आज के आर्टिकल में हम अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar) के बारे में बात करेंगे। इसके अंतर्गत अनुप्रास अलंकार का अर्थ (Anupras alankar ka arth) ,अनुप्रास अलंकार की परिभाषा(Anupras alankar ki paribhasha),अनुप्रास अलंकार के भेद (Anupras alankar ke bhed) अनुप्रास अलंकार के उदाहरण (Anupras alankar ke Udaharan), Anupras alankar in hindi – अच्छे से समझेंगे।
अनुप्रास अलंकार – Anupras Alankar
अनुप्रास अलंकार का अर्थ – Anupras alankar ka arth
⇒ ’अनुप्रास’ शब्द ’अनु + प्र + आस’ योग से बना है। यहाँ ’अनु’ का अर्थ है- ’बार-बार’, ’प्र’ का अर्थ है – ’प्रकर्षता’ अथवा ’अधिकता’ तथा ’आस’ का अर्थ है- ’बैठना/आना/रखना’
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा – Anupras alankar ki paribhasha
जब किसी पद (काव्य) में वर्णनीय रस की अनुकूलता के अनुसार एक या अनेक वर्ण बार-बार समीपता से आते हैं या रखे जाते हैं तो वहाँ अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar) माना जाता है।
अनुप्रास अलंकार किसे कहते है?
’’वर्णसाम्यमनुप्रासः’’ अर्थात् जब किसी पद में किसी व्यंजन वर्ण की एक निश्चित क्रमानुसार बार-बार आवृत्ति होती है, तो वहाँ अनुप्रास अलंकार माना जाता है।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण – Anupras alankar ke Udaharan
- भगवान भक्तों की भयंकर भूरि भीति भगाइये।
प्रस्तुत पद में प्रयुक्त शब्दों के प्रारम्भ में ’भ्’ वर्ण का बार-बार प्रयोग हुआ है, अतएव यहाँ अनुप्रास अलंकार माना जाता है। - ’’चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।’’
प्रस्तुत पद में ’च्’ वर्ण का बार-बार प्रयोग होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। - ’’कल-कल कोमल कुसुम कुंज पर मधुकण बरसाते तुम कौन।’’
यहाँ ’क्’ वर्ण का बार-बार प्रयोग होने के कारण अनुप्रास अलंकार हैं। - भगवान! भागें दुःख, जनता देश की फूले-फले।
इसमें ’भ’ और ’ग’ (भ-ग)-यह वर्ण-समूह दो बार आया है। इसी प्रकार अन्त में ’फ’ और ’ल’ (फ-ल)-यह वर्ण-समूह भी दो बार आया है। यह दो वर्णों का अनुप्रास है। - विरति विवेक विमल विज्ञाना।
- 6. भरत-भारती मंजु मराली।
इसमें भ, र, और त इन तीनों वर्णों का समूह दो बार आया है। - छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की।
- गंधी गंध गुलाब की गंवई गाहक कौन।
- मोहि मोहि मेरा मन मोहन मय ह्वै गयो।
- चंदु के चाचा ने चंदु की चाची को चाँदी की चम्मच से चटाचट चटनी चटाई।
अनुप्रास अलंकार के भेद – Anupras alankar ke Bhed
अनुप्रास अलंकार के मुख्यतः निम्न पाँच प्रकार माने जाते हैं-
- छेकानुप्रास
- वृत्यनुप्रास
- श्रुत्यनुप्रास
- लाटानुप्रास
- अन्त्यानुप्रास
(1) छेकानुप्रास अलंकार – Cheka anupras alankar
जब किसी पद में किसी वर्ण का दो बार प्रयोग (एक बार ही आवृत्ति) होती है तो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार माना जाता है। यह आवृत्ति कम से कम दो अलग-अलग वर्णों में होनी आवश्यक हैं। साथ ही आवृत्ति एक निश्चित क्रम में होनी आवश्यक है।
छेकानुप्रास अलंकार उदाहरण – Cheka anupras alankar ke Udaharan
’’कानन कठिन भयंकर भारी। घोर घाम हिम बार-बयारी।’’
प्रस्तुत पद में ’क’, ’भ’, ’घ’ एवं ’ब’ वर्णों का एक निश्चित क्रमानुसार दो-दो बार प्रयोग (एक बार आवृत्ति) हुआ है, अतएव यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।
नोट – ’छेक’ का शाब्दिक अर्थ है- ’चतुर’ अर्थात् यह अलंकार चतुर मनुष्यों को अधिक प्रिय होता है, अतः इसे छेकानुप्रास अलंकार कहते हैं।
छेकानुप्रास अलंकार अन्य उदाहरण-
उदाहरण – 1
बाल-बेलि सुखी सुखद, इहि रुखे रुख धाम।
फेरी डहडही कीजिए, सुरस सींचि घनश्याम।।
उदाहरण – 2
मोहनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल।
उदाहरण – 3
अति आनन्द मगन महतरी।
उदाहरण – 4
जन रंजन भंजन दनुज, मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर, जोवत सोवत सूप।
उदाहरण – 5
बाँधे द्वार काकरी, चतुर चित्त काकरी, सो उम्मिर बृथा करी न राम की कथा करी।
पाप को पिनाक री न जाने नाक नाकरी, सु हारिल की नाकरी निरन्तर ही ना करी।
ऐसी सूमता करी न कोऊ समता करी, सु बेनी कविता करी प्रकास तासु ता करी।
देव अरचा करी न ज्ञान चरचा करी, न दीन पै दया करी, न बाप की गया करी।।
यहाँ पर काकरी, नाकरी, ताकरी, चाकरी, याकरी की एक बार आवृत्ति हुई है।
उदाहरण – 6
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि, कहत लखन राम राम हृदय गुनि।
मानहु मदन दुंदुभी दीन्हीं मनसा विश्व विजय कहँ कीन्ही।।
उदाहरण – 7
बैठी रही अति सघन वन पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की, छाँहो चाहति छाँह।।
उदाहरण – 8
पास प्रियतम आन बैठो, जीर्ण जीवन नाव में।
उदाहरण – 9
परम पुनीत भरत-आचरनू।
उदाहरण – 10
सब ओर छटा थी छायी।
उदाहरण – 11
कानन कठिन भयंकर भारी।
घोर घाम हिम बारि बयारी।।
उदाहरण – 12
हरि-सा हीरा छाँङि कै करैं आन की आस।
उदाहरण – 13
चेत कर चलना कुमारग में कदम धरना नहीं।
बोध-वर्धक लेख लिखने में कमी करना नहीं।।
(2) वृत्यनुप्रास अलंकार – Vrityanupras alankar
जब किसी पद में एक या अनेक वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति (दो से अधिक बार प्रयोग) होती है तो वहाँ वृत्यनुप्रास अलंकार माना जाता है।
वृत्यनुप्रास अलंकार उदाहरण – Vrityanupras alankar ke Udaharan
1. ’’रघुनंद आनंद कंद कौसल चंद दशरथ नंदनम्।’’
प्रस्तुत पद में ’अंद (न्द)’ वर्णों का पाँच जगह प्रयोग हुआ है, अतएव यहाँ उपनागरिका वृत्ति वृत्यनुप्रास अलंकार है।
2. ’’सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहे जहँ एक घटी।
निघटी रुचि मींचु घटी हू घटी, सब जीव जतीन की छूटी तटी।
अघ ओघ की बेङी कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान-गटी।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्ति नटी, गुन धूरजटी बन पंचवटी।।’’ (परुषा वृत्ति वृत्यनुप्रास)
3. बिघन बिदारण बिरद बर। बारन बदन बिकास।
बर दे बहु बाढ़े बिसद। बाणी बुद्धि बिलास।। (कोमलावृत्ति वृत्यनुप्रास)
4. वक्र वक्र करि पुच्छ करि रुष्ट रिच्छ कपि गुच्छ।
सुभट ठठ घन घट्ट सम, मर्दहिं रच्छन तुच्छ।। (परुषा वृत्ति वृत्यनुप्रास)
वृत्यनुप्रास अलंकार अन्य उदाहरण –
5. कूलनि में केलिन में कछारन में कुंजन में, क्यारिन में कलित कलीन किलकंत है।
कहै ’पद्माकर’ त्यौं पौन में, पराग हू में, पानन की पांतिन में पलासन पंगत है।
द्वार में दिसान में दुनीन देस देसन में, देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है।
बनन में बागन में बेलिन नबेलिन में, विपिन में वीथिन में बगर्यो बसंत है।।
6. भव्य भावों में भयानक भावना भरना नहीं।
यहाँ ’भ’ वर्ण कई बार आया है।
7. रंजन भय भंजन गरब गंजन अंजन नैन।
मानस भंजन करत जन होत निरंजन ऐन।।
8. निपट नीरव नन्द-निकेत में।
यहाँ ’न’ वर्ण कई बार आया है।
9. भटक भावनाओं के भ्रम में भीतर ही था भूल रहा।
यहाँ ’भ’ वर्ण कई बार आया है।
10. चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल-थल में।
11. निर्ममता निरीह पुरुषों में निस्संदेह निरखती हो।
12. काले कुत्सित कीट का कुसुम में कोई नहीं काम था।
13. गंधी गंध गुलाब को गँवई गाहक कौन?
14. कानन कूकि कै कोकिल कूर करेजन की किरचैं करती क्यों?
(3) श्रुत्यनुप्रास अलंकार – Shruti Anupras alankar
जब किसी पद में एक ही उच्चारण स्थान वाले वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है तो वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार माना जाता है। यह अनुप्रास सहृदय काव्यरसिकों को सुनने में अत्यंत प्रिय लगता है, अतः इसे श्रुत्यनुप्रास कहते हैं।
श्रुत्यनुप्रास अलंकार उदाहरण – Shruti Anupras alankar ke Udaharan
1. तुलसीदास सीदत निस दिन देखत तुम्हारी निठुराई।
प्रस्तुत पद में दन्त्य वर्णों का पास-पास अनेक बार प्रयोग हुआ है, अतएव यहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है।
2. दिनांत था वे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
प्रस्तुत पद में भी दन्त्य वर्णों की बार-बार आवृत्ति हुई, अतएव यहाँ भी श्रुत्यनुप्रास अलंकार है।
3. निसिवासर सात रसातल लौं सरसात घने घन बन्धन नाख्यौ।
(4) लाटानुप्रास अलंकार – Lata Anupras alankar
जब किसी पद में शब्द और अर्थ तो एक ही रहते हैं परन्तु अन्य पद के साथ अन्वय करते ही तात्पर्य या अभिप्राय भिन्न रूप में प्रकट होता है, वहाँ लाटानुप्रास अलंकार माना जाता है। लाट देश (आधुनिक दक्षिण गुजरात) के लोगों को अधिक प्रिय होने के कारण इसे लाटानुप्रास कहा जाता है।
लाटानुप्रास अलंकार उदाहरण – Lata Anupras Alankar ke Udaharan
1. पूत सपूत तो क्यों धन संचै।
पूत कपूत तो क्यों धन संचै।।
यहाँ प्रयुक्त सभी शब्द समान अर्थ को प्रकट करते हैं, परन्तु ’कपूत’ ’सपूत’ के कारण तात्पर्य में थोङी भिन्नता आ जाती है, अर्थात् यहाँ कई शब्द दो बार आये हैं, यथा-पूत, तो, क्यों, धन, संचै। प्रथम बार सबका अन्वय सपूत के साथ है और दूसरी बार कपूत के साथ। अतएव यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।
2. राम हृदय जाके नहीं, बिपति सुमंगल ताहि।
राम हृदय जाके, नहीं बिपति सुमंगल ताहि।।
3. पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग नरक ता हेतु।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरक ता हेतु।।
4. औरन को जाँचे कहा, जो जाँच्यो सिवराज।
औरन को जाँचे कह, नहिं जाँच्यो सिवराज।।
5. तीरथ व्रत साधन कहा, जो निसिदिन हरिगान।
तीरथ व्रत साधन कहा, बिन निसिदिन हरिगान।।
लाटानुप्रास अलंकार अन्य उदाहरण –
6. हे उत्तरा के धन! रहो तुम उत्तरा के पास में।
यहाँ उत्तरा के पद दो बार आया है। दोनों बार अर्थ वही है पर उसका अन्वय पहली बार धन के साथ और दूसरी बार पास के साथ होता है।
7. मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी।
यहाँ पहले दोनों तेज शब्दों का अन्वय मिला क्रिया के साथ है, पर पहला तेज करण कारक में और दूसरा तेज कर्ताकारक में है, इस प्रकार अन्वय भिन्न हो गया है। तीसरे तेज का अन्वय अधिकारी शब्द के साथ है।
8. राम राम हे राम कहि, दशरथ ने त्यागे प्राण।
नोट – ’लाटानुप्रास’ व ’यमक’ में यह अंतर होता है कि ’यमक’ में तो पुनरुक्त शब्द का अर्थ बदल जाता है, जबकि ’लाटानुप्रास’ में अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है। केवल अन्वय के कारण तात्पर्य भिन्न हो जाता है।
9. राम-भजन जाके नहीं, जाति विपति ता पास।
राम-भजन जाके, नहीं जाति विपति ता पास।।
पूर्वार्ध में ’नहीं’ का अन्वय ’राम-भजन जाके’ के साथ है और उत्तरार्ध ’नहीं’ का अन्वय ’जाति विपति ता पास’ के साथ है।
(5) अन्त्यानुप्रास अलंकार – Antya Anupras alankar
जब किसी छंद के चरणों के अंत में एक जैसे स्वरों या व्यंजन वर्णों का प्रयोग होता है तो वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार माना जाता है। प्रायः प्रत्येक तुकान्त काव्य में अन्त्यानुप्रास अलंकार पाया जाता है।
अन्त्यानुप्रास अलंकार उदाहरण – Antya Anupras alankar ke Udaharan
1. नभ लाली, चाली निसा, चटकाली धुनि कौन।
यहाँ लाली, चाली और चटकाली इन शब्दों के अन्त में बीच के व्यंजन ल् के सहित अन्त के दो स्वरों (आ और ई) की आवृत्ति हुई है।
2. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लङी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
3. गुरु गोविंद दोउ खङे, काकै लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
4. दुखी बना मंजु-मना ब्रजांगना।
यहाँ बना, मना और ब्रजांगना शब्दों के अन्त में बीच के व्यंजन न् के सहित अन्त के दो स्वरों (अ, आ) की आवृत्ति हुई है।
5. ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन कूँ सीतल करै, आपहु सीतल होय।।
6. हंसा-बगुला एक से, रहत सरोवर माँहि।
बगूला ढूँढ़त मांछरि, हंसा मोती खाँहि।।
अन्त्यानुप्रास अलंकार अन्य उदाहरण –
7. कुन्द इन्दु सम देह, उमा-रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।।
8. जिसने हम सबको बनाया, बात-की-बात में वह कर दिखाया
कि जिसका भेद किसी ने न पाया।
यहाँ बनाया, दिखाया और पाया शब्दों के अन्त में बीच के व्यंजन य् के सहित अन्त के दो स्वरों (आ, आ) की आवृत्ति हुई है।
9. धीरम धरम मित्र अरु नारी।
आपदकाल परखिए चारी।।
आज के आर्टिकल में हमनें अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar) के बारे में विस्तार से पढ़ा , हम आशा करतें है कि अब आप इस विषयवस्तु को अच्छे से समझ पाओगे । अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपना फीडबैक जरुर लिखें।
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