रीतिकाल की पृष्ठभूमि || Ritikaal ki prsthbhumi || hindi sahitya

रीतिकाल की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

भाषा साहित्य के निर्माण में युगीन वातावरण का विशेष योगदान होता है। प्रत्येक युग का वातावरण राजनीति, समाज, संस्कृति और कला के मूल्यों द्वारा निर्मित होता है, इसलिए युग विशेष के साहित्य के अध्ययन के लिए तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का ज्ञान होना आवश्यक है। रीतिकाल की पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में विभिन्न परिस्थितियों का विवरण निम्नलिखित है

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थिति

  • राजनीतिक दृष्टि से काल मुगलों के शासन के वैभव के चरमोत्कर्ष और उसके बाद उत्तरोतर काल के हृास, पतन और विनाश का काल था। शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल वैभव अपनी चरम सीमा पर था। राजदरबारों में वैभव, भव्यता और अलंकरण प्रमुख था। राजा और सामन्त मनोरंजन के लिए गुणीजनों, कवियों और कलाकारों को प्रश्रय देते थे। जहाँगीर ने अपने शासनकाल में राज्य का विस्तार किया था, उसे शाहजहाँ ने दक्षिण भारत तक विस्तृत कर दिया।
  • शाहजहाँ के बाद औरगंजेब ने जब सता सँभाली तो धार्मिक उपद्रव शुरू हो गए, परिणामस्वरूप उसका शासनकाल इन्हीं उपद्रवों में समाप्त हो गया। इसके पश्चात् उतरवर्ती मुगल शासन प्रारम्भ हुआ। यह शासन धीरे-धीरे कमजोर होता गया और मुगलों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
  • अवध के विलासी शासकों का अन्त भी मुगल साम्राज्य के समान कारुणिक रहा। राजस्थान में भी विलास और बहुपत्नी प्रथा इतनी बढ गई थी कि औरगंजेब के बाद राजपुरुष कुचक्रों, षड्यन्त्रों और आन्तरिक कलह के शिकार होकर पतनोन्मुख हो गए। बिहारी के काव्य में वर्णित मुगलकालीन वैभव, विलास का समर्थन हाॅकिन्स ने अपने यात्रा वृतान्त में किया है।

रीतिकाल की सामाजिक परिस्थिति

  • सामाजिक दृष्टि से इस काल को आदि से अन्त तक घोर अधःपतन का काल कहना चाहिए। इस काल में सामान्तवाद का बोलबाला था, जिस कारण सामन्तशाही का जनसामान्य पर भी पङ रहा था। सामाजिक व्यवस्था का केन्द्रबिन्दु बादशाह था। इस वर्ग के श्रमजीवी कृषक, सेठ-साहूकार, व्यापारी आदि सभी शोषित थे।
  • यहाँ जनसाधारण की चिकित्सा का प्रबन्ध भी नहीं था। ऐसी दयनीय दशा में लोग भाग्यवादी या नैतिक मूल्यों से रहित थे। कार्य सिद्धि के लिए उत्कोच (घूस) लेना-देना साधारण बात थी, जिस कारण विलासिता की प्रवृति बढ गई और नारी मात्र ’भोग्या’ बनकर रह गई थी। कन्याओं का अपहरण अभिजात्य वर्ग के लोगों के लिए साधारण बात थी, इसलिए अल्पायु में ही लङकियों का विवाह कर दिया जाता था। यहाँ बहु विवाह की प्रथा भी प्रचलित थी तथा अभिजात्य संस्कृति और नैतिक मूल्यों का हृास हो गया था।

रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थिति

  • सामाजिक परिस्थिति के समान सांस्कृतिक परिस्थिति भी अत्यन्त दयनीय थी। अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ की उदारवादी नीति भी औरगंजेब के शासनकाल में समाप्त हो गई थी। औरगंजेब की कट्टरता के कारण धार्मिक कार्य व्यापार भी नहीं हो पा रहा था।
  • अन्धविश्वास इतना बढ गया था कि हिन्दू मन्दिरों में तथा मुसलमान पीरों के तकिए पर जाकर मनोरथ सिद्ध करते थे। जनता के अन्धविश्वास का लाभ पुजारी और मौलवी उठाते थे। रामलीलाओं और रामचरितमानस के पाठ का प्रभाव केवल मनोविनोद तक ही सीमित था।

रीतिकाल की साहित्यिक परिस्थितियाँ

  • साहित्य और कला की दृष्टि से यह काल अत्यन्त समृद्ध रहा है। इस काल के कवि साधारण परिवार से होते थे, परन्तु उन्हें सही वृति (जीविका) मिल जाती थी एवं उनकी गणना प्रतिष्ठित लोगों में होती थी।
  • कवियों का उचित सम्मान एवं प्रतिष्ठा कला को प्रोत्साहित करने के लिए होता था। वे चमत्कारपूर्ण काव्य रचना करने को कवि-कर्म की सफलता मानते थे, जिस कारण उनका काव्य श्रृंगार के संकुचित क्षेत्र में ही सिमटकर रह गया था।

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