आज की पोस्ट में हम हिंदी काव्यशास्त्र में अलंकारों के अंतर्गत व्यतिरेक अलंकार(Vyatirek Alankar) को महत्त्वपूर्ण उदाहरणों की सहायता से समझेंगे।
व्यतिरेक अलंकार – Vyatirek Alankar
व्यतिरेक अलंकार की परिभाषा – Vyatirek Alankar ki paribhasha
‘व्यतिरेक’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘आधिक्य’। व्यतिरेक अलंकार में कारण का होना अनिवार्य है।
जब किसी पद में उपमान की अपेक्षा उपमेय को अधिक बढा-चढाकर प्रस्तुत किया जाता है अर्थात् उपमेय का उत्कर्षपूर्ण वर्णन किया जाता है या आप यूँ समझें कि बड़ी वस्तु के बजाय छोटी वस्तु को अधिक महत्त्व देना | तो वहाँ व्यतिरेक अलंकार माना जाता है।

व्यतिरेक अलंकार उदाहरण – Vyatirek Alankar ke udaharan
1. जनम सिंधु पुनि बंधु विष, दिन मलीन सकलंक।
सिय मुख समता पाव किमि, चंद बापुरो रंक।।
प्रस्तुत पद में उपमान (चन्द्र) की अपेक्षा उपमेय (सिय मुख) की शोभा का उत्कर्षपूर्ण वर्णन किया गया है, अतः यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।
2. सम सुबरन सुखमाकर सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल कनक कठोर।।
यहाँ उपमेय (सीय अंग) को कोमल तथा उपमान (कनक) को कठोर बताया गया है। अतः उपमेय की उत्कृष्टता होने से यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।
3. जिनके यश प्रताप के आगे।
ससि मलीन रवि सीतल लागे।।
यहाँ उपमेय (यश,प्रताप) के समक्ष उपमान (चन्द्रमा व सूर्य) को भी मलीन व शीतल (तेजरहित) बताया गया है, अतः यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।
इसके अलावा अन्य उदाहरण देखें
4. राधा मुख चन्द्र सा कहते हैं मतिरंक।
निष्कलंक है वह सदा, उसमें प्रकट कलंक।।
5. नयन नीरज में सखि, समता सब दरसात।
बंक विलोकन दृगन में, यह गुन अधिक दिखात।।
6. सिय मुख सरद- कमल जिमि किमि कहि जाय।
निसि मलीन वह, निसि दिन यह विगसाय।।
अब हम व्यतिरेक अलंकार को पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुंचें कि इस अलंकार में उपमान की अपेक्षा उपमेय को अधिक महत्त्व दिया जाता है |
महत्त्वपूर्ण लिंक :
सूक्ष्म शिक्षण विधि 🔷 पत्र लेखन 🔷कारक
🔹क्रिया 🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़ 🔷प्रयोजना विधि
🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय 🔷मनोविज्ञान सिद्धांत
🔹रस के भेद 🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़ 🔷 समास(हिंदी व्याकरण)
🔷शिक्षण कौशल 🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷 हिंदी मुहावरे
🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 🔷कबीर जीवन परिचय 🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़ 🔷 महादेवी वर्मा
Leave a Reply