• Home
  • PDF Notes
  • Videos
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल
  • साहित्य ट्रिक्स
  • आर्टिकल

हिंदी साहित्य चैनल

  • Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • PDF NOTES
  • VIDEOS
  • कहानियाँ
  • व्याकरण
  • रीतिकाल
  • हिंदी लेखक
  • कविताएँ

कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज || Pashchatya Kavya Shastra

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:3rd May, 2022| Comments: 0

दोस्तो आज की पोस्ट में पाश्चात्य काव्यशास्त्र के अंतर्गत कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज(kalpna siddhant kolreez) को अच्छे से समझेंगे ,और महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे |

कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज

Table of Contents

  • कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज
  • कल्पना से तात्पर्य –
    • काव्य लक्षण क्या होते है
    • ⇒काव्य प्रयोजन क्या है 
    • काव्य प्रयोजन क्या है 
    • कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज
    • विशिष्ट कल्पना –
    • काव्य हेतु क्या होते है 
    • कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज
    • कल्पना और ललित कल्पना –
      • आखिर ये शब्द शक्ति क्या होती है 
    • रस का अर्थ व रस के भेद जानें 
      • काव्य लक्षण क्या होते है
      • निष्कर्ष –

कल्पना से तात्पर्य –

काॅलरिज ने कल्पना की विस्तृत विवेचना की है। उनके अनुसार कवि को भौतिक तथा आध्यात्मिक तथ्यों का ज्ञान होना चाहिए। इसका सम्बन्ध उसकी कला से होता है। काॅलरिज मानते थे कि कवि को सद्बुद्धि से प्रेरित होना चाहिए जिससे कि वह पाठकों में रुचि उत्पन्न कर सके। उसे क्रुद्ध तथा ईर्ष्यालु लोगों के शब्दों की नकल करने के लिए उनकी खोज में, उनके अशिक्षित समाज के इर्द-गिर्द चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं है।

उसमें विवेक-बुद्धि को उत्पन्न करने वाला सहज बोध होना चाहिए, जिससे कि कवि अपनी सर्जनात्मक शक्ति की सहायता से अपनी काव्य-रचना द्वारा उत्पन्न की हुई उत्तेजना की मात्रा और उसके प्रकारों को हृदयगंम करने में समर्थ हो सके। काॅलरिज का कथन है कि यदि बाह्य नियमों के आधार पर काव्य-रचना का प्रयत्न किया जाता है, तो कविता कविता न रहकर एक यांत्रिक कला का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार की कविता की उपमा काॅलरिज ने संगमरमर के बने उन ठण्डे औश्र वजनदार आडुओं से दी है जिनमें बच्चे केवल अपना मुँह ही मार सकते हैं।

इस प्रकार काॅलरिज ने काव्य-सृजन के सिद्धांतों पर जोर दिया है। वह जिस रूप में कविता मौजूद हैं, उसका विश्लेषण ने करते हुए सर्जनात्मक शक्ति का विवेचन करने के पक्ष में थे। काॅलरिज के अनुसार कल्पना दो प्रकार की होती है -प्रारम्भिक और विशिष्ट। वे मानते हैं कि कल्पना द्वारा ही काव्य हृदयग्राही, मर्मस्पर्शी और सजीव बनता है। अतः कल्पना की क्षमता और महत्त्व सर्वोपरि होता है।

  • काव्य लक्षण क्या होते है

कल्पना-प्रयोग की अन्तःशक्ति कवि का सर्वश्रेष्ठ गुण है और उसका समुचित प्रयोग काव्योत्कर्ष के क्षणों की समुचित देन है। वे इस ढंग से अपनी बात को स्पष्ट करते हैं कि ’’कल्पना वह शक्ति है जिसका प्रयोग कलाकार अपने सर्वाेत्तम भावात्मक क्षणों में करता है।’’

काॅलरिज के कल्पना-सिद्धांत को पर्याप्त ख्याति मिली। वास्तव में उसके अन्य सिद्धांतों की तुलना में काॅलरिज की प्रसिद्धि का मूल कारण कल्पना-सिद्धांत ही है। प्रायः कल्पना को वह शक्ति या प्रक्रिया कहा गया है, जिससे प्रतिच्छवि का सर्जन सम्भव हो पाता है अथवा जिसके सहारे प्रतिच्छवि को ग्रहण या प्रत्यक्ष किया जाता है। अमूर्त धारणाओं और प्रत्ययों को कलाकार इसी के सहारे मूर्त रूप देता है।

मनुष्य इसी के सहारे सृजन में समर्थ होता है। एक शब्द में कह सकते हैं कि यदि कल्पना न हो तो किसी प्रतिच्छवि को प्रत्यक्ष करना सम्भव नहीं है। यही कलात्मकता जिसमें कल्पना का समावेश होता है, सृजन के लिए उपयोगी होती है। कल्पना का अंग्रेजी शब्द ’इमेजीनेशन’ लैटिन के ’इमेजीनेटिव’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है – मानसिक चित्र की सृष्टि।

  • ⇒काव्य प्रयोजन क्या है 

कल्पना के साथ ही एक अन्य शब्द का प्रयोग भी किया जाता है – ’फैन्सी’ जिसका अर्थ है -हल्की कल्पना। इस शब्द का मूल जर्मन शब्द ’फैंटेसिया’ है जो अंग्रेजी तक पहुँचते-पहुँचते फैन्सी रह गया। अरस्तू से लेकर आधुनिक काल तक के विचारकों ने कल्पना पर विचार किया है। वर्ड्सवर्थ की एक कविता को सुनकर काॅलरिज के मन में एक विशेष आकर्षण उत्पन्न हुआ। उसने अनुभव किया कि अपनी कविता में वर्ड्सवर्थ ने उन्हीं शब्दों, अलंकारों और बिम्बों का प्रयोग किया है जो दीर्घकाल से प्रयुक्त होते आ रहे हैं, किन्तु फिर भी कवि ने उन सबका ऐसा सामंजस्य बिठाया है कि उसमें एक अतिरिक्त आकर्षण आ गया है। अतः वह आम कविता होकर भी विशिष्ट बन गयी है।

इस कविता में हृदयस्पर्शिता है, सुबोधिता है और हमारी बौद्धिक क्षमता को भी संतुष्ट करती है। काॅलरिज ने घोषित किया कि जिस शक्ति के कारण यह कविता आकर्षित करती है, वह शक्ति कल्पना है। अतः उसने स्वीकार किया कि कल्पना में ही वह क्षमता है कि वह विरोधी और एक-दूसरे से असम्बन्धित-से दिखने वाले तत्त्वों को अंगीकृत करती है और काव्य को उत्कर्ष, चारुता और रमणीयता प्रदान करती है।

  • काव्य प्रयोजन क्या है 

कल्पना की कोटियाँ – काॅलरिज ने कल्पना की दो कोटियाँ मानी हैं -प्राथमिक कल्पना और विशिष्ट कल्पना। उन्होंने बताया है कि ’’प्राथमिक कल्पना जीवन्त शक्ति है और सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान का मूल हेतु है। विशिष्ट कल्पना प्राथमिक कल्पना की प्रतिध्वनि मात्र है। इसका अस्तित्व ज्ञान का मूल हेतु है। विशिष्ट कल्पना प्राथमिक कल्पना की प्रतिध्वनि मात्र है। इसका अस्तित्व इच्छा के अस्तित्व के साथ ही रहता है। इन दोनों कल्पनाओं के प्रकार-भेद नहीं है, केवल कोटि-भेद है। दोनों की कार्य-पद्धतियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं।’’ काॅलरिज ने ब्रह्मवादियों की भाँति आत्मा और जगत् दोनों को एक ही सत्ता के दो रूप स्वीकार किया है, किन्तु ब्रह्मवादियों ने आत्मा और जगत् के भिन्न-भिन्न प्रतीत होने के कारण माया को माना है।

वहाँ काॅलरिज ने उसका कारण कल्पना को स्वीकार किया है। यही कारण है कि एक ही चेतना खण्ड-खण्ड रूप में दिखाई देती है। ब्रह्म इसी कल्पना-शक्ति के माध्यम से सृष्टि के निर्माण में प्रवृत्त होता है। यह समस्त मानव-ज्ञान की एक सजीव शक्ति है और सम्पूर्ण मानव प्रत्यक्षीकरण का प्रमुख साधन है। प्राथमिक कल्पना सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान का मूल कारण तो है ही, क्योंकि इसके अभाव में उसे मानवीय ज्ञान का अनुभव और उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती है।

कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज

इन्द्रियों के सहारे हम जो भी अनुभव करते हैं, वह सबका सब अनुभव इसी ज्ञान का मूल हेतु है। प्राप्त ज्ञान को व्यवस्था देने का कार्य भी यही कल्पना करती है। यह प्राथमिक कल्पना उन सभी बिम्बों को एक-एक करके हमारे अस्तित्व-बोध को ज्ञान में बदल देती है। इस प्रकार प्राथमिक कल्पना एक महान सिद्धांत है जो व्यवस्थापिका वृत्ति का परिचायक है। सरल शब्दों में, यह प्राथमिक कल्पना हमारे अव्यवस्थित इन्द्रिय बोधों में एक संश्लिष्टता या व्यवस्था लाती है। अव्यवस्था में व्यवस्था का कार्य इसी कल्पना का प्रमुख कार्य है।

विशिष्ट कल्पना –

यह प्राथमिक कल्पना का सजग मानवीय प्रयोग है। भाव यह है कि जब हम अपनी इच्छा से प्राथमिक कल्पना-शक्ति का प्रयोग करते हैं तो उस अवसर पर उसका जो रूप हो जाता है, उसे विशिष्ट कल्पना कहते है। प्राथमिक कल्पना जिस प्रकार इन्द्रिय-बोधों को एक संतुलन और व्यवस्था देती है, किन्तु महत्त्व की बात यह है कि यह व्यवस्था-कार्य प्राथमिक कल्पना के बिना किसी दबाव के-सहज रूप से करती है।

इसके विपरीत जब इस व्यवस्थापिका कल्पना का प्रयोग जानबूझकर या प्रयत्नपूर्वक किया जाता है, तब इसका मूल तो सुरक्षित रहता है, किन्तु कार्य-पद्धति में अन्तर हो जाता है। फलतः इसका श्रेणी-भेद भी बदल जाता है। कार्य-पद्धति में भेद का कारण हमारी स्वयं की इच्छा है। यह विशिष्ट कल्पना कलाकारों या चित्रकारों में पायी जाती है। जनसाधारण में इसका प्रसार और प्रभाव नहीं देखा जाता है।

  • काव्य हेतु क्या होते है 

यह कल्पना प्राथमिक या आद्य कल्पना शक्ति की प्रतिध्वनि है, उसका सजग मानवी प्रयोग है। वह कलाकार को इस बाह्य संसार का प्रस्तुतीकरण तथा पुनःसृजन करने में सहयोग देती है। उसी की सहायता से कलाकार इस बाह्य जगत् को अधिक पूर्ण रूप में प्रस्तुत करता है। वह अनेक विषयों में एकसूत्रता लाती है, विषय और विषयी का समन्वय करती है, अनेक रूपों और व्यापारों को एक सम्बद्ध एवं अखण्ड रूप में प्रस्तुत करती हुई भिन्न-भिन्न बिम्बों को व्यवस्थित करती है।

प्राथमिक कल्पना और विशिष्ट कल्पना में अन्तर यह है कि प्राथमिक कल्पना सहज रूप में बोधों को व्यवस्थित करती है और विशिष्ट कल्पना का प्रयोग सजग रूप में स्वेच्छा से किया जाता है। महत्त्व दोनों कल्पनाओं का है। काॅलरिज के कल्पना विषयक विचार मौलिक हैं। उनकी कल्पना विषयक धारणा जर्मन विचारक काॅन्ट से भी भिन्न है। काॅन्ट ने कल्पना को काव्य-रचना का गुण नहीं स्वीकार किया है। उन्होंने तो कल्पना को केवल संश्लेषणात्मक शक्ति माना है। काॅलरिज की स्थिति इससे भिन्न है। उनकी कल्पना रचनात्मक क्षमता से युक्त है और वह सक्रिय है।

कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज

काॅलरिज मानते थे कि कला प्रकृति की अनुकृति नहीं है। कारण, अनुकृति का कार्य व्यर्थ की प्रतिद्वन्द्विता हैं। प्रकृति असल है और उसकी नकल की क्षमता किसी भी कलाकार में नहीं होती है। अतः कलाकार कल्पना के सहारे पुनः सृजन करता है और यह सृजन उसकी भावना के आधार पर होता है। इसमें उसे आनन्द भी मिलता है। इस प्रकार के सृजन में कल्पना ही उसका सर्वाधिक साथ देती है।

कल्पना और ललित कल्पना –

काॅलरिज के अनुसार कल्पना-प्राथमिक कल्पना अथवा इमेजीनेशन जीवन्त शक्ति है। इसी कल्पना के आधार पर मनुष्य ज्ञानार्जन में समर्थ होता है। यही व्यवस्थापिका भी है। यही हमें ज्ञान भी देती है। ललित कल्पना फैन्सी है। इसे ’सैकण्डरी इमेजीनेशन’, ललित कल्पना जैसे नाम दिये गये है। यह प्राथमिक कल्पना-शक्ति को सजग मानवीय प्रयोग है। तात्पर्य यह है कि जब हम अपनी इच्छा से प्राथमिक कल्पना-शक्ति का प्रयोग करते हैं तो उस अवसर पर उसका जो रूप होता है, उसे विशिष्ट कल्पना कहा जाता है।

  • आखिर ये शब्द शक्ति क्या होती है 

प्राथमिक कल्पना अव्यवस्थित इन्द्रियबोधों को व्यवस्थित करती है, किन्तु ऐसा वह हमारी इच्छा के कारण नहीं करती, अपितु सहज रूप में करती है। जब हम इस व्यवस्थापिका शक्ति का प्रयोग अपनी इच्छा से करते हैं, उस समय इसका मूल तो बना रहता है, किन्तु इसकी कार्य-पद्धति में भेद हो जाने के कारण इसकी कोटि बदल जाती है। इसकी कार्य-पद्धति में भेद इसलिए हो जाता है कि एक सहज रूप से काम करती है और दूसरी सजग रूप से अर्थात् हमारी इच्छा के अनुसार। इस विशिष्ट अथवा ललित-कल्पना-शक्ति का प्रयोग चित्रकार, दार्शनिक और कवि आदि करते हैं।

अपने व्यापक अर्थ में यह एक सजग मानसिक सर्जन-क्रिया है। यहाँ यह शंका उत्पन्न हो सकती है कि जब चित्रकार, कवि, दार्शनिक और इतिहासकार सभी इसी विशिष्ट अथवा ललित कल्पना-शक्ति के द्वारा सृजन करते हैं, तो उनकी कृतियों में अन्तर क्यों और किस कारण से आता है।

  • रस का अर्थ व रस के भेद जानें 

वास्तव में ये सभी विशिष्ट कल्पना-शक्ति के द्वारा ही अपने कार्य में प्रवृत्त होते हैं। ये सभी अपनी अभिव्यक्ति में भाषा अथवा रंगों का प्रयोग करते हैं। इस अर्थ में सबके माध्यम एक जैसे है। छन्दबद्ध होने के कारण दार्शनिक और इतिहास-ग्रंथ काव्य नहीं कहे जा सकते और न छन्दरहित होने के कारण कोई रचना काव्य-जगत् से बहिष्कृत की जा सकती है।

स्पष्ट है कि काव्य और अकाव्य का अन्तर छन्द नहीं हो सकते है। काॅलरिज ने कविता तथा कल्पना की अन्य विधियों में अन्तर स्पष्ट करते हुए अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है-’’किसी भी भाषा-सृष्टि का कोई न कोई उद्देश्य होता है। दार्शनिक, इतिहासकार, उपदेशक, वैज्ञानिक और कवि विभिन्न उद्देश्यों को लेकर अपनी-अपनी कृतियों की सर्जना करते हैं। इनकी कृतियों में अन्तर समझने के लिए उनके उद्देश्य-भेद को जान लेना आवश्यक है।’’ इस प्रकार स्पष्ट है कि छन्दोबद्ध और छन्दरहित होने को ही यदि कोई विभिन्न भाषात्मक कृतियों के अन्तर को एक आधार स्वीकार करें तो काॅलरिज को कोई आपत्ति नहीं है।

  • काव्य लक्षण क्या होते है

काॅलरिज तो उद्देश्य और विषय-वस्तु के अन्तर को ही विभिन्न कृतियों की विभिन्नता का कारण मानते हैं। अभिप्राय यह है कि उद्देश्य और विषय-वस्तु में भेद होने से कृतियों में अन्तर आ जाता है।
विद्वानों के मत-डाॅ. भागीरथ दीक्षित ने स्वीकार किया है कि काॅलरिज ने कल्पना की विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंने अपने ढंग से काॅलरिज की कल्पना को समझाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने अपने ढंग से काॅलरिज की कल्पना को समझाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि ’’प्राथमिक कल्पना के द्वारा हमें वस्तुओं का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त होता है। यह सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान का मूल हेतु है। यदि यह शक्ति मनुष्य में न रहती, तो उसे व्यवस्थित ज्ञान न होता।….. विशिष्ट कल्पना उस प्राथमिक कल्पना-शक्ति का सजग मानवीय प्रयोग है।

तात्पर्य यह है कि जब हम अपनी इच्छा से प्राथमिक कल्पना-शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो उस अवसर पर उसका जो रूप हो जाता है, उसे विशिष्ट कल्पना कहते हैं।’’ डाॅ. शांतिस्वरूप गुप्त ने भी अपनी भाषा में इन्हीं तथ्यों को व्यक्त किया है।

निष्कर्ष –

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि काॅलरिज की कल्पना सम्बन्धी मान्यता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कल्पना के द्वारा ही सर्जक कलाकार प्रतिबोधन और अवबोधन के बीच की खाई को पाटने में सफल हो पाता है। बुद्धि अनुशासित कर सकती है, नियंत्रित कर सकती है, किन्तु कल्पना वह जीवन्त शक्ति है, जिसके सहारे रिक्तता को पूर्णत में बदला जा सकता है। कल्पना की इसी क्षमता और इसी विशिष्टता को काॅलरिज ने बार-बार रेखांकित किया है।

कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज

ये भी अच्छे से जानें ⇓⇓

net/jrf हिंदी नए सिलेबस के अनुसार मूल पीडीऍफ़ व् महत्वपूर्ण नोट्स 

  • रस का अर्थ व रस के भेद जानें 
  • काव्य प्रयोजन क्या है 
  • ⇒काव्य लक्षण क्या होते है
  • काव्य हेतु क्या होते है 
  • आखिर ये शब्द शक्ति क्या होती है 
  • साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 
  • कल्पना सिद्धान्त- काॅलरिज

Share this:

  • Tweet
  • Telegram
  • WhatsApp
  • Email
Tweet
Share
Pin
Share
0 Shares
Previous Post
Next Post

Reader Interactions

ये भी पढ़ें

  • भिक्षुक-कविता || सूर्यकांत त्रिपाठी निराला || व्याख्या सहित

    भिक्षुक-कविता || सूर्यकांत त्रिपाठी निराला || व्याख्या सहित

  • Gujarat State Eligibility Test Hindi paper || GSET|| Old Question Papers

    Gujarat State Eligibility Test Hindi paper || GSET|| Old Question Papers

  • भीष्म साहनी के महत्वपूर्ण उपन्यास ट्रिक  || हिंदी साहित्य  || hindi sahitya

    भीष्म साहनी के महत्वपूर्ण उपन्यास ट्रिक || हिंदी साहित्य || hindi sahitya

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Search

5000 हिंदी साहित्य वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Up Election Result 2022 

सैकंड ग्रेड हिंदी कोर्स जॉइन करें

अनलिमिटेड पैसा कमाएं

ट्विटर के नए सीईओ

टेलीग्राम चैनल जॉइन करें

Recent Posts

  • HPPSC LT GRADE HINDI SOLVED PAPER 2020
  • Muktibodh – गजानन माधव मुक्तिबोध || हिंदी साहित्य
  • Hindi sahitya Quiz-39 || भक्तिकाल || हिंदी साहित्य
  • भिक्षुक-कविता || सूर्यकांत त्रिपाठी निराला || व्याख्या सहित
  • Gujarat State Eligibility Test Hindi paper || GSET|| Old Question Papers
  • भीष्म साहनी के महत्वपूर्ण उपन्यास ट्रिक || हिंदी साहित्य || hindi sahitya
  • कृष्णा सोबती जीवन परिचय – Krishna Sobti life introduction
  • Vidyanivaas Mishr || विद्यानिवास मिश्र जीवन परिचय
  • मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर || हिंदी व्याकरण
  • Hindi Bhasha – हिंदी भाषा विकास से जुड़ें महत्त्वपूर्ण प्रश्न जरुर पढ़ें

Categories

  • All Hindi Sahitya Old Paper
  • General Knowledge
  • Hindi Literature Pdf
  • hindi sahitya question
  • Motivational Stories
  • NET/JRF टेस्ट सीरीज़ पेपर
  • NTA (UGC) NET hindi Study Material
  • Uncategorized
  • आधुनिक काल साहित्य
  • आलोचना
  • उपन्यास
  • कवि लेखक परिचय
  • कविता
  • कहानी लेखन
  • काव्यशास्त्र
  • कृष्णकाव्य धारा
  • छायावाद
  • दलित साहित्य
  • नाटक
  • प्रयोगवाद
  • मनोविज्ञान महत्वपूर्ण
  • रामकाव्य धारा
  • रीतिकाल
  • रीतिकाल प्रश्नोत्तर सीरीज़
  • व्याकरण
  • शब्दशक्ति
  • संतकाव्य धारा
  • साहित्य पुरस्कार
  • सुफीकाव्य धारा
  • हालावाद
  • हिंदी डायरी
  • हिंदी पाठ प्रश्नोत्तर
  • हिंदी साहित्य
  • हिंदी साहित्य क्विज प्रश्नोतर
  • हिंदी साहित्य ट्रिक्स
  • हिन्दी एकांकी
  • हिन्दी जीवनियाँ
  • हिन्दी निबन्ध
  • हिन्दी रिपोर्ताज
  • हिन्दी शिक्षण विधियाँ
  • हिन्दी साहित्य आदिकाल

हमारा यूट्यूब चैनल देखें

Best Article

  • बेहतरीन मोटिवेशनल सुविचार
  • बेहतरीन हिंदी कहानियाँ
  • हिंदी वर्णमाला
  • हिंदी वर्णमाला चित्र सहित
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुमित्रानंदन पन्त
  • महादेवी वर्मा
  • हरिवंशराय बच्चन
  • कबीरदास
  • तुलसीदास

Popular Posts

Net Jrf Hindi december 2019 Modal Test Paper उत्तरमाला सहित
आचार्य रामचंद्र शुक्ल || जीवन परिचय || Hindi Sahitya
तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka jeevan parichay
रामधारी सिंह दिनकर – Ramdhari Singh Dinkar || हिन्दी साहित्य
Ugc Net hindi answer key june 2019 || हल प्रश्न पत्र जून 2019
Sumitranandan pant || सुमित्रानंदन पंत कृतित्व
Suryakant Tripathi Nirala || सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Footer

हिंदी व्याकरण

 वर्ण विचार
 संज्ञा
 सर्वनाम
 क्रिया
 वाक्य
 पर्यायवाची
 समास
 प्रत्यय
 संधि
 विशेषण
 विलोम शब्द
 काल
 विराम चिह्न
 उपसर्ग
 अव्यय
 कारक
 वाच्य
 शुद्ध वर्तनी
 रस
 अलंकार
 मुहावरे लोकोक्ति

कवि लेखक परिचय

 जयशंकर प्रसाद
 कबीर
 तुलसीदास
 सुमित्रानंदन पंत
 रामधारी सिंह दिनकर
 बिहारी
 महादेवी वर्मा
 देव
 मीराबाई
 बोधा
 आलम कवि
 धर्मवीर भारती
मतिराम
 रमणिका गुप्ता
 रामवृक्ष बेनीपुरी
 विष्णु प्रभाकर
 मन्नू भंडारी
 गजानन माधव मुक्तिबोध
 सुभद्रा कुमारी चौहान
 राहुल सांकृत्यायन
 कुंवर नारायण

कविता

 पथिक
 छाया मत छूना
 मेघ आए
 चन्द्रगहना से लौटती बेर
 पूजन
 कैदी और कोकिला
 यह दंतुरित मुस्कान
 कविता के बहाने
 बात सीधी थी पर
 कैमरे में बन्द अपाहिज
 भारत माता
 संध्या के बाद
 कार्नेलिया का गीत
 देवसेना का गीत
 भिक्षुक
 आत्मकथ्य
 बादल को घिरते देखा है
 गीत-फरोश
Copyright ©2020 HindiSahity.Com Sitemap Privacy Policy Disclaimer Contact Us
loading Cancel
Post was not sent - check your email addresses!
Email check failed, please try again
Sorry, your blog cannot share posts by email.