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राम की शक्ति पूजा के भाग || निराला || Ram Ki Shakti Puja ke Bhag || हिंदी साहित्य

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:30th May, 2022| Comments: 1

आज के आर्टिकल में हम निराला कृत रचना राम की शक्ति पूजा के भागों(Ram Ki Shakti Puja ke Bhag) के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे।

राम की शक्ति पूजा के भाग

Table of Contents

  • राम की शक्ति पूजा के भाग
    • प्रथम सोपान
    • द्वितीय सोपान
    • तीसरा सोपान
    • चौथा सोपान
    • पाँचवाँ सोपान
    • महत्त्वपूर्ण लिंक :

’राम की शक्ति पूजा’(1936 ई.) निराला की एक प्रौढ़तम रचना है। इसे यदि कालजयी कृति भी कहें तो अनुचित नहीं होगा। वास्तव में अनेक प्रकार के प्रभावों से प्रेरित होकर और अपने व्यक्तिगत जीवन को निराला, हताशा और वेदना को आधार बनाते हुए ’शक्तिपूजा’ में निराला ने अपनी मौलिकता का प्रदर्शन किया है। इसका कथानक यद्यपि अत्यन्त संक्षिप्त है और उसका सम्बन्ध रामकथा से ही है, फिर भी निराला ने अपनी प्रतिभा के बल पर उसे इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि सम्पूर्ण कविता विशिष्टता की अधिकारिणी हो गयी है।

प्रथम सोपान

’राम की शक्ति पूजा’ पाँच भागों में विभक्त है। कथा का प्रथम सोपान उस बिन्दु से शुरु होता है जहाँ रवि अस्त हो जाता है और राम-रावण का युद्ध अनिर्णीत रह जाता है। इस स्थिति से राम और उनके दल के सभी लोग खित्र और उदास-मन अपने शिविर को लौटते है। कवि निराला ने राम की अवसादमयी स्थिति में सारे वातावरण को उदासी से भरे हुए रूप में चित्रित किया है- ’प्रशमित है वातावरण, शमिल मुख सांध्य-कमल’। ’राम की शक्ति पूजा’ का दूसरा सोपान उस बिन्दु से प्रारम्भ होता है जहाँ पर लंका को अमा-निशा का चित्र प्रस्तुत किया गया है।

अमा-निशा का चित्रण वातावरण-विधान की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही साथ राम की मनोदशा को व्यक्त करने में पूरी तहर समर्थ है। रात्रि की निस्तब्धता को निराला ने जिस रूप में प्रस्तुत किया है, वह इस प्रकार है-

हे अमा-निशा, उगलता, गगन घन अन्धकार,
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन-चार,
अप्रतिहत गरज रहा पीछे, अम्बुधि विशाल,
भूधर ज्यों ध्यान-मग्न, केवल जलती मशाल।
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर फिर संशय,
रह रह उठता जग जीवन में रावण जय-भय,
जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपुदम्य-श्रान्त,
एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रान्त,
कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार,
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।

द्वितीय सोपान

कथा के इस द्वितीय सोपान में राम के मन में अनेक चित्र उभरते है जिन्हें मनोवैज्ञानिक शैली में प्रस्तुत किया गया है। सीमा की स्मृति का आना और उस स्मृति के आते ही विश्व-विजय की कामना का जन्म लेना तथा परिणामस्वरूप स्मृति में ही ताड़का, सुबाहु, खर-दूषण आदि का वध भी चित्रित किया गया है। इससे स्पष्ट है कि निराला ने इस छोटी-सी घटना को बड़े मनोवैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करते हुए इस कथा-सोपान को सम्पूर्ण किया है।

तीसरा सोपान

कथा का तीसरा सोपान एक अन्तर्कथा के आयोजन से प्रारम्भ होता है। हनुमान राम के सच्चे भक्त है और वे राम को उदास नहीं देख सकते है। अतः वे ऊध्र्वगमन करते है और आकाश में जो भयानक आकृति उभरी थी, उसे निगलने के लिए तैयार हो जाते है। चारों तरफ हाहाकार मचता है, किन्तु तभी महाशक्ति अंजना का रूप धारण कर हनुमान के रोष को शांत कर देती है। यहीं पर कथा का तीसरा सोपान समाप्त हो जाता है।

चौथा सोपान

कथा का चौथा सोपान विभीषण के कथ से आरम्भ होता है। विभीषण राम को हताश, निराश और दुखी देखकर उन्हें समझाने का प्रयत्न करते है। एक प्रकार से उनके मन में नया उत्साह भरने का काम करते है। इसी क्रम में विभीषण सीता के उद्धार की स्मृति भी राम को दिलाते है। विभीषण यह भी कहते है कि ’मैं बना, किन्तु लंकापति राघव धिक् धिक!’’ इस प्रकार की पंक्तियाँ राम को प्रबोधित करने के लिए पर्याप्त सटीक प्राप्त होती है। इतना सब होने पर भी राम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाते है।

जाम्बवन्त भी राम को प्रबोधित करते है और उन्हें शक्ति-आराधना की परामर्श देते है। जाम्बवन्त राम से कहते है कि आप युद्ध की ओर से निश्चित हो जायें और ध्यानस्थ होकर साधना में जुट जायें। राम ऐसा ही करते है।

पाँचवाँ सोपान

’शक्तिपूजा’ की कथा का पाँचवाँ सोपान वहाँ से प्रारम्भ होता है जहाँ से शक्ति की साधना प्रारम्भ होती है। राम शक्ति की मौलिक कल्पना करते है और नवरात्रि का व्रत रखते है। यहाँ पर शक्ति की यह साधना योगियों की साधना की भाँति सम्पन्न हुई है। उनकी (राम की) चेतना ऊध्र्वगमन करती हुई जैसे ही सिद्धि के द्वार पर पहुँचती है, वैसे ही महाशक्ति छिपकर बचे हुए एक नीलकमल को उठाकर अन्तर्धान हो जाती है। राम तो ध्यानमग्न है, अतः इस दृश्य को देख नहीं पाते है, किन्तु जैसे ही वे अन्तिम नीलकमल चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ाते है जो उनके हाथ कुछ नहीं आता है।

वे सोचते है कि यदि में साधना-स्थल से उठता हूँ तो साधना नष्ट होती है। ऐसी स्थिति में क्या किया जाये ? तभी उन्हें अचानक याद आता है कि बचपन में माता मुझे कमल-नयन कहती थी। अतः मैं अपना एक नेत्र निकालकर ही यहाँ चढ़ा देता हूँ। इस स्थिति को देखकर दुर्गा माँ प्रकट हो जाती है और राम को विजय का आर्शीवाद देती है। इस प्रकार कथा के पाँचों सोपान पूरे हो जाते है।

Ram Ki Shakti Puja ke Bhag

महत्त्वपूर्ण लिंक :

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🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

  • साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 
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Comments

  1. निज़ाम राम says

    24/08/2021 at 4:48 PM

    धन्यवाद सर

    Reply

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