आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत समासोक्ति अलंकार (Samasokti Alankar) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।
समासोक्ति अलंकार
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समासोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर कार्य, लिंग या विशेषण की समानता के कारण प्रस्तुत के कथन में अप्रस्तुत व्यवहार का समारोप होता है, वहाँ पर समासोक्ति अलंकार होता है।
समासोक्ति शब्द समास+उक्ति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – संक्षेप कथन।
प्रस्तुत का वर्णन हो और अप्रस्तुत की प्रतीति हो – यही संक्षेप कथन है।
जहाँ उपमेय का वर्णन इस प्रकार किया जाये कि उसमें अप्रस्तुत का ज्ञान भी हो, या व्यंजना से अप्रस्तुत की अभिव्यक्ति हो तब वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है। या जब प्रस्तुत द्वारा अप्रस्तुत का बोध कराया जाता है तब समासोक्ति अलंकार होता है, किन्तु यहाँ प्रस्तुत की प्रधानता होती है। समासोक्ति, अन्योक्ति का उल्टा होता है।
जहां वाच्यार्थ के साथ-साथ व्यंग्यार्थ भी निकलता है परन्तु वाच्यार्थ की ही प्रधानता होती है। वहां समासोक्ति अलंकार होता है।
’’प्रस्तुत के वर्णन में समान अर्थ सूचक विशेषणों के द्वारा अप्रस्तुत का बोध होता है, वहां समासोक्ति अलंकार होता है।’’
समासोक्ति अलंकार के उदाहरण
’’बड़ो डील लखि पील को, सबन तज्यो बन थान।
धनि सरजा तू जगत में, ताको हर्यो गुमान।।’’
’’मिलहु सखी हम तहवाँ जाहीं,
ज्हां जाई पुनी आउब नाहीं।
सात समुद्र पार वह देसा,
कित रे मिलन कित आब संदेशा।’’
प्रस्तुत अर्थ – पद्मावती के ससुराल जाने का वर्णन है।
अप्रस्तुत अर्थ – किसी मानव के परलोक जाने का भी लिया गया।
’’वन-वन उपवन,
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव वय के अलियों का गुंजन।’’
प्रस्तुत अर्थ – भ्रमरों का
अप्रस्तुत अर्थ – नवयुवक कवियों का
’’सिन्धु-सेज पर धरा-वधु अब तनिक संकुचित बैठी सी।’’
प्रस्तुत अर्थ – धरा वधू।
अप्रस्तुत अर्थ – नायिका।
’’कुमुदिनी हूँ प्रफुल्लित भयी साँझ कलानिधि जोई।’’
प्रस्तुत अर्थ – साँझ (संध्या) के समय में चंद्रमा को देखकर कुमुदिनी का खिल उठना।
अप्रस्तुत अर्थ – साँझ (संध्या) के समय में कलाओं के निधि (प्रियतम) को देखकर नायिका का खिल उठना।
’’हृदय जन के जो कण्ठ का हार होता,
मुदित मधुकरी का जीवनाधार होता।
वह कुसुम रंगीला धूल में जा पड़ा है,
नियति! नियम तेरा भी बड़ा कड़ा है।’’
प्रस्तुत अर्थ – फूल का टूटकर गिरना।
अप्रस्तुत अर्थ – किसी युवा की अकाल मृत्यु होना।
’’नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहि विकास यहि काल।
अली कली ही सों बंध्यो, आगे कौन हवाल।।’’
प्रस्तुत अर्थ – जयसिंह
अप्रस्तुत अर्थ – अलि, पराग, मधु
’’सो दिल्ली अस निबहुर देसू।
कोई न बहुरा कहइ संदेसु।।
जो गवनै सो तहाँ कर होई।
जो आवै किछु जान न सोई।।’’
प्रस्तुत अर्थ – दिल्ली
अप्रस्तुत अर्थ – परलोक
समासोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण
’’को छूट्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात।
ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत, त्यों-त्यों उरझत जात।।’’
’’जग के दुख दैन्य शयन पर यह रुग्णा जीवन-बाला।
रे कब से जाग रही वह आँसू की नीरव माला।
पीली पर निर्बल कोमल कृश देहलता कुम्हलाई।
विवसना लाज में लिपटी साँसों में शून्य समाई।’’
’’उयउ अरुन अवलोकहु ताता।
प्ंकज कोक लोक सुख दाता।’’
’’माली आवत देख करि, कलियाँ करैं पुकार।
फूलि फूलि चुनि लई, काल हमारी बार।।’’
’’स्वारथ सुकृत न श्रमु बृथा, देखि बिहंग विचारि।
बाज, पराए पानि परि, तू पच्छीनु न मारि।’’
’’बाहु तुम्हारी छूकर भर उठती थी जो उल्लास से।
दुर्बल, हत-सौन्दर्य जय श्री है तव चिर वियोग के त्रास से।’’
’’लोचन मग रामहि उर आनी।
दीन्हें पलक कपाट सयानी।।’’
’’ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार।
तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार।।’’
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमनें काव्यशास्त्र के अंतर्गत समासोक्ति अलंकार (Samasokti Alankar) को पढ़ा , इसके उदाहरणों को व इसकी पहचान पढ़ी। हम आशा करतें है कि आपको यह अलंकार अच्छे से समझ में आ गया होगा …धन्यवाद
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