आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत उपमा अलंकार(Upma Alankar) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।
उपमा अलंकार – Upma Alankar
उपमा अलंकार की परिभाषा – Upma Alankar Ki Pribhasha
जब किसी पद में दो पदार्थों की समानता को व्यक्त किया जाता है अर्थात् किसी एक सामान्य पदार्थ को किसी प्रसिद्ध पदार्थ के समान मान लिया जाता है तो वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है।
अर्थात् जहाँ किसी वर्णित (प्रस्तुत) वस्तु की उसके किसी विशेष गुण, क्रिया, स्वभाव आदि की समानता के आधार पर किसी अन्य (अप्रस्तुत) वस्तु से समानता स्थापित की जाये, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
शाब्दिक विश्लेषण की दृष्टि से उपमा शब्द ‘उप+मा’ के योग से बना है। यहाँ ‘उप’ का अर्थ होता है- ‘समीप’ तथा ‘मा’ का अर्थ होता है- ‘मापना’ या ‘तोलना’ अर्थात् समीप रखकर दो पदार्थों का मिलान करना ‘उपमा’ के नाम से जाना जाता है।
’उपमा’ का सामान्य अर्थ है- ’समानता’ या ’तुलना’।
अर्थात् उपमा में किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु के समान बताया जाता है, या दूसरे शब्दों में कहें तो एक वस्तु की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है। जैसे – ’मुख कमल के समान सुन्दर है’ – कथन में ’मुख’ (एक वस्तु) की समानता (तुलना) दूसरी वस्तु ’कमल’ से की गयी है, अतः यहाँ उपमा मानी जायेगी।
उपमा अलंकार के उदाहरण – Upma alankar ke Udaharan
1. ‘‘चन्द्रमा-सा कान्तिमय मुख रूप दर्शन है तुम्हारा।’’
प्रस्तुत पद में सामान्य पदार्थ ’मुख’ को सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध पदार्थ ’चन्द्रमा’ के समान मान लिया गया है, अतः यहाँ ’उपमा’ अलंकार माना जाता है।
दोस्तो उपमा अलंकार को अच्छे से समझने के लिए हमें उपमा अलंकार के अंगो को समझना होगा ..
उपमा अलंकार के अंग:-
किसी भी सादृश्यमूलक अर्थालंकार के मुख्यतः निम्न चार अंग माने जाते हैंः-
- उपमेय
- उपमान
- वाचक शब्द
- साधारण धर्म
(1) उपमेय:- कवि जिस पदार्थ का वर्णन करता है, उस सामान्य पदार्थ को ‘उपमेय’ या ‘प्रस्तुत पदार्थ’ कहा जाता है।
उदाहरण – ‘‘चन्द्रमा-सा कान्तिमय मुख रूप दर्शन है तुम्हारा।’’
उपर्युक्त पद में कवि ने ‘मुख’ का वर्णन करते हुए उसे चन्द्रमा के समान माना है; अतः यहाँ ‘मुख’ उपमेय है।
(2) उपमान:- कवि अपने द्वारा वर्णित सामान्य पदार्थ की जिस प्रसिद्ध पदार्थ से समानता व्यक्त करता है अर्थात् जो उदाहरण प्रस्तुत करता है, उसे ‘उपमान’ या ‘अप्रस्तुत पदार्थ’ कहा जाता है।
उदाहरण – ‘‘चन्द्रमा-सा कान्तिमय मुख रूप दर्शन है तुम्हारा।’’
उपर्युक्त उदाहरण में कवि ने ‘मुख’ की समानता (सुन्दरता) ‘चन्द्रमा’ के साथ प्रकट की है। अतः यहाँ ‘चन्द्रमा’ उपमान है।
नोटः- संस्कृत में उपमेय को ‘प्राकृत’ तथा उपमान को ‘सम’ भी कहते है।
(3) वाचक शब्द:- समानता के अर्थ को प्रकट करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे वाचक शब्द कहलाते है। सा, सी, से, सम, सरिस, इव, जिमि, सदृश, लौं इत्यादि उपमा वाचक शब्द माने जाते है।
उदाहरण – ‘‘चन्द्रमा-सा कान्तिमय मुख रूप दर्शन है तुम्हारा।’’
उपर्युक्त उदाहरण में ‘चन्द्रमा-सा’ पद में ‘सा’ वाचक शब्द है।
(4) साधारण धर्म:- उपमेय (प्रस्तुत पदार्थ) तथा उपमान (अप्रस्तुत पदार्थ) दोनों में जो समान विशेषता या समान लक्षण या समान गुण पाये जाते हैं, उसे साधारण धर्म कहा जाता है।
उदाहरण – ‘‘चन्द्रमा-सा कान्तिमय मुख रूप दर्शन है तुम्हारा।’’
उपर्युक्त उदाहरण में ‘चन्द्रमा’ (उपमान) व ‘मुख’ (उपमेय) दोनों को ‘कान्तिमय’ बताया गया है। अतः यहाँ ‘कान्तिमय’ साधारण धर्म है।
2. ’सुनि सुरसरि सम सीतल बानी।’
उपमेय – बानी (वाणी)
उपमान – सुरसरि (गंगा)
साधारण धर्म – सीतल (ठण्डी/मधुर)
वाचक शब्द – सम
उपमा अलंकार के भेद
‘उपमा’ के मुख्यतः निम्न दो भेद माने जाते हैः-
(1) पूर्णोपमा (पूर्णा+उपमा)
(2) लुप्तोपमा (लुप्ता+उपमा)
(1) पूर्णोपमा अलंकार :-
उपमा अलंकार के जिस पद में उपमा के चारों अंग मौजूद रहते हैं; वहाँ पूर्णोपमा अलंकार माना जाता है।
पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण –
1.‘‘राम लखन सीता सहित, सोहत पर्ण-निकेत।
जिमि बस वासव अमरपुर, सची जयन्त समेत।।’’
उपमेय – राम-सीता-लखन, पर्ण – निकेत
उपमान – वास्तव (इन्द्र), शची-जयन्त (इन्द्र का पुत्र), अमरपुर (इन्द्रावती नगरी)
साधारण धर्म – सोहत (शोभा पाना)
वाचक शब्द – जिमि (जैसे)
प्रस्तुत पद में उक्तानुसार उपमा के चारों अंग मौजूद हैं, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।
2.‘‘मोम सा तन घुल चुका, अब दीप सा दिल जल रहा है।’’
उपमेय – तन – दिल
उपमान – मोम – दीप
साधारण धर्म – घुल चुका – जल रहा है
वाचक शब्द – सा -सा
3. ’’राधा बदन चन्द सो सुन्दर।’’
उपमेय – राधा बदन (राधा का मुख)
उपमान – चन्द (चन्द्रमा)
साधारण धर्म – सुन्दर
वाचक शब्द – सो (के समान)
4.‘‘मुख मयंक सम मंजु मनोहर’’
उपमेय – मुख
उपमान – मयंक
साधारण धर्म – मंजु मनोहर
वाचक शब्द – सम
5. ’’करिकर सरिस सुभग भुजदण्डा’’
उपमेय – भुजदण्डा
उपमान – करिकर
साधारण धर्म – सुभग
वाचक शब्द – सरिस
6.‘‘पीपर पात सरिस मन डोला।’’
उपमेय – मन
उपमान – पीपर पात
साधारण धर्म – डोला
वाचक शब्द – सरिस
पूर्णोपमा अलंकार के अन्य उदाहरण –
7. ’’पहेली सा जीवन है व्यस्त।’’
उपमेय – जीवन
उपमान – पहेली
साधारण धर्म – है व्यस्त
वाचक शब्द – सा
8.‘‘हँसने लगे तब हरि अहा। पूर्णेन्दु सा मुख खिल गया।।’’
उपमेय – मुख
उपमान – पूर्णेन्दु
साधारण धर्म – खिल गया
वाचक शब्द – सा
9.‘‘मधुकर सरिस संत गुनग्राही।’’
उपमेय – संत
उपमान – मधुकर
साधारण धर्म – गुनग्राही
वाचक शब्द – सरिस
10. ’’धनी वज्र गर्जन से बादल।’’
’’त्रस्त नयन मुख ढाँप रहे हैं।’’
उपमेय – बादल
उपमान – वज्र
साधारण धर्म – गर्जन
वाचक शब्द – से
11. ’मुख कमल जैसा सुन्दर है।’
इस उदाहरण में हम देखते हैं कि उपमा के चारों अंग विराजमान हैं। अर्थात् इसमें उपमेय ’मुख’, उपमान ’कमल’, वाचक शब्द ’जैसा’ और साधारण धर्म ’सुन्दर’ है। चारों अंगों से पूर्ण होने के कारण यहाँ ’पूर्णोपमा अलंकार’ है।
(2) लुप्तोपमा अलंकार :-
उपमा अलंकार के जिस पद में उपमा के चारों अंगों में से कोई भी एक अंग, दो अंग या तीन अंग लुप्त हो जाते हैं तो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार माना जाता है।
लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण –
’मुख कमल जैसा है।’
यहाँ साधारण-धर्म ’सुन्दर’ का शब्द द्वारा उल्लेख नहीं किया है, अतः साधारण धर्म नामक एक अंग के लुप्त होने से लुप्तोपमा हुई।
उपमा का जो अंग लुप्त रहता है, उसके आधार पर पुनः इसके चार मुख्य उपभेद कर दिये जाते हैं। यथा-
- उपमेय लुप्त होने पर – उपमेय लुप्तोपमा
- उपमान लुप्त होने पर – उपमान लुप्तोपमा
- साधारण धर्म लुप्त होने पर – धर्म लुप्तोपमा
- वाचक शब्द लुप्त होने पर – वाचक लुप्तोपमा
उदाहरण –
1.‘‘कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।’’ (धर्म लुप्ता)
प्रस्तुत पद में ’वचन’ उपमेय है, ’कुलिस’ उपमान है तथा ’सम’ वाचक शब्द है, परन्तु दोनों के समान धर्म (कठोरता) का कहीं कथन नहीं किया गया है, अतएव यहाँ ’धर्म लुप्तोपमा’ अलंकार माना जाता है।
2.‘‘कुलिस कठोर सुनत कटु बानी।
बिलपत लखन सिय सब रानी।।’’ (वाचक लुप्ता)
उपमेय – कटु बानी (कङवी बोली), उपमान – कुलिस (वज्र), साधारण धर्म – कठोर, वाचक शब्द – लुप्त है, अतः वाचक लुप्तोपमा है।
3.‘‘नई लगनि कुल की सकुच, विकल भई अकुलाई
दूहूँ ओर ऐंची फिरिति, फिरकीं लौं दिनु जाइ।।’’ (उपमेय लुप्तोपमा)
उपमेय – लुप्त है, उपमान – फिरकी
साधारण धर्म – दुहूँ ओर ऐंची फिरती (दोनों ओर खिंची चली जाना) (नई लगनि, कुल की सकुंच)
वाचक शब्द – लौं
अतः यहाँ उपमेय लुप्तोपमा अलंकार है।
4.‘‘तीन लोक झाँकी, ऐसी दूसरी न झाँकी जैसी।
झाँकी हम झाँकी, बाँकी जुगलकिसोर की।।’’(उपमान लुप्ता)
उपमेय – जुगल किशोर की झाँकी, उपमान – लुप्त है
साधारण धर्म – बाँकी (सुन्दर), वाचक शब्द – ऐसी
यहाँ ऐसी दूसरी न झाँकी कथन के द्वारा ’उपमान’ का निषेध किया गया है, अतः यहाँ उपमान लुप्तोपमा अलंकार है।
5. ‘चंचल हैं ज्यों मीन, अरुनारे पंकज सरिस।
निरखि न होय अधीन, ऐसो नरनागर कवन।।’’ (उपमेय लुप्तोपमा)
उपमेय – लुप्त है, उपमान – मीन/पंकज
साधारण धर्म – चंचल/अरुनारे (लाल), वाचक शब्द – ज्यों/सरिस
अतः यहाँ ’उपमेय लुप्तोपमा’ है।
6. ’’कुन्द इन्दु सम देह’’ (धर्म लुप्ता)
उपमेय – देह, उपमान – कुन्द इन्दु
साधारण धर्म – स्याम/तरुन, वाचक शब्द – लुप्त है।
अतः वाचक लुप्तोपमा है।
7.‘‘नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन।।’’
उपमेय – नयन, उपमान – नील सरोरुह/अरुन बारिज
साधारण धर्म – स्याम/तरुन, वाचक शब्द – लुप्त है, अतः वाचक लुप्तोपमा है।
8.‘‘तुम्हारी आँखों का आकाश, सरल आँखों का नीलाकाश।
खो गया मेरा मन अनजान, मृगेक्षिणी इनमें खग अज्ञान।।’’ (उपमान लुप्तोपमा)
9. ’’सुबरन बरन कमल कोमलता, सुचि सुगंध इक होय।
तब तुलनीय होय तव मुख हो, जग अस वस्तु न कोय।।’’
उपमेय – मुख, उपमान – लुप्त है
साधारण धर्म – सुबरन बरन, कमल कोमलता, सुचि सुगंध का एकाकार
वाचक शब्द – अस (ऐसी)
उपमा के अन्य भेद :
(1) मालोपमा:-
जब किसी पद में एक ही उपमेय के लिए अनेक उपमानों का प्रयोग कर दिया जाता है तो वहाँ मालोपमा अलंकार माना जाता है।
मालोपमा अलंकार के उदाहरण –
1. ‘‘काम-सा रूप प्रताप दिनेश-सा। सोम-सा शील है राम महीप का।।’’
प्रस्तुत पद में एक ही उपमेय (राजा राम) के लिए तीन उपमानों (कामदेव, दिनेश अर्थात् सूर्य, सोम अर्थात् चन्द्रमा) का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ मालोपमा अलंकार है।
2.‘‘रूप जाल नंदलाल के, परि कहुँ बहुरि छुटै न।
खंजरीट मृग-मीन से, ब्रज बनितन के नैन।।’’
प्रस्तुत पद में एक ही उपमेय (ब्रज बनितन के नैन अर्थात् ब्रज बालाओं की आँखें) के लिए तीन उपमानों (खंजरीट पक्षी, मृग व मीन) का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ मालोपमा अलंकार है।
3. ’मुख चन्द्र और कमल के समान है।
यहाँ ’मुख’ उपमेय के ’चन्द्र’ और ’कमल’- ये दो उपमान कहे गये हैं।
4.‘‘चन्द्रमा सा कान्तिमय, मृदु कमल सा कोमल महा।
नवकुसुम सा हँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।’’
5.‘‘यह विचार की पुतलिका सी, विषम जगत की प्रतिछाया सी।
विश्व चित्र सी सरित लहरी सी, जीवन सी छल की माया सी।।’’
6. ’’तरुवर के छायावाद सी, उपमा-सी भावुकता-सी।
अविदित भावाकुल भाषा-सी, कटी-छँटी नव कविता-सी।।’’
(2) उपमेयोपमा अलंकार :-
जब किसी पद में उपमेय और उपमान दोनों की एक-दूसरे से उपमा दी जाती है अर्थात् एक बार उपमेय को उपमान के समान तथा पुनः उपमान को उपमेय के समान मान लिया जाता है तो वहाँ उपमेयोपमा अलंकार माना जाता है।
उपमेयोपमा अलंकार उदाहरण –
1.‘‘तो मुख सोहत है ससि सो, अरु ससि सोहत है तो मुख जैसो।’’
प्रस्तुत पद में एक बार मुख (उपमेय) को चन्द्रमा (उपमान) के समान तथा पुनः चन्द्रमा (उपमान) को मुख (उपमेय) के समान मान लिया गया है, अतः यहाँ उपमेयोपमा अलंकार है।
2.‘‘सब मन रंजन हैं खंजन से नैन आली, नैनन से खंजन हू लागत चपल हैं।
मीनन से महा मनमोहन हैं मोहिबे को, मीन इन ही से नीके सोहत अमल हैं।
मृगन के लोचन से लोचन हैं रोचन ये, मृगदृग इनहीं से सोहे पलापल हैं।
‘सूरति’ निहारि देखी नीके ऐरी प्यारी जू के, कमल से नैन अरु नैन से कमल हैं।।’’
(3) रशनोपमा:-
जब किसी पद में उपमान या उपमेय उत्तरोत्तर उपमेय या उपमान होते जाते हैं तो वहाँ रशनोपमा अलंकार माना जाता है।
‘रशनोपमा’ शब्द ‘रशन+उपमा’ के योग से बना है। ‘रशना’ का शाब्दिक अर्थ होता है-करधनी अर्थात् कमर में बाँधा जाने वाला आभूषण (तागड़ी)। जिस प्रकार करधनी में अनेक कड़ियों से गूँथी हुई लड़ियाँ होती हैं, वैसे ही जब किसी पद में उपमेय और उपमान की एक शृंखला सी बना दी जाती है तो वहाँ ‘रशनोपमा’ अलंकार माना जाता है।
रशनोपमा अलंकार के उदाहरण –
1.‘बच सी माधुरि मूररि, मूरति सी कलकीरति।
कीरति लौं सब जगत में, छाइ रही तव नीति।।’’
2. ’’मति सी नति, नति सी विनतति, विनति सी रति चारु।
रति सी गति गति सी भगति, तो मैं पवन कुमारु।।’’
प्रस्तुत पद में पहली उपमा का उपमेय (नति) अगली उपमा के लिए उत्तरोत्तर उपमान बनता हुआ वर्णित किया गया है, अतः यहाँ रशनोपमा अलंकार है।
3. ’’मुकुर सम विधु सरिस मुख, मुख समान सरोज।’’
(4) अनन्वय अलंकार –
जब उपमेय का उपमान न मिल सकने के कारण उपमेय को ही उपमान बना दिया जाय, अर्थात् जब उपमेय की उपमा उपमेय से ही दी जाये तो वहाँ अनन्वय अलंकार होता है।
अनन्वय अलंकार के उदाहरण –
1. अब यद्यपि दुर्बल आरत है।
पर भारत के सम भारत है।
यहाँ भारत उपमेय है और उपमान भी वही है, अर्थात् भारत देश इतना महान कि इसकी तुलना में कोई अन्य उपमान मिलता ही नहीं, अतः भारत (उपमेय) की तुलना भी उपमान रूप भारत से ही कर दी गयी है।
2. सुन्दर नन्दकिशोर-से सुन्दर नन्दकिशोर।
सुन्दर नन्दकिशोर के समान सुन्दर नन्दकिशोर ही हैं। उपमान न होने के कारण नन्दकिशोर उपमेय को ही उपमान बना दिया है।
3. निरवधि जनु निरुपम पुरुष,
भरत भरत सम जान।
4. हरि को मुख सखि! हरि-मुख जैसो।
5. मुकति की दाता माता! तो-सी तू ही जग में।
6. करम-वचन-मानस विमल तुम समान तुम तात।
7. उपमा न कोउ, कह दास तुलसी, कतहुँ कवि-कोविंद लहैं।
बल, विनय, विद्या, शील, शोभा सिंधु इन सम येइ अहैं।।
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