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वर्ण किसे कहते है – Varn Kise Kahate Hain

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:11th Jul, 2022| Comments: 3

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दोस्तो आज के आर्टिकल में हम पढ़ेंगे , वर्ण किसे कहते हैं (परिभाषा, भेद और उदाहरण),Varn Kise Kahate Hain । यह आर्टिकल सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। इस टॉपिक से सम्बंधित प्रश्न लगभग हर एग्जाम में पूछे जाते है ।

वर्ण की परिभाषा – Varn ki Paribhasha

Table of Contents

  • वर्ण की परिभाषा – Varn ki Paribhasha
    • व्यंजन क्या होते है – Vyanjan Kya Hote Hain
    • वर्ण कितने प्रकार के होते है –  Varn kitne prakar ke hote hain
    • हिंदी के वर्ण- स्वर और व्यंजन
    • स्वर – Swar
    • मात्रा क्या होती है – Matra Kya Hoti Hain
    • ह्रस्व स्वर किसे कहते है – Hrsv Swar Kise kahte Hain
    • प्लुत स्वर किसे कहते है – Plut Swar Kise Kahate Hain
    • अनुस्वार किसे कहते है – Anuswar Kise kahate Hain
    • निरनुनासिक किसे कहते है – Nirnunasik kise kahate hain
    • अयोगवाह किसे कहते है – Ayogwah kise kahate hain
    •  व्यंजन किसे कहते है – Vyanjan Kise Kahate Hain
    • स्पर्श व्यंजन क्या होते है ?
    • अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजन क्या होते है ?
    • घोष और अघोष व्यंजन क्या होते है ?
    • हिंदी में वर्तमान में प्रचलित नए वर्ण-

दोस्तो अगर आसान तरीके से समझें तो  वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते है, जिसका खंड न हो; जैसे- क् ,प् , ख् , च इत्यादि। ’रानी ’ शब्द की दो ध्वनियाँ है- ’रा ’ और ’नी’। इनके भी चार खंड है- र्+आ, न्+ई।  अब आप यह समझें कि हम इसके बाद इन चार ध्वनियों के टुकङे नहीं कर सकते। इसलिए ये मूल ध्वनियाँ वर्ण का अक्षर होती है।

वर्ण वह छोटी-सी ध्वनि है, जिसके टुकङे नहीं किए जा सकते। वर्ण हमारी वाणी की सबसे छोटी इकाई है।

मूलतः हिन्दी में 52 वर्ण होते है। वर्णों के उच्चारण समूह को ’वर्णमाला’ कहते है। वर्ण और उच्चारण का बङा ही गहरा सम्बन्ध होता है। इनको एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।

स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ

व्यंजन क्या होते है – Vyanjan Kya Hote Hain

Varn Kise Kahate Hain
Varn Kise Kahate Hain

वर्ण कितने प्रकार के होते है –  Varn kitne prakar ke hote hain

आइए इसके बारे में चर्चा करतें है

हिंदी के वर्ण- स्वर और व्यंजन

वर्ण के दो प्रमुख तत्व है- स्वर और व्यंजन। इन दोनों के योग से ही वर्णों का अस्तित्व होता है।

स्वर – Swar

स्वर का उच्चारण बिना अवरोध अथवा विघ्न-बाधा के होता है। इनके उच्चारण में किसी दूसरे वर्ण की सहायता नहीं ली जाती। ये सभी स्वतंत्र है। इनके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख से निर्बाध रूप/बिना बाधा से निकलती है। सामान्यतः इसके उच्चारण में कंठ, तालु का प्रयोग होता है।  उ, ऊ के उच्चारण में होठों का प्रयोग होता है। हिंदी में स्वर की संख्या ग्यारह है।

  • ह्रस्व स्वर- अ, इ, उ, ऋ
  • दीर्घ स्वर- आ, ई, ऊ
  • संयुक्त स्वर- ए, ऐ, ओ, औ

संस्कृत में ’ऋ’ का प्रयोग होता है। वर्तमान में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में इसका व्यवहार नाममात्र ही रह गया है  है। फिर भी  हिंदी में ’ऋ’ का प्रयोग चल रहा है; जैसे- ऋग्वेद,  ऋण,ऋषि  इत्यादि। इसमें व्यंजन और स्वर का योग होता है।

मात्रा क्या होती है – Matra Kya Hoti Hain

मात्राएँ तीन होती है

  • ह्रस्व
  • दीर्घ
  • प्लुत

ह्रस्व मात्रा में दूगना और प्लुत में तिगुना समय लगता है। मात्राएँ स्वरों की ही होती है। व्यंजन तो स्वरों के ही सहारे बोले जाते है। स्वरों के व्यंजन में मिलने के इन रूपों को भी ’मात्रा’ कहते है, क्योंकि मात्राएँ तो स्वरों की होती है।

’ह्रस्व’ मात्रा को ’लघु’ और ’दीर्घ’ मात्रा को ’गुरु’ कहते है।

पंडित कामताप्रसाद गुरु के अनुसार, ’’व्यंजनों के अनेक प्रकार के उच्चारणों को स्पष्ट करने के लिए जब उनके साथ स्वर का योग होता है, तब स्वर का वास्तविक रूप जिस रूप में बदलता है, उसे मात्रा कहते है।’’

ह्रस्व स्वर किसे कहते है – Hrsv Swar Kise kahte Hain

ह्रस्व स्वर- वे स्वर मूल या ह्रस्व या एकमात्रिक कहलाते है, जिनकी उत्पत्ति दूसरे स्वरों से नहीं होती, जैसे- अ, इ, उ, ऋ।

दीर्घ स्वर किसे कहते है – Dirgh Swar Kise Kahate Hain

दीर्घ स्वर- वे स्वर मूल या ह्रस्व को उसी स्वर के साथ मिलने से जो स्वर बनता है, वह दीर्घ स्वर कहलाता है; जैसे- आ (अ+अ), ई (इ+इ), ऊ (उ+उ), ए (अ+इ), ऐ (अ+ए), ओ (अ+उ), औ (अ+ओ)। इनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है। इन्हें ’द्विमात्रिक स्वर’ भी कहते है।

प्लुत स्वर किसे कहते है – Plut Swar Kise Kahate Hain

प्लुत- जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे ’प्लुत’ कहते है। इसके लिए तीन का अंक लगाया जाता है। जैसे- ओ३म। हिंदी में प्राय: प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक संस्कृत में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे ’त्रिमात्रिक’ स्वर भी कहते है।

हिंदी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता है। अनुस्वार और विसर्ग व्यंजन है, जो स्वर के बाद, स्वर से स्वतंत्र आते है। इनके संकेत चिह्न इस प्रकार है-

अनुस्वार किसे कहते है – Anuswar Kise kahate Hain

⇒ अनुस्वार (ँ)- ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है, जैसे- छाँव ,गाँव, दाँत, माँझा, आँगन, साँचा इत्यादि।
अनुस्वार (ं)- यह स्वर के बाद आने वाला व्यंजन होता है, जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है; जैसे- पंगत, अंगूर, संजय, अंगद ।

निरनुनासिक किसे कहते है – Nirnunasik kise kahate hain

निरनुनासिक- मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते है; जैसे-इधर, उधर, आप, अपना घर इत्यादि।

विसर्ग किसे कहते है – Visarg kise kahate hain

विसर्ग (:)- अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है , इसका उच्चारण ’ह’ की तरह होता है। संस्कृत में इसका बाहुल्य है। हिंदी में अब

इसका अभाव होता जा रहा है, किन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है, जैसे- मनःकामना, पयःपान, दुःख आदि।

अयोगवाह किसे कहते है – Ayogwah kise kahate hain

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कथन है कि ’ये स्वर नहीं है और व्यंजनों की तरह ये स्वरों की पूर्व नहीं, पश्चात् आते है, इसलिए व्यंजन नहीं है। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को ’अयोगवाह’ कहते है।’’

अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर है, न व्यंजन; किन्तु ये स्वरों की सहायता से चलते है। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है; जैसे- अंगद, रंग। इस संबंध में

अयोगवाह का अर्थ है- योग न होने पर भी जो साथ बना रहे।

 व्यंजन किसे कहते है – Vyanjan Kise Kahate Hain

⇒ व्यंजन वर्ण वे हैं, जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ’अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ’अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण संभव नहीं, जैसे- क्+अ = क, र्+अ = र।

व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में वायु मुख में कहीं-न-कहीं  बाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। हिंदी में व्यंजन वर्णों की संख्या 33 है।

इनको निम्न प्रकार से बांटा गया हैं-

  1. स्पर्श
  2. अंतःस्थ
  3.  ऊष्म

स्पर्श व्यंजन क्या होते है ?

इन्हें कंठ, तालु, मूर्द्धा, दंत और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते है। इसलिए इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है। इन्हें हम ’वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है, क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए अलग -अलग वर्गों में विभक्त है। इन वर्गों के पाँच-पाँच व्यंजनों के पाँच वर्ग बना लिए गए है।

वर्ण किसे कहते है
वर्ण किसे कहते है

अंतःस्थ व्यंजन चार है- य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किंतु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अंतस्थ व्यंजन ’अर्द्धस्वर’ कहलाते है।

ऊष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगङ या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है।

ये चार है– श, ष, स, ह।

अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजन क्या होते है ?

उच्चारण में वायु छोड़ने की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद है-

  1. अल्पप्राण
  2. महाप्राण

जिनके उच्चारण में श्वास पूर्ण से अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ’हकार’ जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते है। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवा वर्ण अल्पप्राण व्यंजन है;

जैसे- क, ग, ङ; च, ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म। अंतःस्थ (य, र, ल, व) भी अल्पप्राण में ही है।

महाप्राण व्यंजनों के उच्चारण में ’हकार’ जैसी ध्वनि विशेषरूप से रहती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण है;

जैसे- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह। अब आप अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजनों को समझ गए होंगे

घोष और अघोष व्यंजन क्या होते है ?

नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्रियाँ झंकृत होती है, वे घोष व्यंजन कहलाते है, और जिनमें ऐसी झंकृति नहीं रहती, वे अघोष कहलाते है। ’घोष’ में केवल नाद का उपयोग होता है, जबकि ’अघोष’ में केवल श्वास का।

अघोष वर्ण- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स

घोष वर्ण- प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण, सारे स्वरवर्ण, य, र, ल, व और ह

हल्-

व्यंजनों के नीचे जब एक तिरछी रेखा ( ्) लगाई जाए, तब उसे हल् कहते है। ’हल्’ लगाने का अर्थ है कि व्यंजन में स्वरवर्ण का बिल्कुल अभाव है या व्यंजन आधा है। जैसे- ’ख’ व्यंजनवर्ण है, इसमें ’अ’ स्वरवर्ण की ध्वनि छिपी हुई है। यदि हम इस ध्वनि को बिल्कुल अलग कर देना चाहे, तो ’ख’ में हलंत लगाना आवश्यक होगा। ऐसी स्थिति में इसके रूप इस प्रकार होंगे- क्, ख्, ग,।

हिंदी में वर्तमान में प्रचलित नए वर्ण-

हिंदी वर्णमात्रा में पाँच नए व्यंजन- क्ष, त्र, ज्ञ, ड़ और ढ़– जोङे गए है। किंतु, इसमें प्रथम तीन स्वतंत्र न होकर संयुक्त व्यंजन है, जिनका खंड किया जा सकता है;

जैसे- क्+ष = क्ष; त्+र =त्र; ज्+ञ = ज्ञ।

अतः, क्ष, त्र और ज्ञ की गिनती स्वतंत्र वर्णों में नही होती। ड और ढ के नीचे बिंदु लगाकर दो नए अक्षर ड़ और ढ़ बनाए गए है। ये संयुक्त व्यंजन है। यहाँ ड़-ढ़ में ’र’ की ध्वनि मिली है। इनका उच्चारण साधारणतया मूर्द्धा से होता है। किंतु, कभी-कभी जीभ का अगला भाग उलटकर मूर्द्धा में लगाने से भी वे उच्चरित होते है।

दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने वर्ण किसे कहते हैं (परिभाषा, भेद और उदाहरण),Varn Kise Kahate Hain के बारे में बेसिक जानकारी प्राप्त की ,हम आशा करतें है कि आपने इस आर्टिकल से कुछ सीखा होगा ।

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Comments

  1. Sunil parmeshwar Kadu says

    12/05/2021 at 2:04 PM

    बहुत बहुत धन्यवाद ,सर जी.

    Reply
    • केवल कृष्ण घोड़ेला says

      12/05/2021 at 5:40 PM

      आभार ..

      Reply
  2. Nijam ram says

    13/05/2021 at 11:58 AM

    धन्यवाद सर

    Reply

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