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द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्तियां || आधुनिक काल || Hindi sahiya

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:3rd Aug, 2019| Comments: 0

दोस्तो आज की पोस्ट में हम आधुनिककाल के अंतर्गत द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्तियां पढेंगे ,जिससे हमें इस काल की प्रमुख काव्य प्रवृत्तियों का ज्ञान होगा |

द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्तियां

Table of Contents

  • द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्तियां
    • 1. राष्ट्रीयता की भावना-
    • 2. इतिवृत्तात्मकता –
    • 3. नैतिकता एवं आदर्शवाद –
    • 4. प्रकृति चित्रण –
      • 5. सामाजिक समस्याओं का चित्रण –
      • 6. अनूदित रचनाएं –
      • 7. काव्य रूपों की विविधता –
      • 8. काव्य भाषा के रूप में खङी बोली का प्रयोग –
      • 9. छन्दों की विविधता –
      • 10. द्विवेदी युग का महत्व –

द्विवेदी युग की प्रमुख काव्य प्रवृत्तियां इस प्रकार है-

1. राष्ट्रीयता की भावना-

द्विवेदी युग में  देशप्रेम, अतीत गौरव, स्वदेशाभिमान की अभिव्यक्ति हुई है।

2. इतिवृत्तात्मकता –

 इस युग में प्रबन्ध रचना ज्यादा लिखी गई है। खण्डकाव्य एंव महाकाव्य अधिक लिखे गए, मुक्तक रचना की प्रवृत्ति कम है। प्रियप्रवास एंव साकेत इस युग के प्रमुख महाकाव्य हैं।

3. नैतिकता एवं आदर्शवाद –

श्रृंगार भावना का विरोध हुआ। नैतिक मूल्यों पर बल दिया गया। द्विवेदी युग का काव्य आदर्शवाद से अनुप्राणित है।

4. प्रकृति चित्रण –

श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी जैसे कवियों ने प्रकृति के रम्य रूप का चित्रण अपनी रचनाओं में किया।

5. सामाजिक समस्याओं का चित्रण –

छुआछूत, दहेज प्रथा, बाल विवाह, नारी की दयनीय स्थिति को काव्य का विषय बनाया गया।

6. अनूदित रचनाएं –

इस काल में मौलिक रचनाओं के साथ-साथ अनूदित रचनाएं भी लिखी गई। विशेषतः संस्कृत, बंगला एवं अंग्रेजी की श्रेष्ठ रचनाओं के अनुवाद कवियों ने प्रस्तुत किए।

7. काव्य रूपों की विविधता –

एक ओर तो महाकाव्य लिखे गए दूसरी ओर खण्डकाव्य लिखकर प्रबन्ध रचना की प्रवृत्ति का परिचय दिया गया। प्रगति मुक्तकों को प्रारम्भ भी इस काल मे हो गया था।

8. काव्य भाषा के रूप में खङी बोली का प्रयोग –

द्विवेदी युग में खङी बोली हिन्दी का प्रयोग ब्रजभाषा के स्थान पर काव्य भाषा के रूप में किया गया।

9. छन्दों की विविधता –

काव्य में प्राचीन छन्दों -दोहा, चैपाई, रोला, सवैया, कुण्डलिया के साथ-साथ संस्कृत वर्णवृत्तों, हरिगीतिका, उपेन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, शार्दूल विक्रीङित, ताटक, आदि का प्रयोग भी किया गया।

10. द्विवेदी युग का महत्व –

हिन्दी कविता को प्राचीन रूढिबद्धता से पृथ्क करने में इस युग के कवियों का विशेष योगदान है। काव्य भाषा के रूप में खङी बोली हिन्दी को प्रतिष्ठित किया गया तथा गद्य क्षेत्र में भाषा का परिष्कार कर उसे व्याकरण सम्मत बनाया गया। हिन्दी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जङता से प्रगति और रूढिवादिता से स्वच्छन्दता की ओर ले जाने में इन कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

द्विवेदी युग की महती उवलब्धि है-मैथिलीशरण गुप्त कृत ’साकेत’ महाकाव्य और अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ कृत ’प्रियप्रवास’ नामक महाकाव्य। ब्रजभाषा के सुकवि बाबू जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ का ’उद्धव शतक’ भी इस युग की एक महत्वपूर्ण काव्य कृति मानी जा सकती है।

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