लल्लूलाल || हिंदी लेखक || Hindi Sahitya

लल्लूलाल

लल्लूलाल (1763-1835)

⇒ आगरा निवासी गुजराती औदीच्य ब्राह्मण लल्लूलाल की नियुक्ति 1800 ई. में फोर्ट विलियम काॅलेज में ’भाखा मुंशी’ के पद पर हिंदी-ग्रंथ रचना के लिए हुई थी। ’काजम अली जवां’ और ’मजहर अली विला’ इनके 2 सहायक थे।

महत्त्वपूर्ण रचनाएँ(लल्लूलाल)

1. सिंहासन बत्तीसी – सुंदरदास कविकृत ब्रजभाषा-ग्रंथ का खङीबोली में अनुवाद, 1799 ई.

2. बैताल पचीसी – शिवदास कविकृत संस्कृत बैताल पंचविंशतिका का सूरति मिश्र ने ब्रजभाषा में अनुवाद किया था। इसी का लल्लूलाल ने काजिम अली जवाँ के साथ मिलकर खङीबोली में रूपांतर किया। इसकी भाषा को रेख्ता कहा गया। यह रेख्ता गिलक्राइस्ट की हिन्दोस्तानी है।

3. शकुंतला नाटक (1802 ई.) – माधोनल (मोतीराम कृत ब्रजभाषा पुस्तक) का खङी बोली में अनुवाद, 1798 ई.।

4. प्रेमसागर या नागरी दशम – 1510 ई. में चतुर्भुजदास ने ब्रजभाषा में दोहा-चैपाइयों में ’भागवत’ दशम स्कंध का अनुवाद किया था। इसी के आधार पर लल्लूलाल ने ’प्रेमसागर’ की रचना 1803 ई. में की थी।

5. अन्य रचनाएँ – 1. राजनीति (ब्रजभाषा में,1809), 2. सभा विलास (1813 ई.), 3. माधव विलास (1817 ई.) 4. लाल चंद्रिका नाम से बिहारी-सतसई की टीका।

प्रमुख तथ्य (लल्लूलाल)

⇒ इन्होंने संस्कृत प्रेस की स्थापना (कलकत्ता, फिर आगरा में) की थी।
⇔ लल्लूलाल उर्दू को ’यामिनी भाषा’ कहते थे। प्रेमसागर की रचना करते वक्त इन्होंने यामिनी भाषा छोङने की ओर संकेत किया था।
⇒ लल्लूलाल ने ’बजुवान इ रेख्ता’ शब्द का प्रयोग ’लताइफ ए हिंदी’ के लिए किया था।
⇔ लल्लू लाल की भाषा कृष्णोपासक व्यासों की सी ब्रजरंजित खङीबोली है। लल्लूलाल की काव्यभाषा गद्य भक्तों की कथावात्र्ता के काम का ही अधिकतर है, न नित्य व्यवहार के अनुकूल है न सम्बद्ध विचारधारा के योग्य। – रामचंद्र शुक्ल

⇒ लल्लू लाल विरचित राजनीति, माधव विलास तथा लालचंद्रिका ये 3 रचनाएँ ब्रजभाषा गद्य में रचित है जबकि शेष 8 रचनाएँ (सिंहासन बत्तीसी, 1799) बैताल पच्चीसी (1801), माधोनल (1801), शकुंतला नाटक (1810), प्रेमसागर (1810), लतायक-इ-हिंदी (1810), ब्रजभाषा व्याकरण (1811), सभा विलास (1815), खङीबोली हिंदी गद्य में रचित रचनाएँ हैं।

⇔ इनकी राजनीति (1802) शीर्षक कृति हितोपदेश की कहानियों से संबंधित ब्रजभाषा गद्य में अनूदित रचना है। माधव विलास ब्रजभाषा में रचित चंपू काव्य है। लालचंद्रिका बिहारी-सतसई की टीका है। ’लतायफ-इ-हिंदी’ खङीबोली, ब्रज और हिंदुस्तानी की 100 लघु कथाओं का संग्रह है।

⇒ ’ब्रजभाषा व्याकरण’ ही इनकी मौलिक रचना है।

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