आज की पोस्ट में हम जयशंकर प्रसाद के चर्चित नाटक स्कन्दगुप्त नाटक(Skandagupta Natak) के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर पढेंगे | इन प्रश्नों की सहायता से आपको नाटक के सारांश का पता चलेगा |
आज की इस पोस्ट में जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ”स्कन्दगुप्त नाटक” के महत्वपूर्ण प्रश्न विस्तार से दिए गए है ।
Table of Contents
प्रश्न 1 स्कन्दगुप्त नाटक में चक्रपालित के अनुसार स्कन्दगुप्त की उदासीनता का क्या कारण है ?
उत्तर – नाटक के प्रारम्भ में ही स्कन्दगुप्त को उदास दिखाया गया है। चक्रपालित जो स्कन्दगुप्त का मित्र है, वह उसकी उदासीनता का कारण जानता है। उसके अनुसार गुप्तकुल का अनिश्चित और अव्यवस्थित उत्तराधिकार नियम उसकी उदासी का कारण है। वास्तव में अव्यवस्था के प्रति स्कन्दगुप्त विशेष दृष्टि रखता है, तभी तो वह उत्तराधिकार और अन्य प्रश्नों पर भी जब अव्यवस्था अधिक देखता है, तब वह उदास हो जाता है।
प्रश्न 2 डाॅ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा ने स्कन्दगुप्त नाटक की भाषा के सम्बन्ध में क्या टिप्पणी की है ?
उत्तर – डाॅ. शर्मा ने नाटक की भाषा को परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ तो बतलाया है और उसकी प्रशंसा की है, किन्तु संवाद-प्रयोग की दृष्टि से इस प्रकार की भाषा को नाटकीयताहीन स्वीकार किया है। स्पष्ट ही डाॅ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा प्रसाद के नाटकों के विशेषज्ञ हैं, किन्तु नाटक में अभिनेयता और रंगमंचीयता को अधिक महत्त्व देने के कारण ही उन्होंने प्रसाद की परिष्कृत और काव्यात्मक भाषा को नाट्य के मंचीकरण के लिए उचित नहीं माना है।
प्रश्न 3 जयशंकर प्रसाद के ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के कथानक में कितने अंक और कितने दृश्य हैं? स्पष्ट करते हुए बताइये कि यह नाटक किस भावना से प्रेरित होकर लिखा गया है ?
उत्तर – प्रसाद द्वारा रचित ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में कथावस्तु में पाँच अंकों का विधान किया गया है। नाटक के पाँच अंकों में तैंतीस दृश्यों को स्थान दिया गया है। ’स्कन्दगुप्त’ नाटक प्रसाद के अन्य नाटकों की भाँति राष्ट्रीय भावना, देश-प्रेम और मानव-मूल्यों की स्थापना के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें प्रारम्भ से अन्त तक भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग चित्रित हुआ है।
प्रश्न 4 मालव का दूत आक क्या सूचना देता है और सूचना देता है और सूचना जानकर स्कन्दगुप्त पर क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर – मालव का दूत अचानक आता है और यह सूचना देता है कि मालव के महाराज विश्वकर्मा का देहान्त हो गया है और बन्धुवर्मा ने सहायता के लिए सेना माँगी है। मालव के दूत से समाचार जानकर और विश्वकर्मा के देहान्त से क्षुब्ध होकर स्कन्दगुप्त तुरन्त मालव की ओर चल पङता है।
प्रश्न 5 प्रसाद के स्कन्दगुप्त नाटक में स्त्री-पात्रों का हृदय किस प्रकार का चित्रित किया गया है ?
उत्तर – स्कन्दगुप्त नाटक में अधिकांश स्त्री-पात्रों को हृदय की विभूतियों से जोङकर प्रस्तुत किया गया है और उनके हृदय में भावप्रवणता, त्याग, सेवा, उदारता और विश्वास के साथ समर्पण को विशेष महत्त्व दिया गया है। सभी नारी पात्र भावना में जीते हुए और समर्पण की शैली में वार्तालाप करते दिखाई देते हैं। प्रमुख और अप्रमुख सभी नारी-पात्रों में यह स्थिति देखी जा सकती है।
प्रश्न 6 स्कन्दगुप्त नाटक में कमला कौन है और नाटक की सबसे आदर्श नारी पात्र कौन है ?
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में कमला भट्टार्क की माँ है, किन्तु उसके हृदय में वात्सल्य की दुर्बलता नहीं है। स्नेहातिरेक में सामान्य कोटि की माताएँ अपने पुत्रों का इष्ट और अनिष्ट विवेकपूर्वक न विचारकर उनके प्रत्येक कार्य का अनुमोदन करती हैं। ’स्कन्दगुप्त’ नाटक का सर्वाधिक प्रभावी और आदर्श नारी-पात्र देवसेना है। यह राजपरिवार की विवाहिता युवती है, विश्ववर्मा की पुत्री है तथा जयमाला की ननद है।
प्रश्न 7 ’’कविता करना अनन्त पुण्य का फल है।’’ उक्ति किसकी है और इसमें क्या बतलाया गया है ?
उत्तर – उपर्युक्त उक्ति स्कन्दगुप्त नाटक में मातृगुप्त द्वारा कही गयी है। मातृगुप्त कवि है और कश्मीर का शासक है। वह कविता करने को साधारण कर्म न मानकर अनेक प्रकार के पुण्यों का परिणाम मानता है। मातृगुप्त की यह उक्ति नाटक के प्रथम अंक के तीसरे दृश्य में आई है। मातृगुप्त मन ही मन अपने को इसलिए सौभाग्यशाली मानते हैं कि वे कवि-कर्म को सर्वाेपरि और श्रेष्ठ मानकर चलते हैं।
प्रश्न 8 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक की अभिनेयता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में अन्य नाटकों की भाँति क्रिया-व्यापार का वेग पाया जाता है, रचना प्रणाली भी रंगमंच के अनुकूल है। कुछ दृश्यों को एक-दूसरे के साथ मिलाकर नाटक को अधिक उपयुक्त बनाया जा सकता है। युद्धों आदि को छोङना पङेगा। कवित्व को भी कम किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ के परिवर्तनों के साथ प्रस्तुत नाटक को अभिनेय बनाने में सफलता पाई जा सकती है। आज के रंगमंच के विकास को देखकर इस नाटक को एक अभिनेय नाटक कहा जा सकता है।
प्रश्न 9 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के पाँच अंकों में क्रमानुसार कितने-कितने दृश्य रखे गये हैं ?
उत्तर – जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में आये दृश्यों की संख्या 33 है। सभी दृश्य कथानक के अनुकूल है। नाटक के प्रथम अंक में सात दृश्य है, द्वितीय अंक में भी सात दृश्यों का विधान है, तृतीय अंक में छः दृश्य और चतुर्थ अंक में सात दृश्य रखे गये हैं। अन्तिम पाँचवें अंक में छः दृश्य रखे गये हैं।
प्रश्न 10 स्कन्दगुप्त नाटक का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार-प्रसार और कर्मक्षेत्र में डटकर अपने कत्र्तव्य का पालन करना, संकुचित भावनाओं का परित्याग करके और त्याग व बलिदान द्वारा कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होना, इन दोनों के मध्य में राष्ट्रीय भावना ही कार्य कर रही है। उद्देश्य का अपना महत्त्व है, क्योंकि यह महान है। इसकी प्राप्ति में भी लेखक को पूर्ण सफलता मिली है। सामाजिकता पर एक विशेष प्रभाव पङता है।
प्रश्न 11 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के पात्रों को प्रमुखतः कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर – सम्पूर्ण ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में जितने भी पात्र आये हैं, उन्हें प्रमुखतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है – देवता श्रेणी के पात्र, दानव श्रेणी के पात्र और मानव वृत्ति वाले पात्र। देवता श्रेणी में स्कन्दगुप्त, देवसेना, बन्धुवर्मा और पर्णदत्त आते हैं, तो दानव वृत्ति वाले पात्रों में भटार्क, अनन्तदेवी, प्रपंचबुद्धि और विजया को स्थान प्राप्त है। मानव वृत्ति वाले पात्रों में शर्वनाग और जयमाला के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
प्रश्न 12 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक का शर्वनाग किस प्रकार का पात्र है ?
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में आया शर्वनाग मानव वृत्ति से युक्त पात्र है। वह एक ऐसा पात्र है जिसमें मानवोचित विशेषताएँ हैं। वह व्यवहारकुशल भी हैं, किन्तु वह मानव-मन की दुर्बलताओं का शिकार भी है। वह धन के लोभ में आकर प्रपंचबुद्धि की प्रेरणा और उसके प्रभाव से बन्दीगृह में देवकी की हत्या करने के लिए तत्पर हो जाता है, किन्तु सद्वृत्तियों के जाग्रत होते ही उसका हृदय भी परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 13 क्या ’स्कन्दगुप्त’ को ऐतिहासिक नाटक कहा जा सकता है ?
उत्तर – यह निर्विवाद है कि ’स्कन्दगुप्त’ प्रसाद जी का ऐतिहासिक नाटक है। इसमें गुप्तकालीन सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं सामाजिक वातावरण को सम्यक् रूप में चित्रित किया गया है। इसमें आयी ऐतिहासिक घटनाएँ इसे इतिहास की श्रेणी में लाती है, तो कुछ काल्पनिक घटनाएँ इतिहास और कल्पना का मिश्रित रूप होने के कारण नाटक को रोचक और प्रभावी बना देती हैं। घटनाओं की प्रस्तुति और उनमें कल्पना का रंग बङी कुशलता से भरा गया है।
प्रश्न 14 भटार्क किस प्रकार का पात्र है ?
उत्तर – भटार्क स्कन्दगुप्त नाटक में दानव वृत्ति के पात्रों में स्थान पाए हुए है। वह महत्त्वाकांक्षी पात्र है। यही कारण है कि वह अनन्तदेवी के साथ षड्यंत्र में सम्मिलित होकर राष्ट्रघाती प्रवृत्तियों का संचालन करता है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए वह हूणों को आक्रमण के लिए उकसाता है और कुम्भा का पुल काटकर स्कन्दगुप्त के साथ छल करता है। कठोरता और पाशविकता उसके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 15 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के कथोपकथन किस प्रकार के हैं ?
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ में प्रयुक्त संवाद सामान्यतः सरल, सुबोध, संक्षिप्त, नपे-तुले और स्वाभाविक प्रतीत होते हैं, किन्तु इस नाटक में आये संवाद यदि गुणों से युक्त हैं तो कहीं-कहीं वे दोषपूर्ण भी हो गये हैं। स्कन्दगुप्त के प्रथम कथन से ही संवादों की दीर्घता और अनावश्यक विस्तृति उबाने वाली हो गयी है। जहाँ संवाद संक्षिप्त हैं, वहाँ भी वे प्रभावित कम और उबाऊ अधिक लगते हैं। लम्बे स्वगत कथन ऊब करते हैं।
प्रश्न 16 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में इतिहाससम्मत प्रमुख पात्र कौन-कौन से हैं और इतिहाससम्मत घटनाएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ में स्कन्दगुप्त एक ऐतिहासिक पात्र है। ऐतिहासिक खोजों के आधार पर कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य ने सन् 413 से 455 तक राज्य किया। उसी का पुत्र स्कन्दगुप्त था। इसने चाँदी का सिक्का चलाया। इसके अतिरिक्त कुछ पात्र और हैं जो इतिहास की श्रेणी में आते हैं। पृथ्वीसेन, चक्रपालित, प्रख्यातकीर्ति और अनन्तदेवी भी ऐसे ही पात्र हैं। जहाँ तक इतिहाससम्मत घटनाओं का प्रश्न है, इस विषय में कहा जा सकता है कि पुष्यमित्रों से युद्ध और उनकी पराजय की घटना इतिहास सम्मत है।
प्रश्न 17 ’’स्कन्दगुप्त नाटक में देशभक्ति को अभिव्यक्ति पर्याप्त स्थानों पर प्राप्त हुई है।’’ दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के अन्तर्गत देशभक्ति का जो स्वरूप अभिव्यक्ति हुआ है, उसे निम्नांकित उदाहरणों द्वारा समझ जा सकता है – (1) ’’भारत समग्र विश्व का है और सम्पूर्ण वसुन्धरा इसके प्रेमपाश में आबद्ध है। आबद्ध वसुन्धरा का हृदय भारत किस मूर्ख को प्यारी नहीं है? तुम देखते नहीं कि विश्व का सबसे ऊँचा शृंग इसके सिरहाने और सबसे गम्भीर तथा विशाल समुद्र इसके चरणों के नीचे है।’’ (2) ’’देश के हरे कानन चिता बन रहे हैं। धधकती हुई नाश की प्रचण्ड ज्वाला दिग्दाह कर रही है। अपने ज्वालामुखियों को बर्फ की मोटी चादर से छिपाए हिमालय मौन है, पिघलकर क्यों नहीं समुद्र में जा मिलता? अरे मूक! बधिर! प्रकृति के टीले!’’
प्रश्न 18 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में क्या कर्मफल और भाग्य का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ है ?
उत्तर – ’स्कन्दगुप्त’ नाटक में प्रसाद ने यह भी प्रतिपादित कर दिया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने भाग्य का फल भोगना पङता है और भाग्य का निर्माण कर्मों से होता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। प्रसाद जी अपने नाटकों के माध्यम से इस निष्कर्ष को प्रमाणित करते प्रतीत होते हैं। ’स्कन्दगुप्त’ नाटक का भट्टार्क का यह कथन इस संदर्भ में विशेष महत्त्व रखता है। उसने कहा है कि ’पाक-पंक में लिप्त मनुष्य को छुट्टी नहीं। वे उसे जकङकर अपने नागपाश में बाँध देते हैं।’ मनुष्य को चाहिए कि वह अपना काम करता रहे।
प्रश्न 19 ’स्कन्दगुप्त’ नाटक के चरित्र प्राणवान हैं।’’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जयशंकर प्रसाद के नाटक इतिहास और कल्पना के योग से निर्मित हुए हैं। उनके पात्र प्राणवान और सभक्त हैं। चरित्र इतने प्राणवान हैं कि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए भी युग की संकुचित सीमा से निकलकर वे शाश्वत चरित्र बन गये हैं। वे एक ओर जहाँ आदर्शवादी देशभक्त, त्यागी और शूरवीर हैं तो दूसरी ओर उनके पात्र कुछ इस प्रकार के भी हैं जो निजी स्वार्थ, षड्यंत्र एवं राष्ट्रघाती मनोवृत्तियों से युक्त हैं।
प्रश्न 20 ’’स्कन्दगुप्त नाटक की देवसेना एक निश्छल, पावन और आदर्श प्रेमिका है।’’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – देवसेना एक निश्छल, पावन एवं आदर्श पे्रमिका है। उसके प्रेम में सम्पूर्ण रूप से समर्पण का भाव है, प्रतिदान की आकांक्षा नहीं है। वह अपना प्रणय मूल्य देकर नहीं खरीदना चाहती है। जब स्कन्दगुप्त उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखता है, तब देवसेना यह कहकर इन्कार कर देती है कि ’’मालव ने जो देश के लिए उत्सर्ग किया है, उसका प्रतिदान लेकर मृत आत्मा का अपमान नहीं करने की।…….. उस समय आप विजय का स्वप्न देखते थे, अब प्रतिदान लेकर मैं उस महत्त्व को कलंकित न करूँगी।’’
महत्त्वपूर्ण लिंक :
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🔹रस के भेद 🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़
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🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 🔷कबीर जीवन परिचय 🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़ 🔷 महादेवी वर्मा
स्कंदगुप्त नाटक सुखांत है या दुखांत है अपना पक्ष बताइए।
प्रसादान्त