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रीतिकाल महत्वपूर्ण सार संग्रह 2

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:18th Aug, 2019| Comments: 0

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रीतिकाल महत्वपूर्ण सार संग्रह 2

Table of Contents

  • रीतिकाल महत्वपूर्ण सार संग्रह 2
  • रीतिबद्ध काव्य धारा –
    • रीतिमुक्त कवि –
      • रीतिसिद्ध काव्यधारा –
        • रीतिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ –
          • रीतिकाल के प्रमुख कवि –

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रीतिकाल का समय निर्धारण

1700-1900 वि. आचार्य शुक्ल के अनुसार

सर्वमान्य मत 1650-1850 ई. डाॅ. नगेन्द्र

रीतिकाल के अन्य नाम ⇓⇓

  • उतरमध्य काल-रीतिकाल – आचार्य शुक्ल
  • अलंकृत काल – मिश्र बंधु
  • श्र्ंगार काल  – विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

‘रीति’ का अर्थ है – काव्यांग निरूपण

रीति काल की प्रथम रचना कृपाराम की ‘हिततरंगिणी’ को माना है।

रीतिकाल का प्रवर्तक ‘चिन्तामणी’ को माना जाता है।

रीतिकाल की अंतिम कृति ‘ग्वाल’ कवि की ‘रसरंग’ है।

मूलभूत लाक्षणिक अंतिम कवि ‘पद्माकर’ को माना जाता है।

रीतिकाल का वर्गीकरण –

रीतिबद्ध काव्य धारा –

इस वर्ग के कवियों ने काव्यांग निरूपण को आधार मानकर लक्षण ग्रंथों की रचनाएं की गई ।

प्रमुख कवि:-

  • चिन्तामणी (प्रथम कवि)
  • मतिराम
  • देव
  • ग्वाल
  • केशवदास
  • मंडन
  • भिखारीदास, जसवंतसिंह

रीतिमुक्त कवि –

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्होने काव्यागं निरूपण करने वाले ग्रंथों की रचना न करके स्वछंद रूप से रचनाएं लिखी।

प्रमुख कवि –

  • घनानंद
  • बोधा
  • आलम
  • ठाकुर

रीतिसिद्ध काव्यधारा –

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्हें रीति की जानकारी तो थी लेकिन लक्षण ग्रंथ नहीं लिखे।

प्रमुख कवि –

  • बिहारी
  • सेनापति
  • रसनिधि
  • नेवाज
  • परजेस 

प्रमुख रचनांए एंव कवि –

1. चिन्तामणि – रसविलास, काव्यप्रकाश

2. भूषण – शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रशाल दशक

3. मतिराम – रसराज, ललितललाम , फूल मंजरी

4. बिहारी – बिहारी सतसई

5. बोधा – ईश्कनामा, विरहवारिस

6. रसलीन – अंगदर्पण

7. घनानंद – वियोगवेलि, सुजानहित प्रबंध, घनानंद पदावली

8. पद्माकर/पद्याकर- जगतविनोद, पद्माभरण, प्रबोधपचासा, गंगालहरी

रीतिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ –
  • रीति निरूपण
  • श्रृंगारिकता
  • अलंकारिकता
  • बहुज्ञेता एवं चमत्कार प्रदर्शन
  • लोकमंगल की भावना का अभाव
  • राजप्रशस्ति
  • ब्रजभाषा का प्रयोग
  • प्रकृति चित्रण
रीतिकाल के प्रमुख कवि –

(1) केशवदास –

शुक्ल जी ने इन्हें समय की दृष्टि से भक्तिकाल में स्थान दिया तथा प्रवृति की दृष्टि से रीतिकाल में आते हैं।

शुक्ल जी इन्हें ‘‘कठिन काव्य का प्रेत’’ कहा है।

केशव को संवाद योजना में सर्वाधिक सफलता रामचन्द्रिका से मिली।

‘केशव को कवि हृदय नहीं मिला।’ (आचार्य शुक्ल)

‘प्रबंध रचना के योग्य न तो केशव में शक्ति थी और न अनुभूति।’

(आचार्य शुक्ल)

प्रमुख रचनाएं –

रसिकप्रिया – श्रृंगार विवेचन

कविप्रिया – आश्रयदाता इन्द्रजीतसिंह के सानिध्य में लिखी। आचार्यत्व एवं कवित्व की पूर्ण अभिव्यक्ति इसी ग्रंथ में हुई

छंदमाला

रामचन्द्रिका – रामकथा

विज्ञानगीता – आध्यात्मिक ग्रंथ

हिन्दी में सर्वप्रथम सर्वांग निरूपण केशवदास ने किया। रामचन्द्रिका को ‘छंदों का अजायबघर ’ कहा जाता है।

‘‘भूषण बिनु न विराजइ, कविता वनिता मीत’’

(2) मतिराम –

कवि भूषण एवं चिन्तामणि के भाई कहे जाते हैं।

‘‘कुन्दन को रंग फिको  लगे’’ – मतिराम

प्रमुख रचनाएं –

  • रसराज – श्रृंगार एवं नायिका भेद वर्णन
  • ललित ललाम 
  • फूल मंजरी
  • वृतकौमुदी

(3) भूषण –

ये शिवाजी एवं छत्रसाल बुन्देला के आश्रय में रहते थ।

रीतिकाल के ऐसे कवि जिन्होंने वीर रस की कविताएं लिखकर ख्याति अर्जित की।

राजा रूद्रशाह सोलंकी ने ‘‘भूषण’’ की उपाधि प्रदान की (नाम पता नहीं)

इनकी पालकी में स्वयं महाराजा छत्रसाल ने कंधा लगाया

प्रमुख रचनाएं –

  • शिवराज भूषण – जयदेव के ‘‘चन्द्रालोक’’ पर आधारित अलंकार ग्रंथ
  • शिवा बावनी – शिवाजी की वीरता का वर्णन
  • छत्रशाल दशक- छत्रशाल की वीरता का वर्णन

इनकी रचनाएं राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित है।

(4) बिहारी –

जन्म 1595 – ग्वालियर

मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे।

राजा इन्हें प्रत्येक दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा देते थे।

‘‘बिहारी सतसई’’ मूलतः श्रृंगार रस से ओत-प्रोत मुक्तक काव्य है

इसे श्रृंगार, भक्ति ओर नीति की त्रिवेणी का जाता है।

इसमें 713 दोहे है।

‘‘जिस कवि की कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की सामासिक शक्ति जिनती अधिक होगी उतना ही वह मुक्तक रचना में सफल होगा यह क्षमता बिहारी में पूर्णरूप से विद्यमान थी।’’ (आचार्य शुक्ल)

‘‘यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता।’’ (आचार्य शुक्ल)

(5) देव –

इनका पुरा नाम देवदत था तथा ये ईटावा के रहने वाले थे।

इन्हें अनेक राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ क्योंकि इन्हें कोई उदार आश्रयदाता नहीं मिला।

‘‘रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रतिभासम्पन्न कवि थे।’’ (आचार्य शुक्ल)

प्रमुख रचनाएं –

  • भाव विलास – इस रचना को आजमशाह को सुनाया। जो हिन्दी कविता के प्रेमी थे।
  • अष्टयाम – नायक-नायिका विविध विलासो का वर्णन
  • देवशतक – आध्यात्मिक ग्रंथ।
  • रागरत्नाकर – संगीत विषय ग्रंथ
  • रसविलास – राजा भोगीलाल के आश्रय में लिखा
  • देवचरित्र – कृष्ण काव्य पर आधारित
  • सुख सागर तरगं – नायिका भेद व रसवर्णन
  • शब्द रसायन – लक्षण ग्रंथ
  • देवमाया प्रंपच – प्रबोध चन्द्रोदय नामक संस्कृत नाटक का पद्य में अनुवाद
  • भवानीविलास
  • कुशल विलास
  • प्रेम चन्द्रिका
  • सुजान विनोद
  • प्रेम तरंग
  • जाति विलास

(6) घनानन्द –

ये रीतिमुक्त धारा के श्रृंगारी कवि है।

दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के यहां मीर मुन्शी थे।

भाषा के लक्षक एवं व्यजंक बल की सीमा कहां तक हैं इसकी पूरी परख इन्हीं को थी – (आचार्य शुक्ल)प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा जबांदानी का दावा रखने वाला ब्रज भाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।

‘अति सूधो स्नेह को मार्ग है। – घनानन्द

प्रमुख रचनाएं –

  • सुजानसागर
  • विरहलीला
  • लोकसार
  • सुजान हित प्रबंध
  • सुजान विनोद

(7) पद्माकर –

ये रीतिकाल मे बिहारी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे।

रचनाएं –

  • हिम्मत बहादुर विरूदावली – वीर रस प्रधान चरित काव्य
  • प्रतापशाही विरूदावली – चरित्र प्रधान काव्य
  • जगतविनोद – श्रृंगार रस का ग्रंथ (प्रतापसिंह के पुत्र जगतसिंह के संरक्षण में लिखा)
  • पद्माभरण – अलंकार ग्रंथ
  • कलिपचीसी – कलियुग का वर्णन
  • प्रबोधपचासा – वैराग्य निरूपण
  • गंगालहरी – गंगा की महानता का वर्णन

(8) वृन्दकवि –

इन्होंने लोक जीवन को अपना काव्य विषय बनाया तथा वृंद सतसई की रचना की।

‘‘फीकी पे निकी लगै, कहिए समय विचारि।

सबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह में गारि।।’’

आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रर्वतक आचार्य चिन्तामणी को माना है।

इस काल की मुख्य विशेषता श्रृंगारिकता एवं रीति निरूपण है।

रीतिकाल का अंतिम कवि ‘ग्वाल’ को माना जाता है।

हिन्दी सतसई परम्परा में प्रथम रचना ‘‘कृपाराम’’ की ‘‘हिततरंगिणी’’ है।

सेनापति ने रीतिकाल में प्रकृति का स्वतंत्र रूप से चित्रण किया।

आचार्य शुक्ल ने घनानन्द को ‘‘साक्षात् रसमूर्ति’’ कहा है।

भूषण को रीतिकाल का ‘राष्ट्रकवि’ कहा जाता है।

*बिहारी सतसई के बारे में महत्वपूर्ण कथन*
जन्म -1595,, स्थान -ग्वालियर
मृत्यु-1663,, बिहारी सतसई का रचना काल-1662,, भाषा -ब्रज
#छंद- दोहा 719
काव्य स्वरूप-मुक्तक काव्य
प्रमुख रस- संयोग श्रृंगार रस
*विशेष :-*
⚛बिहारी रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं ।
⚛हिन्दी में समास पद्धति की शाक्ति का सर्वाधिक परिचय बिहारी ने दिया है।
⚛बिहारी सतसई की प्रथम टीका लिखने वाले -कृष्ण कवि
⚛बिहारी सतसई के दोहों का रोला छंद में करने वाले-अंबिकादत व्यास
⚛कृष्ण कवि ने बिहारी सतसई की टीका किस छंद में लिखी – सवैया छंद में
⚛बिहारी सतसई को शाक्कर की रोटी कहने वाले -©पद्मसिंह शर्मा
⚛बिहारी के दोहों का संस्कृत में अनुवाद करने वाले- परमानन्द – श्रृंगार सप्तशती के नाम से
⚛बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहें पर छंद बनाने वाले – कृष्ण कवि
⚛बिहारी सतसई की रसिकों के हृदय का घर कहने वाले -#हजारी प्रसाद द्विवेदी
⚛बिहारी को हिन्दी का चौथा रतन मानने वाले -©लाला भगवानदीन
⚛बिहारी को रीतिकाल का सर्वाधिक लोकप्रिय कवि कहने वाले -©हजारी प्रसाद द्विवेदी
⚛बिहारी के दोहों पर प्रसन्न होकर राजा जयसिंह ने इन्हें कौनसा गाँव पुरस्कार में दिया -काली पहाड़ी
⚛इनके दोहे क्या है रस के छोटे छोटे छींटे हैं कथन किसका है-©रामचन्द्र शुक्ल
⚛”इनकी कविता श्रृंगारी है किन्तु प्रेम की उच्च भूमि पर नही पंहुचती, नीचे रह जाती है “कथन है-© रामचन्द्र शुक्ल का
⚛बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है कथन है -रामचन्द्र शुक्ल का
⚛शुक्ल ने बिहारी सतसई के किस पक्ष का उपहास किया है-वियोग वर्णन का
⚛किसने बिहारी को ऐसा पीयूष वर्षी मेघ कहा है जिसके उदय होते ही सूर और तुलसी आच्छादित हो जाते हैं-©राधाचरण गोस्वामी ने
⚛बिहारी सतसई की “रामचरितमानस” के बाद सबसे अधिक प्रचारित कृति मानने वाले -©श्यामसुन्दर दास
⚛बिहारी को हिन्दी साहित्य का बेजोड़ कवि मानने वाले – विश्वनाथ प्रसाद
⚛’बिहारी की वागविभूति’ के लेखक- ©विश्वनाथ प्रसाद
⚛सम्पूर्ण विश्व में बिहारी सतसई के समकक्ष कोई रचना प्राप्त नही होती कथन है- ©ग्रियर्सन का
⚛फिरंगे सतसई (फारसी भाषा में) के रचनाकार -आनंदीलाल शर्मा
⚛बिहारी सतसई की टीका “अमरचन्द्रिका”नाम से लिखने वाले -©सूरति मिश्र
⚛बिहारी सतसई की सरल टीका -©लाला भगवानदीन
⚛बिहारी सतसई की टीका “लाल चान्द्रिका”नाम से लिखने वाले-©लल्लू लाल
⚛राम सतसई -© राम सहाय दास
⚛सतसई बरनार्थ – ठाकुर
⚛बिहारी सतसई की सर्वश्रेष्ठ टीका लिखने वाले -जगन्नाथ दास रत्नाकर (बिहारी रत्नाकर)खड़ी बोली में
⚛बिहारी सतसई की टीका ब्रज भाषा में लिखने वाले – राधा कृष्ण चौबे

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