भ्रांतिमान अलंकार || Bhrantiman Alankar || हिंदी काव्यशास्त्र

दोस्तो आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत भ्रांतिमान अलंकार (Bhrantiman Alankar) को अच्छे से पढेंगे और परीक्षोपयोगी उदाहरणों को भी समझेंगे ।

भ्रांतिमान अलंकार – Bhrantiman Alankar

भ्रांतिमान अलंकार किसे कहते हैं ?

परिभाषा – जब किसी पद में किसी सादृश्य विशेष के कारण उपमेय (जिसकी तुलना की जाए) में उपमान (जिससे तुलना की जाए) का भ्रम उत्पन्न हो जाता है तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब किसी पदार्थ को देखकर हम उसे उसके समान गुणों या विशेषताओं वाले किसी अन्य पदार्थ (उपमान) के रूप में मान लेते हैं तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है। जब उपमेय को भूल से उपमान समझ लिया जाए।

जैसे – अँधेरे में किसी ’रस्सी’ को देखकर उसे ’साँप’ समझ लेना भ्रांतिमान अलंकार है।

भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण –

1.’’ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।’’
स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में हंसिनी को ओस बिन्दुओं (उपमेय) में मोती (उपमान) का भ्रम उत्पन्न हो रहा है अर्थात् वह ओस की बूँदों को मोती समझकर चुग रही हैं, अतएव यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

2.’’भ्रमर परत शुक तुण्ड पर, जानत फूल पलास।
शुक ताको पकरन चहत, जम्बु फल की आस।।’’

3.’’नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ नाक के आभूषण के मोती में अनार (दाडिम) के बीज का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

4.’’कपि करि हृदय विचारि, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अंगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ।।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ सीता को मुद्रिका में अशोक पुष्प (अंगार) का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

5. विधु वदनिहि लखि बाग में, चहकन लगे चकोर।
वारिज वास विलास लहि, अलिकुल विपुल विभोर।।’’

स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में किसी चन्द्रमुखी नायिका को देखकर चकोरी की उसके मुख में चन्द्रमा का भ्रम हो रहा है तथा उसके वदन में कमल की सुगंध पाकर (समझकर) भ्रमर आनंद विभोर हो गया है। अतः यहाँ उपमेयों (मुख व सुवास) में उपमानों (चन्द्रमा व कमल-गंध) का भ्रम उत्पन्न होने के कारण भ्रांतिमान अलंकार है।

6.’’बेसर मोती दुति झलक, परी अधर पर आनि।
पट पोंछति चूनो समुझि, नारी निपट अयानि।।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ नायिका अधरों पर पङी मोतियों की उज्ज्वल झलक को पान का चूना समझ लेती है और उसे पट से पोंछने का प्रयत्न करती है।

7. ’’बिल विचार प्रविशन लग्यो, नाग शुँड में व्याल।
काली ईख समझकर, उठा लियो तत्काल।।’’

स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में सर्प (व्याल) को हाथी (नाग) की सूँड में बिल का तथा हाथी को काले सर्प में काली ईख (गन्ने) का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

8. ’’किंशुका कलिका जानकर, अलि गिरता शुक चोंच पर।
शुक मुख में धरता उसे, जामुन का फल समझकर।।’’

स्पष्टीकरण – इस पद में भ्रमर को तोते की लाल चोंच में पलास के पुष्प का तथा तोते को भ्रमर में जामुन के फल का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

उदाहरण –

9. ’’पाँय महावर देन को, नाइन बैठी आय।
पुनि-पुनि जानत महावरि, एङी नीङत जाय।।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ नाइन (ब्यूटी पार्लर की मेंहदी लगाने वाली) को नायिका के लालिमा युक्त पैरों में महावर लगे होने का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

10. ’’पेशी समझ माणिक्य को वह विहग देखो ले चला।’’
’’जानि स्याम को स्याम घन नाच उठे वन मोर।’’

स्पष्टीकरण – यहाँ साँवले रंग के कृष्ण को काला बादल समझकर वन के मोर नाच रहे हैं, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।

11. ’’फिरत घरन नूतन पथिक, बारी निष्ट अयानि।।’’
फूल्यो देखि पलास वन, समुहे समुझि दवागि।।’’

12. ’’कुहू निशा में परछाई को प्रेत समझकर हुआ अचेत।’’

13. ’जानि स्याम को स्याम-घन नाचि उठे वन मोर।’

स्पष्टीकरण – यहाँ मोरों ने कृष्ण को वर्ण-सादृश्य के कारण श्याम मेघ समझ लिया। अर्थात् कृष्ण (उपमेय) में श्यामल वर्ण होने के कारण मयूरों को श्यामल (काले) रंग के मेघों का भ्रम हो गया।

अन्य उदाहरण –

14. मनि-मुख मेलि ठारि कपि देहीं।

स्पष्टीकरण – राम ने बानरों को बिदा करते हुए अनेक उपहार दिये। रंग-बिरंगी मणियों को देखकर बानरों ने उन्हें फल समझा और मुँह में डाल लिया। जब कङवी लगीं तो थूक दिया।

15. ’चन्द अकास को वास विहाइ कै
आजु यहाँ कहाँ आइ उयो है?

स्पष्टीकरण – किसी ने मुख को देखकर उसे चन्द्रमा समझ लिया।

16. ’’वृन्दावन विहरत फिरैं राधा नन्द किशोर।
नीरद यामिनी जानि सँग डोलैं बोलैं मोर।।

17. ’’नाच अचानक ही उठे, बिनु पावस वन मोर।
जानत ही नंदित करी, यह दिसि नंद किशोर।।

18. ’’अधरों पर अलि मंडराते, केशों पर मुग्ध पपीहा।

19. ’री सखि मोहि बचाय, या मतवारे भ्रमर सों।
डस्यो चहत मुख आय, भरम भरी बारिज गुनै।।’

20. ’किंशुक कुसुम जानकर झपटा भौंरा शुक की लाल चोंच पर।
तोते ने निज ठोर चलाई जामुन का फल उसे सोचकर।।’

दोस्तो इस आर्टिकल में हमने भ्रांतिमान अलंकार से संबंधी परीक्षोपयोगी  सभी उदाहरणों को दिया है । आप इस टॉपिक को अच्छे से समझ लेवें

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