गीत-फरोश मिश्र जी का प्रथम काव्य संकलन है। इसकी अधिकांश कविताएँ प्रकृति के रूप वर्णन से सम्बन्धित हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिकता और राष्ट्रीय भावना से युक्त कविताएँ भी हैं। ’गीतफरोश’ इस संकलन की प्रतिनिधि कविता है।
गीत-फरोश|| geet-farosh (भवानीप्रसाद मिश्र)
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा, जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको, यह गीत सुबह का है, गाकर देखें, ⋅यह गीत भूख और प्यास भगाता है, ⋅जी, छंद और बे-छंद पसंद करें, जी गीत जनम का लिखूँ, मरण का लिखूँ, |
इस संकलन से पहले सन 1951 में ’प्रतीक नामक पत्रिका’ में प्रकाशित गीत-फरोश कविता नए भावबोध की आरंभिक हिंदी कविताओं में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
गीत-फरोश कविता की पृष्ठभूमि के विषय में स्वयं कवि का कहना है। ’’गीतफरोश शीर्षक हँसाने वाली कविता मैंने बङी तकलीफ में लिखी थी। मैं पैसे को कोई महत्त्व नहीं देता लेकिन पैसा बीच-बीच में अपना महत्त्व स्वयं प्रतिष्ठित करा लेता है।
मुझे अपनी बहन की शादी करनी थी। पैसा मेरे पास था नहीं तो मैंने कलकत्ते में बन रही फिल्म के लिए गीत लिखे। गीत अच्छे लिखे गए। लेकिन मुझे इस बात का दुख था कि मैंने पैसे लेकर गीत लिखे।
मैं कुछ लिखूं इसका पैसा मिल जाए, यह अलग बात है, लेकिन कोई मुझसे कहे कि इतने पैसे देता हूँ तुम गीत लिख दो। यह स्थिति मुझे बहुत नापसंद है।
क्योंकि मैं ऐसा मानता हूँ कि आदमी की जो साधना का विषय है वह उसकी जीविका का विषय नहीं होना चाहिए। फिर कविता तो अपनी इच्छा से लिखी जाने वाली चीज है।
इस तकलीफ देह पृष्ठभूमि में लिखी गई ’गीतफरोश’ कविता कविकर्म के प्रति समाज और स्वयं कवि के बदलते हुए दृष्टिकोण को उजागर करती है। व्यंग्य के साथ-साथ इसमें वस्तु स्थिति का मार्मिक निरूपण भी है।
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jee haan hujoor,
main geet bechata hoon,
⇒main tarah-tarah ke geet bechata hoon,
main kisim-kisim ke geet bechata hoon!
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