• Home
  • PDF Notes
  • Videos
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • PDF NOTES
  • VIDEOS
  • कहानियाँ
  • व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • कविताएँ
  • Web Stories

पूस की रात : मुंशी प्रेमचंद की कहानी || सारांश || प्रश्नोत्तर

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:16th May, 2022| Comments: 1

Tweet
Share
Pin
Share
0 Shares

आज के आर्टिकल में हम प्रेमचंद की चर्चित कहानी पूस की रात (Poos ki Raat) को पढेंगे और इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे।

पूस की रात – Poos ki Raat

Table of Contents

  • पूस की रात – Poos ki Raat
    • महत्वपूर्ण तथ्य: पूस की रात
    • पूस की रात कहानी के पात्र
    • पूस की रात – मूल कहानी

पूस की रात

महत्वपूर्ण तथ्य: पूस की रात

  • पूस की रात कहानी यथार्थवादी कहानी है।
  • प्रेमचंद द्वारा यह कहानी 1930 ई. में लिखी गई।
  • पूस की रात कहानी प्रेमचंद द्वारा आदर्शान्मुख यथार्थवाद के रास्ते को छोड़ कर यथार्थवादी रास्ते की घोषणा करती है।
  • इस कहानी में किसान की वेदना को दिखाया गया है।
  • पूस की रात कहानी में मूल समस्या गरीबी को दिखाया गया है।
  • हल्कू ने कम्बल खरीदने के लिए कितने रूपये एकत्रित किए थे- 3 रूपये
  • इस कहानी में आर्थिक विषमता को दिखाया गया है।
  • इस कहानी का प्रमुख नायक हल्कू है।
  • ’’न जाने कितनी बाकी है, जो किसी तरह चूकने में ही नहीं आती’’ कथन है- मुन्नी
  • हल्कू के पालतू कुत्ते का नाम- जबरा
  • कहानी में सहना कौन है- जमींदार (साहूकार)
  • ’’रात की ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा’’ कथन है- हल्कू का

पूस की रात कहानी के पात्र

पूस की रात कहानी के पात्र

पूस की रात – मूल कहानी

भाग -1

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा, ‘सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूं, किसी तरह गला तो छूटे।’

मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली, ‘तीन ही तो रुपए हैं, दे दोगे तो कम्मल कहां से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं।’

हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा। पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियां जमावेगा, गालियां देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी। यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और ख़ुशामद करके बोला, ‘ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूंगा।’

मुन्नी उसके पास से दूर हट गई और आंखें तरेरती हुई बोली, ‘कर चुके दूसरा उपाय! जरा सुनूं तो कौन-सा उपाय करोगे? कोई खैरात दे देगा कम्मल? न जाने कितनी बाकी है, जो किसी तरह चुकने ही नहीं आती। मैं कहती हूं, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई। बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है। पेट के लिए मजूरी करो। ऐसी खेती से बाज आए। मैं रुपए न दूंगी, न दूंगी।’

हल्कू उदास होकर बोला, ‘तो क्या गाली खाऊं?’

मुन्नी ने तड़पकर कहा, ‘गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है?’

मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गईं। हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भांति उसे घूर रहा था।

उसने जाकर आले पर से रुपए निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिए। फिर बोली, ‘तुम छोड़ दो अबकी से खेती।

मजूरी में सुख से एक रोटी तो खाने को मिलेगी। किसी की धौंस तो न रहेगी। अच्छी खेती है! मजूरी करके लाओ, वह भी उसी में झोंक दो, उस पर धौंस।’

हल्कू ने रुपए लिए और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो। उसने मजूरी से एक-एक पैसा

काट-कपटकर तीन रुपए कम्मल के लिए जमा किए थे। वह आज निकले जा रहे थे। एक-एक पग के साथ उसका मस्तक अपनी दीनता के भार से दबा जा रहा था।


भाग – 2
पूस की अंधेरी रात! आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पतों की एक छतरी के नीचे बांस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा कांप रहा था। खाट के नीचे उसका संगी कुत्ता जबरा पेट मे मुंह डाले सर्दी से कूं-कूं कर रहा था। दो में से एक को भी नींद न आती थी।

हल्कू ने घुटनियों कों गरदन में चिपकाते हुए कहा, ‘क्यों जबरा, जाड़ा लगता है? कहता तो था, घर में पुआल पर लेट रह, तो यहां क्या लेने आए थे? अब खाओ ठंड, मैं क्या करूं? जानते थे, मै यहां हलुवा-पूरी खाने आ रहा हूं, दौड़े-दौड़े आगे-आगे चले आए। अब रोओ नानी के नाम को। जबरा ने पड़े-पड़े दुम हिलाई और अपनी कूं-कूं को दीर्घ बनाता हुआ एक बार जम्हाई लेकर चुप हो गया। उसकी श्वान-बुद्धि ने शायद ताड़ लिया, स्वामी को मेरी कूं-कूं से नींद नहीं आ रही है।

हल्कू ने हाथ निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा, ‘कल से मत आना मेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे। यह रांड पछुआ न जाने कहां से बरफ लिए आ रही है। उठूं, फिर एक चिलम भरूं। किसी तरह रात तो कटे! आठ चिलम तो पी चुका। यह खेती का मजा है! और एक-एक भगवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाए तो गरमी से घबड़ाकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ- कम्मल। मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय। तकदीर की खूबी! मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें!’ हल्कू उठा, गड्ढे में से ज़रा-सी आग निकालकर चिलम भरी। जबरा भी उठ बैठा। हल्कू ने चिलम पीते हुए कहा, ‘पिएगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, जरा मन बदल जाता है।’

जबरा ने उसके मुंह की ओर प्रेम से छलकती हुई आंखों से देखा। हल्कू, ‘आज और जाड़ा खा ले। कल से मैं यहां पुआल बिछा दूंगा। उसी में घुसकर बैठना, तब जाड़ा न लगेगा।’ जबरा ने अपने पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिए और उसके मुंह के पास अपना मुंह ले गया। हल्कू को उसकी गर्म सांस लगी। चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊंगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कम्पन होने लगा। कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट, पर जाड़ा किसी पिशाच की भांति उसकी छाती को दबाए हुए था। जब किसी तरह न रहा गया तो उसने जबरा को धीरे से उठाया और उसक सिर को थपथपाकर उसे अपनी गोद में सुला लिया।

कुत्ते की देह से जाने कैसी दुर्गंध आ रही थी, पर वह उसे अपनी गोद मे चिपटाए हुए ऐसे सुख का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था। जबरा शायद यह समझ रहा था कि स्वर्ग यहीं है, और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता। वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा को पहुंचा दिया। नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिए थे और उनका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।

सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पाई। इस विशेष आत्मीयता ने उसमे एक नई स्फूर्ति पैदा कर दी थी, जो हवा के ठंडे झोकों को तुच्छ समझती थी। वह झपटकर उठा और छपरी से बाहर आकर भूंकने लगा। हल्कू ने उसे कई बार चुमकारकर बुलाया, पर वह उसके पास न आया। हार में चारों तरफ दौड़-दौड़कर भूंकता रहा। एक क्षण के लिए आ भी जाता, तो तुरंत ही फिर दौड़ता। कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भांति ही उछल रहा था।

एक घंटा और गुजर गया। रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरू किया। हल्कू उठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया, फिर भी ठंड कम न हुई। ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है, धमनियों में रक्त की जगह हिम बह रहा है। उसने झुककर आकाश की ओर देखा, अभी कितनी रात बाक़ी है! सप्तर्षि अभी आकाश में आधे भी नहीं चढ़े। ऊपर आ जाएंगे तब कहीं सबेरा होगा। अभी पहर से ऊपर रात है।

हल्कू के खेत से कोई एक गोली के टप्पे पर आमों का एक बाग़ था। पतझड़ शुरू हो गई थी। बाग़ में पत्तियों को ढेर लगा हुआ था। हल्कू ने सोचा, ‘चलकर पत्तियां बटोरूं और उन्हें जलाकर ख़ूब तापूं। रात को कोई मुझे पत्तियां बटोरते देख तो समझे कोई भूत है। कौन जाने, कोई जानवर ही छिपा बैठा हो, मगर अब तो बैठे नहीं रहा जाता।’

उसने पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ लिए और उनका एक झाड़ू बनाकर हाथ में सुलगता हुआ उपला लिए बगीचे की तरफ़ चला। जबरा ने उसे आते देखा तो पास आया और दुम हिलाने लगा।
हल्कू ने कहा, ‘अब तो नहीं रहा जाता जबरू। चलो बगीचे में पत्तियां बटोरकर तापें। टांठे हो जाएंगे, तो फिर आकर सोएंगें। अभी तो बहुत रात है।’

जबरा ने कूं-कूं करके सहमति प्रकट की और आगे-आगे बगीचे की ओर चला।

बगीचे में ख़ूब अंधेरा छाया हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था। वृक्षों से ओस की बूंदे टप-टप नीचे टपक रही थीं।

एकाएक एक झोंका मेहंदी के फूलों की ख़ुशबू लिए हुए आया।

हल्कू ने कहा, ‘कैसी अच्छी महक आई जबरू! तुम्हारी नाक में भी तो सुगंध आ रही है?’

जबरा को कहीं ज़मीन पर एक हड्डी पड़ी मिल गई थी। उसे चिंचोड़ रहा था।

हल्कू ने आग ज़मीन पर रख दी और पत्तियां बटोरने लगा। ज़रा देर में पत्तियों का ढेर लग गया। हाथ ठिठुरे जाते थे। नंगे पांव गले जाते थे। और वह पत्तियों का पहाड़ खड़ा कर रहा था। इसी अलाव में वह ठंड को जलाकर भस्म कर देगा।
थोड़ी देर में अलाव जल उठा। उसकी लौ ऊपर वाले वृक्ष की पत्तियों को छू-छूकर भागने लगी। उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर संभाले हुए हों अंधकार के उस अनंत सागर मे यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था।

हल्कू अलाव के सामने बैठा आग ताप रहा था। एक क्षण में उसने दोहर उताकर बगल में दबा ली, दोनों पांव फैला दिए, मानो ठंड को ललकार रहा हो, तेरे जी में जो आए सो कर। ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय-गर्व को हृदय में छिपा न सकता था।

उसने जबरा से कहा, ‘क्यों जब्बर, अब ठंड नहीं लग रही है?’

जब्बर ने कूं-कूं करके मानो कहा अब क्या ठंड लगती ही रहेगी?

‘पहले से यह उपाय न सूझा, नहीं इतनी ठंड क्यों खाते।’

जब्बर ने पूंछ हिलाई।

‘अच्छा आओ, इस अलाव को कूदकर पार करें। देखें, कौन निकल जाता है। अगर जल गए बच्चा, तो मैं दवा न करूंगा।’
जब्बर ने उस अग्निराशि की ओर कातर नेत्रों से देखा!

मुन्नी से कल न कह देना, नहीं तो लड़ाई करेगी।

यह कहता हुआ वह उछला और उस अलाव के ऊपर से साफ़ निकल गया। पैरों में ज़रा लपट लगी, पर वह कोई बात न थी। जबरा आग के गिर्द घूमकर उसके पास आ खड़ा हुआ।

हल्कू ने कहा, ‘चलो-चलो इसकी सही नहीं! ऊपर से कूदकर आओ।’ वह फिर कूदा और अलाव के इस पार आ गया।

भाग – 3
पत्तियां जल चुकी थीं। बगीचे में फिर अंधेरा छा गया था। राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाक़ी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर ज़रा जाग उठती थी, पर एक क्षण में फिर आंखें बंद कर लेती थी।

हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा हुआ एक गीत गुनगुनाने लगा। उसके बदन में गर्मी आ गई थी, पर ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाए लेता था।

जबरा जोर से भूंककर खेत की ओर भागा। हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुंड था। उनके कूदने-दौड़ने की आवाज़ें साफ़ कान में आ रही थीं। फिर ऐसा मालूम हुआ कि खेत में चर रही हैं। उनके चबाने की आवाज़ चर-चर सुनाई देने लगी।

उसने दिल में कहा, ‘नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। नोच ही डाले। मुझे भ्रम हो रहा है। कहां! अब तो कुछ नहीं सुनाई देता। मुझे भी कैसा धोखा हुआ!’

उसने ज़ोर से आवाज़ लगाई, ‘जबरा, जबरा।’
जबरा भूंकता रहा। उसके पास न आया।

फिर खेत के चरे जाने की आहट मिली। अब वह अपने को धोखा न दे सका। उसे अपनी जगह से हिलना ज़हर लग रहा था। कैसा दंदाया हुआ था। इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना असह्य जान पड़ा। वह अपनी जगह से न हिला।
उसने ज़ोर से आवाज़ लगाई, ‘लिहो-लिहो! लिहो!’

जबरा फिर भूंक उठा। जानवर खेत चर रहे थे। फसल तैयार है। कैसी अच्छी खेती थी, पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किए डालते हैं।

हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन क़दम चला, पर एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गर्माने लगा।

जबरा अपना गला फाड़ डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था। अकर्मण्यता ने रस्सियों की भांति उसे चारों तरफ़ से जकड़ रखा था।

उसी राख के पास गर्म ज़मीन पर वह चादर ओढ़ कर सो गया।

सबेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ़ धूप फैल गई थी और मुन्नी कह रही थी, ‘क्या आज सोते ही रहोगे? तुम यहां

आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया।’

हल्कू ने उठकर कहा, ‘क्या तू खेत से होकर आ रही है?’

मुन्नी बोली, ‘हां, सारे खेत का सत्यानाश हो गया। भला, ऐसा भी कोई सोता है। तुम्हारे यहां मड़ैया डालने से क्या हुआ?’

हल्कू ने बहाना किया, ‘मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। पेट में ऐसा दरद हुआ कि मैं ही जानता हूं!’

दोनों फिर खेत के डांड़ पर आए। देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है और जबरा मड़ैया के नीचे चित लेटा है, मानो प्राण ही न हों।

दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई थी, पर हल्कू प्रसन्न था।

मुन्नी ने चिंतित होकर कहा, ‘अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी।’

हल्कू ने प्रसन्नमुख से कहा, ‘रात को ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा।’

पटाक्षेप नहीं होगा – डा. हेतु भारद्वाज

उजाले के मुसाहिब – कहानी

परायी प्यास का सफर – कहानी || आलमशाह खान

बड़े घर की बेटी || कहानी || प्रेमचंद || प्रश्न उत्तर

जहाँ लक्ष्मी कैद है || राजेन्द्र यादव

खेल || कहानी || जैनेन्द्र कुमार

  • अज्ञेय जीवन परिचय देखें 
  • विद्यापति जीवन परिचय  देखें 
  • अमृतलाल नागर जीवन परिचय देखें 
  • रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय  देखें 
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी  जीवन परिचय देखें 
  • डॉ. नगेन्द्र  जीवन परिचय देखें 
  • भारतेन्दु जीवन परिचय देखें 
  • साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 

 

Tweet
Share
Pin
Share
0 Shares
Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

    My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register

  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

    First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF

  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

    Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game

Comments

  1. हरिसिंह गोलिया says

    19/10/2022 at 9:02 PM

    कहानी पढ़कर तंगी के दिनों की व खेत पर सर्दी में बसने की व्यथा ताजा हो गई

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Subscribe Us Now On Youtube

Search

सम्पूर्ण हिंदी साहित्य हिंदी साहित्य एप्प पर

सैकंड ग्रेड हिंदी कोर्स जॉइन करें

ट्विटर के नए सीईओ

टेलीग्राम चैनल जॉइन करें

Recent Posts

  • द्वन्द्व समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dwand samas
  • द्विगु समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Dvigu Samas
  • NTA UGC NET Hindi Paper 2022 – Download | यूजीसी नेट हिंदी हल प्रश्न पत्र
  • My 11 Circle Download – Latest Version App, Apk , Login, Register
  • First Grade Hindi Solved Paper 2022 – Answer Key, Download PDF
  • Ballebaazi App Download – Latest Version Apk, Login, Register, Fantasy Game
  • कर्मधारय समास – परिभाषा, उदाहरण, पहचान || Karmadharaya Samas
  • Rush Apk Download – Latest Version App, Login, Register
  • AJIO App Download – Latest Version Apk, Login, Register
  • अव्ययीभाव समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण || Avyayibhav Samas

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • App Review
  • General Knowledge
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • विलोम शब्द
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • संधि
  • समास
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी पाठ प्रश्नोत्तर
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

हमारा यूट्यूब चैनल देखें

Best Article

  • बेहतरीन मोटिवेशनल सुविचार
  • बेहतरीन हिंदी कहानियाँ
  • हिंदी वर्णमाला
  • हिंदी वर्णमाला चित्र सहित
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुमित्रानंदन पन्त
  • महादेवी वर्मा
  • हरिवंशराय बच्चन
  • कबीरदास
  • तुलसीदास

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay
रामधारी सिंह दिनकर – Ramdhari Singh Dinkar || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Footer

हिंदी व्याकरण

 वर्ण विचार
 संज्ञा
 सर्वनाम
 क्रिया
 वाक्य
 पर्यायवाची
 समास
 प्रत्यय
 संधि
 विशेषण
 विलोम शब्द
 काल
 विराम चिह्न
 उपसर्ग
 अव्यय
 कारक
 वाच्य
 शुद्ध वर्तनी
 रस
 अलंकार
 मुहावरे लोकोक्ति

कवि लेखक परिचय

 जयशंकर प्रसाद
 कबीर
 तुलसीदास
 सुमित्रानंदन पंत
 रामधारी सिंह दिनकर
 बिहारी
 महादेवी वर्मा
 देव
 मीराबाई
 बोधा
 आलम कवि
 धर्मवीर भारती
मतिराम
 रमणिका गुप्ता
 रामवृक्ष बेनीपुरी
 विष्णु प्रभाकर
 मन्नू भंडारी
 गजानन माधव मुक्तिबोध
 सुभद्रा कुमारी चौहान
 राहुल सांकृत्यायन
 कुंवर नारायण

कविता

 पथिक
 छाया मत छूना
 मेघ आए
 चन्द्रगहना से लौटती बेर
 पूजन
 कैदी और कोकिला
 यह दंतुरित मुस्कान
 कविता के बहाने
 बात सीधी थी पर
 कैमरे में बन्द अपाहिज
 भारत माता
 संध्या के बाद
 कार्नेलिया का गीत
 देवसेना का गीत
 भिक्षुक
 आत्मकथ्य
 बादल को घिरते देखा है
 गीत-फरोश
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us