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हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:20th Apr, 2022| Comments: 2

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आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण (Hindi Sahitya ka Kaal Vibhajan aur Naamkaran) की के इतिहास को पढेंगे ।आर्टिकल को पढ़कर नीचे कमेंट बॉक्स में अपने विचार जरुर लिखें ।

हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण

दोस्तो साहित्य इतिहासकारों ने इतिहास लेखन में कई पद्धतियों को काम में लिया

’वर्णानुक्रमी पद्धति’

Table of Contents

  • ’वर्णानुक्रमी पद्धति’
  • ’कालानुक्रमी पद्धति’
  • मिश्रबन्धुओं का काल-विभाजन –
  • हिन्दी साहित्य इतिहास का नामकरण एवं काल विभाजन-
    • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल –
    • डाॅ. रामकुमार वर्मा –
    • डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त –
  • आदिकाल का नामकरण और समय सीमा
    • (1) फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी
    • (2) ठाकुर शिव सिंह सेंगर 
    • (3) जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
    • (4) मिश्रबंधु 
    • (5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • हिंदी साहित्य के काल की समय सीमा –
  • हिंदी साहित्य इतिहास का नामकरण
  •  हिंदी के प्रथम कवि-

सबसे पहली पद्धति ’वर्णानुक्रमी पद्धति’ आयी थी।

’गार्सा-द-तासी’ – इस ’वर्णानुक्रमी पद्धति’ के पहले इतिहासकार ’गार्सा-द-तासी’ थे। इनकी रचना-’इस्त्वार द ला लितरेत्यूर ऐन्दुई’ थी। इनकी ये रचना ’वर्णानुक्रमी पद्धति’ पर आधारित थी। इन्होंने काल-विभाजन का कोई प्रयास ही नहीं किया।

’शिवसिंह सेंगर’ – इस ’वर्णानुक्रमी पद्धति’ के दूसरे इतिहासकार ’शिवसिंह सेंगर’ थे। इनकी रचना-’शिवसिंह सरोज’ थी। ये भी ’वर्णानुक्रमी पद्धति’ पर आधारित थी। इन्होंने ने भी काल-विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया।

’कालानुक्रमी पद्धति’

दूसरी पद्धति ’कालानुक्रमी पद्धति’ आयी थी।

’जाॅर्ज ग्रियर्सन’ – ’कालानुक्रमी पद्धति’ जाॅर्ज ग्रियर्सन’ से शुरू हुई। जिसके पहले इतिहासकार ’जाॅर्ज ग्रियर्सन’ थे। जाॅर्ज ग्रियर्सन ने पहली बार काल विभाजन का प्रयास किया। इन्होंने अपनी पुस्तक ’द माॅडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान’ को ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया। इनका प्रत्येक अध्याय एक कालखण्ड को व्यक्त करता है।

कुछ विद्वानों ने इनके ’कालखण्डों’ की आलोचना की। इनकी आलोचना निम्न आधार पर की जाती है-

  1. काल विभाजन में वैज्ञानिकता का अभाव है।
  2. अध्यायों की संख्या (11) अधिक होने से उसे काल विभाजन मानना उपयुक्त नहीं है।

मिश्रबन्धुओं का काल-विभाजन –

मिश्रबन्धु – मिश्रबन्धु की रचना ’मिश्रबन्धु-विनोद’ थी। इन्होंने ’काल’ को पाँच भागों में बांटा है-

(1) आरम्भिक काल – आरम्भिक काल को दो भागों में बांट दिया-

  • पूर्वारम्भिक काल (700-1343 विक्रमी.संवत्)
  • उत्तरारम्भिक काल (1344-1444 विक्रमी.संवत्)

(2) माध्यमिक काल – माध्यमिक काल को दो भागों में बांट दिया-

  • पूर्व माध्यमिक काल (1445-1560 विक्रमी संवत्)
  • प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 विक्रमी संवत्)

(3) अलंकृत काल – अलंकृत काल को दो भागोें में बांट दिया –

  • पूर्वालंकृत काल (1681-1790 विक्रमी संवत्)
  • उत्तरालंकृत काल (1791-1889 विक्रमी संवत्)

(4) परिवर्तन काल – (1890-1925 विक्रमी संवत्)

(5) वर्तमान काल – (1926 विक्रमी संवत् से आगे तक)

कुछ विद्वान् मिश्रबन्धुओं के ’काल-विभाजन’ की भी आलोचना करते है। इनकी आलोचना निम्न आधार पर की जाती है-

  1. काल विभाजन का कोई सुस्पष्ट आधार नहीं है।
  2. कालखण्डों के नामकरण में एक जैसी पद्धति नहीं अपनाई गई।
  3. इनका ’परिवर्तन काल’ नामकरण असंगत है।
  4. हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रारम्भ 700 विक्रमी संवत् (643 ई.) से मानकर हिन्दी के अन्तर्गत अपभ्रंश की रचनाओं को समेट लिया है।

इसलिए रामचन्द्र शुक्ल ने यह परिभाषा दी है- ’’सारे रचना काल को केवल आदि, मध्य, पूर्व, उत्तर इत्यादि खण्डों में आँख मूँदकर बाँट देना – यह भी न देखना कि किस खण्ड के भीतर क्या आता है और क्या नहीं – किसी वृत संग्रह को इतिहास नहीं बना सकता।’’

हिन्दी साहित्य इतिहास का नामकरण एवं काल विभाजन-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल –

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’दोहरा नामकरण परम्परा’ की शुरूआत की। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’काल-विभाजन’ को चार भागों में बांटा है-

(1) आदिकाल (वीरगाथा काल) – 1050 से 1375 वि.सं.
(2) पूर्वमध्य काल (भक्तिकाल) – 1375 से 1700 वि.सं.
(3) उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) – 1700 से 1900 वि.सं.
(4) आधुनिक काल (गद्य काल) – 1900 से 1984 वि.सं.

काल विभाजन पद्धति के आधार –

  1. प्रधान प्रवृत्ति।
  2. ग्रन्थों की प्रसिद्धि।

कुछ विद्वानों ने रामचन्द्र शुक्ल के ’काल विभाजन’ की आलोचना की। विद्वानों कोे सर्वाधिक आपत्ति – ’वीरगाथा काल’ नामकरण पर हुई है। विद्वानों ने कहा कि ये प्रवृत्ति (वीरगाथा काल) ही नहीं है। रामचन्द्र शुक्ल के कट्टर विरोधी रहे है जो ’हजारीप्रसाद द्विवेदी’ इन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि – ’’रामचन्द्र शुक्ल ने जिन ग्रन्थों को आधार बनाकर ’काल-विभाजन’ किया है वह सारे ग्रन्थ ही आधारहीन है। इन ग्रन्थों का कोई इतिहास नहीं है।’’

रामचन्द्र शुक्ल ने वीरगाथा काल में 12 रचनाओं को शामिल किया है और उन्हीं 12 रचनाओं की ऐतिहासिकता पर प्रश्न चिह्न हजारीप्रसाद ने लगाया है।

डाॅ. रामकुमार वर्मा –

डाॅ. रामकुमार वर्मा ने ’काल-विभाजन’ को पाँच भागों में बांटा है-

(1) संधिकाल – 750 से 1000 वि.सं.
(2) चारणकाल – 1000 से 1375 वि.सं.
(3) भक्तिकाल – 1375 से 1700 वि.सं.
(4) रीतिकाल – 1700 से 1900 वि.सं.
(5) आधुनिक काल – 1900 से अब तक।

नोट – रामचन्द्र शुक्ल के काल-विभाजन व डाॅ. रामकुमार वर्मा के ’काल-विभाजन’ में कुछ अन्तर पाया जाता है।

(1) डाॅ. रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य की शुरूआत 750 विक्रमी संवत् से मानी। लेकिन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य की शुरूआत 1050 विक्रमी संवत् से मानी है।

(2) डाॅ. रामकुमार वर्मा के ’संधिकाल’ (750-1000 वि.सं.) और ’चारणकाल’ (1000 से 1375 वि.सं.) ही रामचन्द्र शुक्ल का ’आदिकाल’ है। रामकुमार वर्मा के ’संधिकाल’ और ’चारणकाल’ का समय भी 1375 विक्रमी संवत् पर समाप्त हो गया और रामचन्द्र शुक्ल के ’आदिकाल’ का समय भी 1375 विक्रमी संवत् पर समाप्त हो गया।

(3) रामचन्द्र शुक्ल के ’भक्तिकाल’ (1375 से 1700 वि.सं.), ’रीतिकाल’ (1700 से 1900 वि.सं.), ’आधुनिक काल’ (1900 से अब तक) का समय – रामकुमार वर्मा के ’भक्तिकाल’(1375 से 1700 वि.सं.), ’रीतिकाल’(1700 से 1900 वि.सं.), ’आधुनिक काल’(1900 से अब तक) के समय के समान है।
केवल इनकी शुरूआत का ही अन्तर रहा है।

(4) हिन्दी साहित्य में डाॅ. रामकुमार वर्मा ने अपने ’संधिकाल’ में अपभ्रंश की रचनाएँ समाविष्ट की हैं। लेकिन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य में अपभ्रंश की रचनाओं को शामिल नहीं किया है।

(5) रामचन्द्र शुक्ल जी ने नामकरण रचना की प्रवृत्ति (यानी उस समय राजा-महाराजाओं की वीर गाथा गायी जाती थी, इसलिए वीरगाथा काल नामकरण किया।) के आधार पर किया। जबकि डाॅ. रामकुमार वर्मा ने नामकरण रचनाकार के आधार पर किया।

(6) ’चारण काल’ और ’वीरगाथा काल’ में कोई मौलिक अन्तर नहीं है, क्योंकि वीरगाथाओं के रचयिता ही चारण कहलाते थे। इस ’चारण’ रचनाकार के नाम के आधार पर डाॅ. रामकुमार वर्मा ने ’चारणकाल’ नामकरण दिया है।

डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त –

डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त ने काल-विभाजन- ’विक्रमी संवत्’ में न करके ’ईस्वी’ में किया है।

(1) प्रारम्भिक काल – 1184 ईस्वी से 1350 ईस्वी

(2) मध्यकाल –

  • पूर्व मध्यकाल – 1350 से 1500 ईस्वी
  • उत्तर मध्यकाल – 1500 से 1857 ईस्वी

(3) आधुनिक काल – 1857 ईस्वी से 1965 ईस्वी तक।

नोट – आधुनिक काल का समय इन्होंने 1965 ईस्वी तक इसलिए माना है क्योंकि 1965 ई. में इनका ग्रंथ ’हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ प्रकाशित हुआ था। तो उस समय (1965 ई.) तक की जो रचनाएँ है या इतिहास है वो इस ग्रंथ में है। इसलिए इन्होंने 1965 ईस्वी तक आधुनिक काल का समय माना है।

आदिकाल का नामकरण और समय सीमा

हिंदी साहित्य के इतिहास लिखने का वास्तविक प्रयास सर्वप्रथम फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी ने किया था ।

(1) फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी

  • गार्सा द तासी की पुस्तक इस्तवार द ला लितरेत्युर ए ऐदुस्तानी है ।
  • इसका प्रकाशन वर्ष 1839 है
  • यह फ्रेंच भाषा मे लिखा गया।
  • यह वर्णानुक्रम पर आधारित है।
  • इस ग्रंथ मे शामिल प्रथम कवि का नाम अंगद और अंतिम हेमंत पत है ।

(2) ठाकुर शिव सिंह सेंगर 

हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने का दूसरा प्रयास ठाकुर शिव सिंह सेंगर ने किया हिंदी में लिखा गया यह प्रथम हिंदी साहित्य का इतिहास था।

  • इनकी पुस्तक का नाम शिवसिंह सरोज है ।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे एक वृत्त संग्रह कहकर पुकारा है।
  • इसका प्रकाशन वर्ष 1883ई.है ।
  • इस पुस्तक में काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया यह वर्णानुक्रम पर आधारित है ।

(3) जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन इन की पुस्तक का नाम द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑव नार्दन हिंदुस्तान है। सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम इतिहास जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा लिखा गया।

  • इस पुस्तक की रचना1889 ई.में की गई।
  • इन्होने कालक्रमानुसार लेखकों क़ो स्थान दिया ।
  • सर्वप्रथम काल विभाजन इन्होने किया व पूरे साहित्य क़ो 11 खंडो मे बांटा।
  • आदिकाल क़ो चारण काल कहा।
  • चारण काल की शुरुआत 799ई. से मानी।
  • शुक्ल ने इसे बड़ा कवि वृत संग्रह कहा है।

(4) मिश्रबंधु 

इन्होने मिश्रबंधु विनोद नाम से हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा।

इसका प्रकाशन 1913 ई. मे हुआ।

मिश्रबंधु तीन भाई थे जो इस प्रकार है-

  • श्याम बिहारी
  • गणेश बिहारी
  • शुकदेव बिहारी

 

  • शुक्ल ने इनके ग्रंथ क़ो बड़ा भारी कवि वृत संग्रह कहा है।
  • इन्होने कालक्रमानुसार कवियों क़ो साहित्य मे स्थान दिया ।
  • इन्होने आदिकाल क़ो आरम्भिक काल कहा है।
  • आदिकाल कि शुरुआत 643 ई . से मानी है।
  • इन्होने पूरे साहित्य के इतिहास क़ो 5भागो मे बांटा है।

(5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल

साहित्य का इतिहास लिखने मे इनका स्थान सर्वोच्च है। इस ग्रंथ क़ो नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप मे हिंदी साहित्य का विकास नाम से 1929मे इसका प्रकाशन किया

  • इन्होने अपने ग्रंथ मे वैज्ञानिक व विकासवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया ।
  • इन्होने अपने इतिहास मे 900वर्षो के इतिहास क़ो 4खंडो मे बांटा।
  • इन्होने आदिकाल क़ो वीर गाथा काल नाम दिया।
  • पहला कवि मुंज क़ो माना है।

(6) ए स्केच ऑफ़ हिंदी लिटरेचर – एडविन ग्रीब्स

(7) ए हिस्ट्री ऑफ़ हिंदी लिटरेचर – एफ.ई. के

(8) हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास – रामकुमार वर्मा

(9 )हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास – गणपति चंद्र गुप्त

(10 )हिंदी साहित्य कि भूमिका- हजारी प्रसाद द्विवेदी

(11) हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास – रामस्वरूप चतुर्वेदी

(12) साहित्य का इतिहास दर्शन – नलिन विलोचन शर्मा

हिंदी साहित्य के काल की समय सीमा –

🌱सर्वप्रथम समय सीमा का निर्धारण करने वाले विद्वान मिश्रबंधु माने जाते है।
इन्होने आदिकाल क़ो 643ई . से आरम्भ मानते है

🌱शुक्ल ने आदिकाल का समय 1050विक्रम संवत से मानते है ।( *993ई. से )
*
🌱हजारी जी आदिकाल की शुरुआत 1000ई. से मानते है।

🌱डॉ नगेन्द्र ने आदिकाल की शुरुआत 7वी शताब्दी के मध्य से मानी है।

🌱रामकुमार वर्मा ने 750विक्रम संवत (693ई.) से आदिकाल की शुरुआत मानी है।

हिंदी साहित्य इतिहास का नामकरण

  • हजारी प्रसाद द्विवेदी – आदिकाल।
  • शुक्ल जी – वीरगाथा काल।
  • मिश्रबंधु – आरम्भिक काल।
  • गणपति चंद्र गुप्त – प्रारम्भिक काल।
  • रामकुमार वर्मा – सन्धि काल और चारण काल।
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी – बिजवपन काल।
  • रमाशंकर शुक्ल – जयकाव्य काल।
  • विश्वनाथ मिश्र – वीर काल।
  • जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन- चारण काल।
  • पृथ्वी नाथ कमल कुलश्रेष्ठ – अंधकार काल।
  • मोहन अवस्थी – आधार काल।
  • बच्चन सिंह -अपभ्रंश काल :जातीय साहित्य का उदय।

 हिंदी के प्रथम कवि-

(1) राहुल सांकृत्यायन – सरहपाद।
(2) शिव सिंह सेंगर – पुष्य या पुण्ड।
(3) गणपति चंद्रगुप्त – शालिभद्र सूरी।
(4) रामकुमार वर्मा – स्वयंभू।
(5) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – अब्दुल रहमान।
(6) आचार्य रामचंद्र शुक्ल – राजा मुंज का भोज।
(7) डॉक्टर बच्चन सिंह – विद्यापति।
(8) चंद्रधर शर्मा गुलेरी – राजा मुंज ।

नोट : समय -समय के अनुसार आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा ।

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Comments

  1. Suman Kumar says

    29/03/2022 at 12:56 PM

    Very very nice sir ji

    Reply
    • Sapna tiwari says

      02/11/2022 at 12:17 PM

      Super se upar sir

      Reply

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