• मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • कहानियाँ
  • हिंदी व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • हिंदी कविता
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • हिंदी लेख
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • 🏠 मुख्यपृष्ठ
  • पीडीऍफ़ नोट्स
  • साहित्य वीडियो
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

hindi sahitya || hindi kahani#सिक्का बदल गया#कहानी #sikka badal gaya# krishna sobti

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:9th Jun, 2020| Comments: 0

कहानी – सिक्का बदल गया(hindi kahani) कृष्णा सोबती(krishana sobti)||hindi sahitya

दोस्तो आज हम कृष्णा सोबती जी की कहानी सिक्का बदल गया पढ़ रहें है | ‘सिक्का बदल गया’ एक विधवा नारी की पराधीनता तथा विवशता एवं शोषित वर्ग के बदलते सामाजिक मानदंडों का सफल चित्रण है। प्रस्तुत कहानी देश विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखी गई है। सत्ता परिवर्तन मानव को नहीं देखता, देखता है तो केवल सिक्के को।

चलिए अब मूल कहानी पढ़ें ⇓⇓

खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुँची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपङे उतारकर एक ओर रक्खे और ’श्रीराम, श्रीराम’ करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया, अपनी उनीदी आँखों पर छींटे दिये और पानी से लिपट गयी।
चनाब का पानी आज भी पहले-सा ही सर्द था, लहरें लहरों को चूम रही थीं। वह दूर सामने काश्मीर की पहाङियों से बर्फ पिघल रही थी। उछल-उछल आते पानी के भंवरों से टकराकर कगारे गिर रहे थे लेकिन दूर-दूर तक बिछी रेत आज न जाने क्यों खामोश लगती थी। शाहनी ने कपङे पहने, इधर-उधर देखा, कहीं किसी की परछाई तक न थी। पर नीचे रेत में अगणित पाँवों में निशान थे। वह कुछ सहम-सी उठी।
आज इस प्रभात की मीठी नीरवता में न जाने क्यों कुछ भयावना-सा लग रहा है। वह पिछले पचास वर्षों से यहाँ नहाती आ रही है। कितना लम्बा अरसा है! शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दुनिया के किनारे वह दुलहिन बनकर उतरी थी। और आज…… आज शाहजी नहीं, उसका वह पढ़ा-लिखा लङका नहीं, आज वह अकेली है, शाहजी की लम्बी-चैङी हवेली में अकेली है। पर नहीं यह क्या सोच रही है वह सवेरे-सवेरे! अभी भी दुनियादारी से मन नहीं फिरा उसका! शाहनी ने लम्बी सांस ली और ’श्री राम, श्री राम’, करती बाजरे के खेतों से होती घर की राह ली। कहीं-कहीं लिपे-पुते आंगनों पर से धुआं उठ रहा था। टनटनबैलों, की घंटियाँ बज उठती हैं। फिर भी…… फिर भी कुछ बंधा-बंधा-सा लग रहा है। ’जम्मीवाला’ कुआं भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियां हैं। शाहनी ने नजर उठायी। यह मीलों फैले खेत अपने ही हैं। भरी-भरायी नई फसल को देखकर शाहनी किसी अपनत्व के मोह में भीग गयी। यह सब शाहजी के बरकतें हैं। दूर-दूर गांवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएं सब अपने हैं। साल में तीन फसल, जमीन तो सोना उगलती है। शाहनी कुएं की ओर बढ़ी, आवांज दी, ’’शेरे, शेरे हसैना हसैना….।’’
शेरा शाहनी का स्वर पहचानता है। वह न पहचानेगा! अपनी मां जैना के मरने के बाद वह शाहनी के पास ही पलकर बङा हुआ। उसने पास पङा गंडासा ’शटाले’ के ढेर के नीचे सरका दिया। हाथ में हुक्का पकङकर बोलना ’’ऐ हैसेना-सैना…..।’’ शाहनी की आवाज उसे कैसे हिला गयी है! अभी तो वह सोच रहा था कि उस शाहनी की ऊँची हवेली की अंधेरी कोठरी में पङी सोने-चांदी की सन्दूकचिंया उठाकर…… कि तभी ’शेरे शेरे….। शेरा गुस्से से भर गया। किस पर निकाले अपना क्रोध? शाहनी पर! चीखकर बोला ’’ऐ मर गयीं एं एब्ब तैनू मौत दे’’
हसैना आटेवाली कनाली एक ओर रख, जल्दी-जल्दी बाहिर निकल आयी। ’’ऐ आयीं आं क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तङपना एं?’’
अब तक शाहनी नजदीक पहुंच चुकी थी। शेरे की तेजी सुन चुकी थी। प्यार से बोली, ’’हसैना, यह वक्त लङने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर।’’
’’जिगरा!’’ हसैना ने मान भरे स्वर में कहा ’’शाहनी, लङका आखिर लङका ही है। कभी शेरे से भी पूछा है कि मुंह अंधेरे ही क्यों गालियां बरसाई हैं इसने?’’ शाहनी ने लाड़ से हसैना की पीठ पर हाथ फेरा, हंसकर बोली’’ पगली मुझे तो लड़के से बहू प्यारी है! शेरे’’
’’हां शाहनी!’’
’’मालूम होता है, रात को कुल्लूवाल के लोग आये हैं यहां ?’’ शाहनी ने गम्भीर स्वर में कहा।
शेरे ने जरा रुककर, घबराकर कहा, ’’नहीं शाहनी…..’’ शेरे के उत्तर की अनसुनी कर शाहनी जरा चिन्तित स्वर से बोली, ’’जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते। पर…..’’ शाहनी कहते-कहते रुक गयी। आज क्या हो रहा है। शाहनी को लगा जैसे जी भर-भर आ रहा है। शाहजी को बिछुङे कई साल बीत गये, पर आज कुछ पिघल रहा है शायद पिछली स्मृतियां…. आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में उसने हसैना की ओर देखा और हल्के-से हंस पङी। और शेरा सोच ही रहा है, क्या कह रही है शाहनी आज! आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा क्यों न हो? हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आयी। गंङासे की याद हो आयी। शाहनी की ओर देखा नहीं-नहीं, शेरा इन पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है पर वह ऐसा नीच नहीं…. सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के हाथ उसकी आंखों में तैर गये। वह सर्दियों की रातें कभी-कभी शाहजी की डांट खाके वह हवेली में पङा रहता था। और फिर लालटेन की रोशनी में वह देखता है, शाहनी के ममता भरे हाथ दूध का कटोरा थामे हुए ’शेरे-शेरे, उठ, पी ले।’ शेरे ने शाहनी के झुर्रियां पङे मुंह की ओर देखा तो शाहनी धीरे से मुस्करा रही थी। शेरा विचलित हो गया।’ ’आंखिर शाहनी ने क्या बिगाङा है हमारा ? शाहजी की बात शाहजी के साथ गयी, वह शाहनी को जरूर बचाएगा। लेकिन कल रात वाला मशवरा! वह कैसे मान गया था फिरोंज की बात! ’सब कुछ ठीक हो जाएगा सामान बांट लिया जाएगा!’
’’शाहनी चलो तुम्हें घर तक छोङ आऊं!’’
शाहनी उठ खङी हुई। किसी गहरी सोच में चलती हुई शाहनी के पीछे-पीछे मजबूत कदम उठाता शेरा चल रहा है। शंकित-सा इधर उधर देखता जा रहा है। अपने साथियों की बातें उसके कानों में गंूज रही हैं।
पर क्या होगा शाहनी को मारकर ?
’’शाहनी!’’
’’हां शेरे।’
शेरा चाहता है कि सिर पर आने वाले खतरे की बात कुछ तो शाहनी को बता दे, मगर वह कैसे कहे ?’’
’’शाहनी’’
शाहनी ने सिर ऊँचा किया। आसमान धुएं से भर गया था। ’’शेरे’’
शेरा जानता है यह आग है। जबलपुर में आज आग लगनी थी लग गयी! शाहनी कुछ न कह सकी। उसके नाते रिश्ते सब वहीं हैं
हवेली आ गयी। शाहनी ने शून्य मन से डयोढ़ी में कदम रक्खा। शेरा कब लौट गया उसे कुछ पता नहीं। दुर्बल-सी देह और अकेली, बिना किसी सहारे के! न जाने कब तक वहीं पङी रही शाहनी। दुपहर आयी और चली गयी। हवेली खुली पङी है। आज शाहनी नहीं उठ पा रही। जैसे उसका अधिकार आज स्वयं ही उससे छूट रहा है! शाहजी के घर की मालकिन…… लेकिन नहीं, आज मोह नहीं हट रहा। मानो पत्थर हो गयी हो। पङे-पङे सांझ हो गयी, पर उठने की बात फिर भी नहीं सोच पा रही। अचानक रसूली की आवाज सुनकर चैंक उठी।
’’शाहनी-शाहनी, सुनो ट्रकें आती हैं लेने ?’’
’’ट्रके…..?’’ शाहनी इसके सिवाय और कुछ न कह सकी। हाथों ने एक-दूसरे को थाम लिया। बात ही बात में खबर गाँव भर में फैल गयी। बीबी ने अपने विकृत कण्ठ से कहा ’’शाहनी, आज तक कभी ऐसा न हुआ, न कभी सुना। गजब हो गया, अंधेर पङ गया।’’
शाहनी मूर्तिवत् वहीं खङी रही। नवाब बीबी ने स्नेह-सनी उदासी से कहा ’’शाहनी, हमने तो कभी न सोचा था।’’
शाहनी क्या कहे कि उसी ने ऐसा सोचा था। नीचे से पटवारी बेगू और जैलदार की बातचीत सुनाई दी। शाहनी समझी कि वक्त आन पहुंचा। मशीन की तरह नीचे उतरी, पर डयोढ़ी न लांघ सकी। किसी गहरी, बहुत गहरी आवाज से पूछा ’’कौन ? कौन हैं वहां ?’’
कौन नहीं है आज वहां ? सारा गांव है, जो उसके इशारे पर नाचता था कभी। उसकी असामियां हैं जिन्हें उसने अपने नाते-रिश्तों से कभी कम नहीं समझा। लेकिन नहीं, आज उसका कोई नहीं, आज वह अकेली है! यह भीङ की भीङ, उनमें कुल्लूवाल के जाट। वह क्या सुबह ही न समझ गयी थी ?

hindi kahani

बेगू पटवारी और मसीत के मुल्ला इस्माइल ने जाने क्या सोचा। शाहनी के निकट आ खङे हुए। बेगू आज शाहनी की ओर देख नहीं पा रहा। धीरे से जरा गला सांफ करते हुए कहा ’’शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।’’
शाहनी के कदम डोल गये। चक्कर आया और दीवार के साथ लग गयी। इसी दिन के लिए छोङ गये थे शाहजी उसे? बेजान-सी शाहनी की ओर देखकर बेगू सोच रहा है’ क्या गुंजर रही है शाहनी पर! मगर क्या हो सकता है! सिक्का बदल गया है…….’
शाहनी का घर से निकलना छोटी-सी बात नहीं। गांव का गांव खङा है हवेली के दरवाजे से लेकर उस दारे तक जिसे शाहजी ने अपने पुत्र की शादी में बनवा दिया था। तब से लेकर आज तक सब फैसले, सब मशविरे यहीं होते रहे हैं। इस बङी हवेली को लूट लेने की बात भी यहीं सोची गयी थी! यह नहीं कि शाहनी कुछ न जानती हो। वह जानकर भी अनजान बनी रही। उसने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढ़ी शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है…….
देर हो रही थी। थानेदार दाऊद खां जरा अकङकर आगे आया और डयोढ़ी पर खङी जङ निर्जीव छाया को देखकर ठिठक गया! वही शाहनी है जिसकें शाहजी उसके लिए दरिया के किनारे खेमे लगवा दिया करते थे। यह तो वही शाहनी है जिसने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल दिये थे मुंह दिखाई में । अभी उसी दिन जब वह ’लीग’ के सिलसिले में आया था तो उसने उद्दंडता से कहा था ’शाहनी, भागोवाल मसीत बनेगी, तीन सौ रुपया देना पङेगा!’ शाहनी ने अपने उसी सरल स्वभाव से तीन सौ रुपये दिये थे। और आज…… ?
’’शाहनी!’’ डयोढ़ी के निकट जाकर बोला ’’देर हो रही है शाहनी। (धीरे से) कुछ साथ रखना हो तो रख लो। कुछ साथ बांध लिया है ? सोना-चांदी’’
शाहनी अस्फुट स्वर से बोली ’’सोना-चांदी!’’ जरा ठहरकर सादगी से कहा ’सोना-चांदी! बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए हैं। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।’’
दाऊद खां लज्जित-सा हो गया। ’’शाहनी तुम अकेली हो, अपने पास कुछ होना जरूरी है। कुछ नकदी ही रख लो। वक्त का कुछ पता नहीं’’
’’वक्त ?’’ शाहनी अपनी गीली आंखों से हंस पङी। ’’दाऊद खां, इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं जिन्दा रहूंगी।’’ किसी गहरी वेदना और तिरस्कार से कह दिया शाहनी ने।
दाऊद खां निरुत्तर है। साहस कर बोला ’’शाहनी कुछ नकदी जरूरी है।’’
’’नहीं बच्चा मुझे इस घर से ’’शाहनी का गला रुंध गया ’’नकदी प्यारी नहीं। यहां की नकदी यहीं रहेगी।’’
शेरा आन खङा गुजरा कि हो ना हो कुछ मार रहा है शाहनी से। ’’खां साहिब देर हो रही है’’
शाहनी चैंक पङी। देरमेरे घर में मुझे देर! आंसुओं की भँवर में न जाने कहाँ से विद्रोह उमङ पङा। मैं पुरखों के इस बङे घर की रानी और यह मेरे ही अन्न पर पले हुए….. नहीं, यह सब कुछ नहीं। ठीक हैदेर हो रही हैपर नहीं, शाहनी रो-रोकर नहीं, शान से निकलेगी इस पुरखों के घर से, मान से लाँघेगी यह देहरी, जिस पर एक दिन वह रानी बनकर आ खङी हुई थी। अपने लङखङाते कदमों को संभालकर शाहनी ने दुपट्टे से आंखें पोछीं और डयोढ़ी से बाहर हो गयी। बड़ी-बूढ़ियाँ रो पङीं। किसकी तुलना हो सकती थी इसके साथ! खुदा ने सब कुछ दिया था, मगर दिन बदले, वक्त बदले….
शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढाँपकर अपनी धुंधली आंखों में से हवेली को अन्तिम बार देखा। शाहजी के मरने के बाद भी जिस कुल की अमानत को उसने सहेजकर रखा आज वह उसे धोखा दे गयी। शाहनी ने दोनों हाथ जोङ लिए यही अन्तिम दर्शन था, यही अन्तिम प्रणाम था। शाहनी की आंखें फिर कभी इस ऊंची हवेली को न देखी पाएंगी। प्यार ने जोर मारासोचा, एक बार घूम-फिर कर पूरा घर क्यों न देख आयी मैं ? जी छोटा हो रहा है, पर जिनके सामने हमेशा बङी बनी रही है उनके सामने वह छोटी न होगी। इतना ही ठीक है। बस हो चुका। सिर झुकाया। डयोढ़ी के आगे कुलवधू की आंखों से निकलकर कुछ बन्दें चू पङीं। शाहनी चल दी ऊंचा-सा भवन पीछे खङा रह गया। दाऊद खां, शेरा, पटवारी, जैलदार और छोटे-बङे, बच्चे, बूढ़े-मर्द औरतें सब पीछे-पीछे।
ट्रकें अब तक भर चुकी थीं। शाहनी अपने को खींच रही थी। गांववालों के गलों में जैसे धुंआ उठ रहा है। शेरे, खूनी शेरे का दिल टूट रहा है। दाऊद खां ने आगे बढ़कर ट्रक का दरवाजा खोला। शाहनी बढ़ी। इस्माइल ने आगे बढ़कर भारी आवाज से कहा ’’शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुंह से निकली असीस झूठ नहीं हो सकती!’’ और अपने साफे से आंखों का पानी पोछ लिया। शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर रुंधे-रुंधे से कहा, ’’रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा, खुशियां बक्खे……।’’
वह छोटा-सा जनसमूह रो दिया। जरा भी दिल में मैल नहीं शाहनी के। और हमहम शाहनी को नहीं रख सके। शेरे ने बढ़कर शाहनी के पांव छुए, ’’शाहनी कोई कुछ कर नहीं सका। राज भी पलट गया ’’शाहनी ने कांपता हुआ हाथ शेरे के सिर पर रक्खा और रुक-रुककर कहा ’’तैनू भाग जगण चन्ना!’’ (ओ चा/द तेरे भाग्य जागंे) दाऊद खां ने हाथ का संकेत किया। कुछ बङी-बूढ़ियाँ शाहनी के गले लगीं और ट्रक चल पङी।
अन्न-जल उठ गया। वह हवेली, नई बैठक, ऊंचा चौबारा , बङा ’पसार’ एक-एक करके घूम रहे हैं शाहनी की आंखों में! कुछ पता नहीं ट्रक चल दिया हैं या वह स्वयं चल रही है। आंखें बरस रही है। दाऊद खां विचलित होकर देख रहा है इस बूढ़ी शाहनी को। कहां जाएगी अब वह ?
’’शाहनी मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते! वकत ही ऐसा है। राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है…..’’
रात को शाहनी जब कैंप में पहंुचकर जमीन पर पङी तो लेटे-लेटे आहत मन से सोचा ’राज पलट गया है….. सिक्का क्या बदलेगा ? वह तो मैं वहीं छोङ आयी।…..’
और शाहजी की शाहनी की आंखें और भी गीली हो गयीं!
आसपास के हरे-हरे खेतों से घिरे गांवों में रात खून बरसा रही थी।
शायद राज पलटा भी खा रहा था और सिक्का बदल रहा था।


ये भी अच्छे से जानें ⇓⇓

समास क्या होता है ?

परीक्षा में आने वाले मुहावरे 

सर्वनाम व उसके भेद 

महत्वपूर्ण विलोम शब्द देखें 

विराम चिन्ह क्या है ?

परीक्षा में आने वाले ही शब्द युग्म ही पढ़ें 

 

साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 

Tweet
Share4
Pin
Share
4 Shares
केवल कृष्ण घोड़ेला

Published By: केवल कृष्ण घोड़ेला

आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है l यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी l हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है l और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है l धन्यवाद !

Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

    रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi

  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

    Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Hindi Sahitya PDF Notes

Search

Recent Posts

  • Utpreksha Alankar – उत्प्रेक्षा अलंकार, परिभाषा || परीक्षोपयोगी उदाहरण
  • अनुप्रास अलंकार – अर्थ | परिभाषा | उदाहरण | हिंदी काव्यशास्त्र
  • रेवा तट – पृथ्वीराज रासो || महत्त्वपूर्ण व्याख्या सहित
  • Matiram Ka Jivan Parichay | मतिराम का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय – Biography Of Dev in Hindi
  • Meera Bai in Hindi – मीराबाई का जीवन परिचय – Hindi Sahitya
  • सूरदास का जीवन परिचय और रचनाएँ || Surdas
  • उजाले के मुसाहिब – कहानी || विजयदान देथा
  • परायी प्यास का सफर – कहानी || आलमशाह खान
  • हिन्दी उपन्यास – Hindi Upanyas – हिंदी साहित्य का गद्य

Join us

हिंदी साहित्य चैनल (telegram)
हिंदी साहित्य चैनल (telegram)

हिंदी साहित्य चैनल

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

Footer

Keval Krishan Ghorela

Keval Krishan Ghorela
आप सभी का हिंदी साहित्य की इस वेबसाइट पर स्वागत है. यहाँ पर आपको हिंदी से सम्बंधित सभी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी. हम अपने विद्यार्थियों के पठन हेतु सतर्क है. और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है. धन्यवाद !

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
Tulsidas ka jeevan parichay || तुलसीदास का जीवन परिचय || hindi sahitya
Ramdhari Singh Dinkar || रामधारी सिंह दिनकर || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

जीवन परिचय

  1. मैथिलीशरण गुप्त
  2. सुमित्रानंदन पन्त
  3. महादेवी वर्मा
  4. हरिवंशराय बच्चन
  5. कबीरदास
  6. तुलसीदास

Popular Pages

हिंदी साहित्य का इतिहास-Hindi Sahitya ka Itihas
Premchand Stories Hindi || प्रेमचंद की कहानियाँ || pdf || hindi sahitya
Hindi PDF Notes || hindi sahitya ka itihas pdf
रीतिकाल हिंदी साहित्य ट्रिक्स || Hindi sahitya
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us