• मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • कहानियाँ
  • हिंदी व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • हिंदी कविता
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • हिंदी लेख
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • 🏠 मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

काव्य प्रयोजन || काव्य शास्त्र || Hindi sahitya

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:30th Dec, 2019| Comments: 0

दोस्तो आज की पोस्ट में हम काव्यशास्त्र के महत्वपूर्ण विषय काव्य प्रयोजन के बारे में जानेंगे

काव्य प्रयोजन( kavya prayojan)

Table of Contents

  • काव्य प्रयोजन( kavya prayojan)
  • भरत मुनि –
    • भामह –
    • आचार्य वामन –
    • आचार्य मम्मट –
    • यश प्राप्ति –
    • अर्थ प्राप्ति –
      • व्यवहार ज्ञान
      • शिवेतरक्षतये –
      • आत्मशान्ति –
      • कान्ता सम्मित उपदेश –
      • गोस्वामी तुलसीदास के काव्य प्रयोजन –
      • मैथिलीशरण गुप्त का मत –
      • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत –

meaning of kavya

⇒काव्य प्रयोजन का तात्पर्य है-’काव्य रचना का उद्देश्य’। काव्य किस उद्देश्य से लिखा जाता है और किस उद्देश्य से काव्य पढ़ा जाता है इसे दृष्टिगत रखकर काव्य प्रयोजनों पर विस्तृत विचार-विमर्श काव्यशास्त्र में किया गया। काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से अलग है, क्योंकि काव्य प्रेरणा का अभिप्राय है काव्य की रचना के लिए प्रेरित करने वाले तत्व जबकि काव्य प्रयोजन का अभिप्राय है


काव्य रचना के अनन्तर (बाद में) प्राप्त होने वाले लाभ। यहां हम काल-क्रमानुसार विभिन्न आचर्यों द्वारा निर्द्रिष्ट काव्य प्रयोजनों की समीक्षा करेंगे।

 

भरत मुनि –

’नाट्य शास्त्र’ के रचयिता भरत मुनि ने नाटक के प्रयोजनों पर विचार करते हुए लिखा है:


धम्र्यं यशस्यं आयुष्यं हितं बुद्धि विवर्धनम्।
लोको उपदेश जननम् नाट्यमेतद् भविष्यति।।


भरत मुनि द्वारा निर्दिष्ट इन प्रयोजनों में भौतिक प्रयोजनों का व्यापक उल्लेख है, किन्तु काव्य का प्रधान उद्देश्य आनन्द प्राप्ति है जिसका उल्लेख यहां नहीं किया गया।

एक अन्य स्थान पर उन्होंने नाटक का उद्देश्य दुःखात व्यक्ति को सुख और शान्ति की प्राप्ति करना बताया है।

भामह –

आचार्य भामह ने काव्य प्रयोजनों की चर्चा करते हुए लिखा है:


धर्मार्थ काम मोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।
करोति कीर्ति प्रीति´्च साधुकाव्य निबन्धनम्।।


अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति कलाओं में निपुणता के साथ-साथ उत्तम काव्य से कीर्ति और प्रीति (आनन्द) की भी प्राप्ति होती है।

भामह के प्रयोजन व्यापक हैं तथा इनमें कवि और पाठक दोनों के काव्य प्रयोजनों की चर्चा है।

आचार्य वामन –

वामन के अनुसार:


’’काव्यं सद्द्रष्टा द्रष्टार्थ प्रीति-कीर्ति-हेतुत्वात्।’’
अर्थात् काव्य में दो प्रमुख प्रयोजन हैं:

प्रीति अथवा आनन्द साधना

कीर्ति अथवा यश प्राप्ति

आचार्य मम्मट –

आचार्य मम्मट ने अपने ग्रन्थ ’काव्यप्रकाश’ में काव्य प्रयोजनों पर विस्तृत चर्चा की है।उनके अनुसार:
काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
सद्यः परिनिर्वृत्तये कान्तासम्मित तयोपदेशयुजे।।


अर्थात् काव्य यश के लिए, अर्थ प्राप्ति के लिए, व्यवहार ज्ञान के लिए, अमंगल शान्ति के लिए, अलौकिक आनन्द की प्राप्ति के लिए और कान्ता के समान मधुर उपदेश प्राप्ति के लिए प्रयोजनीय होते है।

मम्मट ने मूलतः छः काव्य प्रयोजन बताए हैं जो निम्नवत हैं:

1. यश प्राप्ति,

2. अर्थ प्राप्ति,

3. लोक व्यवहार ज्ञान,

4. अनिष्ट का निवारण या लोकमंगल,

5. आत्मशान्ति या आनन्दोपलब्धि,

6. कान्तासम्मित उपदेश।


इनमें से काव्य की रचना करने वाले कवि के प्रयोजन है-यश प्राप्ति, अर्थ प्राप्ति, आत्मशान्ति तथा काव्य का अस्वादन करने वाले पाठक के काव्य प्रयोजन है

-लोक व्यवहार ज्ञान, अमंगल की शान्ति, आनन्दोपलब्धि और कान्तासम्मित उपदेश। मम्मट के ये काव्य प्रयोजन अत्यन्त व्यापक हैं। अब हम इनमें से प्रत्येक पर अलग-अलग विचार करेंगे।

यश प्राप्ति –

यश प्राप्ति की इच्छा से कविगण काव्य रचना में प्रवृत्त होते रहे हैं। अतः यश प्राप्ति को मम्मट ने काव्य का प्रमुख प्रयोजन माना है।

काव्य रचना करके अनेक महाकवियों ने अक्षय यश प्राप्त किया है। कालिदास, सूरदास, तुलसी, बिहारी, प्रसाद जैसे अनेक कवि आज भी अमर हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है:


’’निज कवित्त केहि लाग न नीका।
सरस होहु अथवा अति फीका।।
जो प्रबन्ध कुछ नहिं आदरहीं।
सो श्रम वाद बाल कवि करहीं।।’’


अर्थात् अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती, चाहे सरस हो या फीकी, किन्तु जिस रचना को विद्वानों का आदर प्राप्त नहीं होता उस रचनाकार का श्रम व्यर्थ ही है।

इससे यह ध्वनित होता है कि कवि की आकांक्षा होती है कि उसकी रचना विद्वानों के द्वारा सराही जाए अर्थात् यश प्राप्ति की कामना सभी कवियों में होती है।

जायसी ने भी पद््मावत में यह स्वीकार किया है कि मैं चाहता हूं कि अपनी कविता के द्वारा संसार में जाना जाऊं।
’’औ मैं जान कवित अस कीन्हा।
मकु यह रहै जगत मंह चीन्हा।।’’

रीतिकालीन कवि आचार्य कुलपति, देव और भिखारीदास ने भी अपने काव्य प्रयोजनों में यश प्राप्ति को विशेष स्थान दिया है।यह भी उल्लेखनीय है कि कवियांे ने जिन राजाओं को अपनी कविता का विषय बनाया वे भी अमर हो गए। निष्कर्ष यह है कि यश प्राप्ति काव्य का प्रमुख प्रयोजन है।

 

अर्थ प्राप्ति –

काव्य रचना का एक प्रयोजन धन प्राप्ति भी रहा है। धनोपार्जन की इच्छा से रीतिकालीन कवियों ने राजदरबारों में आश्रय ग्रहण किया। कहते हैं कि बिहारी को प्रत्येक दोहें की रचना के लिए एक अशर्फी प्राप्त होती थी।आधुनिक युग में कवि सम्मेलनों में अनेक कवि अपनी कविताओं को गाकर, सुनाकर अच्छा-खासा धन पैदा कर रहे हैं।इस प्रकार कविता धनोपार्जन का माध्यम बन गई है। इसीलिए सम्भवतः मम्मट ने अर्थ प्राप्ति को काव्य प्रयोजनों में स्थान दिया है।

व्यवहार ज्ञान

 

– आचार्य मम्मट ने व्यवहार ज्ञान को भी काव्य का प्रयोजन माना है। रामायण आदि महाकाव्यांे के अनुशीलन से पाठकों को उचित व्यवहार की शिक्षा प्राप्त होती है।

संस्कृत में बहुत-सा साहित्य इसी प्रयोजन को ध्यान में रखकर लिखा गया था। पंचतन्त्र, हितोपदेश, नीतिशतक जैसे ग्रन्थ व्यवहार ज्ञान की शिक्षा देने के लिए लिखे गए।

काव्य के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि हम कैसा व्यवहार करें। रामचरितमानस व्यवहार का दर्पण है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिन्तामणि में यह स्वीकार किया है कि काव्य से व्यवहार ज्ञान होता है:

’’यह धारणा कि काव्य व्यवहार का बाधक है, उसके अनुशीलन से कर्मण्यता आती है, ठीक नहीं। कविता तो भाव प्रसार द्वारा कर्मण्य के लिए कर्मक्षेत्र का और विस्तार कर देती है।’’

 

शिवेतरक्षतये –

’शिवेतर’ का अर्थ है-अमंगल और ’क्षतये’ का अर्थ है-विनाश। इसका तात्पर्य है कि काव्य अमंगल का विनाश करता है और कल्याण का विधान करता है। अपने युग और समाज को अनिष्ट से बचाने के लिए अनेक कवियों ने काव्य रचनाएं लिखी हैं।

कहा जाता है कि दिनकर जी ने युद्ध और शान्ति की समस्या को लेकर ’कुरुक्षेत्र’ की रचना की और सम्पूर्ण संसार को शान्ति का सन्देश देते हुए युद्ध के अमंगल से बचाया है।
कभी-कभी कवि व्यक्तिगत अमंगल को दूर करने के लिए भी काव्य रचना करता है।कहते हैं कि संस्कृत के मयूर कवि ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए ’मयूर शतक’ लिखा था, इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास ने ’हनुमान बाहुक’ की रचना बाहु रोग से मुक्ति पाने के लिए की थी।

काव्य से पठन-पाठन से भी ’अमंगल का विनाश’ होता है। अनेक लोग रामचरितमानस, दुर्गा सप्तशती और गुरु ग्रन्थ साहब का पाठ अमंगल के विनाश के लिए करवाते हैं।

आत्मशान्ति –

काव्य पढ़ने के साथ ही तुरन्त आनन्द का अनुभव होता है और परम शान्ति की प्राप्ति होती है। काव्य का रसास्वादन करने से अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। वस्तुतः आनन्दोपलब्धि ही काव्य का प्रमुख प्रयोजन है।

काव्य का रसास्वादन करते समय पाठक को समाधिस्थ योगी के समान अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है। कुछ समय के लिए वह अपनी सत्ता को भूलकर काव्य के आनन्द में लीन हो जाता है।इसीलिए काव्यानन्द को ’ब्रह्मानन्द सहोदर’ कहा गया है। काव्य की रचना करके कवि को भी यही आनन्द मिलता है और काव्य का रसास्वादन करके पाठक को भी ऐसे ही आनन्द की अनुभूति होती है।

इस प्रकार काव्य का प्रयोजन कवि और पाठक दोनों से सम्बन्धित है। काव्य में डूबा हुआ मन साधारणीकरण की स्थिति में पहुंचकर रसमग्न हो जाता है और यही रसमग्नता परमशान्ति अर्थात् आनन्द प्रदान करती है।आचार्यों ने इसी कारण इस प्रयोजन को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानते हुए ’सकलमौलिभूत’ प्रयोजन कहा है।

 

कान्ता सम्मित उपदेश –

काव्य प्रियतमा के समान मधुर उपदेश देने वाला है। उपदेश तीन प्रकार के होते हैं:

  • प्रभु सम्मित उपदेश
  • मित्र सम्मित उपदेश
  • कान्ता सम्मित उपदेश


वेदशास्त्रों का उपदेश प्रभु सम्मित (स्वामी के उपदेश) जैसा है। वह हितकर तो है पर रुचिकर नहीं। पुराणों और इतिहास आदि का उपदेश मित्रतुल्य उपदेश है, जिसकी अवहेलना भी की जा सकती है,

किन्तु काव्य का उपदेश कान्ता सम्मित उपदेश है जो हितकर भी है, रुचिकर भी है और जिसकी अवहेलना भी नहीं जा सकती।


जिस प्रकार कान्ता (प्रेयसी) मधुर हाव भावों से पुरुष को मुग्ध करके उसे अपनी इच्छानुकूल नीति मार्ग पर ले जाती है, उसी प्रकार काव्य भी मधुर कथा के द्वारा उच्च आदर्शों की शिक्षा देता हैं।

जिस प्रकार मिठाई के लोभ में बालक कटु औषधि खा लेता है, उसी प्रकार रस के मधुर आस्वाद से मिश्रित शिक्षा काव्य द्वारा सरलता से कराई जा सकती है।

इसीलिए कबीर, तुलसी, नानक आदि अनेक कवियों ने अपने उपदेशों का प्रचार काव्य के माध्यम से किया है।
हिन्दी आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य प्रयोजन – हिन्दी आचार्यों ने काव्य प्रयोजन पर जो विचार व्यक्त किए हैं

प्रायः संस्कृत आचार्यों जैसे हैं। यहीं हम कुछ प्रमुख उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं:

गोस्वामी तुलसीदास के काव्य प्रयोजन –

रामचरित मानस में तुलसीदास ने दो काव्य प्रयोजनों की चर्चा की है:
(। ) स्वान्त: सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
(।। ) कीरति भनिति भूति भल सोई।


सुरसरि सम सब कहँ हित होइ।।
वे काव्य में दो प्रयोजन मानते हैं:


(। ) स्वान्त: सुख, (।। ) लोक मंगल।
वही कविता श्रेष्ठ होती है जो गंगा के समान सबका हित करने वाली हो।

भिखारीदास द्वारा निर्दिष्ट काव्य प्रयोजन –


एक लहै, तप पुंजन के फल, ज्यों तुलसी अरु सूर गुसाईं।
एक लहै बहु सम्पति केशव, भूषण ज्यों बर बीर बङाई।।


एकन्ह को जस-ही सों प्रयोजन, है रसखानि रहीम की नाईं।
दास कवित्तन्ह की चरचा बुद्धिवन्तन को सुख दै सब ठाईं।।

यहां यश प्राप्ति, फल प्राप्ति, आनन्द प्राप्ति आदि को काव्य प्रयोजन के रूप में स्वीकार किया गया है।

मैथिलीशरण गुप्त का मत –

गुप्तजी काव्य का प्रयोजन केवल मनोरंजन नहीं अपितु उपदेश स्वीकार करते हुए लिखते हैं।


’’केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।’’

इसी प्रकार वे काव्य कला के लिए सिद्धान्त का भी खण्डन करते हुए कहते हैं कि कला लोकहित के लिए होनी चाहिए:

’’मानते हैं जो कला को बस कला के अर्थ ही।
स्वार्थिनी करते कला को व्यर्थ ही।।’’

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत –

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य प्रयोजनों पर विस्तार से विचार किया है। वे काव्य का प्रमुख प्रयोजन रसानुभूति मानते हैं।

’’कविता का अन्तिम लक्ष्य जगत में मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके उसके साथ मनुष्य हृदय का सामंजस्य स्थापन है।’’

कविता से केवल मनोरंजन के उद्देश्य का विरोध करते हुए वे लिखते हैं:


’’मन को अनुरंजित करना उसे सुख या आनन्द पहुंचाना ही यदि कविता का अन्तिम लक्ष्य माना जाए तो कविता ही विलास की एक सामग्री हुई। …… काव्य का लक्ष्य है जगत और जीवन के मार्मिक पक्ष को गोचर रूप में लाकर सामने रखना।’’


पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र में काव्य प्रयोजन पर कला के सन्दर्भ में विचार किया गया है। इस सम्बन्ध में दो प्रमुख मत हैं।कलावादियों के अनुसार कला का एकमात्र प्रयोजन सौन्दर्य सृष्टि है और इसीलिए वे काव्य कला के लिए सिद्धान्त के समर्थक है, जबकि उपयोगितावादियों के अनुसार कला का उद्देश्य लोकहित का विधान करना है।

निष्कर्ष – काव्य प्रयोजन के सम्बन्ध में जो मत यहां व्यक्त किए गए हैं उनसे हम निम्न निष्कर्ष निकाल सकते हैं:

प्रत्येक व्यक्ति का काव्य प्रयोजन एक-सा नहीं होता।आनन्द प्राप्ति काव्य का प्रमुख प्रयोजन है जिसे रसानुभूति से प्राप्त किया जाता है।यश प्राप्ति, अर्थ प्राप्ति, व्यवहार ज्ञान, अमंग का विनाश, लोकोपदेश भी काव्य प्रयोजन है।

काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से अलग है।

ये भी जरूर पढ़ें 

रस का अर्थ व भेद जानें 

काव्य रीति को पढ़ें 

⇒काव्य लक्षण क्या होते है

काव्य हेतु क्या होते है 

आखिर ये शब्द शक्ति क्या होती है 

 

हिन्दी साहित्य के बेहतरीन वीडियो के लिए यहाँ क्लिक करें 

Tweet
Share72
Pin
Share
72 Shares
केवल कृष्ण घोड़ेला

Published By: केवल कृष्ण घोड़ेला

आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है l यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी l हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है l और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है l धन्यवाद !

Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

    रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Hindi Sahitya PDF Notes

Search

Recent Posts

  • Utpreksha Alankar – उत्प्रेक्षा अलंकार, परिभाषा || परीक्षोपयोगी उदाहरण
  • अनुप्रास अलंकार – अर्थ | परिभाषा | उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
  • रेवा तट – पृथ्वीराज रासो || महत्त्वपूर्ण व्याख्या सहित
  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi
  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas
  • उजाले के मुसाहिब – कहानी || विजयदान देथा
  • परायी प्यास का सफर – कहानी || आलमशाह खान
  • हिन्दी उपन्यास – Hindi Upanyas – हिंदी साहित्य का गद्य

Join us

हिंदी साहित्य चैनल (telegram)
हिंदी साहित्य चैनल (telegram)

हिंदी साहित्य चैनल

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

Footer

Keval Krishan Ghorela

Keval Krishan Ghorela
आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है. यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी. हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है. और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है. धन्यवाद !

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
Tulsidas ka jeevan parichay || तुलसीदास का जीवन परिचय || hindi sahitya
Ramdhari Singh Dinkar || रामधारी सिंह दिनकर || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

जीवन परिचय

  1. मैथिलीशरण गुप्त
  2. सुमित्रानंदन पन्त
  3. महादेवी वर्मा
  4. हरिवंशराय बच्चन
  5. कबीरदास
  6. तुलसीदास

Popular Pages

हिंदी साहित्य का इतिहास-Hindi Sahitya ka Itihas
Premchand Stories Hindi || प्रेमचंद की कहानियाँ || pdf || hindi sahitya
Hindi PDF Notes || hindi sahitya ka itihas pdf
रीतिकाल हिंदी साहित्य ट्रिक्स || Hindi sahitya
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us