प्रश्न पूछे जाने चाहिए।
  •  उपयुक्त मुहावरों, शब्दों एवं उदाहरणों का प्रयोग
  • कथनों की तारत्मयता, कथन में सहजता होनी चाहिए।

6. प्रबलन कौशल

इसे प्रतिपुष्टि या सुदृढ़ीकरण कौशल भी कहते हैं। प्रबलन का पुनःबल देना है।
सकारात्मक शब्दों, व्यवहार एवं माध्यम से अधिगम की प्रक्रिया से जोङना व रुचि उत्पन्न करने का कार्य करना है। इससे सीखने की प्रक्रिया में गति आती है।

सकारात्मक पुनर्बलन – वह घटना जो किसी उद्दीपन को वैसी ही परिस्थितियों में पैदा करने पर दोबारा अनुक्रिया की सम्भावना बढ़ती है।

नकारात्मक पुनर्बलन – यदि घटना के समाप्त होने पर अनुक्रिया के नहीं होने की सम्भावना बढ़ती है तो इसे नकारात्मक पुनर्बलन कहते हैं।

शाब्दिक सकारात्मक – बालक के सही एवं संतोषजनक उत्तर देने पर अध्यापक द्वारा उसी समय प्रोत्साहन एवं उत्साहवर्द्धक शब्दों का प्रयोग करता है। जैसे- अच्छा, बहुत अच्छा, शाबाश, उत्तम इन सभी क्रियाओं को शाब्दिक सकारात्मक प्रबलन कहते हैं।

सांकेतिक सकारात्मक प्रबलन – शिक्षक छात्र को प्रोत्साहित करने के लिये अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग करता है। जैसे- सिर हिलाना, मुस्कुराना, बालक की पीठ थपथपाना आदि।

शाब्दिक नकारात्मक प्रबलन -बालकों के अशुद्ध या असन्तोषजनक उत्तर या कार्य के लिए शिक्षक द्वारा नकारात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे – गलत, ठीक नहीं, रुको, ऐसे नहीं, गोबर गणेश, मूर्ख, बेवकूफ, पागल कहीं का आदि। लेकिन इनके प्रयोग से विद्यार्थियों को यह लगेगा कि अध्यापक कक्षा में उनकी आलोचना कर रहा है अतः इस प्रकार के प्रबलन नहीं देना चाहिए।

सांकेतिक नकारात्मक – बालक के गलत या असंतोषजनक कार्य पर शिक्षक सांकेतिक नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग करता है, जैस – गुस्से से देखना, आंखें दिखाना आदि।

7. श्यामपट्ट कौशल

शिक्षण प्रक्रिया में श्यामपट्ट का विशेष महत्व है। कक्षा में श्यामपट्ट अध्यापक का मित्र होता है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सही, प्रभावपूर्ण एवं समुन्नत बनाने के लिये अध्यापक अनेक प्रकार से स्वकौशल का प्रदर्शन श्यामपट्ट के माध्यम से करता है। उदाहरण के लिये कार्टून, चित्र ग्राफ, समय-सारणी आदि का श्यामपट्ट के माध्यम से विद्यार्थियों को अवगत कराना। एक कुशल शिक्षक बिन्दु का नाम लिखना नहीं भूलता तथा प्रमुख बिन्दुओं को भी अंकित करता है।

घटक –

  • स्पष्ट लेखन, स्वच्छ एवं सुन्दर लेखन होना चाहिए।
  • अक्षरों का आकार और लिखने का क्रम सही होना चाहिए।
  • मुख्य बिन्दुओं को रेखांकित करना।
  • शब्दों के बीच में उचित अंतराल होना।
  • श्यामपट्ट का उचित प्रयोग आवश्यक है।
  • चमकदार स्याही से लिखना चाहिए।
  • श्याम के सामने खङा नहीं होना चाहिए।
  • कक्षा की समाप्ति पर श्यामपट्ट को स्वच्छ करना चाहिए।

ये भी जरूर पढ़ें⇓⇓⇓

 

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पर्यवेक्षित अध्ययन विधि

सूक्ष्म शिक्षण विधि 

इकाई शिक्षण विधि 

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Comments

  1. Kanchan Kumari says

    01/09/2020 at 8:01 AM

    I really like this and i understand everything how to treat the teachers with their students and i think if all the teachers will do like this i mean which is written in paragraphs then our education system will be better and we can become the topmost educational country in this world.so i hope everyone like this……THANKU SO MUCH

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      01/09/2020 at 8:56 AM

      Thanks for feedback

      Reply

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