Dwivedi yug ki Visheshta || द्विवेदी युग की विशेषताएँ || Hindi Sahitya

आज की पोस्ट में हम आधुनिक काल के अंतर्गत द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृत्तियाँ (Dwivedi yug ki Visheshta) को पढेंगे ,इसके महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे |

द्विवेदी युगीन काव्य प्रवृत्तियाँ(Dvivedi yug ki Visheshta)


देश प्रेम की भावना

द्विवेदीयुगीन कवियों ने जनमानस के बीच राष्ट्रप्रेम का लहर चलाई। स्वतन्त्रता के प्रति जनमानस में चेतना का संचार किया। इस युग के रचनाकारों का राष्ट्रप्रेम भारतेन्दु युग की भाँति सामयिक रुदन से नहीं जुङा है, बल्कि समस्याओं के कारणों पर विचार करने के साथ-साथ उनके लिए समाधान ढूँढने तक जुङा है

’’हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी।
आओ मिलकर विचारें ये समस्याएँ सभी।।’’

यह युग कारणों की जङ तक जाने के पश्चात् उत्सर्ग और बलिदान के माध्यम से अपनी खोई हुई अस्मिता को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा का माध्यम भी रहा है।

’’देशभक्त वारों मरने से कभी न डरना होगा।
प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।।’’

गयाप्रसाद शुक्ल ’सनेही’ की कविताओं में भी देशभक्ति की लहर दिखाई देती है। उदाहरण से स्पष्ट है

’’जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है।’’

मैथिलीशरण गुप्त की रचना ’भारत भारती’ में भी राष्ट्रप्रेम से सम्बन्धित कविताओं के लिखने के कारण अंग्रेजी सरकार ने इनकी इस कृति को जब्त कर लिया।

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सामाजिक समस्याओं का चित्रण

यह युग सुधारवादी युग या जागरण सुधार काल भी कहलाता है। इस युग के कवियों ने सामाजिक समस्याओं, यथा – दहेज प्रथा, नारी उत्पीङन , छूआछूत, बाल विवाह आदि को अपनी कविता का विषय बनाया।

प्रतापनारायण मिश्र नारी के वैधव्य जीवन और बाल विधवाओं की तरुण अवस्थाओं को देखकर रो पङते हैं

’’कौन करेजा नहीं कसकत, सुनी विपत्ति बाल विधवन की।’’

नारी की दयनीय दशा का चित्रण मैथिलीशरण गुप्त जी करते हुए कहते है कि

’’अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।’’

द्विवेदी युग  काव्य धारा ने उपेक्षित नारियों को अपने काव्य में स्थान दिया। ’यशोधरा’ के माध्यम से गौतम बुद्ध की पत्नी का, ’साकेत’ के माध्यम से उर्मिला का, ’विष्णुप्रिया’ के माध्यम से चैतन्य महाप्रभु की पत्नी का उत्सर्ग भाग योजित किया है।

’’सखी वे मुझको कहकर जाते,
प्रियतम के प्राणों को पल में स्वयं सुसज्जित करके।
भेज देती रण में, छत्र धर्म के नाते
सखी वे मुझको कहकर जाते।।

अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ ने ’वैदेही वनवास’ और ’प्रियप्रवास’ के माध्यम से नारी उपेक्षाओं को उठाने की कोशिश की है।

नैतिकता एवं आदर्शवाद

द्विवेदीयुगीन काव्य आदर्शवादी एवं नीतिपरक है। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी नैतिकता एवं आदर्श के प्रबल पक्षधर थे। रीतिकालीन शंृगारिकता यहां दिखाई नहीं पङती। ’हरिऔध’ कृत ’प्रियवास’, मैथिलीशरण कृत ’साकेत’, ’रंग में भंग, ’जयद्रथ वध’ व रामनरेश त्रिपाठी कृत ’मिलन’ आदर्शवादी कृतियाँ है।

रीतिकाल में राधा-कृष्ण शृंगार के आलम्बन है, जबकि द्विवेदी युग में राधा लोक सेविका व समाज से सरोकार रखने वाली नारी सिद्ध होती है।

इतिवृत्तात्मकता

इतिवृत्तात्मकता का अर्थ है वस्तु वर्णन या आख्यान की प्रधानता। आदर्शवाद तथा बौद्धिकता की प्रधानता के कारण द्विवेदी युग के कवियों ने वर्णन प्रधान इतिवृत्तात्मकता को अपनाया। इतिवृत्तात्मकता के कारण इस युग में इतिवृत्त (कथा) पर अधिक बल दिया जाने लगा और प्रबन्धात्मक रचनाएँ अधिक लिखी जाने लगी।

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ – ’साकेत’ ’जयद्रथवध’ ’पंचवटी’ ’यशोधरा’ द्वापर आदि प्रबन्धकाव्य है। इसी प्रकार अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ की रचनाओं ’प्रिय प्रवास’ तथा ’वैदेही वनवास’ में इतिवृत्तात्मकता की प्रधानता है।

सभी काव्य रूपों का प्रयोग

द्विवेदी युग में लगभग सभी काव्य रूपों का प्रयोग हुआ। मुक्तक, प्रगति प्रभृति सभी काव्यरूपों में रचना हुई। हिन्दी के अनेक श्रेष्ठ खण्डकाव्य इसी युग में लिखे गए। द्विवेदी युग में सभी कवि मुक्तक रचना का ओर प्रवृत्त हुए। छोटे-छोटे विषयों को लेकर स्वतन्त्र पद्यों की रचना हुई।

’हरिऔध’ ने समस्या पूर्तियों के रूप में भी अनेक सुन्दर मुक्तक लिखे हैं। रत्नाकर ने ’उद्धवशतक’ की रचना का। छायावाद में जो प्रगीतों का प्रणयन हुआ उसकी शुरुआत इसी युग से हुई।

भाषा परिवर्तन

इस युग में काव्य की मुख्य भाषा खङी बोली रही। इस युग के कवियों ने खङी बोली में काव्योपयुक्तता के सन्देह को दूर कर दिया। ’जयद्रथ वध’ की प्रसिद्धि ने ब्रज भाषा के मोह का वध कर दिया।

’भारत भारती’ की लोकप्रियता खङी बोली की विजय भारती सिद्ध हुई। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के अनुसार इस युग की भाषा सुबोध, शुद्ध व रसानुरूप है।

छन्द विविधता

इस युग में वर्ण्य विषय के समान छन्दों में भी विविधता स्पष्ट दिखाई देती है। इस युग के कवि दोहा, कविता या सवैया तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि रोला, छप्पय, कुण्डलिया, सार, गीतिका, हरिगीतिका, लावनी, वीर आदि छन्द भी प्रयुक्त हुए।

मैथिलीशरण गुप्त और अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ ने छन्दों के प्रयोग में अपना अद्भुत कौशल परिचय दिया। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने छन्दों के विशेषीकरण का परामर्श दिया था।

निष्कर्षतः

इस युग के कवियों ने हिन्दी काव्य को शृंगारिकता से राष्ट्रीयता, रूढिवादिता से स्वच्छन्दता और जङता से प्रगति की ओर ले जाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। द्विवेदीयुगीन चेतना, राष्ट्रीय प्रेम, सामाजिक चेतना, भक्ति, प्रकृति और भाषा सभी स्तरों पर प्रखर दिखाई पङती है।

यहाँ राष्ट्रभक्ति राजभक्ति के आवरण में लिपटी नहीं है न ही इस युग के रचनाकारों ने काव्य विषय के रूप में विदेशी सत्ता को कहीं वरीयता दी। नवजागरणपरक चेतना से आविर्भूत राष्ट्रीय प्रेम भारत के गौरवपूर्ण अतीत से जुङा है, जो वर्तमान की पराधीनता को छिन्न-भिन्न करने के लिए अतीत को भारतीय संस्कृति के जीवन्त मूल्यों से प्रेरणा लेने की कोशिश में जुटा हुआ है।

Dwivedi yug ki Visheshta

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