• मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • कहानियाँ
  • हिंदी व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • हिंदी कविता
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • हिंदी लेख
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

संस्मरण क्या है -हिंदी साहित्य का इतिहास

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:25th Mar, 2020| Comments: 0

संस्मरण- अर्थ और स्वरूप- व्युत्पत्ति की दृष्टि से संस्मरण शब्द ’स्मृ’ धातु में सम् उपसर्ग एवं ल्युट् प्रत्यय लगने से बना है। इस प्रकार संस्मरण का शाब्दिक अर्थ है सम्यक् स्मरण। सम्यक् का अर्थ है पूर्णरूपेण। इस प्रकार संस्मरण का शाब्दिक अर्थ है किसी व्यक्ति, घटना, दृश्य, वस्तु आदि का आत्मीयता और गम्भीरतापूर्वक रचे गये इतिवृत्त अथवा वर्णन ही संस्मरण कहलाते है।

संस्मरण क्या है

लेखक अपने निजी अनुभवों को कभी किसी व्यक्ति के माध्यम से व्यक्त करता है तो कभी घटना, वस्तु या क्रियाकलाप के माध्यम से। ये घटनाएँ एवं क्रिया-व्यापार कभी किसी महान व्यक्ति के साथ जुङे होते हैं या कभी किसी सामान्य व्यक्ति के साथ।

ये घटनाएँ चाहे जिसके साथ क्यों न जुङी हों, किन्तु लेखक सदैव उनके माध्यम से ऐसे मानव गुणों को तलाशता रहता है जो मनुष्य को जङ एवं यांत्रिक बनने से रोकते हैं, जो हमारे जीवन के सामने एक अनुकरणीय एवं महनीय आदर्श प्रस्तुत करते है।

संस्मरण एक अत्यन्त लचीली साहित्य-विधा है। इसके अनेक गुण साहित्य की अन्य अनेक विधाओं में भी रचे-बसे है। इसका एक स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि इसे तथा रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि अन्य साहित्य रूपों को प्रायः एक ही समझा जाता रहा है। हिन्दी साहित्य का इतिहास में संस्मरण और रेखाचित्र को प्रायः एक-दूसरे के साथ जोङकर देखने की प्रवृत्ति रही है।


इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि जिन रचनाओं को रेखाचित्र की संज्ञा दी गयी है, उनमें से अधिकांश ऐसी हैं जो केवल संस्मरण की संज्ञा पाने की अधिकारिणी है।

संस्मरण तथा रेखाचित्रों में साम्य की अपेक्षा वैषम्य अधिक है। इन दोनों विधाओं में प्रथम अन्तर तो यही है कि संस्मरण केवल अतीत का ही हो सकता है जबकि रेखाचित्र के संदर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता है- वह वर्तमान का भी हो सकता है और यदि सर्जक के अन्तर्मन में भविष्य का कोई निभ्रांत चित्र हो तो वह उसे भी रेखाओं में समेट सकता है।

Sansmaran Kya Hai

Table of Contents

  • Sansmaran Kya Hai
  • Sansmaran Kya Hai
  • संस्मरणः परिभाषाएँ-
  •  अन्य  परिभाषाएँ
  • संस्मरण की विशेषताएँ
    • वैयक्तिकता-
  • Sansmaran Kya Hai
    • जीवन के खण्ड विशेष का चित्र-
    • कथात्मकता-
    • चित्रोपमता-
    • निष्कर्ष-

दूसरा अन्तर यह है कि रेखाचित्र में बाहरी गठन के निरूपण पर अधिक बल होता है जबकि संस्मरण में आन्तरिक विशेषताओं के उद्घाटन की ओर दृष्टि केन्द्रित होती है।

संस्मरण केवल उसी व्यक्ति अथवा घटना आदि पर लिखा जा सकता है जिसके साथ हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध रहा है। जब किसी वस्तु, घटना या व्यक्ति आदि से सम्बन्ध स्मृतियों पर से समय की धूल सहसा हट जाती है और अतीत के सभी चित्र साकार होकर इस रूप में हमारे सामने आते हैं कि हम उन्हें लिपिबद्ध करने के लिए बाध्य हो उठते है, तब जिस साहित्य रूप की सृष्टि होती है, उसे संस्मरण कहते है।

दूसरे शब्दों में संस्मरणों में भावात्मकता का बाहुल्य होता है। इसके विपरीत रेखाचित्र में तटस्थता पर बल रहता है।

सच तो यह है कि तटस्थता तथा निर्वैयक्तिक अंकन रेखाचित्र की पहली अनिवार्य शर्त है जबकि संस्मरण न तो तटस्थ हो सकते है और न निर्वैयक्तिक।
रेखाचित्र और संस्मरण में एक अन्य अन्तर यह है कि रेखाचित्र का लेखन समास शैली का प्रश्रय लेता है जबकि संस्मरण-लेखक अपनी रचना व्यास शैली में करता है। रेखाचित्रकार की प्रवृत्ति प्रायः गागर में सागर भरने की होती है। इस कारण वह कथात्मक प्रसंगों से यथासम्भव बचता हुआ चलता है। इसके विपरीत व्यास शैली में लिखे जाने के कारण वह कथात्मक प्रसंगों में कथात्मक प्रसंगों का भरपूर उपयोग किया जाता है।

Sansmaran Kya Hai

संस्मरण में कल्पना का खेल खेलने की कोई गुंजाइश नहीं होती है। लेखक केवल उन्हीं घटनाओं या प्रसंगों को निबद्ध करने का प्रयास करता है जो वास्तव में घट चुकी हैं अन्यथा उस पर झूठ बोलकर पाठकों को गुमराह करने का आरोप लगाया जा सकता है। उसकी रचना सर्वथा अप्रामाणिक घोषित की जा सकती है, लेकिन रेखाचित्र इन सारे बंधनों से सर्वथा मुक्त है।

संस्मरणों में एक सीमा तक लेखक का निजी व्यक्तित्व भी समाविष्ट हो जाता है। उसकी अपनी रुचि-अरुचि, राग-द्वेष, आदि विभिन्न प्रतिक्रियाओं और टिप्पणियों के माध्यम से व्यक्त होती चलती है जबकि रेखाचित्र में इन सबके लिए कोई अवकाश नहीं है।

संस्मरणः परिभाषाएँ-

आधुनिक गद्य साहित्य में संस्मरण साहित्य का अपना एक विशिष्ट स्थान है। संस्मरण शब्द की व्युत्पति स्मृ धातु में सम् उपसर्ग तथा ल्युट प्रत्यय लगने से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है सम्यक् रूप से स्मरण करना। भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने संस्मरण शब्द को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। आगे यहाँ कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ दी जा रही है-

(1) डाॅ. गोविन्द त्रिगुणायत के अनुसार, ’’भावुक कलाकार जब अतीत की अनन्त स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अनुरंजित कर व्यंजनामूलक शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से विशिष्ट कर रोचक ढंग से यथार्थ रूप से प्रस्तुत कर देता है, तब उसे संस्मरण कहते हैं।’’

(2) बाबू गुलाबराय संस्मरण के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखते है कि ’’ वे (संस्मरण) प्रायः घटनात्मक होते हैं, किन्तु वे घटनाएँ सत्य होती है और साथ ही चरित्र की परिचायक भी उनमें थोङा सा चटपटेपन का भी आकर्षण होता है। संस्मरण चरित्र के किसी एक पहलू की झाँकी देते है।’’

 अन्य  परिभाषाएँ

(3) डाॅ. शान्ति खन्ना के अनुसार, ’’जब लेखक अतीत की अनन्त स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अनुरंजित कर व्यंजनामूलक संकेत शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से विशिष्ट कर रमणीय एवं प्रभावशाली रूप से वर्णन करता है, तब उसे संस्मरण कहते है।’’

(4) डाॅ. शिवप्रसाद सिंह ने संस्मरण की व्याख्या नये ढंग से की है ’’संस्मरण ललित निबन्ध का बहुत ही लोकप्रिय प्रकार है। बीते काल और घटना को बार-बार दुहाकर न सिर्फ मनुष्य संतोष पाता है, बल्कि वह अपने वातावरण में घटित समसामयिकता की अतीत के चित्रों से तुलना करके अपने को जाँचता-बदलता रहता है। संस्मरणात्मक निबन्ध मुख्य तथा महान व्यक्तियों के सानिध्य में अपने को तथा समाज को रखकर देखने की नई दृष्टि देते है।’’

संस्मरण की विशेषताएँ

संस्मरण से मिलती-जुलती विविध विधाओं के साम्य-वैषम्य, विष्ज्ञय अध्ययन उपलब्ध संस्मरण साहित्य का चिन्तन-मनन करने के बाद इस विधा के अनेक महत्वपूर्ण विशेषताएँ यथा वैयक्तिकता, जीवन के खण्ड विशेष का चित्रण, सत्यकथा का निरूपण, चित्रोपमता आदि सहज ही मुखर हो उठती है। ये विशेषताएँ ही इस साहित्य रूप के विधायक उपकरण है।

वैयक्तिकता-

चूँकि संस्मरण में लेखक अपने जीवन के किसी ऐसे प्रसंग, ऐसी घटना को निबद्ध करता है जिसे भूल नहीं पाता और जो समय की पर्याप्त धूल जम जाने के बाद भी ताजी बनी रहती है अतएव इसका पहली महत्वपूर्ण उपकरण तो वैयक्तिकता ही माना जाना चाहिए।

हिन्दी के सभी संस्मरण लेखकों ने यह स्वीकार किया है कि उनके स्मृति चित्रों में उनके जीवन-सूत्र भी अनुस्यूत है। उदाहरण के लिए महादेवी वर्मा ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि ’’इस स्मृतियों में मेरा जीवन भी आ गया है। यह स्वाभाविक भी था।

अंधेरे की वस्तुओं को हम अपने प्रकाश की धुंधली या उजली परिधि में लाकर ही देख पाते है। उनके बाहर तो वे अनन्त अंधकार के अंश है। मेरे जीवन की परिधि के भीतर खङे होकर चरित्र जैसा परिचय देे पाते हैं, वह बाहर रूपान्तरित हो जायेगा।

फिर जिस परिचय के लिए कहानीकार अपने कल्पित पात्रों को वास्तविकता से सजाकर निकट लाता है, उसी परिचय के लिए मैं अपने पथ के साथियों को कल्पना का परिधान पहनाकर भूरी-सी सृष्टि क्यों करती।

Sansmaran Kya Hai

परन्तु मेरा निकटताजनित आत्मविज्ञान उस राख से अधिक महत्व नहीं रखता जो आग को बहुत समय तक सजीव रखने के लिए ही अंगारों को घेरे रहती है। जो इसके परे नहीं देख सकता, वह इन चित्रों के हृदय तक नहीं पहुँच सकता।’’

इसी प्रकार से रामवृक्ष बेनीपुरी ने भी ’माटी की मूरतें’ नामक पुस्तक में इसी ओर संकेत किया है। उनके अपने शब्दों में, ’’हजारीबाग सेन्ट्रल जेल के एकान्त जीवन में अचानक मेरे गाँव और मेरे ननिहाल के कुछ लोगों की मूरतें मेरी आँखों के सामने आकर नाचने और मेरी कलम से चित्रण की याचना करने लगी।

उनकी इस याचना में कुछ ऐसा जोर था कि अन्ततः यह ’माटी की मूरतें’ तैयार होकर रही। हाँ, जेल में रहने के कारण बेजमासा भी इनकी पाँत में आ बैठे और अपनी मूरत मुझसे गढ़वा ली।’’ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वैयक्तिकता संस्मरण का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

जीवन के खण्ड विशेष का चित्र-

संस्मरण में लेखक अपने जीवन के किसी प्रसंग, घटना या अपने सम्पर्क में आये हुए व्यक्ति विशेष के किसी महत्वपूर्ण पक्ष की झाँकी प्रस्तुत करता है। दूसरे शब्दों में वह सम्पूर्ण जीवन को नहीं, अपितु जीवन के किसी एक खण्ड विशेष को कथ्य के रूप में प्रस्तुत करता है- हाँ, यह अवश्य है कि यह खण्ड विशेष न केवल स्वतः पूर्ण होता है, अपितु महत्वपूर्ण भी होता है।

इसके द्वारा जहाँ एक ओर व्यक्ति विशेष का वैशिष्ट्य साकार हो उठता है, वहाँ दूसरी ओर उन परिस्थितियों का बोध भी होता है जिनके मध्य संस्मण्र्य अपनी जीवन-नौका खेता है। इन परिस्थितियों की जानकारी हाने पर हम उस काल विशेष का एक प्रामाणिक सामाजिक इतिहास तैयार कर सकते है।

कथात्मकता-

संस्मरण एक कथात्मक साहित्य रूप है, लेकिन संस्मरण में अनुस्यूत कथा काल्पनिक न होकर सत्यकथा होती है। परिणामतः यह सहज ही विश्वसनीय होती है। किसी शंका अथवा अविश्वास को यहाँ कोई स्थान नहीं है। यद्यपि इस साहित्य-रूप का ताना-बाना वैयक्तिक जीवन की घटनाओं से बुना जाता है, किन्तु फिर भी ये रचनाएँ पाठक के साथ सहज ही तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित कर लेती है।

इसका कारण यह है कि इन रचनाओं में जीवन के ऐसे कटु-मधुर, देखे-अनदेखे पक्षों को स्थान दिया जाता है जिनके जानने की इच्छा सभी व्यक्तियों में होती है- वैसे भी किसी दूसरे की अन्तरंग बातें जान लेने के लिए कौन उत्सुक नहीं होता रहा।

चित्रोपमता-

यद्यपि चित्रोपमता संस्मरण साहित्य का अनिवार्य विधायक उपकरण है, किन्तु यह हिन्दी संस्मरणों की एक ऐसी विशेषता है जिसके फलस्वरूप संस्मरणों को प्रायः रेखाचित्र कहा जाता रहा है।

चित्रोपमता से अभिप्राय है लेखक का अपने प्रतिपाद्य को इस प्रकार प्रस्तुत करना कि उसका वैसा ही स्पष्ट चित्र पाठक के सामने साक्षात् हो उठे जैसा चित्रकार अथवा फोटोग्राफर बना देता है कि लेकिन जिस प्रकार अच्छा चित्र बनाने एवं खींचने के लिए चित्रकार या फोटोग्राफर का बहुत कुशल होना आवश्यक है, उसी प्रकार संस्मरणों में चित्रोपमता के गुण का समावेश होने के लिए लेखक में कतिपय गुणों का होना भी आवश्यक होता है।

जिस प्रकार चित्रकार हर आङी-तिरछी रेखा को बहुत सोच-विचार कर खींचता है, उसी प्रकार संस्मरण लेखक भी अपने संस्मण्र्य का प्रत्यंकन करते समय प्रत्येक शब्द को चुन-चुनकर रखता है। ऐसा तभी सम्भव है जब लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो। इसके अलावा लेखक का अत्यधिक संवेदनशील एवं भावुकतापूर्ण होना भी जरूरी है।

संवेदनशीलता की अधिकता होने पर लेखक के मन में सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति तथा जीवन में घटित महत्वपूर्ण क्षण विशेष का खाका स्वतः निर्मित होता चला जाता है और जब वह उसे शब्दबद्ध करने बैठता है, तब चित्रोपमता का गुण स्वतः ही आ जाता है।

निष्कर्ष-

इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्मरण-लेखन प्रमुखतः दो रूपों में प्राप्त होता है- इसका एक रूप तो वह है जिसमें लेखक दूसरों के बारे में लिखता है और दूसरा वह जिसमें वह स्वयं अपने बारे में लिखता है। पहले प्रकार के लेखन को रेमिनिसेंस कहते हैं और दूसरे प्रकार के लेखन को मेमोयर। यद्यपि मेमोयर में लेखक अपने बारे में लिखता है, किन्तु यह साहित्यिक आत्मकथा से सर्वथा भिन्न है। यह भिन्नता आकारगत न होकर तत्वगत है।

आत्मकथा में लेखक स्वयं को केन्द्र में रखकर पूरे परिवेश को यानी स्थितियों और व्यक्तियों को देखता है जबकि मेमोयर में संस्मरण को केन्द्र में रखता है और स्वयं उसके आलोक में उद्भासित होता है। इस प्रकार यहीं उनकी अपनी स्थिति गौण हो जाती है, मुख्यतता प्राप्त होती है सम्पर्क में आए व्यक्तियों को। संक्षेप में, यही संस्मरण का स्वरूप है।

महत्त्वपूर्ण लिंक :

सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      🔷कारक 

🔹क्रिया    🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  🔷 समास(हिंदी व्याकरण) 

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷  हिंदी मुहावरे 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

  • साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 
  • Net Jrf मूल कहानियाँ पढ़ें 

 

Tweet
Share26
Pin
Share
26 Shares
केवल कृष्ण घोड़ेला

Published By: केवल कृष्ण घोड़ेला

आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है l यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी l हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है l और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है l धन्यवाद !

Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

    रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas

    सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Hindi Sahitya PDF Notes

Search

Recent Posts

  • अनुप्रास अलंकार – अर्थ | परिभाषा | उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
  • रेवा तट – पृथ्वीराज रासो || महत्त्वपूर्ण व्याख्या सहित
  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi
  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas
  • उजाले के मुसाहिब – कहानी || विजयदान देथा
  • परायी प्यास का सफर – कहानी || आलमशाह खान
  • हिन्दी उपन्यास – Hindi Upanyas – हिंदी साहित्य का गद्य
  • HPPSC LT GRADE HINDI SOLVED PAPER 2020

Join us

हिंदी साहित्य चैनल (telegram)
हिंदी साहित्य चैनल (telegram)

हिंदी साहित्य चैनल

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

Footer

Keval Krishan Ghorela

Keval Krishan Ghorela
आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है. यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी. हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है. और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है. धन्यवाद !

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
Tulsidas ka jeevan parichay || तुलसीदास का जीवन परिचय || hindi sahitya
Ramdhari Singh Dinkar || रामधारी सिंह दिनकर || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

जीवन परिचय

  1. मैथिलीशरण गुप्त
  2. सुमित्रानंदन पन्त
  3. महादेवी वर्मा
  4. हरिवंशराय बच्चन
  5. कबीरदास
  6. तुलसीदास

Popular Pages

हिंदी साहित्य का इतिहास-Hindi Sahitya ka Itihas
Premchand Stories Hindi || प्रेमचंद की कहानियाँ || pdf || hindi sahitya
Hindi PDF Notes || hindi sahitya ka itihas pdf
रीतिकाल हिंदी साहित्य ट्रिक्स || Hindi sahitya
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us