आज के आर्टिकल में हम हिंदी लेखक बदरी नारायण चौधरी ’प्रेमघन’ (Badri Narayan Chaudhary Premghan) से जुड़ी जानकारी पढेंगे।
जीवनकाल – 1855-1923
जन्म स्थल – मिर्जापुर
उपनाम – ’अब्र’ – उर्दू लेखन
पत्रिकाएँ –
- आनंद कादंबिनी (1881) – मिर्जापुर से मासिक
- नागरी नीरद (1893) – मिर्जापुर से साप्ताहिक
- शुक्ल जी ने ’आनंद कादंबिनी’ से हिन्दी पुस्तकीय आलोचना का सूत्रपात माना।
बदरी नारायण चौधरी ’प्रेमघन’ के काव्य –
Table of Contents
- जीर्ण जनपद
- आनंद अरुणोदय
- हार्दिक हर्षादर्श
- मयंक महिमा
- अलौकिक लीला
- वर्षाबिंदु
- लालित्य लहरी
- बृजचंद पंचक
- युगल स्रोत
- पितर प्रताप
- होली की नकल
- प्रेम पीयूष वर्षा
- मन की मौज
- मंगलाशा
- हास्य बिंदु
- भारत बधाई
- स्वागत सभा
- आर्याभिनंदन
- सूर्यस्त्रोत
नाटक –
भारत सौभाग्य (1888), प्रयाग रामागमन, वीरांगना रहस्यमहानाटक (वेश्या विनोद महानाटक) – अपूर्ण।
निबंध –
- बनारस का बुढ़वा मंगल
- दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार
आलोचना –
संयोगितास्वयंवर एवं बंगविजेता की आलोचना आनंद कादंबिनी में प्रकाशित हुई।
विशेष – दादाभाई नौरोजी को लंदन में काला कहने पर इन्होंने कहा कि –
अचरज होत तुमहुँ राम गोरे बाजत कारे,
तासों कारे ’कारे’ शब्द हुँ पर हैं वारे।
कारे कृष्ण, राम जलधर जल बरसनवारे,
कारे लागत ताहीं सों कारन कौं प्यारे।
बदरी नारायण चौधरी ’प्रेमघन’ काव्य की प्रमुख पंक्तियाँ –
- धन्य भूमि भारत सब रतननि की उपजावनि।
- बगियान बसंत बसेरो कियो, बसिए तेहि त्यागि तपाइए ना।
- निरथन दिन-दिन होत है, भारत भुव सब भाँति।
- भयो भूमि भारत में, महा भयंकर भारत।