आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय – Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay

आज की पोस्ट में हम हिंदी साहित्य के चर्चित विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay) के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे ।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल – Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay

Table of Contents

पूरा नामआचार्य रामचंद्र शुक्ल
जन्म4 अक्टूबर , 1884 ई.
जन्म स्थानबस्ती जिले के अगौना गांव में उत्तरप्रदेश
निधन2 फरवरी , 1941 ई.
मृत्यु का स्थानवाराणसी जिला(उत्तर प्रदेश )
मृत्यु का कारणदिल का दौरा पड़ने के कारण
व्यवसायलेखक ,पत्रकार
पिता का नामचन्द्रबली शुक्ल
माता का नामनिवासी देवी
जातिब्राह्मण
धर्महिन्दू
प्रमुख रचनाएँचिंतामणि, रसमीमांसा, विचारवीथी, त्रिवेणी

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का परिवार – Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के माता जी का नाम निवासी देवी था। इनके पिता का नाम पं॰ चंद्रबली शुक्ल था। पं॰ चंद्रबली शुक्ल एक कानूनगो थे। सन 1892 ई० में इनके पिता को मिर्जापुर सदर में कानूनगो के पदपर नियुक्ति मिली। कुछ समय बाद उनका पूरा परिवार मिर्ज़ापुर जिले में आकर रहने लगा। शुक्ल की 9 वर्ष की आयु में ही इनकी माता का देहान्त हो गया। इसके बाद इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। मातृ सुख के अभाव के साथ-साथ विमाता से मिलने वाले दुःख ने शुक्ल के व्यक्तित्व को अल्पायु में ही परिपक्व बना दिया।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की शिक्षा – Aacharya Ramchandra Shukla ka Jeevan Parichay

शुक्ल जी के पिता चन्द्रबली शुक्ल मिर्जापुर में कानूनगो थे। 4 वर्ष की उम्र में ये अपने पिता के साथ राठ जिला हमीरपुर चले गये, और वही पर इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आरम्भ की।  शुक्ल जी बाल्यकाल से ही अध्ययन में रूचि रखते थे। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। 1898 ईस्वी में इन्होने मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। शुक्ल जी गणित में कमजोर थे। उसके बाद मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से सन् 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पिता पं॰ चंद्रबली शुक्ल का अपने बेटे के लिए एक अलग सपना था वे उन्हें वकालत पढ़ाना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने शुक्ल जी को इलाहाबाद भेजा पर उनकी रुचि वकालत में न होकर साहित्य में थी।इसलिए वे वकालत की पढाई पूरी न कर सके। इनकी विधिवत शिक्षा इण्टर तक हुई। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी का विशद ज्ञान स्वाध्याय के बल पर प्राप्त किया।

पिता ने शुक्ल पर उर्दू और अंग्रेजी पढ़ने पर जोर दिया पर वे आँख बचाकर हिन्दी पढते थे। शुक्ल जी ने मिर्जापुर के पं. केदारनाथ पाठक और बदरी नारायण चौधरी ’प्रेमघन’ के सम्पर्क में आकर अध्ययन-अध्यवसाय पर बल दिया।

  • 1901-10 ई. के लगभग ’हिन्दी शब्द सागर’ के सम्पादन में वैतनिक सहायक के रूप में काशी रहे।
  • शुक्ल जी कुछ समय हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के हिन्दी अध्यापक रहे।
  • शुक्ल जी ने महीने भर के लिए अलवर में भी नौकरी की।
  • 1937 ई. में वे बनारस हिन्दी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए। इसी पद पर रहते हुए 1941 ई. में श्वास के दौरे में हृदय गति बंद होने से इनकी मृत्यु हो गई।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय – Aacharya Ramchandra Shukla ka jivan parichay

Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay

शुक्ल जी द्वारा सम्पादित कृतियाँ

  • जायसी ग्रन्थावली(1925 ई. )
  • भ्रमरगीत सार(1926 ई. )
  • गोस्वामी तुलसीदास
  • वीर सिंह देव चरित
  • भारतेन्दु संग्रह
  • हिन्दी शब्द सागर

मौलिक रचना- कविताएँ

  • जायसी
  • तुलसी
  • सूरदास
  • रस मीमांसा (1949 ई.)
  • भारत में वसन्त
  • मनोहर छटा
  • मधु स्त्रोत

अनुवाद कार्य

  • कल्पना का आनन्द
  • राज्य प्रबन्ध शिक्षा
  • विश्व प्रपंच
  • आदर्श जीवन
  • मैगस्थनीज का भारत विषयक वर्णन
  • बुद्ध चरित्र
  • शंशाक
  • हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929 ई.)
  • फारस का प्राचीन इतिहास

निबंध संग्रह

काव्य में रहस्यवाद1929 ई.
विचार वीथी1930 ई.(1912ई .से 1919 ई  .तक के मनोविकार  सम्बन्धी निबन्ध)
रस मींमासा1949 ई.
चिन्तामणि भाग- 11939 ई.
चिन्तामणि भाग- 21945 ई.
चिन्तामणि भाग- 3नामवर सिंह द्वारा संपादित
चिन्तामणि भाग- 4 कुसुम चतुर्वेदी सम्पादित शुक्ल द्वारा लिखी गई विभिन्न पुस्तकों की भूमिका और गोष्ठियों में दिये गये उदभाषण

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध

  • काव्य में प्रकृति दृश्य
  • रसात्मक बोध के विविध स्वरूप
  • काव्य में अभिव्यंजनावाद
  • कविता क्या है
  • काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
  • भारतेन्दु हरिशचन्द्र
  • काव्य में रहस्यवाद
  • मानस की धर्म भूमि
  • साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद
  • साहित्य
  • उपन्यास
  • मित्रता
  • तुलसी का भक्तिमार्ग

चिन्तामणि भाग-1 में कुल निबंध-17

(अ) भाव या मनोविकार सम्बन्धी निबंध-10

  1. भाव या मनोविकार
  2. उत्साह
  3. श्रद्धा-भक्ति
  4. करूणा
  5. लज्जा और ग्लानि
  6. लोभ और प्रीति
  7. घृणा
  8. ईर्ष्या
  9. भय
  10. क्रोध

(ब) सैद्धान्तिक समीक्षा निबन्ध-4

  1. कविता क्या है
  2. काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
  3. साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद
  4. रसात्मक बोध के विविध स्वरूप

(स) व्यावहारिक समीक्षा- 3

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  2. तुलसी का भक्ति मार्ग
  3. मानस की धर्मभूमि

चिन्तामणि भाग-2 ,1945 ई .(तीनों समीक्षात्मक निबंध)

  1. काव्य में प्रकृति दृश्य(1922 ई .)
  2. काव्य में रहस्यवाद- प्रथम सैद्धांतिक आलोचना(1929 ई .)
  3. काव्य में अभिव्यंजनावाद(1935 ई .)

आचार्य रामचंद्र शुक्ल महत्त्वपूर्ण तथ्य :

➡️ काशी नागरी प्रचारिणी का दस वर्षों तक सम्पादन।
➡️ शुक्ल जी ने ब्रजभाषा और खङी बोली में फुटकर कविताएं लिखी।
➡️ ’बुद्धचरित’ एडविन अर्नाल्ड के ’लाइट ऑफ एशिया’ का ब्रजभाषा में पद्यानुवाद।
➡️ ’कल्पना का आनंद’ ’प्लेजर्स ऑफ इमिजिनेशन’ का अनुवाद।
➡️ राखलदास बन्धोपाध्याय के उपन्यास ’शशांक’ का अनुवाद।
➡️’रस मीमांसा’– शुक्ल जी ने सैद्धान्तिक समीक्षा पर जो कुछ भी लिखा वो उनकी मृत्यु के बाद संग्रहित कर ’रस मींमासा’ नामक पुस्तक से प्रकाशित करवाया गया।

➡️’विश्व प्रपंच’- दर्शन पर लिखित पुस्तक जो ’रिडल ऑफ दि यूनीवर्स’ का अनुवाद है।
➡️नलिन विलोचन शर्मा (साहित्य का इतिहास दर्शन) में कहा कि ’’शुक्ल जी से बङा समीक्षक सम्भवतः उसे युग में किसी भी भारतीय भाषा में नही था।’’
➡️ शंशाक मूल बंगला में दुःखान्त है, पर इन्होने उसे सुखान्त बना दिया।
➡️ शुक्ल ने साधारणीकरण के संबंध में लिखते है कि ’’आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण।’’
➡️ अनुभूति-प्रसूत भावुकता उन्हें स्वीकार्य भी कल्पना प्रसूत नहीं।
➡️ शुक्ल जी ने काव्य की कर्म योग एवं ज्ञान योग के समकक्ष रखते हुए ’भावयोग’ कहा जो मनुष्य के हृदय को मुक्तावस्था में पहुंचाता है।
➡️ शुक्ल जी की समीक्षा का मूल स्वर व्याख्यात्मक है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

➡️ शुक्ल जी के निबन्ध अत्यन्त गहरे रूप में बौद्धिक एवं विषयनिष्ठ है। उन्हें हम ललित निबंध की कोटि में नही रख सकते।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन-

➡️ श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है।
➡️ श्रद्धा का व्यापार स्थल विस्तृत है, प्रेम का एंकात, प्रेम में घनत्व अधिक है श्रद्धा में विस्तार।
➡️ सामाजिक जीवन की स्थिति और पुष्टि के लिए करूणा का प्रसार आवश्यक है।
➡️ बैर क्रोध का आचार का मुरब्बा है।

➡️ जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती है, उसे कविता कहते है।
➡️ यदि गद्य लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंधों में ही सबसे अधिक संभव है।
➡️ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी निबंध यात्रा को ’बुद्धि की यात्रा हृदय के साथ’ कहा है।

➡️ आचार्य शुक्ल के चिन्तामणि भाग-1 व भाग-2 के निबंध पहले किस नाम से प्रकाशित हुए थे ? -विचार वीथी (1930 ई.)
➡️ यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

➡️ आचार्य शुक्ल ने एडिसन के ’एस्से ऑन इमेजिनेशन’ का कल्पना का आनंद नाम से अनुवाद करवाया।
➡️’’इन पुस्तकों को एक मुहल्ले में फैली बातों से दूसरे मुहल्ले वालों को परिचित कराने के रूप में समझना चाहिए, स्वतंत्र समालोचना के रूप में नहीं’’’ महावीर प्रसाद द्विवेदी के आलोचनात्मक कृतियों पर टिप्पणी किसने की- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
➡️ काव्य में ’रहस्य’ कोई ’वाद’ है न ऐसा, जिसे लेकर निराला कोई पंथ ही खङा करे।
यो ही जब रूप मिले बाहर के भीतर की भावना से, जानो तब कविता का सत्य पल।

➡️ छायावाद का सामान्यतः अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाले छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन।
➡️ आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रतिनिधि कवि किसे माना है- पंत को।
➡️ नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
➡️ अयोध्या काण्ड में चित्रकूट की सभा-एक आध्यात्मिक घटना है।
➡️ सूर द्वारा रचित कृष्ण और गोपियों को प्रेम जीवनोत्सव है।
➡️ ’पाखण्ड प्रतिषेध’ शीर्षक से किस आलोचक ने छायावाद-रहस्यवाद के विरोध में एक कविता लिखी ? – आचार्य शुक्ल
➡️ न्यूमैन के ’लिटरेचर’ का ’साहित्य शीर्षक’ से अनुवाद किसने किया – आचार्य शुक्ल

आचार्य शुक्ल ने किसको क्या कहा-

  • रीतिकवियों को -भावुक, सहृदय और निपुण कवि
  • बिहारी को – परम उत्कृष्ट
  • देव को – प्रगल्भ और प्रतिभा सम्पन
  • घनानंद को – साक्षात रसमूर्ति और जबांदानी

आचार्य रामचंद्र शुक्ल महत्त्वपूर्ण तथ्य :

➡️ लोक हृदय में लीन होने की दशा रस दशा है। – आचार्य शुक्ल
➡️ किस आलोचक ने ’छायावाद’ शब्द को दो अर्थों में प्रयोग किया है- ’रहस्यवाद के अर्थ में और पद्धति विशेष के अर्थ में – आचार्य शुक्ल
➡️ क्रोचे के अभिव्यंजनावाद को भारतीय वक्रोक्ति का विलायती उत्थान किसने कहा – आचार्य शुक्ल
➡️ आचार्य शुक्ल की प्रथम सैद्धांतिक, आलोचनात्मक पुस्तक है- काव्य में रहस्यवाद (1929 ई.)
➡️ भारतीय समीक्षा और आचार्य शुक्ल की काव्य दृष्टि किसकी कृति है- डाॅ. नगेन्द्र

➡️ ’आचार्य शुक्ल विचारकोश’ के लेखक अजित कुमार है।
➡️ ’आचार्य शुक्ल का चिंतन जगत’ कृति किसकी है ? – कृष्णदत्त पालीवाल
➡️ डाॅ. रामविलास शर्मा के आदर्श समीक्षक कौन है ? – आचार्य शुक्ल
➡️ किस आलोचक ने मुक्तक को ’चुना हुआ गुलदस्ता’ और ’प्रबन्ध काव्य’ को विस्तृत वनस्थली कहा है- आचार्य शुक्ल।
➡️ भारतेन्दु की हिन्दी को ’हरिशचन्द्र हिन्दी’ किसने कहा- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

➡️ ’साहित्य’ 1904 ई.- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का प्रथम निबन्ध जो 1904 ई. में सरस्वती में प्रकाशित हुआ।
➡️ आचार्य शुक्ल का प्रसिद्ध निबंध ’कविता क्या है’ सर्वप्रथम 1909 ई. में सरस्वती में प्रकाशित हुआ।
➡️ हिन्दी में भाव या मनोविकार संबंधी निबंध लिखने का सूत्रपात किसने किया- बाल कृष्ण भट्ट

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

आचार्य शुक्ल से पूर्व भाव यो मनोविकार संबंधी निबंधकार-

  1. बालकृष्ण भट्ट- आत्मनिर्भरता, आँसू, प्रीति
  2. प्रतापनारायण मिश्र- मनोयोग
  3. माधव प्रसाद मिश्र- धृति और क्षमा

➡️ साहस पूर्ण आनंद का नाम उत्साह है

➡️ श्रद्धा महत्व की आनंदपूर्ण स्वीकृति के साथ पूज्य बुद्धि का संचार है।- आचार्य शुक्ल
➡️ आशंका अनिश्चात्मक वृत्ति है।- आचार्य शुक्ल
➡️ सत्यम् शिवम् सन्दरम् की भावना- कविता क्या है
➡️ प्रत्येक सुन्दर वस्तु में यह क्षमता होती है कि वह हमें रसमग्न कर देती है।-रसात्मक बोध के विविध स्वरूप
➡️ काव्य में वर्णित सुखः दुख मात्र कवि का ही न रहकर समष्टि का बन जाता है।- साधारणीकरण व व्यक्ति वैचित्र्यवाद
➡️ ’मानस की धर्म भूमि’ में शुक्ल ने रामचरितमानस के आलोचकों को करारा जवाब दिया है।

शुक्ल जी के असंकलित निबंध-

  • साहित्य
  • उपन्यास
  • अपनी भाषा पर विचार

भूमिकाओं के रूप में लिखित निबंध

  1. तुलसी ग्रन्थावली
  2. जायसी ग्रन्थावली
  3. भ्रमरगीत सार
  4. भारतेन्दु साहित्य

➡️ कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ है और कहाँ अनुभूतियों की रमणीय कल्पना यह नहीं कहा जा सकता। महादेवी वर्मा की कविताओं के लिए ऐसा किसने कहा – आचार्य शुक्ल ने
➡️ शुक्ल का काव्य संग्रह – ’हृदय का मधुर भार’
➡️ आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य में सच्चे स्वंच्छदतावाद का प्रवर्तक किसे माना है – श्रीधर पाठक

➡️ महाराजा जयसिंह की नौकरी इसलिए छोङी क्योंकि उनके दरबार में चूङीधार पायाजामा, शेरवानी और सिर पर साफा और कमर मे पट्टी बाँधना उनके आत्मसम्मान और उस सहज व्यक्तित्व के आङे आता था ,जो वन के सौन्दर्य का प्रेमी था, सजे-संवरे बाग-बगीचों का नहीं। अपनी दयनीय स्थिति पर पत्नी की व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी के जवाब में उन्होंने कहा-
’’चिथेङे लपेटे व चेन चाबेंगे चौखट पर। चाकरी करेगे नहीं चैपट चमार की।’’
➡️ बाल्यावस्था से ही शुक्ल जी हिन्दी प्रेमी थे, इसलिए उर्दू की कक्षा छोङ हिन्दी की कक्षा में जा बैठते।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

➡️ शुक्ल जी के सम्पादक जीवन की शुरूआत विद्यार्थी जीवन में ही बदरीनारायण चौधरी ’प्रेमघन’ की ’आनन्द कादम्बिनी’ में कार्य करते हुए हुई।
➡️ आचार्य शुक्ल के निबंधों में बुद्धि और हृदय का अद्भूत समन्वय है।
➡️ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शुक्ल के बारे में ठीक ही कहा है कि ’’हिन्दी संसार में शुक्ल जी अपने ढंग का एक और अद्वितीय व्यक्तित्व लेकर अवतीर्ण हुए थे।’’
➡️ शुक्ल जी की शैली व्यक्तिपरक है।
➡️ आचार्य शुक्ल ने शिव सिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन तथा मिश्रबन्धुओं के इतिहास को ’कविवृत संग्रह’ की संज्ञा से अभिहित किया है।

दोस्तो हमारे द्वारा आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के बारे जो जानकारी दी गयी है ,अगर आपको अच्छी लगे तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें 

FAQ  – Aacharya Ramchandra Shukla

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म कब हुआ (Aacharya Ramchandra Shukla ka janm kb hua) ?

उत्तर  – 4 अक्टूबर , 1884 ई.(बस्ती जिले के अगौना गांव में उत्तरप्रदेश)

मित्रता निबंध के लेखक कौन है?

उत्तर  – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

कविता क्या है – निबंध के लेखक है

उत्तर  –  आचार्य रामचंद्र शुक्ल

उत्साह निबंध के लेखक है

उत्तर  – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

श्रद्धा भक्ति निबंध के लेखक कौन है?

उत्तर  – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

रस मीमांसा रचना के लेखक कौन है?

उत्तर – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

NET/JRF इकाई 8 सम्पूर्ण नाटक(14 नाटक) सारांश व महत्वपूर्ण तथ्य नोट्स पीडीऍफ़ 

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध,

6 thoughts on “आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय – Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay”

  1. सारगर्भित जानकारी प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। सा।। हम आपके आभारी हैं। और सदेव रहेंगे। मुझे ऐसे ही एक कवि या लेखक के बारे में एक साथ सारी चीजें पढ़ना अच्छा लगता है मुझे मेरी कामयाबी की सिद्धि मिल गयी है।। साधुवाद। घोडेला साब

  2. Dr. Pramod kumar Yadav

    मृत्यु तिथि गलत लिखी है…शायद प्रिंटिंग गलती है….बहरहाल संकलन बहुत ही बढ़िया हैं
    ….आपकी दिल से दुआ…मैं आपका नियमित पाठक हूँ…

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