श्रीधर पाठक – Shridhar Pathak Ka Jivan Parichay

आज के आर्टिकल में हम द्विवेदी युग के प्रमुख लेखक श्रीधर पाठक(Shridhar Pathak) के जीवन परिचय को पढेंगे।

श्रीधर पाठक – Shridhar Pathak

श्रीधर पाठक

  • जन्म – 1859 ई.
  • जन्मस्थान – ग्राम जोंधरी, जिला-आगरा (उत्तरप्रदेश)
  • मृत्यु – 1928 ई.

प्रमुख रचनाएँ-

(क) प्रबन्धात्मक काव्य (अनूदित)

  • एकान्तवासी योगी- 1886 ई. (अंग्रेजी साहित्य के ’गोल्डस्मिथ’ द्वारा रचित ’हरमिट’ का हिन्दी अनुवाद), खड़ी बोली।
  • ऊजड़ ग्राम- 1889 ई. (अंग्रेजी साहित्य के ’गोल्डस्मिथ’ द्वारा रचित ’डेजर्टिड विलेज’ का अनुवाद), ब्रज भाषा
  • श्रान्त पथिक- 1902 ई. (अंग्रेजी साहित्य के ’गोल्डस्मिथ’ द्वारा रचित ’ट्रेवलर’ का हिन्दी अनुवाद), खड़ी बोली।
  • ऋतुसंहार (संस्कृत के ’कालिदास’ की नाट्य रचना का अनुवाद), प्रथम तीन सर्ग ब्रजभाषा में।

(ख) मौलिक प्रबंधात्मक रचनाएँ-

  • जगत सच्चाई सार – 1887 ई.
  • काश्मीर सुषमा – 1904 ई.
  • आराध्य-शोकाजंलि- 1906 ई.
  • जार्ज वंदना – 1912 ई.
  • भक्ति-विभा – 1913 ई.
  • गोखले प्रशस्ति – 1915 ई.
  • देहरादून – 1915 ई.
  • गोपिका गीत – 1916 ई.
  • भारत-गीत – 1928 ई.
  • मनोविनोद – 1882 ई.
  • वनाष्टक
  • बालविधवा
  • भारतोत्थान
  • भारत-प्रशंसा
  • गुनवंत हेमंत- 1900 ई.
  • स्वर्गीय-वीणा

नोटः- 1. ’जगत सचाई सार’ सधुक्कड़ी’ ढंग पर लिखा गया है।
यथा-’’जगत है सच्चा, तनिक न कच्चा, समझो बच्चा इसका भेद।’’ यह इक्यावन पदों की एक लम्बी कविता है।
2. ’स्वर्गीय वीणा’ के परोक्ष सत्ता के रहस्य संकेत मिलते है।
3. ’श्रांत पथिक’ रचना में ’रोला’ छंद का प्रयोग हुआ है।

श्रीधर पाठक की प्रमुख पंक्तियाँ

इस भारत में बन पावन तू ही, तपस्वियों का तप-आश्रम था।
जगतत्व की खोज में लग्न जहाँ, ऋषियों ने अभग्न किया श्रम था।

विजन वन प्रान्त था, प्रकृतिमुख शान्त था
अटन का समय था, रजिन का उदय था।

लिखो न करो लेखनी बंद। श्रीधर सम कवि स्वच्छन्द।

नाना कृपान निज पानि लिए, वपु नील वसन परिधार किए।
गंभीर धोर अभिमान हिए, छकि पारिजात मधुपान किए।

निज भाषा बोलहु लिखहु पढ़हुँ गुनहुँ सब लोग।
करहुँ सकल विषयन विषैं निज भाषा उपजोग।।

विशेष तथ्य-

  • हिन्दी साहित्य के सौभाग्य से श्रीधर पाठक जी भारतेन्दु हरिश्चंद्र एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी दोनों के समकालीन रहे, जिससे उन्होंने ’ब्रज’ एवं ’खड़ी बोली’ दोनों
  • भाषाओं में अपनी प्रतिभा का उपयोग किया।
  • इनके द्वारा रचित मनोविनोद, उजड़ ग्राम, काश्मीर सुषमा आदि रचनाओं में इन्होंने ’ब्रज’ भाषा का सफल प्रयोग किया है।
  • इनके द्वारा ’खड़ी बोली आन्दोलन’ को सफल बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी गयी थी।
  • अपने समय के कवियों में प्रकृति का वर्णन पाठकजी ने सबसे अधिक किया, इससे हिन्दी प्रेमियों में ये ’प्रकृति के उपासक कवि’ नाम से प्रसिद्ध है।
  • विषय, भाव एवं शैली तीनों क्षेत्रों में पाठकजी ने निस्सन्देह अपनी मौलिकता का परिचय दिया था।
  • ’गाँव’ को काव्यवस्तु के रूप में लाने का श्रेय पाठकजी को दिया जाता है।
  • आचार्य शुक्ल के अनुसार आधुनिक खड़ी बोली पद्य की पहली पुस्तक ’ एकांतवासी योगी’ मानी जाती है, जो लावनी या ख्याल के ढंग पर लिखी गई थी।
  • ये आधुनिक खड़ी बोली के प्रथम कवि माने जाते है।
  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पाँचवे अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और कवि भूषण की उपाधि से सम्मानित किए गए।

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