आज की पोस्ट में हम कृष्ण भक्त कवि नंददास (Nanddas) जी के जीवन परिचय के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करेंगे ।
नन्ददास जीवन परिचय (Nanddas biography)
Table of Contents
- जन्मकाल – 1533 ई. (1590 वि.) मृत्युकाल – 1583 ई. (1640 वि.)
- जन्मस्थान – गाँव रामपुर, सोरों या सूकर क्षेत्र (उ.प्र., सनाढ्य ब्राह्मण)
प्रमुख रचनाएँ –
- अनेकार्थ मंजरी
- मान मंजरी
(ये दोनों रचनाएँ पर्याय कोश ग्रंथ हैं। ’मानमंजरी’ ग्रंथ नंददास के भाषा विषयक प्रौढ़ ज्ञान और पांडित्य का द्योतक माना जाता है।)
⇒विरह मंजरी (यह बारहमासा शैली में रचित इनका भावात्मक काव्य माना जाता है।)
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⇔रूप मंजरी -यह इनका लघु आख्यानकाव्य माना जाता है। इनकी एक प्रेयसी का नाम भी ’रूपमंजरी’ माना जाता है।(imp)
⇒ रसमंजरी
⇔ भंवरगीत
यह नंददास के परिपक्व दर्शन ज्ञान, विवेक बुद्धि, तार्किक शैली और कृष्ण भक्ति का परिचायक काव्य
है। इसके पूर्वार्द्ध भाग में गोपी-उद्धव संवाद तथा उत्तरार्द्ध भाग में कृष्ण-प्रेम में गोपियों की विरह दशा का वर्णन है।
इसके लेखन का मुख्य उद्देश्य निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना का खंडन करके सगुण साकार कृष्ण की भक्ति
की स्थापना करना है।
⇒ रास पंचाध्यायी
यह इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसमें वियुक्त आत्मा (गोपी) रासलीला के माध्यम से रस-रूप परमात्मा (कृष्ण) से मिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं। यह ’रोला’ छंद में लिखित रचना है। इस रचना में उपयुक्त शब्द चयन एवं उनके सुष्ठु प्रयोग के कारण इनको ’जङिया-कवि’ की उपाधि प्रदान की जाती है।
⇔ सिद्धान्त पंचाध्यायी -यह कृष्ण की रासलीला से संबंधित रचना है। इसमें कृष्ण, वृदांवन, वेणु, गोपी, रास आदि शब्दों की आध्यात्मिक व्याख्या प्रस्तुत की गयी हैं।
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- सुदामा चरित -इसका कथानक ’श्रीमद्भागवत’ से गृहीत किया गया है। काव्यदृष्टि से यह साधारण रचना है।
- नन्ददास पदावली –इसमें नंददास द्वारा रचित पदों को बारह प्रकरणों में संकलित किया गया है। इसमें इनके काव्यसौष्ठव का उत्कर्ष देखा जा सकता है।
- रुक्मिणी मंगल
- प्रेम-बारहखङी
- श्याम सगाई
- दशमस्कन्ध भागवंत
- गोवर्धनलीला
- अनेकार्थमाला (पर्यायकोश)
नोट:- आचार्य शुक्ल ने इनके द्वारा रचित निम्न दो गद्य रचनाओं का भी उल्लेख किया हैं:-
- हितोपदेश
- नासिकेत पुराण भाषा
विशेष तथ्य –
- ये अष्टछाप के कवियों में सबसे कनिष्ठ कवि माने जाते हैं।
- जनश्रुतियों के अनुसार ये गोस्वामी तुलसीदास के चचेरे भाई माने जाते है। इनके पिता ’जीवनराम’ एवं तुलसीदास के पिता ’आत्माराम’ सगे भाई थे।
- इन्होंने बचपन में तुलसीदास के साथ ही श्री नृसिंह पंडित से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था।
- नृसिंह पंडित रामानंदीय सम्प्रदाय के रामोपासक थे, अतएव प्रारम्भ में नंददास जी ने भी रामभक्ति को ही स्वीकार किया था।
- ये किसी रूपवती खत्रानी स्त्री पर आसक्त होकर उसके पीछे-पीछे गोकुल चले गये थे, जहाँ गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के सदुपदेश से इनका मोह भंग हुआ और ये कृष्ण के अनन्य भक्त हो गये।
- इतिहासकारों के अनुसार नंददास के भंवरगीत में वर्णित गोपियाँ से भी अधिक मुखर एवं वाचाल मानी जाती है।
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इनके द्वारा रचित निम्न पद द्रष्टव्य हैं –
’’जो उनके गुन होय, वेद क्यों नेति बखानै।
निरगुन सगुन आत्मा रुचि ऊपर सुख सानै।।
वेद पुराननि खोजि कै पायो कतहुँ न एक।
गुन ही के गुन होहि तुम, कहो अकासहि टेक।।’’ (भंवरगीत से)
’ताही छिन उडुराज उदित रस-रास-सहायक।
कुंकुम-मंडित-बदन प्रिया जनु नागरि नायक।।
कोमल किरन अरुन मानों वन व्यापि रही यों।
मनसिज खेल्यौ फाग घुमङि धुरि रह्यो गुलाल ज्यों।।’’
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