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कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियाँ -हिंदी साहित्य का इतिहास || भक्तिकाल

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:2nd Apr, 2021| Comments: 1

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आज के आर्टिकल हम भक्तिकाल में ’कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियाँ’ पढ़ेंगे। जो परीक्षा के लिए उपयोगी साबित होगा।

कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियाँ

Table of Contents

  • कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियाँ
    • राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन-
    • रीति तत्त्व का समावेश-
    • प्रेममयी भक्ति-
    • जीवन के प्रति आवश्यक राग-रंग-
    • प्रकृति चित्रण-
    • अलंकार और छन्द योजना-
    • रस योजना-
    • भाषा-शैली-

राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन-

  • कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन विशेष रूप से किया है। श्रीकृष्ण के बाल रूप व प्रेम लीला के मधुर रूप की झाँकी का चित्रण कृष्ण भक्त कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है।
  • सूरदास ने कृष्ण के लोकरंजनकारी रूप को अपने काव्य का आधार बनाकर जनता को माधुर्य रस से विभोर कर दिया। कृष्ण के वात्सल्य चित्रण एवं प्रेम सम्बन्धी चित्रण को कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में माधुर्य भाव से ओत-प्रोत कर दिया है।

रीति तत्त्व का समावेश-

  • कृष्णभक्ति साहित्य आनन्द और उल्लास का साहित्य है। कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में शृंगार वर्णन के साथ-साथ रीति तत्त्व का भी समावेश किया है। इन कवियों ने अपने काव्य में अलंकार-निरूपण एवं नायिका भेद का चित्रण किया है।
  • सूरदास और नन्ददास ने अपने काव्य में रीति तत्त्व का समावेश किया। सूरदास ने ’साहित्य लहरी’ में नायिका भेद एवं अलंकार का वर्णन किया है तथा नन्ददास ने भी ’रस मंजरी’ में नायिका भेद का वर्णन किया है।
  • साहित्य लहरी’ में सूरदास ने स्वयं को चन्दबरदाई का वंशज कहा है।
  • सूरदास के दृष्टकूट पद ’साहित्य लहरी’ में है।

प्रेममयी भक्ति-

  • कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में प्रेममयी भक्ति भावना की अभिव्यक्ति की है। कृष्ण की प्रेममयी छवि को अपने काव्य का विषय बनाकर प्रेम तत्त्व का निरूपण किया गया है।
  • माधुर्य भक्ति से ओत-प्रोत कृष्ण काव्य में चैतन्य सम्प्रदाय ने परकीया भाव में माधुर्य की परिणति का चित्रण किया है तथा निम्बार्क सम्प्रदाय ने स्वकीया भाव को अधिक महत्त्व देते हुए राधा-कृष्ण के दाम्पत्य प्रेम का चित्रण अपने काव्य में किया है।
  • कृष्ण काव्य में दाम्पत्य रति, वात्सल्य रति और भगवद् विषयक रति तीनों ’रति’ भाव के प्रधान रूप उपलब्ध होते हैं। कृष्ण भक्त कवियों ने वात्सल्य, सख्य और माधुर्य के क्षेत्र में कृष्ण लीलाओं का गान करते हुए अपनी भक्ति भावना का परिचय दिया है।

जीवन के प्रति आवश्यक राग-रंग-

  • कृष्ण काव्यधारा सामन्ती जङताओं का विरोध करते हुए जीवन के प्रति आवश्यक राग व रंग पर विश्वास करती है। इस धारा में एक ओर प्रेम, बाल लीला चित्रण एवं वात्सल्य चित्रण के माध्यम से समाज को सुदृढ़ करने की कोशिश की गई तो दूसरी ओर मानव की सहज स्वतन्त्रता के बाधक तत्त्वों का विरोध किया गया है।
  • सूरदास, मीरा आदि की रचनाओं में प्रेम चित्रण स्वतन्त्रता की ही माँग पर आधारित है।

प्रकृति चित्रण-

  • कृष्ण काव्य में श्रीकृष्ण व उनकी लीलास्थली ब्रजभूमि अनन्त सौन्दर्य के लिए विख्यात रही है। कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में जहाँ-जहाँ राधा-कृष्ण के सौन्दर्य का चित्रण किया है, वहाँ उनकी ब्रजभूमि का सौन्दर्य निरूपण भी उन्होंने किया है।
  • कृष्ण काव्य में भाव की प्रधानता होने के कारण प्रकृति चित्रण आलम्बन रूप में कम तथा उद्दीपन रूप मेें अधिक हुआ है।

अलंकार और छन्द योजना-

  • सूरदास, मीरा, नन्ददास, रसखान आदि कृष्ण भक्त कवियों में अलंकारों की मनोहारी प्रवृत्ति दिखाई देती है। इनके काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विभावना, असंगति आदि अलंकारों की सुषमा (परम शोभा) देखने को मिलती है। इनके काव्य में अलंकार का प्रयोग चमत्कार निरूपण के लिए न होकर भाव व्यंजना के लिए किया गया है।
  • कृष्ण काव्य में सूरदास द्वारा रचित ग्रन्थ ’सूरसागर’ में भक्ति रस से पूर्ण पदों की प्रधानता है। नन्ददास ने ’रूप मंजरी’ व ’राग मंजरी’ में दोहा-चौपाई छन्द का प्रयोग किया है। रसखान ने कवित्त और सवैये लिखे हैं।

रस योजना-

  • कृष्णभक्ति काव्यधारा में कृष्ण की बाल लीला के चित्रण में वात्सल्य रस की प्रधानता है तथा प्रणय क्रीङाओं के चित्रण में शृंगार रस की प्रधानता है। अतः कृष्णभक्ति काव्यधारा में वात्सल्य व शृंगार रस का चित्रण मुख्य रूप से हुआ है।
  • रामचन्द्र शुक्ल ने सूरदास को ‘वात्सल्य रस का एकछत्र सम्राट’ कहा है। ’मैया मैं नहिं माखन खायो’, ’मैया कबहि बढ़ैगी चोटी’ जैसे पदों में सूरदास ने वात्सल्य रस को उजागर किया है।

भाषा-शैली-

  • कृष्णभक्ति काव्य की भाषा ब्रज है। कृष्णभक्ति काव्यधारा के कवि भाषा की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त माने जाते हैं। सूरदास ने अपने काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा माधुर्य, सरसता, कोमलता आदि गुणों के कारण व्यापक काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी थी।
  • ब्रजभाषा को व्यापक काव्य की भाषा बनाकर इन्होंने अपने काव्य को सशक्त बनाया। नन्ददास को भी ब्रजभाषा का अच्छा ज्ञान था। इस प्रकार समस्त कृष्णभक्ति काव्य में ब्रजभाषा का रूप देखने को मिलता।

 

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  1. mrinali giri says

    07/10/2020 at 1:43 PM

    really it was very useful simple and easy to memorise

    Reply

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