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रसखान के सवैये  – व्याख्या सहित – हिंदी साहित्य

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:15th Jul, 2020| Comments: 1

आज की पोस्ट में हम ’रसखान के सवैये’ (Raskhan ke Savaiye) को पढेंगे। रसखान के  उन महत्त्वपूूर्ण सवैयों  को पढ़ेंगे, जो परीक्षा में अक्सर पूछे जाते है। एक बार अभ्यास जरुर करें ।

Raskhan Ke Savaiye

रसखान के सवैये

Table of Contents

  • रसखान के सवैये
    • व्याख्या –
    • व्याख्या –
    • व्याख्या –

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नन्द की धेतु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिली कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन।।

व्याख्या –


हर दशा में अपने आराध्य श्रीकृष्ण का सामीप्य पाने की इच्छा से कवि रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य योनि में जन्म लूँ तो मेरी उत्कट इच्छा है कि मैं ब्रज में गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही अर्थात् एक ग्वाला बनकर निवास करूँ। यदि मैं पशु बनूँ तो फिर मेरे वश में क्या है? अर्थात् पशु योनि में जन्म लेने पर मेरा कोई वश नहीं है, फिर भी चाहता हूँ कि मैं नन्द की गायों के मध्य में चरने वाला एक पशु अर्थात् उनकी गाय बनूँ।

यदि पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र के कोप से ब्रज की रक्षा करने के लिए छत्र की तरह हाथ में उठाया था, धारण किया था। यदि मैं पक्षी योनि में जन्म लूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं यमुना के तट पर स्थित कदम्ब की डालियों पर बसेरा करने वाला पक्षी बनूँ अर्थात् हर योनि और हर जन्म में अपने आराध्य श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि का सामीप्य चाहता हूँ और यही मेरी प्रभु से विनती है।

या लकुटि अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाई चराई बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तडाग निहारौं।
कौटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर बारौं।

व्याख्या –

श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तुओं के प्रति अपना अतिशय अनुराग दर्शाते हुए कवि रसखान कहते है कि मैं कृष्ण की लाठी या छङी और कंबल मिल जाने पर तीनों लोकों का सुख-साम्राज्य छोङने को तैयार हूँ। यदि नन्द की गायें चराने का सौभाग्य मिल तो मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी त्याग दूँ अर्थात् नन्द की गायें चराने का सुख मिलने पर अन्य सब सुख त्याग सकता हूँ।

जब मेरे इन नेत्रों को ब्रजभूमि के बाग, तालाब आदि देखने को मिल जाए और करी के कुंजों में विचरण करने का सौभाग्य या अवसर मिल जाएँ ता मैं उस सुख पर सोने के करोङों महलों को न्यौछावर कर सकता हूँ। कवि रसखान यह कहना चाहते हैं कि मुझे अपने आराध्य श्रीकृष्ण से सम्बन्धित सभी वस्तुओं से जो सुख प्राप्त हो सकता है, वह अन्य किसी भी वस्तु से नहीं मिल सकता।

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतों वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

व्याख्या –

श्रीकृष्ण के प्रति प्रेमाभक्ति रखने वाली कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि मैं प्रियतम कृष्ण की रूप-छवि को अपने शरीर पर धारण करना चाहती हूँ। इस कारण मैं अपने सिर पर मोर पंखों का मुकुट धारण करूँगी और गले में घुँघुची की वनमाला पहनूँगी। मैं शरीर पर पीला वस्त्र पहनकर कृष्ण के समान ही हाथ में लाठी लेकर अर्थात् उन्हीं के वेश में गायों व ग्वालिनों के साथ घूमती रहूँगी अर्थात् गायें चराऊँगी।

जो-जो बातें उन आनन्द के भण्डार कृष्ण को अच्छी लगती हैं, वे सब मैं करूँगी और तेरे कहने पर कृष्ण की तरह ही वेशभूषा, स्वांग, दिखावा, व्यवहार आदि करूँगी। रसखान कवि के अनुसार उस गोपी ने कहा कि मैं मुरलीधर कृष्ण की मुरली को अपने होठों पर कभी धारण नहीं करूँगी। आशय यह है कि मुरली प्रियतम कृष्ण को बहुत प्रिय है, इसके अधरों पर रखने का अधिकार भी उनका ही है और वे ही इससे मधुर तान सुना सकते हैं।

काननि दै अँगुरी जबहीं मुरली धुनि मन्द बजैहै।
मोहनी तानन सों अटा चढ़ि गोधन गैहे तौ गैहै।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रज लोगानि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहे, न जैहे।।

व्याख्या –

श्रीकृष्ण की मुरली तथा उनकी मुस्कान पर आसक्त कोई गोपी अपने सखी से कहती है कि जब श्रीकृष्ण मन्द-मन्द मधुर स्वर में मुरली बजाएँगे तो मैं अपने कानों में ऊँगली डाल लूँगी, ताकि मुरली की मधुर तान मुझे अपनी ओर आकर्षित न कर सके या फिर श्रीकृष्ण ऊँटी अटारी पर चढ़कर मुरली की मधुर तान छेङते हुए गोधन (ब्रज में गया जाने वाला लोकगीत) गाने लगें तो गाते रहें, परन्तु मुझ पर उसका कोई असर नहीं हो पायेगा।

मैं ब्रज के समस्त लोगों को पुकार-पुकार कर अथवा चिल्लाकर कहना चाहती हूँ कि कल कोई मुझे कितना ही समझा ले, चाहे कोई कुछ भी करे या कहे, परन्तु यदि मैंने श्रीकृष्ण की आकर्षक मुस्कान देख ली तो मैं उसके वश में हो जाऊँगी। हाय री माँ! उसके मुख की मुस्कान इतनी मादक है कि उसके प्रभाव से बच पाना या सँभल पाना अत्यन्त कठिन हैं। मैं उससेे प्राप्त सुख को नहीं सँभाल सकूँगी।

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केवल कृष्ण घोड़ेला

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  1. AvatarPradeep prajapati says

    18/10/2020 at 7:29 AM

    Nice teach method

    Reply

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